धर्म में आस्था एवं राजनीती में नैतिकता
इलाहाबाद या कहे प्रयाग में हो रहे कुम्भ के पर्व में वैदिक धर्म के मानने वाले सैकड़ो करोडो सनातनियो ने अपने विश्वास के कारण पतित पावनी गंगा में तथा काफी लोगो ने गंगा -यमुना -विलुप्त सरस्वती की त्रिवेणी में डुबकी लगा कर पुण्य कमाने का लाभ आर्जित किया । कुम्भ में साधुओ के विभिन्न अखाड़ो ने वंहा एक अभिराम दृश्य उपस्थित किया हैं । विदेशियों के लिए यह विश्व का सबसे बृहद आयोजन हैं , देशी - विदेशी मीडिया के लिए भी यह एक माह तक चलने वाली" इवेंट" हैं । एक अनुमान के अनुसार लगभग तीन करोड़ से अधिक लोगो द्वारा स्नान किये जाने की सम्भावना हैं । इसे जंहा आमजन एक ""पर्व ""मानता हैं ,वंही शासन के स्तर पर ""मेले "" का नाम दिया गया हैं । रेल से बसों से और अन्य वाहनों द्वारा पहुँच रहे इस महती मानव समुदाय की व्यस्था काफी कठिन उत्तरदायित्व हैं । वह इन श्रधालुओ के रहने भोजन- स्वास्थय -शांति व्यस्था का इन्तेजाम वैसा ही हैं जैसा की राज्य चलाना ।
संभवतः धरम गुरुओ को इस आयोजन मेंअपनी उपस्थिति दर्ज करना इसलिए ज़रूरी होता हैं की वे ""भी अभी इस धार्मिक समागम में हैसियत रखते हैं ""।इसिलिये सिंहासन -पालकी -में सवार इन "" महा मंडलेस्वरओ " की सवारी देख कर यह पता चल जाता हैं की भूतपूर्व राजा -महाराजो की सवारी कैसी रहती होगी । उनका तो राज्य भारतवर्ष में विलय हो गया , पुर उनके प्रिवी पर्स इंदिरा गाँधी ने ख़तम कर के उन्हें भी आम आदमी की बराबरी में खड़ा कर दिया -परन्तु उनकी विरासत को इनके समारोह चलन में देखा जा सकता हैं ।
एक सवाल यह हैं की राष्ट्र की सामाजिक एवं धार्मिक एकता का प्रयास हज़ार वर्ष पूर्व आदिगुरू शंकराचार्य द्वारा चारो दिशाओ में ""पीठो "" की स्थापना के रूप में हुआ था । उन्होने में समाज में जाति के आधार पर उंच नीच एवं भेद को समाप्त करने के लिए ,तथा धर्म के वास्तविक स्वरुप को सबके समक्ष रखा था । यंही कारण था की चार वेद आधारित धर्म को एक सूत्र में पिरोने के लिए इन 'पीठो'' के जिम्मे एक -एक वेद कर दिया । उन्होंने स्वयं शैव होते हुए भी वैष्णव तथा शक्तियों की उपासना में रचनाये लिखी । नौ वर्ष की आयु में उन्होंने अपनी पहली रचना कनकधारा स्त्रोतम से जग को परिचित कराया । एक विधवा ब्राम्हणी की आर्त स्थिति पर धन की देवी लक्ष्मी की स्तुति में लिखी थी । जिस अवतार स्वरूप मानव ने वैदिक धर्म को भारतवर्ष में पुनः स्थापित किया , एवं धर्म के नाम पर चल रही कुरीतियों का नाश किया ,उसी के देश में ""कुम्भ ""ऐसे पर्व के अवसर पर भिन्न - भिन्न प्रकार के नामधारी बाबाओ और कलंकित मंडलेस्वर तथा महा मंडलेस्वर पालकी पर नरेशो की भांति निकल रहे हैं । वे धर्म के कम धार्मिक आवरण के प्रतीक ज्यादा लगते हैं । बहुसंख्यक जन आस्था के वशीभूत हो कर यंहा आते हैं और धर्म के इन ठेकेदारों को 'भेंट' अर्पित करते हैं , ।
प्रश्न हैं की कषय वस्त्र धरी किसी धर्म गुरु ने यह महसूस नहीं किया की एक महान मत की किया दुर्दशा हो रही हैं ? आराध्य -आराधना एवं करमकांड की राह होते हुए स्तुति संकल्प -साधना की दिशा में परमार्थ करें । ऐसा कोई नहीं कह रहा वरन मठ एवं मत के आयोजन के लिए धन मांगने की कोशिस हो रही हैं काफी कुछ सफल भी हो रही हैं । त्याग की टेर लगाने वाले जितना सम्पति का संचय कर रहे हैं , वह लज्जाजनक हैं । नेता को कोसने वाले और गाली निकालने वाले इन धर्म धुरंधरो का नैतिक आधार क्या हैं ?
राजनीती में अब तक अनेक गेरुआ वस्त्र धारियों ने किस्मत आजमाई हैं ,लेकिन एक - दो बार से ज्यादा कोई नेता नहीं बना रह सका । हाँ स्वामी जरूर बना रहा वह भी अंत समय तक । अब संसद या विधायक तो आदमी तभी तक रहता हैं जब तक जनता उसे चुनती हैं । पर स्वामी जी का खेल तो नॉमिनेशन पर अथवा स्वयंभू डिक्लेरेशन पर हैं । कोई कुम्भ में एकत्रित हुए तथा कथित ""संत समाज "" से पूछे की आदि गुरु ने तो सिर्फ चार शंकराचार्य बनाये गए थे , पर अब तो तीस से ज्यादा हो गए हैं । उत्तर - दक्षिण -पूर्व -पश्चिम दिशाओ के लिए बनाये गए स्थानों की जगह अब छेत्र -छेत्र में हो गए हैं । यह वैसे ही हैं जैसे हर जिले को राज्य का दर्ज़ा दे दिया जाए । एक हैं स्वामी राम देव , अब वे दवाओ का धन्धा भी करते हैं ,बाकायदा कंपनी बना कर । खूब विज्ञापन में आते हैं "योग"सिखाते हैं टीवी पर और बड़े बड़े लाइनर पर जंहा ५० हज़ार से ढाई लाख रुपये एक व्यक्ति का महसूल होता हैं , वंहा पर दंड -कमंडल स्वामी जी योग सिखाते हैं । वैसे इनका पार्ट टाइम हॉबी "पॉलिटिक्स" हैं । सभी जन नेताओ को इन्होने बेईमान और भ्रष्ट का "फतवा"काफी दिनों से दिया हुआ हैं । अब इनकम टैक्स के छापो से परेशां हैं ये क्योंकि विदेश में एक आइलैंड के मालिक हैं , जिसका जिक्र तक इन्होने अपने बही -खातो में नहीं किया हुआ था। वैसे इनकी पहुँच काफी "ऊँचे"लोगो तक हैं । कांग्रेस से खासी नाराज़ हैं । उधर स्वामी नित्य नन्द जिन्हें कर्नाटका पुलिस ने अनेक महिलाओ की शिकायत पर ""दुराचार" और बलात्कार के जुर्म में गिरफ्तार किया था । इस जुर्म के कारन उन्हे अपना ""मठ "" और पद छोड़ना पड़ा था । उन्हे ""निर्वाणी "" अखाडा ने महा मंडलेश्वर बना दिया हैं ।यह सभी खासो - आम को मालूम हैं की यह "उपाधि" पाने के लिए काफी -काफी धन राशी खर्च करनी पड़ती हैं ।अब ऐसे """धर्म धुरंधरो "" को कौन मर्यादा या नैतिकता का सबक बताएगा ? ये तो ""सर्वज्ञ" हैं
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