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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

May 13, 2015

प्रजा को नागरिक का दर्जा मिला मैगना कार्टा और बिल ऑफ राइट्स से

    इंग्लंड के रुनिमेड मीडोज़  मे सन 1215 मे तत्कालीन किंग  जॉन  और  जमींदारो  तथा  किसानो
     के मध्य  हुए  समझौते  मे पहली बार “”प्रजा जन “” औरशासक मे हुए “”संवाद “” मे कुलीम सरदारो – सामंतों ने  आमजन
    के लिए “”निश्चित अधिकारो ’’ की मांग रखी जिसके द्वारा   शासितों को  निश्चित सुरक्षा प्रदान की जाये | वस्तुतः  यह प्रयास
   भविष्य मे “”राजतंत्र “” की निरङ्कुशता  पर  अंकुश साबित होने वाला था| अगर हम पलट कर इतिहास की इस घटना  का मूल्यांकन  करे तो आएंगे की  यह शुरुआत थी प्रजा के “””नागरिक””” बन ने की |  यद्यापि  रूनीमेड मीडोज़  मे हुई सभा पर
    मुहर 1225 मे किंग हेनरी  द्वारा लगाई गयी जब संसद द्वारा इसे “”एक दस्तावेज़ “”” का रूप दिया |  मीडोज़ की सभा और
  संसद की तथा राजा की मुहर लाग्ने दस वर्ष का समय लगा ---कारण यह था की किंग जॉन  की नीयत  अपने लिए हुए वादे को ईमानदारी से पूरा करने की नहीं थी | उसकी सोच थी की दैवी सिधान्त के अनुसार  “””राजा”” अपने प्रजा की संपाती और उनके ---जीवन पर पूर्ण अधिकार रखता है ,, जिसे चुनौती नहीं दी जा सकती |  मीडोज़ मे  जॉन ने  ‘’’जन समर्थन ‘’’ पाने के लिए अधिकारो
  को दिये जाने की बात इसलिए मान ली क्योंकि फ्रेच किंग फिलिप  उस समय  इंग्लंड के तट  पर अपनी सेना के साथ हमले के लिए पहुँच रहा था || एवं बिना अपने सरदारो के सहयोग और उनकी सेना के अभाव मे युद्ध मे पराजय निश्चित थी | इसी लिए  युद्ध
 का संकट ताल जाने के पश्चात उसने अपने वादे पर पुनर्विचार  करने का ‘’’’नाटक’’’ किया | परंतु जाग्रत  जनता ने राजा के अधिकार सीमित  करने का ‘’मन’’’ बना लिया था |जॉन के कुलीन सरदारो – सामंतों मे भी ‘’प्रजा की मांग को लेकर  एक रॉय नहीं थी ,,क्योंकि
 उन्हे लगता की अगर राजा के अधिकार ही सीमित कर दिये गए तो ---उनकी ‘’मनमानी’’’ और  ‘’’जब चाहा टैक्स”””लगा दिया |इस
 हेतु वे अधिकारो को दस्तावेजी रूप देने के पक्ष मे नहीं थे || परंतु स्कॉट लैंड और वेल्श के जमींदार  एक न्याय पूर्णा व्यवस्था  चाहते थे – जिसे किसी को बिना अपराध  बंदी ना बनाया जाये और बिना कारण किसान की ज़मीन को कुर्क न किया जाये | तथा अपराध सिद्ध करने और उसका फैसला करने के लिए अदालते  हो जो  नियम और कानून से काम करे ----ना की राजा या उसके  सामंतों
 के दबाव मे काम करे |
                    मुख्य रूप से प्रजा के नागरिक अधिकारो मे घोसित किया गया की  किसी भी प्रजा को बिना दोष सिद्ध हुए
 बंदी नहीं बनाया जाएगा ----एवं ना ही उसे देश निकाला दिया जाएगा || उसकी भूमि पर उसका पूरा अधिकार होगा एवं  क्राउन अथवा 
  मुकुट को मात्र  वाजिब ‘’कर वसूलने ‘’’ का ही अधिकार होगा || किसी की भी संपाति को बिना दोष सिद्ध किए   ‘’’राजसात’’’ करने
का अधिकार नहीं होगा |उस समय राजा या सामंत किसी की भी जमीन पर कब्जे के लिए सिर्फ उस आदमी को  बेदखल करना होता था | भले ही उस पर फसल लगी हो या नहीं |जुंगलों पर मुकुट का एक मात्र अधिकार माना जाता था ,,, जंगली पशुओ का शिकार
 किसान अपना पेट भरने के लिए भी नहीं कर सकते थे |वे केवल ‘’पालतू’’’ जीव –जन्तुओ को खा सकते थे || भले ही जंगली जानवर
 उनकी फसलों को कितना ही बर्बाद करे उसका शिकार ‘’’वर्जित’’’ था ||जंगल पर मालिकाना हक़  इलाके केसामंतों का था –परंतु किसानो को भोजन के लिए शिकार करने का अधिकार मिला |खराब मौसमके कारण जब फसल बर्बाद हो जाती थी तब किसान का परिवार  लूट मार –चोरी करने के लिए मजबूर हो जाता था |
                                       अगर हम हेनरी द थर्ड  की घोसना को पड़े तो पता चलता है की  आधुनिक पुलिस
 की ज़रूरत हुई तथा एक विश्वास नीय न्यायव्यस्था  का शुभ आरंभ हुआ – कानूनों को लिपिबद्ध कर के उन्हे अदालतों द्वारा उपयोग
 किए जाने की प्रथा  शुरू हुई | आज जिन अधिकारो –संवैधानिक अधिकारो  की चर्चा की जाती है –उनकी शुरुआत भी तभी से हुई |
यद्यपि इंग्लंड का कोई लिखित संविधान नहीं है --- इसी लिए कहा जाता है की ब्रिटेन का शासन  ‘’’प्रथाओ और परम्पराओ “””से चलता
है |अगर हम मूल्यांकन करे तो पाएंगे की प्रजा तंत्र का वर्तमान रूप मीडोज़ मे हुए ‘’’शासक – प्रजा’’’’ संवाद से प्रारम्भ हुआ था |जब प्रजा को नागरिक की हैसियत  मिली | परिणाम स्वरूप द ग्रेट ब्रिटेन का राज्य भले ही किंग के नाम से चलता हो  परंतु हक़ीक़त मे
 राजा ‘’नाम मात्र “””का ही शासक बचा है ||
                                    इंग्लंड की शासन प्रणाली मे आए परिवर्तन से पड़ोसी देश फ़्रांस भला कैसे अछूता रह
  सकता था | फ्रांस  मे हुई ‘’क्रांति “” राजशाही  की निरंकुशता  और  ‘’प्रजा “” के प्रति पूरी तरह लापरवाही ने तो वंहा से “”राज़ तंत्र “””  को ही ल्हातम कर दिया | क्योंकि राजा ने अपने मूल दायित्व --- प्रजा की सुख –की परवाह नहीं की |वे महल के षड्यंत्रो मे फंसे
    रहे –उनकी दुनिया विलासिता के सामान  एकत्रित  करने और जेवर तथा फिजूल की आदतों के लिए प्रयत्नरत थे |परिणाम यह हुआ की वे देश की जनता के दुख –दर्द  एवं अभावो से अंजान रहे तभी तो लुई  की पत्नी कहा की अगर ब्रेड नहीं मिल रही तो केक
 क्यो नहीं खाते || इतनी लापरवाही कितनी क्रूर स्थिति का इशारा करती है | इसी स्थिति ने 1917 मे रूस के किसानो की दुर्व्यसथा ने
 ज़ार निकोलस के खिलाफ विद्रोह को जन्म दिया ||परिणाम स्वरूप  ज़ार के खिलाफ लेनिन के नेत्रत्व मे बोलोशेविक पार्टी ने विद्रोह
 किया और किसानो और मजदूरो की सत्ता स्थापित की ||  लिखने का तात्पर्य यह है की मैग्नाकार्टा ने विश्व मे प्रजा को नागरिक
 का दर्जा दिलाया | आज की दुनिया मे सबसे प्राचीन राज वंश  जापान का है ----जनहा के लोग अपने सम्राट को सूर्य पुत्र मानते है ||
  परंतु  इस देव पुत्र को “”इंसान “”” बनाने का काम अमेरिकी जेनरल  मैक आर्थर  ने किया | द्वितीय विश्व युद्ध मे मित्र राष्ट्रो ने
  सम्राट को युद्ध अपराधी घोसीत करके नुरेम्बेर्ग   ट्राइबुनल  के सामने मुकदमा चलना चाहता था – अमेरिका पर्ल हार्बर पर हुए जापानी           हवाई हमले का बदला लेना चाहता था |परंतु अमरीकी राष्ट्रपति आइजन्होवर को मैकआर्थर ने समझाया की जापान की ताकत वहा के लोगो का सम्राट के प्रति अटूट स्वामिभक्ति है | ऐसे राष्ट्र को अपमानित करने से बेहतर उसे अपने साथ रखना है | बाद मे यह साबित हुआ की जापान अमेरिका का सबसे बेहतर मित्रा सीध हुआ || लिखने का तात्पर्य राजशाही अपने मे ‘’बुरी नहीं “””वरन उस गद्दी पर बैठने
वाले के क्रियाकलाप पर निर्भर होता है
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