पुरी मे जगन्नाथ मंदिर के परिक्रमा पथ का उदघाटन
राम मंदिर के गर्भग्रह में
दो रामलला के विग्रह पूजित होंगे !
अयोध्या
मे प्रस्तावित राम मंदिर मे प्राण प्रतिस्ठा के कर्मकांड सरयू नदी के तट से प्रारम्भ हो चुके है || बुधवार 17 जनवरी को ही पुरी मे महाप्रभु
जगन्नाथ मंदिर के परिक्रमा पाठ या परकोटे का वेदिक रीति से उदघाटन हुआ | वेदिक धरम के चार तीर्थ स्थानो में एक धाम पुरी मे हुए इस
धार्मिक आयोजन में पुरी मठ के शंकराचार्य की
उपस्थिती ने इसे गरिमापूर्ण बना दिया |
प्रातः शुरू हुए इस आयोजन में राजनीति या सरकारी
भागीदारी या प्रभाव नज़र नहीं आ रहा था | जबकि अयोध्या के मंदिर के आयोजन मे “”आदि से अंत तक “” आरएसएस वीएचपी और बीजेपी
तथा केंद्र और राज्य सरकारो का नियंत्रण या कहे सहयोग साफ –साफ नज़र आता है | क्या
ही विचित्र है की मंदिर का निर्माण न्यायिक फैसले से ही संभव हो सका ,
पर इस आयोजन को नरेंद्र मोदी – आरएसएस के भागवत और वीएचपी के चंपत रॉय के चेहरो से जाना जाता है
| उदघाटन की प्रणाली
और रूप रेखा से अशन्तुष्ट वेदिक धर्म के चारो
दिशाओ मे स्थापित शंकराचार्य मठो के गुरुओ ने वेदिक परम्पराओ की अवहेलना या यू कहे अनुपालन
नहीं किए जाने से अशन्तुष्ट थे , एवं उन्होने मंदिर के निमंत्रण को
ठुकरा दिया | क्यूंकी
बीजेपी और आरएसएस तथा वीएचपी के त्रिमूर्ति
गठबंधन ने आदि गुरु की स्थापित परंपरा को अमान्य करने की कोशिस
मंदिर आयोजन में की है | जिन धार्मिक आयोजनो में शंकराचार्य
निमंत्रित होते है वनहा उनके सहयोगीयो को भी
निम्न्त्रन होता है | जिस प्रकार प्रधान मंत्री या राष्ट्रपति
का निश्चित काफिला होता है उसी प्रकार इन धर्म गुरुओ का भी स्टाफ होता है | जो उनके साथ हमेशा चलता है | शंकराचार्यों को अपने साथ एक सहायक के साथ आने ही निमंत्रण था
!! जबकि मोदी जी के साथ कैमरामन –सुरक्षा – सचिवलाय और राजनीतिक सहायको का 20 – 30
लोगो का लवाजमा होता है | यह निम्न्त्र्न एक प्रकार से इन शंकरचार्यों को राजसत्ता की महत्ता एक ही आयोजन मे दिखाना रहा होगा |
वनही पुरी
मे हुए आयोजन मे मुख्य मंत्री नवीन पटनायक की भूमिका बस एक दर्शक जैसी ही रही | वनहा यजमान पुरी के राजपरिवार और
मंदिर के लोगो की रही | वैसे यह परिक्रमा निर्माण परियोजना भी
3000 करोड़ की है , परंतु ना तो इसका ढ़ोल ओड़ीसा सरकार ने और ना ही मुख्य मंत्री नवीन पटनायक अथवा उनके समर्थको ने ढ़ोल बजाए \
गर्भगृह मे एक ही देवता के दो विग्रह !
भारत के
सभी मंदिरो में किसी एक देवता की ही स्थापना
होने की परंपरा है | कम से कम चरो धामो के मंदिरो मे तो
है ही | दक्षिण के मंदिरो में भी यही परंपरा है | तिरुपति हो अथवा पद्मनाभ्सवामी का
हो वैष्णव देवी हो या आयप्पा मंदिर हो | परंतु मंदिर प्रबंधन समिति के मुख्य
वक्ता चंपत रॉय द्वरा पत्रकारो को बताया गया की राम लला विराजमान की “”स्वमभू मूर्ति “” भी गर्भ गृह मे मुख्य विग्रह के साथ विराजमान रहेगी | यह आरएसएस वीएचपी तथा बीजेपी का पहला प्रयोग धार्मिक
कर्मकांडो से होगा | शायद वे अपने “””भक्तो “” को समझा भी ले
–की जो कुछ भी किया जा रहा है वह देश और हिन्दू
धरम के लिए श्रेष्ठ है !! परंतु करोड़ो धर्मभीरु जनता के मन एक शंका का बीज –जरूर
बो देंगे --- की ऐसा क्यू हो रहा है !
कारण यह है
की बीजेपी आरएसएस और वीएचपी लोगो को यह विश्वास
दिलाना चाह रहे है की केवल वे ही देश और धरम की रक्षा कर सकते है ! जब कोई उनसे पूछता
है की जब देश मे स्वतन्त्रता की लड़ाई लड़ी जा
रही थी तब आप की भूमिका क्या थी ? उनके पास सिर्फ सावरकर
का नाम ही लेने को है |
म्हातमा गांधी के अहिंशा को व्यर्थ
और पंडित नेहरू के आदर्शो को अधार्मिक बताना
ही पर्यपात नहीं होगा | कम से कम उन्होने कभी शंकरचार्यों का
अपमान नहीं किया | असहमत वे कई मुद्दो पर रहे , जैसे छुआछूत और मंदिर मे सबके प्रवेश
के अधिकार को लेकर |
अब इंतज़ार है 22 जनवरी का |
No comments:
Post a Comment