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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Nov 5, 2016

आतंकी -आरोपी--अपराधी और मुठभेड़ --एक विश्लेषण

      आतंकी -आरोपी--अपराधी और मुठभेड़ --एक विश्लेषण

31 अक्तूबर 2016 को भोपाल के अचारपुरा के पास केंद्रीय जेल से भागे आठ क़ैदियो {{हवालाती }} पुलिस की गोलियो से ढेर कर दिये गए | सभी मारे गए लोगो पर "”लूट - डकैती - हत्या "” के आरोप थे | प्रचार -प्रसार माध्यमों ने इन सभी मारे गए लोगो को "”आतंकी "” की भांति संबोधित किया | यह बात मेरे लिए थोड़ा अचम्बेभे की बात थी | क्योंकि मारे गए मात्र एक व्यक्ति के विरुद्ध ही सज़ा का आदेश सक्षम अदालत द्वारा पारित किया गया था | उसे उपरोक्त अपराधो का दोषी तो बताया जा सकता है | परंतु शेष सातो व्यक्ति मात्र "”आरोपी "”ही थे अपराधी नहीं | कानून की किताब -पुलिस -जेल के नियमो के अनुसार मई यह तथ्य चुनौती देते हुए लिख रहा हूँ |

यदि कोई संगठन आतंकी घोसीत किया जा चुका है – तभी उसके किसी सदस्य को {{ अदालत द्वारा सिद्ध पुलिस द्वारा नहीं }} आतंकी निरूपित किया जा सकता है | सुप्रीम कोर्ट ने आसाम के मामले मे यह फैसला दिया है | यह फैसला Disturb Area Act मे गिरफ्तार एक व्यक्ति की याचिका पर दिया गया था | इस मामले मे आठो व्यक्ति "”प्रतिबंधित संगठनStudent Islamik Movement Of India .””.....के सदस्य थे -यह किसी भी अदालत मे साबित नहीं किया गया था | अतः इन्हे आतंकी नहीं कहा जा सकता | ना तो ऐसा दस्तावेज़ो मे लिखा जा सकता है नाही प्रचार और प्रसार माध्यमों द्वारा निरूपित किया जा सकता है |

अब पुलिस द्वारा कहे जा रहे मुठभेड़ मे यदि हम पुलिस रिपोर्ट को देखे -----तो काफी अचूक कामिया है | सबसे पहले आठों व्यक्ति "”इष्तहारी मुजरिम "” नहीं थे | जिनहे ---ज़िंदा या मुर्दा लाने की सार्वजनिक घोसना हुई हो | कानून के अनुसार "”जीवन का अधिकार न्यायालय की प्रक्रिया द्वारा ही छिना जा सकता है "” किसी अन्य रूप से नहीं | कुछ अधिकारी गण कह रहे है की "”मुठभेड़ "”” के समय पुलिस के पास ऐसे अधिकार आ जाते है | मैंने जब एक अधिकारी से पुलिस मैनुअल की उस व्यसथा // पैरा के बारे मे जानन्ना चाहा तो वे बोले बता दूँगा | अभी तक उनका उत्तर नहीं मिला | दूसरे वारिस्ठ ने पुलिस दारा "” आतम रक्षा "” मे की गयी कारवाई बताया | भारतीय दंड संहिता मे देश के सभी नागरिकों को आत्म रक्षा -परिवार रक्षा - संपाति रक्षा "” के लिए शक्ति और साधन के प्रयोग की"”छूट"”| परंतु उसी मे यह भी है की हमलावर को "”क़ाबू"” मे करने के लिए पर्याप्त शक्ति का ही उपयोग करना चाहिए | अब यही एक कारण Self Defence के अधिकार को बहुत सीमित कर देता है | क्योंकि अदालत मे यह सिद्ध करना मुश्किल होता है |

अंत मे सुप्रीम कोर्ट द्वारा "ऐसी मुठभेडॉ"” के लिए राज्य सरकारो को "”सोलह सूत्री "” गाइड लाइन 2014 मे दी गयी थी | उसका तो पालन हो नहीं रहा

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