भूमि अधिग्रहण कानून --किसान के अधिकारो के साथ बलात्कार
विकास के नाम पर किसानो के खेत बिना उसकी सहमति के कब्जे मे लेने का अधिकार सरकार अपने हाथ मे लेने का प्रयास ही है | जिस विधेयक को संशोधन किया गया है उसमे विकास की परियोजनाओ के लिए अधिग्रहण को ''किसानो की रजामंदी''' से ही संभव था| परंतु रक्षा और राष्ट्रिय महत्व की योजनाओ के लिए उस कानून मे भी ''सरकार''''को अधिकार था की वह उस भूमि का अधिग्रहण कर सके | संशोधन मे विकास की परिभाषा को ''विस्तार कर के निजी भवन निर्माताओ और निजी उद्योग पतियों के कारखानो के लिए भी '''किसानो के खेत '''' जबरिया लिए जा सकते है ||
पहले निजी उद्योगो को किसानो की सहमति अथवा ग्राम सभा की सहमति लेने आवश्यक होती थी || राष्ट्रिय सड़क मार्ग और रक्षा उद्योगो के लिए तब भी भूमि लेने का अधिकार था || परंतु तब निजी पूंजीपति इस '''सुविधा''' से वंचित थे || केंद्र सरकार और प्रधान मंत्री मोदी इस कानून को '''देश के लिए जरूरी '''''''बता रहे है -----लेकिन वे निजी पूंजीपतियों को ''दी ''''' गयी सुविधा को वापस नहीं लेना चाहते है |||प्रश्न उठता है की ---क्यो ??? बस यानही सरकार की नीयत पर शंका हो रही है ||
विकास के लिए भूमि अधिग्रहण की पैरवी करने वाले लोग कहते है की आज जनहा आज बड़े - बड़े भवन और स्टेडियम --स्टेशन आदि बने है ----वनहा भी कभी किसान के खेत हुआ करते थे | इस तथ्य का एक जवाब है की """" एक ही क्रिया के दो नाम है -वह भी मात्र इच्छा के आधार पर -----सहवास और बलात्कार ,, दोनों मे ही मैथुन क्रिया होती है ---फर्क इतना है की पहले मे स्त्री - पुरुष दोनों की सहमति होती है |बलात्कार मे सिर्फ पुरुष की ज़बरदस्ती होती है || वैसा ही कुछ पुराने कानून और और नए मे अंतर है || नया कानून किसानो के साथ बलात्कार के समान है ,,जिसमे किसान की मर्ज़ी के बिना उसकी जमीन ले लिए जाने का अधिकार है
कुछ मोदी समर्थक और भारतीय जनता पार्टी के समर्थक अन्न हज़ारे की किसान मार्च को धोखे की यात्रा बता रहे है |||कुछ लोगो ने तो उन्हे बहू राष्ट्रिय कंपनियो का एजेंट बता दिया है || कुछ लोग उन्हे विदेशी एनजीओ का मोहरा बता रहे है || कारण यह है की उनका कार्यक्रम एक सुलगती हुए मुद्दे को हवा दे रहा है फसलों की बरबादी के बाद किसान को अब यह दर सता रहा है की की उसकी एकमात्र पूंजी उसके खेत भी किसी '' धनपशु'''''की भूख का निवाला बन जाएगी और वह एक भूमिहीन मजदूर बन कर रहने के लिए मजबूर हो जाएगा | परंतु किसानो के इस दर्द को सरकार समझने के लिए तैयार नहीं ||
सोनिया गांधी द्वारा राजस्थान और हरियाणा के किसानो से मुलाक़ात को सत्ता पक्ष के लोगो द्वारा '''नाटक''' करार दिया जा रहा है ---- अरे भाई अगर आप कुछ गलत कर रहे हो और विरोधी दल उसका विरोध कर रहे है तो इसमे प्रजातन्त्र की हत्या कन्हा हुई ? अब सरकार की यह मंशा तो पूरी होने से रही की सभी परतीय उनके '''हर कदम पर हामी भरे '''''|| अनेक ऐसे मुद्दो पर मोदी सरकार ने अपने रुख मे ''अबाउट टर्न'' किया है | चुनाव के दौरान किए गए वादो से जनता को आशा तो बहुत दिला दी परंतु उन्हे पूरा करने मे '''दाँतो को पसीना'' आ रहा है ||| अब प्रधान मंत्री चाहते है की सारा देश उनके किए को समर्थन करे ||||| इति
विकास के नाम पर किसानो के खेत बिना उसकी सहमति के कब्जे मे लेने का अधिकार सरकार अपने हाथ मे लेने का प्रयास ही है | जिस विधेयक को संशोधन किया गया है उसमे विकास की परियोजनाओ के लिए अधिग्रहण को ''किसानो की रजामंदी''' से ही संभव था| परंतु रक्षा और राष्ट्रिय महत्व की योजनाओ के लिए उस कानून मे भी ''सरकार''''को अधिकार था की वह उस भूमि का अधिग्रहण कर सके | संशोधन मे विकास की परिभाषा को ''विस्तार कर के निजी भवन निर्माताओ और निजी उद्योग पतियों के कारखानो के लिए भी '''किसानो के खेत '''' जबरिया लिए जा सकते है ||
पहले निजी उद्योगो को किसानो की सहमति अथवा ग्राम सभा की सहमति लेने आवश्यक होती थी || राष्ट्रिय सड़क मार्ग और रक्षा उद्योगो के लिए तब भी भूमि लेने का अधिकार था || परंतु तब निजी पूंजीपति इस '''सुविधा''' से वंचित थे || केंद्र सरकार और प्रधान मंत्री मोदी इस कानून को '''देश के लिए जरूरी '''''''बता रहे है -----लेकिन वे निजी पूंजीपतियों को ''दी ''''' गयी सुविधा को वापस नहीं लेना चाहते है |||प्रश्न उठता है की ---क्यो ??? बस यानही सरकार की नीयत पर शंका हो रही है ||
विकास के लिए भूमि अधिग्रहण की पैरवी करने वाले लोग कहते है की आज जनहा आज बड़े - बड़े भवन और स्टेडियम --स्टेशन आदि बने है ----वनहा भी कभी किसान के खेत हुआ करते थे | इस तथ्य का एक जवाब है की """" एक ही क्रिया के दो नाम है -वह भी मात्र इच्छा के आधार पर -----सहवास और बलात्कार ,, दोनों मे ही मैथुन क्रिया होती है ---फर्क इतना है की पहले मे स्त्री - पुरुष दोनों की सहमति होती है |बलात्कार मे सिर्फ पुरुष की ज़बरदस्ती होती है || वैसा ही कुछ पुराने कानून और और नए मे अंतर है || नया कानून किसानो के साथ बलात्कार के समान है ,,जिसमे किसान की मर्ज़ी के बिना उसकी जमीन ले लिए जाने का अधिकार है
कुछ मोदी समर्थक और भारतीय जनता पार्टी के समर्थक अन्न हज़ारे की किसान मार्च को धोखे की यात्रा बता रहे है |||कुछ लोगो ने तो उन्हे बहू राष्ट्रिय कंपनियो का एजेंट बता दिया है || कुछ लोग उन्हे विदेशी एनजीओ का मोहरा बता रहे है || कारण यह है की उनका कार्यक्रम एक सुलगती हुए मुद्दे को हवा दे रहा है फसलों की बरबादी के बाद किसान को अब यह दर सता रहा है की की उसकी एकमात्र पूंजी उसके खेत भी किसी '' धनपशु'''''की भूख का निवाला बन जाएगी और वह एक भूमिहीन मजदूर बन कर रहने के लिए मजबूर हो जाएगा | परंतु किसानो के इस दर्द को सरकार समझने के लिए तैयार नहीं ||
सोनिया गांधी द्वारा राजस्थान और हरियाणा के किसानो से मुलाक़ात को सत्ता पक्ष के लोगो द्वारा '''नाटक''' करार दिया जा रहा है ---- अरे भाई अगर आप कुछ गलत कर रहे हो और विरोधी दल उसका विरोध कर रहे है तो इसमे प्रजातन्त्र की हत्या कन्हा हुई ? अब सरकार की यह मंशा तो पूरी होने से रही की सभी परतीय उनके '''हर कदम पर हामी भरे '''''|| अनेक ऐसे मुद्दो पर मोदी सरकार ने अपने रुख मे ''अबाउट टर्न'' किया है | चुनाव के दौरान किए गए वादो से जनता को आशा तो बहुत दिला दी परंतु उन्हे पूरा करने मे '''दाँतो को पसीना'' आ रहा है ||| अब प्रधान मंत्री चाहते है की सारा देश उनके किए को समर्थन करे ||||| इति
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