राम से ज्यादा राम के भक्तों का ख्याल जरूरी है
रोज रोज नए वादे और इरादे-- पानी -बिजली की समस्याओ को नहीं दूर कर पा रहे है !
राज्य में पेय जल के पाइप टूट रहे हैं ,बिजली अनियमित रूप से आ और जा रही हैं , सीवर और गंदी नालियाँ बजबजा रही है , ऐसे में चित्रकूट मे अरबों रुपया खरच करने की योजना क्या एक बार फिर स्मार्ट सिटी परियोजना की तरह बुरी तरह फ्लाप नहीं होगी , इसकी क्या गारंटी हैं ? विगत वर्षों मे यह देखा गया है की जितनी भी अरबों रुपयों की परियोजनाओ को सरक ने घोषित किया ----उनको "” अमली जामा "” कभी नहीं किया जा सका ! आखिर निर्माण की या सुधार की जितनी भी योजनाए मुख्य मंत्री या मंत्री से घोषित कराई जाती है ---क्या उनके प्रगति की जानकारी अथवा परिणाम को जानना क्या जरूरी नहीं हैं | स्मार्ट सिटी योजना मे अरबों रुपये खरंच किए गये परंतु लछय का बीस प्रतिशत ही पूर्ण हुआ ! भोपाल मे रंगमहल के सामने शासकीय कर्मियों के आवास के लिए बनाई गई पाँच मंजिल छह इमारते आज दो साल बाद भी खाली पड़ी हैं --क्यू ? इसका जवाब शासान मे बैठे लोग -बस यह कह के छूटी पा लेते है की की "”अंतर विभागीय मामला है जल्दी निपट लिया जाएगा !! आर भाई सरकार मे "”जल्दी"” की अवधि कितनी होती है क्या इसकी कोई मियाद हैं भी या नहीं ! दूसरा सवाल यह भी है की जिन लोगों की निष्क्रियता के कारण परियोजना का खर्च अधिक हुआ --क्या उनसे कोई जवाब तलब होगा या नहीं ! वैसे विगत दस वर्षों का अनुभव यही बतात है की योजनाओ की घोषणए करने वाले -वाह वाही के लिए मुख्य मंत्री या मंत्री से सार्वजनिक बयान दिलवा कर उनको खुश कर देते हैं , परंतु उस परियोजना की प्रगति की घोषणा नहीं होती | यही कारण है की मुख्य मंत्री या प्रधान मंत्री रोज -रोज कुछ ऐसी नई घोषणए करते रहते है | अब अगर यही शासन है --तो निश्चय ही अफसरशाही राजनीतिक नेत्रत्व को बुद्धू बना रही है !! अन्यथा प्रत्येक योजना या परियोजना का आडिट हर वर्ष होकर मंत्रिमंडल के सामने रखा जाना चाहिए , और मंत्री परिषद को उन अफसरों से जवाब तलब करना चाहिए जिनकी जिम्मेदारी इन योजनाओ को पूरा करने की थी |
अभी मुख्य मंत्री दर मोहन यादव ने एक घोषणा की है की चित्रकूट को अयोध्या के समान "”भव्य " बनाएंगे | ठीक हैं परंतु क्या अफसरों ने उनको यह बताया है की चित्रकूट को जाने वाली सड़कों की हालत कैसी हैं ? वनहा पेजल और बिजली और सीवर का कैसा इंतजाम है ? रेल से जाने वाले तीर्थ यात्रियों को क्या कष्ट हो रहा हैं - इसके बारे मे वनहा की जनता की शिकायत को कितना दूर किया गया ? अखबारों की हेड लाइन रोज बने इसलिए कुछ बड़ी घोसणा प्रतिदिन करा दी जाए उससे जमीनी हालत मे कोई तबदीली नहीं होगी | और नया सरकार की छवि ही बनेगी , उलटे वणः के भूकतभीगी इससे और खिन्न ही होंगे | राज्य मे जगह - जगह पर सड़क और पे जल को लेकर अखबारों मे खबर छपती है और धरना प्रदर्शन होते हैं , पर निराकरण नहीं होता !!
बात चाहे नगरनिगम की हो या नगर परिषदों की की उक्त दो समस्याए अनसुलझी ही रहती है | एक समस्या जो भोपाल मे देखि जा रही है वह है की कालोनियों मे "”पहुँच " मार्ग या सड़क पर कोई दबंग अथवा बिल्डर अविध कब्जा कर लेता है , और नगर निगम उसे नगर एवं नियोजन निदेशालय का मसला बात कर हाथ झाड लेता है | और टी एन सी पी निर्माण कार्य के "” वैध या अवैध "” होने की कानूनी पेंच बात कर भाग लेता हैं ----परेशान होते हैं वन्हा के रहवासी |
आज जरूरत है की जो कुछ पहले से निर्मित है वह "”वैध " है या नहीं उसका तुरंत निराकरण हो | अभी हाल ही मे बिल्डर लाबी का एक कारनामा सौरभ शर्मा कांड मे निकाल कर आया है ,जिसमे कानून को कुछ अफसरों ने अपनी जेब में रख कर आम लोगों को भूमि खरीदने की "”एक खास छेत्र "” मे अनुमति नहीं दी | पर जब बड़े -बड़े आईएएस अफसरों को खरीदना हुआ --तब सभी अनुमति मिल गई !! अब सरकार का राजनीतिक नेत्रत्व भी इस मामले की अनदेखी ही कर रहा हैं | यह मसला अदालत मे यानि की हाई कोर्ट जरूर जाएगा ---वनहा जज साहब ने अगर यह सवाल सरकारी पक्ष से पूछ लिया की "””भूमि खरीदने की अनुमति आम नागरिकों क्यू नहीं दी गई ? और किस आधार पर आईएएस अफसरों को उसी स्थान पर भूमि खरीदने और भवन निर्माण की अनुमति किस आधार दी गई ? तब शायद सरकारी पक्ष को जवाब देना "”कठिन हो जाएगा "” | इस आलेख का आशय यह है की "”” बहुत हो चुकी घोसनाए और वादे सरकार के --अब जो कुछ है उसे तो ठीक ढंग से चलाया जाए "” राजनीतिक बयान बाजी से रोजमर्रा की इन तकलीफों का हाल नहीं होगा , जब तक अफसरों की जिम्मेदारी नहीं नियत होगी | और यह काम राजनीतिक नेत्रत्व को ही करना होगा , अन्यथा कूप मे भंग तो पड़ी हुई ही हैं |
No comments:
Post a Comment