आतंकी
-आरोपी--अपराधी
और मुठभेड़ --एक
विश्लेषण
31 अक्तूबर
2016 को
भोपाल के अचारपुरा के पास
केंद्रीय जेल से भागे आठ क़ैदियो
{{हवालाती
}} पुलिस
की गोलियो से ढेर कर दिये गए
| सभी
मारे गए लोगो पर "”लूट
- डकैती
- हत्या
"” के
आरोप थे | प्रचार
-प्रसार
माध्यमों ने इन सभी मारे गए
लोगो को "”आतंकी
"” की
भांति संबोधित किया |
यह
बात मेरे लिए थोड़ा अचम्बेभे
की बात थी | क्योंकि
मारे गए मात्र एक व्यक्ति के
विरुद्ध ही सज़ा का आदेश सक्षम
अदालत द्वारा पारित किया गया
था | उसे
उपरोक्त अपराधो का दोषी तो
बताया जा सकता है |
परंतु
शेष सातो व्यक्ति मात्र "”आरोपी
"”ही
थे अपराधी नहीं |
कानून
की किताब -पुलिस
-जेल
के नियमो के अनुसार मई यह तथ्य
चुनौती देते हुए लिख रहा हूँ
|
यदि
कोई संगठन आतंकी घोसीत किया
जा चुका है – तभी उसके किसी
सदस्य को {{ अदालत
द्वारा सिद्ध पुलिस द्वारा
नहीं }} आतंकी
निरूपित किया जा सकता है |
सुप्रीम
कोर्ट ने आसाम के मामले मे यह
फैसला दिया है |
यह
फैसला Disturb Area Act
मे
गिरफ्तार एक व्यक्ति की याचिका
पर दिया गया था |
इस
मामले मे आठो व्यक्ति "”प्रतिबंधित
संगठनStudent Islamik
Movement Of India .””.....के
सदस्य थे -यह
किसी भी अदालत मे साबित नहीं
किया गया था | अतः
इन्हे आतंकी नहीं कहा जा सकता
| ना
तो ऐसा दस्तावेज़ो मे लिखा जा
सकता है नाही प्रचार और प्रसार
माध्यमों द्वारा निरूपित
किया जा सकता है |
अब
पुलिस द्वारा कहे जा रहे मुठभेड़
मे यदि हम पुलिस रिपोर्ट को
देखे -----तो
काफी अचूक कामिया है |
सबसे
पहले आठों व्यक्ति "”इष्तहारी
मुजरिम "” नहीं
थे | जिनहे
---ज़िंदा
या मुर्दा लाने की सार्वजनिक
घोसना हुई हो |
कानून
के अनुसार "”जीवन
का अधिकार न्यायालय की प्रक्रिया
द्वारा ही छिना जा सकता है "”
किसी
अन्य रूप से नहीं |
कुछ
अधिकारी गण कह रहे है की "”मुठभेड़
"”” के
समय पुलिस के पास ऐसे अधिकार
आ जाते है | मैंने
जब एक अधिकारी से पुलिस मैनुअल
की उस व्यसथा //
पैरा
के बारे मे जानन्ना चाहा तो
वे बोले बता दूँगा |
अभी
तक उनका उत्तर नहीं मिला |
दूसरे
वारिस्ठ ने पुलिस दारा "”
आतम
रक्षा "” मे
की गयी कारवाई बताया |
भारतीय
दंड संहिता मे देश के सभी
नागरिकों को आत्म रक्षा -परिवार
रक्षा - संपाति
रक्षा "” के
लिए शक्ति और साधन के प्रयोग
की"”छूट"”|
परंतु
उसी मे यह भी है की हमलावर को
"”क़ाबू"”
मे
करने के लिए पर्याप्त शक्ति
का ही उपयोग करना चाहिए |
अब
यही एक कारण Self
Defence के
अधिकार को बहुत सीमित कर देता
है | क्योंकि
अदालत मे यह सिद्ध करना मुश्किल
होता है |
अंत मे
सुप्रीम कोर्ट द्वारा "ऐसी
मुठभेडॉ"” के
लिए राज्य सरकारो को "”सोलह
सूत्री "” गाइड
लाइन 2014 मे
दी गयी थी | उसका
तो पालन हो नहीं रहा |
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