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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Mar 10, 2025

 

धार्मिक आयोजन का खर्च राज्य द्वारा उठाया जाना क्या धरम निरपेकच्छता का उल्लंघन नहीं ?


प्रयाग उर्फ इलाहाबाद में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार द्वारा "””महा कुम्भ “”|वैसे सनातनी परंपरा में कुम्भ का आयोजन प्रयाग --- हरिद्वार --- उज्जैन और नासिक में भी समय समय पर होता हैं | परंपरा के अनुसार बारह वर्ष में कुम्भ होता हैं | आकाशीय नछात्रों के हिसाब से इन कुंभों का नामकरण भी किया जाता हैं | उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार राज्य और केंद्र सरकार द्वरा 6382 करोड़ रुपया का आवंटन किया गया | तथा समाचार एजेंसियों के अनुसार 2 लाख करोड़ रुपये की कमाई का अनुमान भी किया गया था | गौर तलब हैं की 2019 के कुम्भ के आयोजन पर भी 3700 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे | धनराशि के आवंटन के अनुसार मंहगाई शत प्रतिशत बड़ गई हैं | अब सवाल यह हैं की भारत ऐसे राष्ट्र में जनहा संविधान में राज्य और सरकार को देश के सभी धर्मों को समान रूप से देखने का वादा किया गया हो वानहा सिर्फ बहुमत को "”संतुष्ट " करने के लिए , वोट की राजनीति की खातिर "”” अरबों रुपये सिर्फ कुछ दिनों और कुछ करोड़ लोगों के लिए "”” केंद्र और राज्य सर्करे खर्च करे क्या इस पर देश के "” आडिटर एण्ड कंपटरोलर जनरल "” की कोई रिपोर्ट आज तक लोक सभा अथवा संबंधित राज्यों की विधान सभाओ मे पेश हुई और उन पर चर्चा हुई ? जान्ह तक चर्चा की बात है ---तो वह विगत दस सालों में केंद्र या राज्य के विधायी सदनों में चर्चा का विषय -आता ही नहीं } सरकार उसे ध्वनि मत से पारित कर लेती हैं |

देश में अन्य धर्मों में इस्लाम और ईसाई तथा सिख मुख्य हैं } परंतु इन धर्मों की आबादी में इनके प्रतिशत के आधार पर संबंधित धार्मिक आयोजनों पर सरकारे धन का आवंटन नहीं करती हैं और नया ही "”कुम्भ "” ऐसा बंदोबस्त करती हैं | ठीक है की उपरोक्त धर्म के मानने वाले "”अल्पसंख्या "” में हैं , परंतु "” प्रो रेटा "” के अनुसार उनके आयोजनों पर भी सरकार को धन का आवंटन करना चाहिए |अन्यथा भले ही हम घोषित रूप से भले ही ना हो परंतु अपने कर्मों और फैसलों से हम हिन्दू राष्ट्र की तरह ही व्यवहार कर रहे हैं | हम अन्य धर्मों के प्रति समान द्रष्टई का व्यवहार तो नहीं कर रहे हैं |

आइए हम देखते हैं की इस्लाम में धार्मिक आयोजन "”इजतिमा "” का आयोजन विभिन्न स्थानों पर किया जाता हैं | भोपाल में भी सालाना आयोजित होता हैं \ इसमें करोड़ों जायरीन तो नहीं हाँ आठ से दस लाख लोग चार दिन के लिए एकत्र होते हैं | जिन्हे इस्लाम की विभिन्न शाखाओ के मौलाना -आलिम समबोधित करते हैं | इस धार्मिक समागम मे श्री लंका और इन्डोनेसिया तथा बांग्ला देश समेत यूरोप और एसिया के दस बारह मुल्कों के प्रतिनिधि शिरकत करते हैं | अब भोपाल ऐसी जगह जान्ह की आबादी लगभग बीस लाख हो वन्हा पाँच दिन के लिए आठ से दस लाख लोग आए तो समस्या तो हो सकती हैं | परंतु स्थानीय मुस्लिम युवकों ने ईंट खेड़ी मे हुए "” इजतिमा "” मे आए लाखों "”जमाते"” अपने खाने और ठहारने का पैसा अदा करती हैं | इतना ही नहीं इन जमातों के लोगों को रेलवे स्टेशन --और बस स्टेशन तथा हवाई अड्डे से इजतिमा स्थल तक लाने का काम --- मुस्लिम युवक "” स्व स्फूर्त "” रूप से करते हैं | यह बहुत अचंभे वाली बात हैं | क्यूंकी सरकार और मीडिया तो मुस्लिम युवकों को "”पत्थर बाज "” ही बताती है }| हो सकता है कुछ लोग ऐसे हो भी , परंतु क्या कोई ऐसी कौम या मजहब या जाति ऐसी भी होगी जो यह दावा कर सके की उसके सभी नौजवान "”शांति प्रिय और सरकारी कानूनों का पालन करने वाले हैं "” ---- ऐसी को जाती या समाज मिलन नामुमकिन हैं | जब मैंने इजतिमा के इंतजाम के बारे पता किया तब बताया गया , ----- की भोपाल के तीन दिनी इजतिमा के लिए आने वाली जमातों को धार्मिक स्थल तक पहुचने का काम "”विनय सहित "” इन युवकों द्वरा किया जाता हैं | जबकि मुसलमानों का कोई "” ऐसा साँसकरतिक संगठन नहीं हैं -जो ऐसे मौके के लिए हो | तीस साल पहले तक रेलवे स्टेशन और बस स्टेशन पर ऐसे आयोजनों के लिए स्काउट संगठन काम किया करता था | कुम्भ या अन्य मेलों भी चालीस साल पहले तक स्काउट और एनसीसी के लोग इंतजाम मे सरकारी लोगों का हाथ बँटाया करते थे | परंतु अब ऐसे अवसरों पर इंतजाम का दायित्व अब या तो "” आयोजकों "” के माथे होता हैं अथवा सरकारी एजेंसियों के | जैसे प्रयाग के कुम्भ मेले मे किसी भी नागरिक संगठन के वालेंटियर नहीं दिखाई पड़े | नया तो वे भीड को रास्ता बताने न ही लोगों को पेयजल सुलभ करने अथवा खोए हुए लोगों की सूचना देने आदि का काम उत्तर प्रदेश पुलिस के माथे ही था | अब सीधी सी बात है जो पुलिस ठाणे मे आने वाले आम लोगों से सीधे मुंह बात नहीं कर पाती ---- उससे यह उम्मीद करना की वह दूसरे प्रदेश से आए तीर्थयात्रियों से '’शरीफाना तरीके से "”’ बात करके उन लोगों की समस्या का समाधान करेगी , दिवा स्वपन ही हैं |

खैर हम असली मुद्दे से भटक गए --- की अन्य धार्मिक आयोजनों जीसे सिखों के विभिन्न पर्व पर भी उनके युवकों की टोली सड़क को बुहारती चलेगी जिस मार्ग पर "” गुरु ग्रंथ साहेब "” को ले जय जाता हैं | अथवा जैन समुदाय के मुनि महराज के नगर आगमन पर भी जैन युवकों की मंडली ही स्वागत और प्रबंध करती हैं | परंतु इन सभी धार्मिक आयोजनों मे सरकार या शासन की वित्तीय सहायता वैसी नहीं की जाती है जैसी क सनतानियों के कुम्भ जीसे आयोजन मे किया गए | सवाल वही है जब संविधान सभी धर्मों के लिए बराबर ही -- कानूनभि सभी धर्मों को { केवल कुछ मामलों छोड़कर }} समान मानता हैं फिर किस तर्क या तथ्य द्वरा यह असमानता की जाती है --- की कुम्भ मे 7 हजार करोड़ रुपये खर्च हो और अन्य धर्मों पर हजार करोड़ क्या सैकड़ा करोड़ भी ना हो |




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