सच्ची आजादी और साँसकरतिक राष्ट्रवाद बनाम आरएसएस
आरएसएस के सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत द्वरा देश को "”सच्ची आजादी मिलने की तिथि 5 अगस्त 2020 बताए जाने के बाद ----न केवल एक विवाद खड़ा हो गया है वरन संघ के तथा कथित साँसकरतिक राष्ट्रवाद की अवधारणा पर भी सवालिया चिन्ह लग गया हैं | सर्व विदित है की ब्रिटिश साम्राज्य के उपनिवेश के रूप से एक स्वाधीन राष्ट्र के रूप मे भारतवर्ष 15 अगस्त 1947 का जन्म हुआ | उस दिन सेंट्रल असेंबली मे पंडित जवाहरलाल नेहरू का प्रसिद्ध भाषण नियति से साछातकार उस अवसर की सबसे बड़ी राष्ट्रीय धरोहर हैं | देश के इतिहास में लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था की स्थापना का यह मुहूर्त था | इसी आजादी को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मोहन भागवत जी के चेले "”राजनीतिक आजादी "” बताते है | संघ के प्रवक्ता और पूर्व सांसद राकेश सिन्हा ने टीवी की एक बहस मे कहा की भागवत जी का अभिप्राय "”सच्ची आजादी 5 अगस्त 2020 को मिली जब राम मंदिर का उदघाटन हुआ "”” ! विवाद यनही से आरंभ हुआ :-- अब भागवत जी से तो उनके भाषण की तफ़सील नहीं ली जा सकती , अतः राकेश सिन्हा जी के कथंन से ही उनके सरसंघचालक के कथं की विवेचना की जा सकती हैं | ABP टीवी की बहस में उन्होंने अपने नेता के कथन का बचाव करते हुए कहा की 1947 को देश को राजनीतिक आजादी मिली थी , सच्ची आजादी नहीं ! उनके अनुसार आजादी के बाद नेहरू और काँग्रेस सरकारों ने देश की "”अस्मिता" को खतम किया | जबकि संघ देश की संस्करती या कल्चर की रक्षा मे लगा रहा ! उनके अनुसार आजादी के बाद भी ब्रिटिश साम्राज्य की निशानिया मौजूद रही ! जैसे सड़कों के नाम और भवनों तथा मूर्तिया | जैसे करजन रोड विक्टोरिया और जार्ज की मूर्तिया को काँग्रेस सरकारों ने नहीं हटाया ! इतना ही नहीं काँग्रेस शासन मे इसी मिशनरियों और इस्लामी संगठनों को धरम परिवर्तन की छूट थी | जिससे तमिलनाडु के मीनाक्षी पुरम मे दलितों के सामूहिक धर्म परिवर्तन ने संघ को हिन्दू और सनातन धर्म के लिए आधार तैयार करने लगा ! हालंकी वे यह बताने में असमर्थ रहे की संघ ने औपचारिक रूप से इस ओर कब कार्य करना शुरू किया ? वे यह भी बताने मे असमर्थ रहे की "”सामाजिक संगठन के रूप मे दस्तावेज़ों मे दर्ज संस्था ने कब धर्म से जुड़े मामलों मे दख़ल देना शुरू किय पर सच्ची आजादी का तात्पर्य उनके अनुसार जब समता 0 मूलक समाज की स्थापना है !
अब संघ और उसके प्रवक्ताओ से दो सवाल पूछे जाने चाहिए :- 1 -- दुनिया मे जिन देशों को आजादी प्राप्त करने का संघरश किया -उन्हे राजनीतिक आजादी मिली थी या सच्ची आजादी ? मेरी जानकारी के हिसाब से विश्व मे सभी देश जो किसी ना किसी यूरोपीय देश के उपनिवेश थे | उन्होंने आजादी के लिए आंदोलन अथवा शस्त्र के जरिए आजादी हासिल की ---वह राजनीतिक ही थी | अर्थात विदेशी शासन का अंत किया | दक्षिण अफ्रीका में आजादी की लड़ाई पहले शांतिपूर्ण ढंग अर्थात गाँधीवादी तरीके से लड़ी | केन्या के पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय जोमो केन्याटा भी पहले अहिंसक आंदोलन के माध्यम से ब्रिटिश हुकूमत से लड़ते रहे | बाद मे वणः के तीन बड़े नेताओ ने "”माउ माउ "” विद्रोह कर हथियार के जरिए आजादी लेने की कोशिस की ----परंतु असफल रहे | उन्होंने बीस साल कालापानी की सजा काटी | बाद मे वे देश के पहले राष्ट्रपति {स्थानीय }बने | उन्होंने भी महात्मा गांधी को अपना पथ प्रदर्शक माना था |
यह सब लिखने का तात्पर्य यह हैं की सभी को राजनीतिक आजादी मिली थी , जिसके बाद इन सभी राष्ट्रों ने अपना -अपना संविधान लिखा , जिससे स्वशासन की राह खुली | अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को यह बटन चाहिए की इस धरती मे किस राष्ट्र को "”सच्ची आजादी मिली "””!! मेरी छोटी बुद्धि में यह अवधारणा स्वर्ग और नरक जैसी है -जैसी हमारे भगवधारी -बसंती परिधान वाले साधु सन्यासी ---बताते है | अब हमारे पास स्वर्ग और नरक को सिद्ध करने के लिए केवल प्रवचन ही है कोई तार्किक या तथ्यात्मक प्रमाण नहीं हैं | कहते है जो इस धरा से गया वह लौट के नहीं आया , और कुछ इक्के -दुक्के पुनर्जन्म के उदाहरण लिपिबद्ध हुए और जिनकी विज्ञानिक रूप से जांच भी हुई वे भी इन स्थानों के बारे मे कुछ नहीं बात पाए | कुछ ऐसा ही आरएसएस का साँसकरतिक राष्ट्रवाद और सच्ची आजादी का नारा है | जीसे वे खुद भी सिद्ध नहीं कर सकते बस आम आदमी को धर्म का कट्टर हिन्दू हिमायती बना देने की कोशिस है , जो निंदनीय हैं
No comments:
Post a Comment