और सच्चाई की वह आवाज
चिर निद्रा मे सो गयी .......
दुनिया उन्हे
बुच साहब और बेतुल जिले के आदिवासी
उन्हे बुच बाबा के नाम से जानते थे | वैसे विगत तीस सालो मे लोगो को उनके आई ए एस अफसर काल के बारेS मे ज्यादा जानकारी नहीं थी ,
क्योंकि वे हमेशा एक आम आदमी की तरह ही ज़िंदगी जिये | उनके जुझारू पैन और हक़ के लिए लड़ने वालो की
मदद के लिए हमेशा तैयार रहने वाले जीवट व्यक्ति थे | वे कानून और संविधान की आत्मा
को हमेशा महत्व देते थे –फिर चाहे कोई भी सरकार हो इस से कोई फर्क नहीं
पड़ता था | यही कारण
था की मुख्य मंत्री अर्जुन सिंह से वन विभाग की सरकार की नीतियो से असहमत हो
कर उन्होने पचास वर्ष की आयु मे आई ए एस की सेवा से इस्तीफा देकर अपने को पूर्ण कालिक सामाजिक सरोकारों से जोड़ लिया | श्यामचरण शुक्ल के मुख्य
मंत्रित्व काल मे उन्होने भोपाल विकाश प्राधिकरण के आद्यकछ और नगर निगम के मुख्य कार्यकारी के रूप मे
प्रदेश की राजधानी को नया रूप दिया |मतलब नया भोपाल
उनही की देन है | एक समय वे नगरीय प्रशासन विभाग के सचिव भी रहे ---यानि एक साथ तीन
दायित्व --- बातचीत के दौरान उस समय को याद करते हुए वे बताते थे की
प्राधिकरण के अध्यकछ के रूप मे प्रस्ताव शासन को भेजते थे और सचिव
के रूप मे वे उसे वित्तीय संसाधनो से युक्त कर स्वीकरती देते थे | यही नगर निगम के साथ भी होता था | अनेक लोगो को आश्चर्य हो सकता है की इन स्थितियो मे कोई कैसे “””न्याय””
कर सकता है ??क्योंकि तीनों दायित्वों की जरूरत और दायित्व
अलग – अलग होते है | परंतु यह उनकी प्र्शसनिक कार्य कुशलता
थी उनके किसी भी निरण्य पर ना तो
राजनाइटिक नेत्रत्व और ना ही उच्च
अधिकारियों ने कोई एतराज़ किया हो |
उनका जन्म इंपीरियल सिविल सर्विस के अधिकारी श्री नीलम बुच
और श्रीमति कुसुम गुलाब के घर मे
1934 को हुआ | उनके पिता का विशेस योगदान भारत की देसी रियासतो को संघीय ढाँचे मे लाने का था | सरदार पटेल ने यह काम दो अफसरो वी पी मेनन और नीलम बुच के सुपुर्द कर रखा
था | जूनागढ़ के नवाब
ने जब अपनी प्रजा मर्ज़ी के विरुद्ध पाकिस्तान
मे शामिल होने का षड्यंत्र कर रहा था तब नीलम बुच की चतुराई से उसे रियासत छोड़ कर पाकिस्तान भागना पड़ा | “”जन “” के प्रति
उनका यह झुकाव उनकी बिरादरी वालो के लिए हमेशा से ही “”अटपटा””’
लगता था | एक आइ सी एस की संतान होने के बावजूद उनमे “”इलिट”” होने
का भाव कभी नहीं आया यही उनकी खूबी थी | जिस मजबूती से वे
अपने सीनियर अफसर से या
मंत्री से बात करते थे वे उस से
नरमी से अपने अधीन के कर्मचरियों
से बात करते थे | अपनी बात पर वे ‘’डटे’’ जरूर रहते थे परंतु वास्तविक तथ्य जानने के बाद उन्हे अपना फैसला
बदलने अथवा चूक को स्वीकार करने मे कोई झिझक
नहीं होती थी |
कम लोगो को ही मालूम होगा की पूर्व
प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह को उन्होने कई
मौको पर उनको पत्र लिख कर टेक्निकल शिक्षा
–और आइ आइ टी तथा जाती आधारित
आरक्षण को आर्थिक आधार पर किए जाने
उनको पत्र लिखा था |यह बात और है की मनमोहन सिंह ने
इन पात्रो के आधार पर कोई कारवाई नहीं की | परंतु कैम्ब्रिज
मे मनमोहन सिंह के सीनियर रह चुके
महेश बुच न केवल आर्थिक विषयो मे महारत रखते थे वरन वे विदेश नीति मे देश की
प्रभुसत्ता के प्रति बहुत सजग थे | अपने एक पत्र द्वारा उन्होने तत्कालीन प्रधान मंत्री को
को कहा था की किसी भी अमेरिकी खुफिया
अफसर को रॉ या खुफिया एजन्सी के बड़े अधिकारियों से मिलने की जरूरत नहीं है | इन विभागो के उप संचालक से बड़े अधिकारी से अमरीकियों को मिलने देने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि वे
हमारे बड़े से –बड़े अधिकारी को इसी स्तर के अफसरो से मिलाते है | तब हमे भी जस का तस करना चाहिए | उन्होने अफगानिस्तान को विकास मे
मदद देने का भी सुझाव दिया था | एक पूर्व अधिकारी द्वारा जिस
निडरता द्वारा देश के प्रधान मंत्री
को पत्र लिखा वह अपने आप मे दर्शाता है की
वे अपनी सोच को तथ्यतामक रूप से मजबूत करने के बाद
ही लिखते अथवा बोलते थे |
महेश नीलकठ बूच स्वयं
तो अखिल भारतीय सेवा मे थे ही , उनके दोनों अनुज भी
इन सेवाओ मे रह कर देश की सेवा की | परंतु बुच साहब ने 50 वर्ष की आयु मे नौकर शाह
का चोला उतारने का निश्चय किया ,और अवकाश ले लिया | और फिर वे
प्राणपन से जनता जनार्दन की सेवा और
“”व्यसथा “” की खामिया दूर करने के
एकल प्रयास मे जूट गए | 1984 के बाद उन्होने अपनी एक नयी छवि स्थापित की |
जो उनके जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि बनी ---- और इसी के साथ वे देश के उन “साहसी “’नौकरशाह
“”की गिनती मे होने लगी जो सत्ता के शिखर
पर बैठे स्वयंभू नेताओ को “”शीशा””
दिखाने का काम शुरू कर दिया | जो अंतिम समय तक चलता रहा || भोपाल के मास्टर प्लान मे जब
उन्हे लगा की कुछ मंत्रियो और –अफसरो तथा धन्ना सेठो को लाभ पाहुचने का
प्रयास किया जा रहा | इस हेतु स्थापित मानदंडो की खुली अवहेलना की जा रही है | उन्होने तत्परता से इसकी पोल खोलने का आवाहन किया | राजधानी के कुछ प्रबुध नागरिक और
पत्रकार – आर्किटेक्ट – स्वयं सेवी संस्थाओ को लेकर मुहिम कहलाई | अखबारो
ने भी उनके प्रयासो को स्थान दिया –परिणाम यह हुआ की भ्रष्ट अफसरो और मंत्रियो की दुरभिसंधि को नाकाम
कर दिया आखिर मे मुख्य मंत्री ने इस
नागरिक आवाज को सम्मान देते हुए
प्रस्तावित मास्टर प्लान को खारिज कर दिया
| क्या अब कोई ऐसे प्रयास के लिए सत्ता के शिखर पर बैठे
अफसरो और नेताओ से लड़ाई मोल लेगा ?? यह प्रश्न भी बुच साहब के साथ ही सो गया | अब फिर इंतज़ार रहेगा
नागरिक स्वतन्त्रता को सम्मान दिलाने वाली
आवाज का ???
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