केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने दिल्ली के उप राज्यपाल नजीब जंग को प्रदेश के अफसरो की नियुक्ति और तबादले के अधिकार को ""सर्वोच्च "" बताते हुए जो राजाज्ञा जारी की थी -वह स्व्यमेव राजनीति से प्रेरित और संविधान की मंशा के विपरीत प्रतीत होती थी | परंतु देश के वित्त मंत्री जो सूचना मंत्रलाया के भी मंत्री है -उन्होने अपनी प्रैस वार्ता मे केजरीवाल को सलाह दी थी की वे संविधान पड़े | उन्होने भी मोदी सरकार का बचाव करते हुए उप राज्यपाल को '''शासन '''के मामले मे अंतिम आदेश देने वाला निरूपित किया था | वैसे वितता मंत्री अरुण जेटली पेशे से वकील है और और उनके विधिक ज्ञान को चुनौती नहीं दी जा सकती --परंतु जिस प्रकार ''बचाव'' पक्ष का वकील सबूतो के अभाव के बाद भी दलीलों की लफ़्फ़ाज़ी के सहारे अदालत को भरमाने की कोशिस करता है --वैसा ही कुछ जेटली जी ने भी किया है | परंतु दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक याचिका पर निरण्य देते हुए कहा की दिल्ली की सरकार को किसी भी केन्द्रीय करमचारी के वीरुध एंटी करपसन ब्यूरो को जांच का आदेश देने का अधिकार है | यह मामला दिल्ली पुलिस के एक हैड कांस्टेबल के वीरुध था ||अदालत ने उक्त याची की जमानत की अर्ज़ी भी कहरीज कर दी |
इस फैसले ने ऐसे वक़्त पर मोदी सरकार को झटका दिया है जबकि वे अपने ""राज्यारोहण"" की पहली वर्षगांठ माना रहे थे | राजनीतिक हालको मे नजीब के माध्यम से केजरीवाल को घेरने की कवायद को , प्रधान मंत्री की दिल्ली चुनावो मे भारतीय जनता पार्टी की करारी पराजय की ""खीज""निकालने की कोशिस के रूप मे ही देखा जा रहा है | केंद्र द्वारा एक चुनी हुई सरकार को अपने मातहतो के तबादले और नियुक्ति के अधिकार छिनना -पूरी तरह गैर राजनीतिक और लोकतन्त्र का विरोधी कदम था | वैसे उम्मीद यह की जा रही थी की केजरीवाल सरकार स्वयं सुप्रेम कोर्ट का सहर ले सकती है | संविधान के अनुसार यदि केंद्र और किसी राज्य के मध्य विवाद हो तो यह सुप्रीम कोर्ट के प्रारम्भिक छेत्राधिकार मे आता है | यदि ऐसा हुआ तो मोदी सरकार को मुंह की खानी पद सकती है वैसे यह विवाद अभी भी राष्ट्रपति के सम्मुख विचारधीन है |
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