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Oct 25, 2016

समाजवादी पार्टी और टाटा संस मे विवाद का मूल क्या और कौन ?

समाजवादी पार्टी और टाटा संस मे विवाद का मूल क्या और कौन ?

अक्तूबर के आखिरी सप्ताह के प्रारम्भ से समाजवादी पार्टी मे हो रहे "”गृह युद्ध "” को लेकर मिश्रित प्रतिकृयाए है | जनहा राम मंदिर आंदोलन के समर्थक इसे ''दैवी दंड ''' अथवा '''यादवी संग्राम ''' बता रहे है ,,वही पिछड़े वेर्ग के लोग इसे अपने हितो पर कुठराघात मान रहे है | मुख्य मंत्री अखिलेश सिंह सारे फसाद की जड़ अमर सिंह को मानते है | वही दूसरे राजनीतिक प्रतिद्वंदी इस सारे महाभारत मे किसी "”शकुनि "” को खोज रहे है |
कुछ ऐसा ही घटना क्रम मुंबई के टाटा हाउस मे हुआ जहा टाटा संस के निदेशको की बैठक मे अचानक से सदस्यो ने निर्धारित एजेंडा को स्थगित करते हुए एक लाइन का प्रस्ताव पेश कर दिया | जिसमे सायरस मिस्त्री को के विरुद्ध अविसवास व्यक्त करते हुए उन्हे चेयरमैंन पद से हटाने का "”सर्व सम्मति "”” से प्रस्ताव पारित कर दिया | उसके बाद मिस्त्री न्रे अपना इस्तीफा बोर्ड को सौप दिया | परंतु इस अचानक बदलाव से वे स्वयम भी हतप्रभ थे | क्योंकि उन्हे इस सारी कारवाई की भनक भी नहीं लगी थी |
कुछ ऐसा ही सरप्राइज़ लखनऊ मे भी हुआ था | जब छोटी सी बात पर अखिलेश ने चार मंत्रियो को बरख़ासत कर दिया | यद्यपि वे जानते थे की पार्टी मे अभी भी उनके पिता मुलायम सिंह का ही वर्चस्व है | भले ही विधान मण्डल दल मे उनके समर्थक ज्यादा हों | परंतु अभी भी चुनाव जीतने के लिए"”” साइकिल और नेता जी "”” ज़रूरी है | परंतु जवानी मे जोश ज्यादा और समझ कम का परिणाम था की चाचा शिवपाल से मुठभेड़ हो गयी | भले ही चैनलो के "””महान ज्ञानी राजनीतिक संपादक और विशषज्ञ "” तो पार्टी की टूट की भविष्य वाणी कर रहे थे --जबकि प्रदेश के मिजाज और जातीय समीकरण से लड़े जाने वाले चुनाव के अनुसार --सुलह अनिवार्य थी | क्योंकि अहंकार कितना भी बड़ा हो परंतु सामने खड़ी चुनौती {चुनाव} मे पराजित होने का मतलब वे जानते थे | भावी सरकार उन लोगो के साथ कितना मधुर व्यवहार करेगी ? एवं वही हुआ और अखिलेश का गुस्सा पिता और चाचा को ही शांत करना पड़ेगा | वैसे यह तार्किक बयान है | कोई भविष्यवाणी नहीं |

अब टाटा हाउस की खबरों के अनुसार सायंकाल हुए इस घटना क्रम के बाद अन्तरिम चेयरमैन रत्न टाटा ने सबसे पहले प्रधान मंत्री कार्यालया को इस परिवर्तन की सूचना दी | आम तौर पर ऐसे बदलाव कंपनी का मसला होता है | परंतु कभी - कभी देश के सर्वोच कार्यकारी अधिकारी को भी विश्वास मे लिया जाता है | इस बारे मे दो बाते सामने आ रही है की क्या यह सब हाल ही मे रक्षा सौदे मे बड़े ठेका मिलने के कारण एहतियात के तौर पर सरकार को बताया गाय | दूसरी खबर यह है की सायरस ने पी एम ओ की मंशा का पालन नहीं किया था | जिसके कारण दिदेशक मण्डल के सदस्यो को सरकार की ओर से बता दिया गया था की "” शासन "” नाराज़ है | अब इसका अर्थ व्यावसायिक जगत के लोग अच्छी तरह से समझते है | की पहले आयकर फिर छापा फिर कंपनी ला बोर्ड आदि अनेक सरकारी संस्थाओ का कोप सहना पड़ेगा | इसलिए सभी निदेशको ने एक रॉय से मिस्त्री को हटाने पर सहमति दी| इसीलिए यह सब अचानक हुआ |


फिलहाल शक की सुई एक ही व्यक्ति की ओर उठ रही है जैसे की अमरसिंघ की ओर थी |

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