यूं तो सरकारे व्रक्ष के महत्व को रेखांकित करने के लिए वन विभाग का ''''चार्टर''' बता देती है ,,परंतु राजा - महाराजाओ के समय से वन को शिकार अथवा विलाश के स्थल के रूप मे ही उपयोग किए जाने के प्रमाण है | उदाहरण के लिए महाराज दशरथ ने शिकार करते हुए ही --भूलसे श्रवण कुमार की जान ले ली थी | सीता हरण का कारण भी वन मे विचरते हुए मायावी स्वर्ण मृग का शिकार ही था क्योंकि सीता जी उस की खाल को प्रपट करना चाहती थी || महाभारत काल मे भी महाराज पांडु को भी मृगया के समय कामरत ऋषि की हत्या हो जाने के कारण ही ''''संसर्ग सुख '''' के समय ही मृत्यु हो जाने के श्राप से आबद्ध हो गए थे | पहली कविता भी क्रौंच पक्षी को तीर लगने से उत्पन्न '''करुणा''' ही कविता का उद्गम बनी ||
इन उदाहरणो से यह स्पष्ट हो जाता है की आदि काल से ही वन भोजन ---और आश्रय का स्थल हुआ करते थे | परंतु कम ही लोगो को मालूम होगा की पूर्व वेदिक काल मे धर्म और दर्शन के शास्त्रो
का लेखन भी इनहि वनो मे हुआ है | जो ग्रंथ इन स्थानो मे रचे गए उनका नाम ही """आरण्यक "" है | जो वनो की मानव जीवन मे महत्ता के बारे मे भी ज्ञान देते है | इस काल मे विश्वास आस्था से अधिक '''तर्क और तथ्य """ की महत्ता हुआ करती थी | आयुर्वेदिक ओषधि मे पेड़ - पौधे - पादपो का जितना विषद वर्णन किया गया है उसकी '''प्रामाणिकता """"" आज भी स्वयं सिद्ध """ है | ऋषियों के आश्रमो का स्थान ---भी वन ही थे ,,, वानप्रस्थ आश्रम के स्त्री - पुरुषो को भी यंही शरण मिलती थी | सन्यासी भी तब बस्तियो मे रात्रि -विश्राम नहीं करते थे ---उनके वैभव शाली भवन और सुख के भौतिक साधन युक्त वर्तमान ''''बाबाओ के आश्रम """" नहीं हुआ करते थे |वे सांसरिक सुखो --सुविधाओ से दूर रहते थे ||इसलिए जुंगल की असुविधाओ मे रहते थे ||
पौराणिक काल मे भी वनो की महत्ता को बरकरार रखने के लिए ज्ञान के स्थान पर आस्था --विश्वास को आधार बनाया गया || इसीलिए स्कन्द पुराण मे कहा गया की पेड़ो को काटना पाप है | गरुण पुराण मे भी इसी ही विचार को आगे बड़ाया गया ||
परंतु आजकल सरकारे केवल '''स्वार्थ सिद्ध ''' करने के लिए इन सब आधारो की अनदेखी करती है || वैसे ''सरकारी अफसर हमेशा पेड़ काटने की योजना बनाते है ----वैसे कागजो मे वृक्षा रोपण के लिए योजना भी बनती है और '''धन''' का आवंटन भी होता है ||| परंतु हक़ीक़त है की """दस हज़ार"" पेड़ लगाने के बाद दस से बीस पेड़ ही मौसम की कठोरता सहते हुए ''''साल पूरा'''करते है | मतलब प्रक्ष लगाने का अभियान भी वन विभाग के """"""अफसरो ---बाबुओ """ की जेब मे क़ैद हो कर रह जाता है || सरकार के लोग जल और जगल की महत्ता की अनदेखी करते हुए ना केवल पर्यावरण का """ सर्वनाश """कर रहे है वरन वर्तमान के साथ भविष्य को भी अंधेरा कर रहे है || इस बार मध्य प्रदेश के विधायक गणो के लिए 1600 पेड़ो की बलि दी जा रही है | || क्योंकि इन जन प्रतिनिधियों के सरकारी आवास का निर्माण होना है || यद्यपि इसके लिए वर्तमान आवासो को गिरा कर भी विधायकों के आवास बन सकते थे || परंतु शासन को """ व्यापार """ का साधन बनाने वाली सरकार को वर्तमान स्थान पर """ निजी """ प्रोजेक्ट "" बनाना चाहती है || क्यो ?? क्या पर्यावरण और आबादी के भविष्य की हत्या कर के भी ''लोकतान्त्रिक''' सरकार अपना """महत्व"" बनाए रख सकती है ????
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