ग्रीस अर्थात यूनान के दिवालिये होने का संकेत- कारण चुनावी वादे
कुछ दिन पूर्व रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के
गवर्नर रघुरामन ने एक बयान मे चेतावनी दी थी की “”विश्व की मौजूदा आर्थिक स्थिति
1930 की मंडी की ओर ले जा सकती है “”” | उस बयान पर देश के अनेकों दक्षिण पांति अर्थ शास्त्रियों ने ‘’’ अतिरंजित ‘’’और आधारहीन ‘’’’
घोषित किया था | परंतु यूनान द्वारा अन्तराष्ट्रिय मुद्रा
कोष को उधारीकिश्त चुकाने मे असमर्थता जताने पर आधे दर्जन “”विकाशशील’’’देशो की अर्थ व्यवस्था डगमगाने का आसन्न खतरा न केवल मडराने लगा है वरना उनके यहा के स्टाक एक्सचेंज मे भरी गिरावट आई है |
ब्रिटेन – अमरीका –जर्मनी –इटली – स्पेन-ऑस्ट्रीया और नीदरलैंड और फ़िनलैंड जैसे देशो के अलावा मुद्रा कोश तथा एयोरोपियन
बैंक का कूल मिला कर 271 अरब यूरो डालर क़र्ज़ की
देनदारी है | वित्तीय प्रबंधन के लिए एटीएम मशीनों से एक
व्यक्ति को एक दिन मे 60 यूरो डालर ही निकाल सकेगा | चूंकि अब
यूरो मुद्रा से ग्रीस की मुद्रा की स्ंबधत्ता खतम हो जाएगी ,अर्थात
“”ड्रेकमा की क्रय शक्ति स्थापित करनी हो
जीआई | वाहा के केन्द्रीय बैंक के लिए दिवालिया की स्थिति मे
यह ‘दर निश्चित करना अत्यंत मुश्किल होगा | यूनान के लोग “’’महाजन देशो “”” द्वारा लगाई जा रही
पाबंदियों से नाराज हो कर सदको पर उतार आए है | व्हा
खाने-पीने की वस्तुओ की किल्लत महसूस की जाने लगी है |
पर आखिर यह सब कैसे हुआ ?? यह प्रश्न आज ग्रीस के नागरिक अपने “”चुने हुए शासको से पुंछ रहे है
‘’’’? विगत जनवरी मे
हुए चुनावो मे सिपरास पार्टी जो इस समय सत्ता मे है उसने देश के लोगो से वादा किया
था की ‘”किसी भी प्रकार की शासकीय खर्चो मे कटौती नहीं की
जाएगी | क्योंकि तत्कालीन सरकार ने मुद्रा कोश की सलाह पर शासकीय
खर्चो मे काफी कटौती की थी जिसके परिणाम स्वरूप वनहा करामचरियों की ‘’’छटनी”” की थी | हटाये गए करामचरियों के अशन्तोष को
भुना कर सिप्रस ने चुनावो मे जीत हासिल की
| उन्होने चुनाव मे वादा किया था की देश मे जन कलयंकारी
सुविधाओ और योजनाओ को बंद नहीं किया जाएगा | छ्ह माह मे ही
देश की आर्थिक स्थिति इतनी बिगड़ गयी की अब यूरोपियन संघ ग्रीस को ‘’बाहर ‘’कर रहा है |
यूरोपियन संघ मे शामिल होने के बाद
सदस्य देशो ने व्यापार द्वारा सभी देशी की वित्तीय स्थिति और “””विकास दर “”” को
उत्तम बनाने का वादा किया था ||| जैसे
हमारे कुछ अर्थशास्त्री ‘’’दहाई अंको ‘’’’की विकास दर प्राप्त करने के लिए देश
की समूची जनता के भाग्य को दाव पर लगा रहे है | कुछ ऐसा ही
वादा वनहा के राजनेताओ ने अपनी जनता से किया था | परिणाम
क्या हुआ ...........| राजनेताओ द्वरा ‘’यथार्थ को छुपाकर’’’’ ‘’’जुमले बाज़ी ‘’’’करने का परिणाम इतना घटक हो सकता है –यह
भारत की जनता को भी समझ लेना चाहिए | रेसेर्व बैंक के गवर्नर
रघुरामन की चेतावनी के जवाब मे मुद्राकोष ने एक श्वेत पत्र जारी किया था | लोंडन से जारी इस पत्र मे सात दिन पूर्वा स्थितिया ‘’नियंत्रण’’मे होने का दावा किया गया था –परंतु अब तो
सारा सती दुनिया के सामने है |
चुनावो मे पार्टिया वे ही
वादे करे जिनको वे ‘’उपलब्ध
संसाधन’’’’ के सहारे पूरा कर सकते है ------निर्वाचन आयोग ने
एक बार इस ओर पहल करने का विचार किया था परंतु
भासण देने के अलावा बात कुछ आगे नहीं बड़ी | ज़रूरत है की जन प्रतिनिधियों के खर्चो और नौकरशाही के
अफलातून द्वारा संक मे आकर ‘’प्रयोग ‘’’ करने पर रोक लगे | वरना चेतावनी सही होने मे देर
थोड़े ही लगेगी
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