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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Dec 27, 2024

 

नाशूकरे देश की सरकार , प्रधानमंत्री को साधारण बिदाइ !

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भारत ऐसे लोकतंत्र के दस साल रहे प्रधान मंत्री को मोदी सरकार ने एक आम आदमी की भांति ही अंतिम बिदाइ दी !! यह तब है जब पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपायी का अंतिम संस्कार इसी सरकार ने निगम बोध शमशान मे नहीं वरन गणमान्य लोगों के स्थल शक्ति स्थल मे हुआ | यह मालूम है की ग्रहमन्त्री अमित शाह इस बाबत यही कहेंगे की इतना समय नहीं था की विशिस्ट जनों के स्थल पर उनका अंतिम संस्कार हो सके | सैनिक सम्मान उनका हक था कोई मोदी सरकार का एहसान नहीं | गुलजारी लाल नंदा को भी अहमदाबाद मे पुलिस सामान दिया गया था |



यह तो समझ मे आता है की बीजेपी नेत्रत्व और भक्त गणों को मनमोहन सिंह जी के देहावसान पर जिस प्रकार "”पालतू मीडिया "” द्वरा भी उनके योगदान को दिखाया गया --वह निश्चय ही प्रधान मंत्री और उनके समर्थकों को रुचिकर तो नहीं ही लगा होगा | जिस प्रकार उनकी आर्थिक फैसले और उदारीकरण से देश को वैश्विक मंदी के तूफान से बचाया --- वह किसी जानकार को ही ज्ञात होगा | व्हाट्सप्प यूनिवर्सिटी के ऑल पोलिटिकल साइंस पड़े भक्तों को तो कदापि नहीं होगा |



जो बात बीजेपी और मौजूद सत्ताधिशो को अंदर तक चुभ गई होगी ---- वह थी उनकी सादगी ! जो आज के प्रधान मंत्री के व्यवहार से नदारद है | दूसरी थी उनकी ईमानदारी -जिस पर मोदी सरकार और उनकी एजेंसिया कोशिस कर के भी "”””कोई दाग धब्बा नहीं खोज पाए "” हालांकि उनके पद पर रहते हुए मौजूद सत्ताधिशो ने उनको तो टू जी घोटाले मे शामिल होने का आरोप लगाया था , इस आरोप का आधार था सी एजी की रिपोर्ट ! जबकि इस मामले की जांच करने वाली एजेंसियों ने डाक्टर मन मोहन सिंह की किसी भी प्रकार से संलिप्तता से इनकार किया !!

परंतु यह मोदी जी ही थे जिनके पदभार ग्रहण करते ही उनके घर पर सीबीआई की टीम को भेज दिया था !! ऐसा कभी नहीं हुआ था इस देश में ! परंतु जो भी कुछ सत्तर वर्ष के लोकतंत्र मे मर्यादाए थी ---- उन्हे ध्वस्त ही किया गया हैं ! प्रधान मंत्री द्वरा डॉ मनमोहन सिंह को श्रद्धांजलि देते हुए जिस प्रकार नरसिंह राव जी का उल्लेख किया वह , एक निश्चित प्रयास था की मनमोहन सिंह उनके अधीन सरकारी अफसर ही थे ,| यंहा तक के किस्से सोशल मीडिया मे डाले गए की ---- राव साहब कहा था की अगर यह फैसला सफल रहा तो हम दोनों का नाम होगा ,और फेल हुए तब यह तुमहारी जिम्मेदारी होगी | अब क्या ऐसा संभव है ? इस कथन से उन्होंने दोनों दिवंगत प्रधान मंत्रियों को एक स्तरहीन बता दिया |



Dec 25, 2024

 

मस्जिद -मंदिर खुदाई विवाद तथा खाकी और भगवा की भिड़ंत !!



हाल ही मे आरएसएस के सरसंघचालक भागवत जी ने उत्तर प्रदेश

मे जगह - जगह मंदिरों की खोज खोज कर उनका उद्धहर कर वणः पूजा -अरचना शुरू

किए जाने की प्रव्रती को उचित नहीं माना है | उन्होंने एक बयान देकर यह भी कहा की

मस्जिदों मे विवाद और मंदिरों को खोद -खोद कर जो मुहिम चल रही हैं , वह अनुचित हैं |

अब इस बयान के बाद बीजेपी के कुछ भक्तों ने इस पर आपती जताई उन्होंने कहा की हमारे धरम के इन प्रतीकों को हजारों साल पहले आक्ररणताओ ने तोड़ा था , उनको हम वापस वैसा ही बनाएंगे !!!! भागवत जी का बयान उत्तर प्रदेश के सत्ता पक्ष के कुछ लोगों को नागवार गुजरा |

उन्होंने बयान दिया की धर्म रक्षा जरूरी है | अब जिस प्रकार योगी जी कुम्भ मेले के इंतज़ामों

का विज्ञापन मे प्रचार कर रहे हैं ----उसे भी उनकी "”हिन्दू ह्रदय सम्राट "” बनने की महत्वाकांचा

के रूप मे ही देखा जा रहा है |


भागवत जी ने भी इसी हरकत पर चोट करते हुए कहा की "”मंदिरों और मस्जिदों को खोद कर हिन्दू ह्रदय सम्राट बनने की कोशिस नहीं करे | जिसका विरोध प्रधान मंत्री को मित्र बताने वाले राम भड्रा चार्य , बाबा राम देव और बद्रीनाथ के शंकराचार्य विमुक्तआनंद ने भी किया | भद्राचार्य ने तो चुनौती दे दी की आरएसएस हमारा शासक नहीं है हम उसके शासक हो सकते हैं | विमुक्तनन्द ने कहा की जब सरकार बनाना था तो मंदिर -मंदिर करते थे , अब क्यू रोक रहे हैं ! मतलब यह की यह पहला मौका है जब भगवा ब्रिगेड संघ के खिलाफ खुल कर आ गई है | पर यह तो साफ है की योगी जी के कार्यों से देश के दूसरे भागों मे अशान्ति फ़ाइल सकती है | हिन्दू ---मुस्लिम फाड़ इस राष्ट्र की अस्मिता को खतरा हैं | और आरएसएस कुछ भी हो देश को विभाजन की ओर ले जाने वाली किसी भी कोशिस को स्वीकार नहीं करेंगे , कम से कम नरेंद्र मोदी की सरकार के रहते हुए | अब परिणाम तो भविष्य के गर्भ मे हैं |






यूं तो स्वतंत्रता के संघर्ष से ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भगवा धारी संगठनों

में वैचारिक साम्य था - हिन्दू धर्म और उसकी परम्पराये | आजादी से पूर्व रामराज्य

परिषद हो या हिन्दू माह सभा दोनों ही हालांकि अपनी अलग "”लाइन "” चलते थे परंतु

एक बात इनके सोच में कामन थी -- पुरातन परम्पराओ को जारी रखना ! इसलिए जब संविधान सभा में हिन्दू कोड बिल का प्रस्ताव आया तो इन संगठनों ने मुखर विरोध किया , और इसे

देश की बहुसंख्यक जनता के विश्वास के विपरीत बताया | जबकि संविधान सभा मे अधिकंश

या यूं कहे बहुमत का सोचना था की हिन्दू धरम की कुछ परम्पराये महिलाओ और समाज

के लिए वांछित नहीं हैं | सभा में वक्ताओ ने सती प्रथा - और विवाह के आठ प्रकारों में कुछ

तो अत्यंत ही गलत थे | उदाहरण के लिए राक्षस और पैसाच विवाह ! इनमे स्त्री को जबरदस्ती

और बलात्कार करने के बाद को विवाह की संज्ञा दी गई थी | कानून से यह प्रथा अपराध की श्रेणी आती थी | फिर विवाद पिता की संपाती में कन्या के अधिकार पर भी हिन्दू संगठनों को

आपती थी |और भी की मुद्दे थे जो सभ्य समाज मे स्वीकार्य नहीं थे | जबकि इन हिन्दू धार्मिक संगठनों का कहना था की हजारों साल की हमारी परम्पराओ को सरकार ऐसे नहीं बदल सकती |

बस यही मुद्दे थे जो टकराव का कारण बने थे | एक और मुद्दा था गऊ हत्या का | देश के दक्षणी राज्यों में अतिपे संप्रदायों द्वरा , जो आस्था से थे तो हिन्दू , परंतु गाय का माँस

को कहते थे | इन संघठनों की मांग थी की गाय की हत्या पर समस्त देश मे "”प्रतिबंध"”

लगाया जाए ! आज आजादी के सत्तर साल बाद और विगत दस सालों मे आरएसएस के राजनीतिक संगठन बीजेपी की सरकार होने के बावजूद भी :””प्रतिबंध "” नहीं लगाया जा सका |

उत्तर पूर्व के राज्यों मे आज भी खुले आम गाय का वाढ होता हैं | मोदी सरकार के एक मंत्री

किरण रिजूजू ने तो लोकसभा मे स्वीकार किया वे बीफ खाते है |जबकि नेहरू मंत्रिमंडल द्वरा

इस मांग को नामंजूर कर दिया गया | तब सफेद वस्त्र धारी प्रभु दत्त ब्रमहचारी ने दिल्ली मे

बाद आंदोलन किया था | ये वही साधु थे जिन्होंने जवाहर लाल नेहरु के खिलाफ फूलपुर से

लोकसभा का चुनाव लड़ा था |उस समय सफेद और भगवा वस्त्रधारी साधु या सन्यासी

हिन्दू धरम की अच्छी बुरी सभी परम्पराओ को "”यथावत "” रखे जाने के हामी थे |

संघ भी इन मांगों से सहमत था |


अयोध्या मंदिर के विवाद मे भी आडवाणी जी की रथ यात्रा के समय

संघ और बीजेपी के अलावा भगवधारियों ने भी पूर्ण समर्थन दिया था | परंतु मंदिर निर्माण

मे जब भगवा सागठनों को मनचाहा भूमिका नहीं मिली --तब विरोध शुरू हुआ | आरएसएस सिर्फ अयोध्या के राम मंदिर को एक प्रतीक मान कर बहुसंख्यकों को अपनी ओर करना

चाहता था | वैसा हुआ भी | सुप्रीम कोर्ट के फैसले की आड़ मे मोदी सरकार ने मंदिर निर्माण और

उसके रख - रखाव का जिम्मेदारी विहिप के हाथों मे दे दी | जो आरएसएस से ही जुड़ा एक संगठन हैं | अब इस सफलता को देख कर अनेक "”मठाधीश "’ और सन्यासी संगठनों को लगा की मंदिर के नाम पर "””जनता का समर्थन और भक्तों के दान "” को प्रपात किया जा सकता हैं | आखिर अयोध्या के मंनदिर निर्माण के लिए अरबों रुपये के दान { वह भी बिना हिसाब दिए } का मालिक बना जा सकता है | बस यंहा से विभिन्न महंतों और साधु संगठनों ने मंदिरो के

जीर्णोंधार के लिए तरकीब लगानी शुरू की | इस उद्देश्य मे उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी

आदित्यनाथ ने हवा देना शुरू किया | वे खुद गोरखनाथ पीठ के महंत है , जो सैकड़ों साल पुराना हैं | इस पीठ को देश की बहुत सी रियासतों से गुरु पूर्णिमा के अवसर पर चडावा आता था जो करोड़ों मे होता था | यंहा तक की नेपाल की राजशाही के समय मे वनहा से भी भेंट आती थी , जो अब बंद कर दी गई |


 

मनोज पाठक -- एक संस्मरण



बहुत काम ऐसा होता हैं जब आप कारोबारी रिश्तों में अपनापन पाते हैं , मनोज पाठक ऐसे ही व्यक्तित्व थे | उनसे परिचय के पूर्व मैं उनके पिता स्वर्गीय राज बहादुर पाठक से परिचय हुआ , वे भी देश के समाजवादी आंदोलन से जुड़े कर्मठ कार्यकर्ता थे , और मैं भी लखनऊ में छात्र जीवन में समाजवादी युवजन सभा से जुड़ा हुआ था | यूं तो लजब मैं 1982 की जनवरी को भोपाल की धरती पर पैर रखा तो समाजवादी विचारों के मुख्यमंत्री स्वर्गीय अर्जुन सिंह से मुलाकात हुई | यूं तो मेरा परिचय तत्कालीन उतर प्रदेश के मुख्य मंत्री विश्वनाथ परताप सिंह ने उरई में अंतर राज्यीय पुलिस बैठक मे ही करवाया था | नवभारत टाइम्स के संवाददाता के रूप मे पाठक जी से जन संपर्क निदेशालय में हुई थी | बाद में मनोज जी के अग्रज और तूफ़ानी रिपोर्टर स्वर्गीय जगत पाठक से भी परिचय हुआ | जगत पाठक जी अपने में ही एक किंवदंती बन गये थे | तब शायद मनोज जी भी किसी समाचार पत्र में रिपोर्टर थे |


कुछ समय बाद शायद उनका चयन जनसंपर्क में एक अधिकारी के रूप मे हो गया था | उसके बाद मनोज जी से बहुत मुलाकात होती रहती थी | इन मुलाकातों का आशय विभागीय जानकारी लेना होता था , जो मेरे समाचार लेखन में काम आती थी | धीरे - धीरे उनके व्यवहार और जानकारी का निखार देखने को मिला | वैसे उनको किसी ना किसी विभागीय मंत्री से सम्बद्ध किया जाता था , जैसा की विभाग की परंपरा थी | परंतु उनके सोच और जानकारी की बार हम संवाददाताओ को बड़ी मदद करती थी , अगर उन्हे कोई तथ्य की जानकारी नहीं होती तब वे , उस सूत्र के बारे बात देते जान्ह से जानकारी मिल सकती थी | बाद मे वे दिग्विजय सिंह के मुख्य मंत्री के कार्यकाल में ,उनसे सम्बद्ध कर दिए गये थे |


इस काल में उनका परिचाय लगभग राजधानी के सभी राष्ट्रीय और प्रादेशिक अखबारों के प्रतिनिधियों से हो गए था | हम सब भी उन्हे एक "”सोर्स "’ मैटीरियल मानने लगे थे | इसी दौरान उनका काफी हाउस मे आना जाना काफी हो गया था , क्यूंकी अधिकतर पत्रकार वनही सुबह अथवा शाम को बैठकी करते थे | इन बैठकों मे खबरों की चर्चा के दौरान ,अगर किसी प्रकार के सरकारी आँकड़े की जरूरत होती --तब मनोज पाठक को याद किया जाता | और उन्होंने कभी हम लोगों को निराश नहीं किया | या तो वांछित तथ्य सुलभ कर दिए अथवा यह बताया दिया की कौन अफसर या मंत्री यह जानकारी देगा | उनकी विनम्रता उनके पिता से मिली थी | हम पत्रकारों मे सभी के पास मनोज से , कोई न कोई जानकारी की लिस्ट उनके पास रहती थी , | अगर कोई खास लेखन करना हो तब भी मदद हो जाती थी |



वैसे मनोज थे तो शासकीय अधिकारी थे , उनके विभाग के अफसरों को उन पर जितना भरोसा था --उतना ही विश्वास पत्रकारों को उनकी सत्यता और ईमानदारी के प्रति था | वे सही मानो मे शासन { जनसंपर्क } और अखबार नवीसों के बीच एक सेतु की भांति थे |

वे पत्रकारों के निजी मामलों मे भी भरपूर मदद करते थे | क्यूंकी वे भोपाली थे , इसलिए उन्हे यंहा के बारे मे अच्छी वाक़फ़ियत थी | अगर कुछ उन्हे नहीं मालूम होता तब वे उस सोर्स के बारे मे भी बता देते जो हम लोगों को जानकारी उपलब्ध कर सकता था | बाद मे उनका विवाह भी देशबंधु के सीनियर पत्रकार स्वर्गीय राज भारद्वाज की कन्या से हुआ | और वे पत्रकार के पुत्र और पत्रकार के भाई होने के साथ पत्रकार के दामाद भी बने | दिग्विजय सिंह जी के मुख्यमंत्रित्व काल मे तो हालत यह था की अगर मुख्य मंत्री से समय चाहिए तो उसके लिए मनोज पाठक

ही पर्याप्त थे | उनका अवसान इतना अचानक हुआ की - उनके चाहने वाले भी उनका शोक भी नहीं माना पाए | हालांकि उनके निधन से जो स्थान पत्रकार जगत और जन संपर्क मे रिक्त हुआ उसकी भरपाई तो आज तक नहीं हुई | सबसे बड़ा कारण जो उनके जाने के बाद हुआ की पत्रकारों और शासन के मध्य आत्मीय संबंध और खुलापन हुआ करता था , वह समाप्त हो गया | अब नया तो शासन और ना ही जन संपर्क का कोई संबंध काफी हाउस जैसी जगह से रह गया | फलस्वरूप शासन और पत्रकारों की दूरिया बड़ती गई जो आज भी कायम है | मनोज एक जीवंत शासन और पत्रकारों के बीच का पुल हुआ करते थे | दोनों का ही विश्वास उन्हे अर्जित था |

Dec 18, 2024

 

धर्म की घुट्टी ने ईरान और इराक के बाद बांग्ला देश को भी इंसानियत की राह से हटाया !!


श्रीमती इंदिरा गांधी की विरासत जिसका लोहा दुनिया ने माना था ---उसको बांग्ला देश की मौजूदा सत्ता { जो निर्वाचित नहीं हैं } ने नकार दिया है | 16 दिसंबर 1971 को भारतीय सेना ने पाकिस्तान को पराजित किया था | जिसके फलस्वरूप पूर्वी पाकिस्तान का नाम बांग्ला देश हुआ !

शेख मुजीबुर्रहमान को रिहा करने के लिए उन्होंने अपने अन्तराष्ट्रिय संबंधों का इस्तेमाल किया | लखनऊ की आम सभा में भाषाण के दौरान उनको शेख साहब की रिहाई की सूचना दी गई ,जो

उन्होंने लोगों को बताया और तुरंत ही वे दिल्ली को रवाना हो गई | लगभग पचास साल बाद आज बंगवाहिनी और भारतीय सेना की कुर्बानी को मौजूदा यूनुस शासन ने धूल मे मिल दिया हैं |इस बदलाव का कारण कोई लोकतान्त्रिक चुनी हुई सरकार ने नहीं ---- वरन उपद्रव और अशान्ति से उपजी धार्मिक कट्टरता के नुमीनदों ने किया हैं | बांग्ला देश में मुसलमान और हिन्दू दोनों ही रहते हैं | जैसे भारत मे मुसलमान अलपसंख्यक है वैसे ही बांग्ला देश में हिन्दू अलपसंख्यक है | आजादी के पहले से बांग्ला देश के इलाकों में हिन्दू जमींदार थे , और मुसलमान किसान और कारीगर थे | बांग्ला देश बनने के बाद धीरे -धीरे अलपसंख्यक हिन्दू प्रताड़ना के कारण भारत आने लगे | जो आज भी जारी हैं |


बांग वाहिनी के युद्ध मे योगदान और भारतीय सेना के शौर्य को यूनुस के सत्ता ने सांप्रदायिक आग मे झोंक दिया | शेख हसीना को ढाका छोड़कर भारत आना पड़ा | यह धार्मिक उन्माद का परिणाम था | नोबल पुरस्कार प्राप्त यूनुस से ऐसी बेईमानी की उम्मीद तो नहीं थी | बांग्ला देश में धार्मिक कट्टरता कोई नई बात नहीं है --- शेख मुजीबुरहमन को प्रधान मंत्री रहते हुए सेना के एक गुट ने निवास पर हमला करके उनके परिवार के मौजूदा सदस्यों की हत्या कर दी | इसके लिए जमाते इस्लामी जुम्मेदार था | इस बार फिर उन्ही कट्टर पंथियों ने मुजीब की बेटी को निशना बनाना चाहा , पर वे बच निकली |


सावल यह है की लोकतंत्र व्यावस्था में धार्मिक कट्टरता लोकतंत्र के सभी गुणों को समाप्त कर देता है | जैसा आज भारत मे भी बहुसंख्यक लोगों के एक गुट द्वरा अलपसंख्यकों को निशान बनाने के प्रयास हो रहे हैं | इस का दुखद अध्याय यह है की -- शासन -प्रशासन - सरकार और कभी कभी न्यायपालिका भी पीड़ितों को न्याय देने में असमर्थ रही हैं |















धर्म की राजनीति अथवा राजनीति मे धर्म का उपयोग -- दोनों ही स्वास्थ्य लोकतंत्र के लिए हानिकारक ही नहीं वरन खतरा हैं | देश की आजादी के बाद धर्म के नाम पर ही विभाजन हुआ , परंतु ना तो सभी मुसलमान पाकिस्तान जाना चाहते थे और ना ही पाकिसतान मे रहने वाले सभी हिन्दू दिल्ली आना चाहते थे | जो आज सात दशक बीत जाने के बाद भी यथार्थ यही है की आज भी सीमा के दोनों ओर दोनों ही धर्म के लोग रहते हैं | हाँ यह भी एक तथ्य है की

“”कबीले "” के नाम पर "”इलाकाई "” आधार पर पाकिस्तान मे भी हिंसक घटनाए होती रहती है | भारत में ऐसा नहीं हैं , हाँ देश के उत्तर -पूर्व की जनजातियों में "” खुदमुख़्तारी "” या स्वायत्त इलाका की मांग , ----अपनी अलग पहचान बनाए रखने की है | अभी हाल ही में केंद्र सरकार ने नागालैंड के छह जिलों मे एक हथियार बंद गुट की इस मांग को स्वीकार किया हैं की वह उसके बताए इलाके मे उन्हे खुद मुखतारी देने या यूं कहे की शासन (सत्ता) सूत्र देने पर मंजूरी दी है ! कुछ ऐसा अधिकार मणिपुर मे कुकी समुदाय भी चाहता था -- जिसको केंद्र ने ठुकरा दिया | परिणाम महीनों तक वहा दंगे होते रहे , | यह भी एक तथ्य है की लड़ने वाले समुदायों में एक धर्म हिन्दू था दूसरे का ईसाई !




बॉक्स

धर्म के नाम पर "”राजसत्ता " का सुख का अंत फ्रांस मे किया गए --जब धरम प्रचारकों को

शासन कार्यों से "”अलहदा" यानि बिल्कुल अलग कर दिया गया ! नेपोलियन ने क्रांति के बाद जब सत्ता सम्हाली , तब चर्च का स्थान राज्य की सूची से बाहर था | लगभग एक सदी से ज्यादा समय बाद ईरान मे धर्म ने सत्ता सम्हाली ! ,इस्लाम के शिया संप्रदाय के बहुत बड़े गुरु जिन्हे आयातोला कहा गया है की ईरान वापसी भी पेट्रोल तेल की राजनीति का फल था | अमेरिका के व्यापारिक हितों / मुनाफे मे कमी , ईरान के शाह अरियामेहर की राजसत्ता को कहा गई | यानि की एक रक्तहीन क्रांति मे तकखट पलट हो गए | आयातोला खोमैनी जो फ्रांस में राजनीतिक शरण लिए हुए थे ----उन्हे तेहरान पहुंचाया गया | एवं शाह ईरान और उनके परिवार को फ्रांस ने राजनीतिक शरण दे दी !


सत्ता की इस अदला बदली ने यह तो सिद्ध कर दिया की अन्तराष्ट्रिय जगत मे "””मुनाफा"” देशो की राजनीति और तेल के व्यापार का आधार है |

आज की दुनिया मे फिर एक बार धर्म के नाम पर राजनीति हो रही है | अफगानिस्तान के तालीबानों ने दुनिया की दोनों महाशक्तियों की "” फौजी "” ताकतों को धूल चटा चुके है | परंतु इन "”जुझारू -- लड़ाकों "” को लड़ना ही आता हैं , शासन करना नहीं ! धर्म या कुरान के आधार पर

जो कुछ वनहा हो रहा हैं ------ वह मानव सभ्यता के लिए शर्मनाक हैं |

Dec 13, 2024

लोकतंत्र संविधान से नहीं चलता है --वह नागरिकों के निश्चय और समझ से चलता है !

 

लोकतंत्र संविधान से नहीं चलता है --वह नागरिकों के निश्चय और समझ से चलता है !



मुद्दा यह हुआ की भारत के संघीय गणराज्य में { संविधान के अनुसार } अब मोदी सरकार विविधता को समाप्त कर "”एकरूपता "” लाना चाहती है | अब मामला संसद और देश की राज्य सरकारों पर है की वे इस संविधान संशोधन के बारे में क्या निश्चय करते हैं | परंतु मोदी सरकार का यह निर्णय तब अनेक शंकाये उत्पन्न करता हैं , जबकि देश में निर्वाचन आयोग की कार्य प्रणाली और e v m के प्रयोग के बारे में "”अविश्वास "” का वातावरण बना हुआ हैं | वैसे सरकार द्वरा "”एक देश एक चुनाव "” के तहत लोकसभा - तथा राज्यों की विधान सभा और जिला पंचायत के चुनाव "निश्चित अवधि " के लिए कराए जाने का विधान हैं | इस कानून को लागू करने के लिए अनेक राज्यों की विधान सभाओ की अवधि को घटना अथवा बदाना पड़ेगा | क्यूंकी सात दशक के लोकतंत्र में अधिकांश प्रदेशों में अल्पमत मे सरकारों के आने के बाद "मध्यवधि" चुनाव हुए हैं | अर्थात यह एक "” ऐसा संशोधन होगा -जो लोकतंत्र की आत्मा को ही बदल देगा ! इसके जवाब मैनमोदी सरकार का जवाब है की साल भर कांही ना कांही राज्यों मे चुनाव होते रहते हैं | लोकसभा के भी उपचुनाव अनेक कारणों से कराने पड़ते हैं | सरकार का बहुत अधिक धन इन चुनावों की व्यवस्था करने में लगता है --- जो बहुत अधिक धन तथा सरकारी साधनों से होता हैं | अब सरकार धन बचाने के लिए ही यह व्ययस्थ करना चाहती है की चुनाव सिर्फ और सिर्फ पाँच साल बाद ही हो | जिससे मंत्रियों और राजनीतिक दलों को "” अपना काम काज करने का अवसर मिले ! {वैसे यह काम काज क्या होगा ,पता नहीं }अर्थात नेताओ को चुनवी दौरों और जनता से संवाद करने की कवायद से राहत मिले | अन्य राजनीतिक दलों की तुलना में बीजेपी के मंत्री या नेता पत्रकारों को तभी तक मंजूर करते है ---जब तक उनसे जमीनी हकीकत अथवा शासन की खामियों के बारे में पूछ ताछ नहीं की जाती ! ऐसे सवाल उठाने वाले अखबार कर्मियों पर नजर रखी जाती है |अर्थात सरकार के नुमाइंदे सिर्फ अपनी "”कहानी"” सुनाना और छपवाना चाहते है ! स्वभाविक है ,कोई भी नेता या अफसर अथवा बाबू अपनी जिम्मेदारी पर सार्वजनिक रूप से जवाब नहीं देना चाहता |


अब सरकार के इस प्रस्ताव पर देश में कांही कोई "” जनता में प्रतिक्रिया नहीं है | इसलिए क्यूंकी भाजापा शासित प्रदेशों में अन्य राजनीतिक दलों के दफ्तरों पर छावनी जैसी "”सुरक्षा "” है | साथ ही सरकार या उसके मंत्री के विरुद्ध किसी भी प्रकार का धरना या प्रदर्शन की जिला प्रशासन अनुमति ही नहीं देता | संविधान प्रदत्त "”असहमति जताने "” के अधिकार को बुलडोज़ कर दिया गया हैं | यह उस पार्टी द्वरा किया जा रहा जिसके राज में मस्जिद टोडी गई थी ! अब तो पेयजल या बिजली कंपनी की शिकायत को लेकर भी कोई विरोध नहीं किया जा सकता |


अब इसके मुकाबले दक्षिणी कोरिया के राष्ट्रपति नू द्वरा राजनीतिक असहमति रखने वाले दलों को दबाने के लिए "”देश में मार्शल ला "” की घोसन की थी !! जिसका तात्कालिक विरोध हुआ | फलस्वरूप छह घंटे में ही राष्ट्रपति को अपनी घोषणा वापस लेनी पड़ी | वनहा के विपक्षी सांसद और जनता ने सड़कों पर आकार फौज की संगीनों के सामने विरोध प्रदर्शन किय


दूसरी घटना ब्रिटेन की यानि की दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र की

{ वनहा गडतंत्र नहीं -राजतन्त्र है } मे लेबर सरकार ने किसानों पर नए टैक्स का प्रस्ताव किया -- परिणाम स्वरूप लंदन की सड़कों पर भीमकाय ट्रॅकटरों का जुलूस निकाल गया | किसानों ने फसल उगाने से मना कर दिया अगर सरकार ने अपना फैसला वापस नहीं लिया ! यह दो घटनाए बताती है की लोकतंत्र को जीवित रखने के लिए राजनीतिक दलों को ही नहीं वर्ण देश के मतदाताओ को आगे आना पड़ेगा | अन्यथा सरकार तो सायं - दंड -भेद से अपनी मनमर्जी चलाएगी | अब फैसला देश्वसियों के हाथ में है |

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Dec 11, 2024

पटवारी के शूकराने से लेकर जबराने तक -और पटवारी कैसे हुए लेखपाल !!!

 

पटवारी के शूकराने से लेकर जबराने तक -और पटवारी कैसे हुए लेखपाल !!!


यह वाकिया है सूबा ऐ उत्तर प्रदेश का , वांह भी पटवारियों ने हड़ताल की थी --- वेतन आदि बदने की मांग को लेकर | राजस्व मंत्री थे चौधरी चरण सिंह , जो बाद मे देश के प्रधान मंत्री बने | वे भ्रस्टाचार के सख़्त खिलाफ थे | उनके सभी कारीबियों को यह मालूम था की चौधरी साहब

कायदे - कानून से चलते थे - किसी को भी रियायत नहीं देते थे भले ही वह उनका कोई रिश्तेदार ही क्यू ना हो | जब पटवारियों ने हड़ताल का नोटिस सरकार को दिया , तब उनके नेता से चौधरी साहब ने कहा की की "”बरतानिया हुकूमत के जमाने से आपको तनख्वाह के साथ कुछ जमीन भी दी जाती है , फिर आप बैठे बैठे अपने बस्ते से लोगों के जमीन के "” अमल दरामद"” के लिए भरपूर शुक्राना वसूलते है | आप किसान से अनाज फ्री मे लेते हो चारा भी वसूलते हो फिर काहे बात की कमी ! इस पर हड़ताली पटवारी नाराज होकर चले गए | तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रभानु गुप्ता ने चौधरी साहब से कहा की देख लीजिए किसान कांही परेशान ना हो जाए | कहते है चरण सिंह जी ने गुप्ता जी से इस मामले में फ्री हैंड मांगा | चंद्रभानु गुप्ता जी "”एवमस्तु" कहा |



जब यह बात पटवारियों के नेता को पता चली - तब उन्होंने सरकार का काम काज ठप करने का अल्टिमेटम दे दिया | बस इस घटना ने चौधरी साहेब को उतएजित कर दिया | उन्होंने पत्रकारों को बुला कर बात की और कहा --- पटवारी सिर्फ भूमि प्रबंधन के दस्तावेज़ों सम्हालते हैं | जिसके लिए उन्हे वेतन भी मिलता हैं | साथ ही उन्होंने पटवारियों के वसूली का एक चुटकुला भी सुन दिया | जिसमे बताया गया था की -, किस प्रकार एक ही मद मे वसूली के लिए पटवारी हिन्दी और फारसी के शब्दों का इस्तेमाल करते हैं | यह हकीकत शहर के लोगों को नहीं मालूम था | तब शहर मे पटवारी वाला काम "”रूटीन "” का हुआ करता था | इसलिए उनके बस्ते का आतंक नगरों मे नहीं चलता था | आज की तरह तब गावों मे बिल्डिंग नहीं बना करती थी | इसलिए उनकी हैसियत चहरुम दर्जे की ही हुआ करती थी |


इस परिप्रेक्ष्य में पटवारियों की हडताल कोई महीने भर से ज्यादा चली , जब हड़ताल का राज - काज पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा , तब पटवारी लो सुलह -सफाई के लिए सरकार के चक्कर लगाने लगे | इसी दौरान एक तेज तरार पटवारी ने कुछ गैर वाजिब बात सरकार और मंत्रियों के खिलाफ कह दिया | जिसको चौधरी साहब तक पहुंचा दिया गया | चरण सिंह जी ने उत्तर प्रदेश के समस्त पटवारियों को "” बरख़ास्त "” कर दिया , आधार सरकार के निर्देशों की अवहेलना करनी थी ! निकाले जाने पर सभी हड़ताली पटवारी सहम गये | हालत यह हो गई की सभी पटवारियों ने '’अपने अपने हल्के के नेताओ -विधायको को पकड़ना शुरू कर दिया | हालत इतनी दयनीय हो गई की समस्त पटवारी संघ ने "”बिना शर्त हडताल वापस लेने का प्रस्ताव किया "” ! मुख्य मंत्री चंद्रभानु गुप्त ने भी चरण सिंह जी से मामले को निपटाने का आग्रह किया |


चौधरी चरण सिंह जी ने कहा की मैंने "”पटवारियों को बरख़ास्त किया है अब उन्हे वापस नहीं लूँगा | ये लोग गाव मे किसानों को बहुत लूटते है , मैं भी किसान परिवार से हूँ मुझे मालूम हैं | अब मामला फंस गया | तब किसी नौकर शाह ने तरकीब सूझई की सभी हड़ ताली पटवारियों को नई नौकरी दी जाएगी ----- जिसका नाम होगा "”लेखपाल "” | किस्सा कोताह यह की तब से उत्तर प्रदेश में इनका नाम लेखपाल हो गया | अब वैसा ही कुछ वाक्या भोपाल में बन रहा हैं ----- की राजस्व मंत्री करण सिंह वर्मा ने तीन पटवारियों को उनके भ्रष्ट आचरण और काम की शिकायत मिलने पर "”सिर्फ निलंबित किया "” फलस्वरूप राजधानी की सात तहसीलों मे से पाँच के सभी पटवारी सामूहिक अवकाश पर चले गये ! जबकि इन पटवारियों के कारनामे को एक अखबार ने प्रकाशित किया था | हालांकि इस कारवाई में दो तहसीलों --कोलार और बैरसिया के पटवारी शामिल नहीं , वे अपने ड्यूटी पर कायम रहे |

उधर राजस्व मंत्री ने कहा है की वे पटवारियों के रिश्वतखोरी के इस धंधे को बंद कर के रहेंगे !!! उधर हड़ताली पटवारी कह रहे है की "”” कारवाई हो पर नियमानुसार हो !!”” अर्थात अधिकारी नियुक्त हो जांच के लिए - स्वाभाविक है की जांच अधिकारी भी उन्ही की जमात से आएगा , अब ऐसे अधिकारी से न्याय की उम्मीद तो '’’’’’’’’’’’| अब देखना होगा की मुख्य मंत्री यादव जी चंद्रभानु गुप्त जैसे अपने राजस्व मंत्री की पीठ पर रहते है अथवा बिल्डर लाबी के दबाव मे मामले को रफा दफा कर देंगे !!!!!!



Dec 9, 2024

लोकतंत्र - यानि सत्ता से नागरिकों के हक की रक्षा के ,निर्भीक अदालत जो सत्ता की लगाम हो !

 

लोकतंत्र - यानि सत्ता से नागरिकों के हक की रक्षा के ,निर्भीक अदालत जो सत्ता की लगाम हो !



शास्त्रीय तौर पर पर तो लोकतंत्र में विधायी संस्था शासन के निकाय पर नियंत्रण रखती है , और इन दोनों के अतिरेक को स्पष्ट करने के लिए '’’न्यायपालिका '’ होती है ! सुनने में तो यह बहुत अच्छा लगा , लेकिन सभी लोकतंत्र राष्ट्रों में होता इसका उल्टा ही है | प्रजातन्त्र की अवधारणा यूं तो बहुत सत्य लगती हैं ,परंतु वास्तविकता के धरातल पर होता उल्टा ही हैं ! यंहा हम यूरोप के अनेक देशों और संयुक्त राज्य अमेरिका के कुछ उदाहरण लेते हैं | अमेरिका में नेता और जनता का यह संवाद बहुत माकूल हैं --- “” जनता के अधिकारों की रक्षा का वादा करने वाले एक राजनेता से वॉटर कहता है "” यदि आप नेता है तब आप अवश्य ही करोड़पति होंगे , तब आप जनसाधारण की तकलीफों को दूर नहीं करेंगे वरन आप पूंजी के निकायों की रक्षा करेंगे | क्यूंकी ऐसा करके ही आप करोड़पति बने रहेंगे !! ‘’ यह स्थिति लहभाग सभी देशों के लोकतंत्र में लागू होती है | संसद या जनप्रतिनिधि के "” चुनाव के लिए "” बहुत अधिक धन की जरूरत होती हैं | वह-- राशि ढाँपतियों से आता हैं , जिन्हे जनता की नहीं वर्ण अपने उद्योग -व्यापार के लाभ की चिंता होती हैं | राष्ट्रपति बराक ओबामा के समय अमेरिकी जनों के स्वास्थ्य के लिए "” बीमारी के बीमा "” की योजना चलाई गई \ जिससे दवा कंपनियों और इंश्योरेंस कंपनियों के "”लाभ "” का अंश घाट दिया गया | फलस्वरूप नया केवल उद्योग और -व्यापार संगठनों ने इस योजना का विरोध किया बल्कि इसे अनुचित बताया | खैर ओबामा ने इस संगठित कोशिस को नाकाम किया | \ वणः की अदालतों में इस "”जनहितकारी योजनया को "”नाकाम "” चुनौती दी |


अमेरिका में उच्च शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाये बहुत मंहगी है | प्राथमिक स्तर पर तो वे "”सर्व सुलभ है "” परंतु उनकी गुणवत्ता ठीक नहीं | छोटे छोटे मामलों मे वनहा की अदालत ने नागरिकों के पक्ष को सुरक्षित रखा , परंतु निर्णायक मुद्दों पर अदालत और उसके जजों की निशपक्षता संदिग्ध रही हैं | जैसा की भारत के सुप्रीम कोर्ट ने भी अनेक अवसरों पर जनता से अधिक "”सरकार या सत्ता "” का साथ दिया हैं !! उदाहारण के लिए जब ट्रम्प डेमोक्रेटिक उम्मीदवार जो बाइडेन से चुनाव हार गए ---तब उन्होंने अपने समर्थकों को "” काँग्रेस भवन "” पर हमला के लिए उकसाने वाला भाषण दिया ! फलस्वरूप हजारो ट्रम्प समर्थक ने हमला कर के उप राष्ट्रपति माईक पेन्स को चुनाव परिणाम की घोसन करने से रोकने की कोशिस की !! इस घटना को दुनिया ने टीवी पर देखा | अब यह पराजित उम्मीदवार की खीज थी ---जो नया केवल अनैतिक थी वर्ण आपराधिक भी थी | क्यूंकी ट्रम्प की इस हरकत से अमेरिका का लोकतंत्र कलंकित हुआ | खैर सेनेट और प्रतिनिधि सभा ने इस घटना की जांच के लिए विसहेस अधिकारी नियुक्त किया | जिसने ट्रम्प और उनकेसहयोगियों को संसद पर हमले का दोषी माना | परंतु जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट पँहुचा -- तब ट्रम्प के शासनकाल में नामित पाँच जजों ने ,इसे राष्ट्रपति का विशेषाधिकार माना | नौ सदस्यीय अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में "”हकीकत हार गई और उपकरत जजों ने ट्रम्प को निर्दोष सा बात दिया !!!!


कुछ ऐसा ही नरेंद्र मोदी काल में सुप्रीम कोर्ट में नामित जजों ने अयोध्या की बाबरी मस्जिद को गिराए जाने की घटना के दोषियों को नया केवल मुक्त कर दिया बल्कि संसद के कानून होने के बावजूद , जिसमे साफ - साफ लिखा है की आजादी केसमय जिस उपासना स्थल का जो स्वरूप था -उसे बरकरार रखा जाएगा | जस्टिस गोगोई - ,चंद्रचूड़ आदि नौ जजों ने कानून को दर किनार करते हुए --””” भावनाओ "” सरकार और सत्ता संगठन के तंत्र को खुश करने के लिया "””एक कानूनी फैसला देश को दिया "” पर न्याय नहीं किया | बाद मे देश के प्रदहन न्यायाधीश बने चंद्रचूड़ जी ने -- देश की सामाजिक और धार्मिक समरसता को खतम करने वाला एक और फैसला दिया जिसमे उन्होंने कहा की "””” उपासना स्थलों के स्वरूप को नहीं बसला जा सकता ---- परंतु उसकी वास्तविकता जानने के लिए पुरातत्व मंत्रालय "”जांच कर सकेगा "”! अब इसी अदालती हरकत का परिणाम है की -इस जबानी वक्तव्य को कानून और फैसला मानकर संभाल - बंदयू और अजमेर के ख्वाजा की दरगाह की जांच के मुकदमे जिला अदालतों मे लग गये | और हिन्दू --हिन्दू के नारे लगने लगे | तार्किक रूप से देखे जब हमारी जांच स्थल के स्वरूप और मालिकाना हक को बदल नहीं सकती तब इस अकादमिक कवायद का उद्देश्य क्या है ? अब इसी संदर्भ मे अगर कोई पांडवों के पिता और जनक के बारे में पुच ले तब क्या सुप्रीम कोर्ट इस तथ्य की भी जांच का आदेश देगी !!! महभारत में दिए गए तथ्यों के अनुसार ही सूर्य देव से कुंती को कर्ण पुत्र रूप मे प्राप्त हुए | फिर धरमराज से युधिस्थर और देवराज इन्द्र से अर्जुन वायु देवता से महाबली भीम और अश्वनी कुमारो से नकुल और सहदेव प्राप्त हुए | परंतु पांडव पुत्रों के पिता के रूप में महराज पांडु का ही नाम लिया जाता है | अब इस प्रकार विगत मे तत्कालीन समय में पूर्वजों द्वारा अनेक ऐसे कर्म और करत्या हुए जिन्हे ना तब मान्यता थी और ना ही आज है | ऐसे तथ्यों की अनदेखी करना ही शुभ होता हैं |

Dec 8, 2024

 

लोकतंत्र -की चुनावी व्यवस्था क्या वास्तव में जनता के {हित् }का शासन हैं ?


सभी शासन व्यवस्थाओ मे शासक , चाहे वह वंशानुगत हो अथवा निर्वाचित हो , गद्दी सम्हालते वक्त उसे एक शपथ यानि की कसम लेनी होती है की वह " प्रजा के हितों का ध्यान रखेगा , और सभी फैसले -”वह बिना बिना किसी भय या पक्षपात के करेगा "” ! यह शपथ लेने के तुरंत बाद ही इसको "”भुला दिया जाता है "” ! यही लोकतंत्र का सबसे बड़ा झूठ है जो सत्ता अपने नागरिकों से बोलती है ! और आदमी है की वह बात - बात पर न्याय और सत्य प्रतिज्ञान के लिए सत्ता को दोष देता रहता है , यही अब्राहम लिकन के लोकतंत्र की परिभाषा की अन्त्येष्टि है !

इसका ताज़ा उदाहरण दक्षिणी कोरिया के राष्ट्रपति नऊ द्वरा मार्शल ला घोषित किए जाने की थी | घोषणा के तत्काल बाद ही वनहा के सभी सांसदों ने बल्कि आम जनता ने त्वरित विरोध करते हुए सड़कों पर उतार आई | सभी को उम्मीद थी की अब राष्ट्रपति को महाभियोग का सामना करना पड़ेगा , और उन्हे गद्दी छोड़नी पड़ेगी | संसद में महाभियोग प्रस्ताव को समूचे सदन का समर्थन था | परंतु प्रस्तव को अमली जामा देने के लिए " जरूरी सदस्यों का बहुमत नहीं मिल सका "” ! क्यूंकी राष्ट्रपति की पार्टी के जिन सांसदों ने महाभियोग का समर्थन किया था ---- वे ही 48घंटे बाद शांत पड़ गए , उनका कहना था की , राष्ट्रपति के पद त्याग से "”बात बन जाएगी "” | फिर राष्ट्रपति को महबहियोग से हटाना नया केवल देश वरन पार्टी और प्रजातन्त्र को बदनाम करेगा !!!! तो आपने देखा की सत्य और न्याय का जज्बा कितने घंटा जीवित रहा !!!


इसलिए जन अशनतोष या सत्ता के भ्रस्टाचार को लेकर लोकतंत्र की दुहाई देना व्यर्थ है | अब दक्षिणी कोरिया के राष्ट्रपति यूनु अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन और क्लिंटन की भांति अपने सभी कु कर्मों {अपराधों} के उल्लेख के बिना पदत्याग कर देंगे | अब इसमे विधि के शासन --- कानून के सामने सभी को समानता का अधिकार , आदि सिद्धांत भी नीरो के रोम मे भष्म हो गए !! जिन लोगों ने सत्ता के अन्याय के विरुद्ध लड़ाई छेड़ी ----वे तबही सफल हुए जब वे "” जमीन के आदमी रहे "” जैसे महात्मा गांधी और अमेरिका में रंगभेद के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले मार्टिन लूथर किंग जूनियर " ----परंतु दोनोंकी ही सत्ता के "”दलालों"” द्वारा हत्या करवा दी गई "

यह थी लोकतंत्र की हकीकत का एक पक्ष , अब दूसरा पक्ष देखते है अमेरिका के राष्ट्रपति चुनावों मे | जन्हा बात सिद्धांतों और वाद - विवाद की भी होती है | भाषण भी दिए जाते है ----चुनावी चन्दा भी बटोर जाता है | उम्मीद तो यह थी की सब कुछ शांत और सामान्य वातावरण मे होगा ! परंतु शायद ट्रम्प को हमारे मोदी जी कुछ ज्यादा ही बहाने लगे -----फलस्वरूप जो - जो हथकंडे भारत में विगत 14 सालों में "”सत्ता"” द्वरा अपने विरोधी को दबाने -- भगाने और यंहा तक दलबदल करने की कोशिस भी हुई | अब देखिए हैं अपना भारत कितना महान !! की अमेरिका को पिछलग्गू बना दिया ! linkdiin नामक वेबसाइट के मालिक रीड हाफ मैन ने ने ट्रम्प के खिलाफ उम्मीदवार कमला हैरिस को लाखों डालर चुनवी फंड में चंद दिया था , अब उन्होंने एक बयान में कहा है की वे ट्रम्प के "””बदले की भावना "” से बचने के लिए वे देश { अमेरिका} छोड़ने का फैसला कर रहे हैं !! अब इसकी तुलना हम "” चुनावी बांड "” स्कीम में काँग्रेस को चन्दा देने वालों की दुर्गति से कर सकते हैं | वैसे देश छोड़ कर जाने वालों में सबसे अधिक संख्या गुजरात के उद्योगपतियों को है --- और उन पर भारतीय बैंक से कार्डों नहीं वर्ण अरबों रुपये का "”गबन"” करने का आरोप हैं | इन सभी गुजराती सेठों के विरुद्ध अपराध दर्ज है , इंटरपोल को खबर भी कर दी गई है ----परंतु चौदह साल में एक भी उद्योगपति को विदेश से भारत नहीं लाया जा सका | अब यह बिना सरकार की मर्जी के तो हो नहीं सकता !!! रही बात दल बदल की तो ट्रम्प साहब ने तो केवल एक भारतीय मूल की डेमोक्रेटिक सांसद को संघीय नियुक्ति दी है | नरेंद्र मोदी जी के काल में तो देश के हर राज्य में ऐसे लोग मिल जाएंगे ---- जो भ्रष्ट नेता माने गए कानून ने भी उनके विरुद्ध आपराधिक मामले चलाए | परंतु जैसे ही उन लोगों ने सत्तारूद दल बीजेपी की सदस्यता ग्रहण की ----- वे बिल्कुल टिनोपाल से ससफ़ होकर बिल्कुल श्वेत बन कर निकले |

तो यह है लोकतंत्र की हकीकत , आज सभी लोकतान्त्रिक देशों मे सत्ता उस देश के पूँजीपतियों की "”जेब "” मे हैं | किसानों का हजार रुपये का बकाया माफ नहीं होगा - जानवरों -घर की कुर्की हो जाएगी , पर दिवालिया पूंजीपति को बैंक से कर्ज मिल जाएगा ! सत्ता के सहयोगी सेठ बैंक से कर्ज लेंगे फिर उसी से सरकार की संपाती खरीद लेंगे | सस्ता कोयला सरकारी खानों से लेकर "” अच्छी क्वालिटी "” का बात कर उसे दसियों गुण दाम पर सरकार को हो बेच देंगे | सरकार की कानूनी एजेंसिया भी उन्ही के खिलाफ "”कारवाई करती है जो सत्ता के विरोधी है |”” अभी महाराष्ट्र में अजित पँवार की 1000 करोड़ की जायदाद आयकर विभाग ने "” मुक्त "” कर दिया , उनके द्वरा बीजेपी सरकार को समर्थन देने के 48 घंटे बाद !!! है ना सत्ता कमाल ,बाद कुछ और |






Dec 5, 2024

 

लोकतंत्र मे चुनाव शासन के लिए नहीं , होते अब वे सत्ता से मिलने वाले लाभ के लिए है !


दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यून सोक द्वरा राजनीतिक विरोध को दबाने के लिए मार्शल ला ऐसे निर्णय की घोषणा करना और वनहा की संसद और जनता के अप्रतिम विरोध को

के कारण , नया केवल उन्हे अपना फैसला छा घंटे मे वापस लेना पड़ा , बल्कि अब वे महा भियोग का सामना कर रहे है | बात इतनी सी थी की वे राष्ट्रपति चुनाव भी अत्यंत काम मतों से जीते थे | परंतु संसद में विपक्ष की पकड़ बहुमत समान थी | इतना ही नहीं राष्ट्रपति यून की पत्नी पर भ्रस्टाचार के भी आरोप लगे हैं | राष्ट्रपति अपने फैसले पर संसद की मुहर लगवाने में असफल रहे थे | परिणाम स्वरूप वे सत्ता का "”लाभ "” नहीं ले पा रहे थे | फलस्वरूप उन्होंने अपने विरोधियों पर "”उत्तर कोरिया "” के तानाशाही शाशक से मिले होने और देश के लोकतान्त्रिक ढांचे को खतम करने का आरोप लगाया ! परंतु छहः घंटे मे उन्हे देश् वासियों के विरोध का सामना करना पडा | अब वे चुने गए थे दक्षिणी कोरिया की उन्नति और वणः के लोगों के "”हित "” मे कार्य करने के लिए , परंतु उन्हे अपने उद्योगपति मित्रों के लाभ के लिए की गई कोशिस के असफल होने से वे राजनीतिक समझ भी भूल गए | अब परिणाम सर विश्व देखेगा |


राष्ट्रपति यून की तरह ही अमेरिकी निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प भी खुलमखुला शासन के लिए नहीं बल्कि "”सत्ता "”” से लाभ के अपने घोसीट इरादों पर ही चल रहे हैं | लोकतंत्र मे अपने विरोधी को भी गरिमा पूर्ण भाषा और व्यवहार से ही व्यवहार किया जाता हैं | परंतु ट्रम्प इस बात के अपवाद हैं | वे अपने विरोधी के लिए जिस प्रकार की अमर्यादित व्यवहार कर सकते है और जितनी अनुचित भाषा इस्तेमाल कर सकते हैं ----वे करते रहे हैं | अब उन्होंने तो राष्ट्रपति के पहले टर्म में ही ---इस सर्वोच्च पद की गरिमा और नैतिकता की परवाह नहीं की थी | उनकी नजरों मे उनका "”विरोध "” करने वाला नया केवल देश बल्कि मानवता का भी दुश्मन होता हैं | उन्हे नारी की गरिमा का तनिक भी विचार नहीं हैं ---- जिसका उद्धरण है , उनपर चल रहे मुकदमे ---- जिसमें अनेक महिलाओ ने उन पर "”अवांछित "” व्यवहार करने का आरोप लगाया है | यंहा तक की एक महिला का मुंह बंद करने के लिए उन्होंने अपने चुनाव फंड से उसको अपने वकील के द्वरा पैसे दिए | जिसका मुकदमा चल रहा हैं !! राष्ट्रपति के रूप मे "””ईमानदारी "” से फैसले लेने के लिए उन्होंने उन कंपनियों का खुलासा भी नहीं किया जिसमे उनकी हिस्सेदारी है , अथवा मालिकाना हक है ! जबकि राष्ट्र के सर्वोच्च पद पर होने के कारण उनको अपने फैसलों की "”ईमानदारी "” पर ध्यान देना था | क्यूंकी सरकार के अनेक फैसले उन लोगों को लाभ पहुचने वाले हो गए थे --- जिनकी वफादारी ट्रम्प के प्रति थी | और ऐसा नहीं की उन्हे इस तथ्य का कोई पछतावा हुआ हो | बल्कि उन्होंने सीनेट की "”एथिकस कमेटी "” को जवाब देना भी उचित नहीं समझा | इसका तात्पर्य यह हुआ की अब मीडिया या उनके विरोधी यह आरोप नहीं लगा सकते ---की राष्ट्रपति ने ईमानदारी से अपना कर्तव्य पूरा नहीं नहीं किया हैं ! क्यूंकी वे तो खुले आम कह रहे थे की अपने वफ़ादारों को लाभ देना उनका दायित्व हैं |



यह तो हुआ उनके पहले टर्म के राष्ट्रपति के रूप किए गए काम | ट्रम्प होटल {जो की उनकी पारिवारिक संपाती है ||}} में ही सभी विदेशी मेहमानों को ठहरने का सरकार की ओर से इंटेजम किया जाता था } अब इससे बड़ा अनीतिक फैसला क्या हो सकता है | पर जब चुनाव जीतने का उद्देश्य ही अपने को और अपनों को "”सभी प्रकार के लाभ पहुचना हो तब इसे "””शासन करना या जनहित उद्देश्य नहीं हो सकता | तब सिर्फ एक मकसद होता है --अपने चारों ओर अपने समर्थकों - वफ़ादारों - चनदा देने वालों के हित का ध्यान रखना -----उसके लिए भले ही संसदीय नैतिकता ----- और राजनीतिक ईमानदारी की कुर्बानी न देनी पड़े !


अपने दूसरे टर्म मे ट्रम्प खुलकर अमेरिकी साधनों और खजाने का दोहन करने और अपने आलोचकों गरियाने का काम कर रहे हैं | उन्होंने रक्षा सचिव तथा संघीय जांच एजेंसी {एफ़बीआई } के निदेशक , तथा फ्रांस मे दूत की नियुक्ति मे उन्होंने अपने रिश्तेदारों को खूब उपकरत किया है | उनके गैर ईमानदार इरादे तब सामने आ गए ,जब उन्होंने नासा के लिए इलों मास्क के करीबी को नामित किया हैं | जबकि मास्क की कंपनी के खिलाफ नासा प्रबंधन द्वरा अनेकों मामले विचाराधीन हैं | मशक की कंपनी का विवाद अमेरिकी प्रशसन से अनेक वर्षों से चल रहा है | परंतु अब वही कहावत "”” सैंया भए कोतवाल तो फिर डर काहे का "” | अब अगर दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र मे शासकीय ईमानदारी ----राजनैतिक शुचिता की यह दुर्गति है , तब लोकतंत्र और उसके चुनाव भी जनहित के लिए नहीं वर्ण धन्नासेठों के लिए होंगे | एसिया के लोकतान्त्रिक देशों मे राजनेताओ के भ्रस्टाचार की अनेकों कहानिया है | थायलैंड के राजा हो या मलेसिया के सुल्तान हो उनसे ईमानदारी की उम्मीद इसलिए नहीं की जा सकती क्यूंकी वे जनता द्वरा निर्वाचित नहीं होते है |