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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Dec 25, 2024

 

मनोज पाठक -- एक संस्मरण



बहुत काम ऐसा होता हैं जब आप कारोबारी रिश्तों में अपनापन पाते हैं , मनोज पाठक ऐसे ही व्यक्तित्व थे | उनसे परिचय के पूर्व मैं उनके पिता स्वर्गीय राज बहादुर पाठक से परिचय हुआ , वे भी देश के समाजवादी आंदोलन से जुड़े कर्मठ कार्यकर्ता थे , और मैं भी लखनऊ में छात्र जीवन में समाजवादी युवजन सभा से जुड़ा हुआ था | यूं तो लजब मैं 1982 की जनवरी को भोपाल की धरती पर पैर रखा तो समाजवादी विचारों के मुख्यमंत्री स्वर्गीय अर्जुन सिंह से मुलाकात हुई | यूं तो मेरा परिचय तत्कालीन उतर प्रदेश के मुख्य मंत्री विश्वनाथ परताप सिंह ने उरई में अंतर राज्यीय पुलिस बैठक मे ही करवाया था | नवभारत टाइम्स के संवाददाता के रूप मे पाठक जी से जन संपर्क निदेशालय में हुई थी | बाद में मनोज जी के अग्रज और तूफ़ानी रिपोर्टर स्वर्गीय जगत पाठक से भी परिचय हुआ | जगत पाठक जी अपने में ही एक किंवदंती बन गये थे | तब शायद मनोज जी भी किसी समाचार पत्र में रिपोर्टर थे |


कुछ समय बाद शायद उनका चयन जनसंपर्क में एक अधिकारी के रूप मे हो गया था | उसके बाद मनोज जी से बहुत मुलाकात होती रहती थी | इन मुलाकातों का आशय विभागीय जानकारी लेना होता था , जो मेरे समाचार लेखन में काम आती थी | धीरे - धीरे उनके व्यवहार और जानकारी का निखार देखने को मिला | वैसे उनको किसी ना किसी विभागीय मंत्री से सम्बद्ध किया जाता था , जैसा की विभाग की परंपरा थी | परंतु उनके सोच और जानकारी की बार हम संवाददाताओ को बड़ी मदद करती थी , अगर उन्हे कोई तथ्य की जानकारी नहीं होती तब वे , उस सूत्र के बारे बात देते जान्ह से जानकारी मिल सकती थी | बाद मे वे दिग्विजय सिंह के मुख्य मंत्री के कार्यकाल में ,उनसे सम्बद्ध कर दिए गये थे |


इस काल में उनका परिचाय लगभग राजधानी के सभी राष्ट्रीय और प्रादेशिक अखबारों के प्रतिनिधियों से हो गए था | हम सब भी उन्हे एक "”सोर्स "’ मैटीरियल मानने लगे थे | इसी दौरान उनका काफी हाउस मे आना जाना काफी हो गया था , क्यूंकी अधिकतर पत्रकार वनही सुबह अथवा शाम को बैठकी करते थे | इन बैठकों मे खबरों की चर्चा के दौरान ,अगर किसी प्रकार के सरकारी आँकड़े की जरूरत होती --तब मनोज पाठक को याद किया जाता | और उन्होंने कभी हम लोगों को निराश नहीं किया | या तो वांछित तथ्य सुलभ कर दिए अथवा यह बताया दिया की कौन अफसर या मंत्री यह जानकारी देगा | उनकी विनम्रता उनके पिता से मिली थी | हम पत्रकारों मे सभी के पास मनोज से , कोई न कोई जानकारी की लिस्ट उनके पास रहती थी , | अगर कोई खास लेखन करना हो तब भी मदद हो जाती थी |



वैसे मनोज थे तो शासकीय अधिकारी थे , उनके विभाग के अफसरों को उन पर जितना भरोसा था --उतना ही विश्वास पत्रकारों को उनकी सत्यता और ईमानदारी के प्रति था | वे सही मानो मे शासन { जनसंपर्क } और अखबार नवीसों के बीच एक सेतु की भांति थे |

वे पत्रकारों के निजी मामलों मे भी भरपूर मदद करते थे | क्यूंकी वे भोपाली थे , इसलिए उन्हे यंहा के बारे मे अच्छी वाक़फ़ियत थी | अगर कुछ उन्हे नहीं मालूम होता तब वे उस सोर्स के बारे मे भी बता देते जो हम लोगों को जानकारी उपलब्ध कर सकता था | बाद मे उनका विवाह भी देशबंधु के सीनियर पत्रकार स्वर्गीय राज भारद्वाज की कन्या से हुआ | और वे पत्रकार के पुत्र और पत्रकार के भाई होने के साथ पत्रकार के दामाद भी बने | दिग्विजय सिंह जी के मुख्यमंत्रित्व काल मे तो हालत यह था की अगर मुख्य मंत्री से समय चाहिए तो उसके लिए मनोज पाठक

ही पर्याप्त थे | उनका अवसान इतना अचानक हुआ की - उनके चाहने वाले भी उनका शोक भी नहीं माना पाए | हालांकि उनके निधन से जो स्थान पत्रकार जगत और जन संपर्क मे रिक्त हुआ उसकी भरपाई तो आज तक नहीं हुई | सबसे बड़ा कारण जो उनके जाने के बाद हुआ की पत्रकारों और शासन के मध्य आत्मीय संबंध और खुलापन हुआ करता था , वह समाप्त हो गया | अब नया तो शासन और ना ही जन संपर्क का कोई संबंध काफी हाउस जैसी जगह से रह गया | फलस्वरूप शासन और पत्रकारों की दूरिया बड़ती गई जो आज भी कायम है | मनोज एक जीवंत शासन और पत्रकारों के बीच का पुल हुआ करते थे | दोनों का ही विश्वास उन्हे अर्जित था |

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