आखिरकार विज्ञापन की भरमार हार गयी !
राम मंदिर में मूर्ति स्थापना के यजमान मोदी नहीं होंगे !
22 जनवरी
को अयोध्या में होने वाले आयोजन को जिस प्रकार
की हाइप समाचार पात्रो और टीवी चैनलो मे किया
जा रहा था ,और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को उस समारोह का “यजमान
“ बनाए जाने का प्रचार हो रहा था , वह चारो मठो के शंकराचार्यों
की आपति के बाद कुछ तो संशोधित करना पड़ा !
अयोध्या में मंदिर के निर्माण को लेकर वीएचपी और आरएसएस तथा बीजेपी शासित राज्यो में प्रचार का जुनून दिखाई पद रहा था –उसको कुछ विराम सा लग गया है | चंपत रॉय जी के संगठन की ओर से यह बताया गया ही की मूर्ति स्थापना के मुख्य यजमान ट्रस्ट के किसी विवाहित सदस्य को ही बने जाएगा ! राम के मंदिर की स्थापना में कोई पुरुष एकल रूप से नहीं बैठ सकता ----यानहा
तक की मर्यादा पुरुषोतम राम भी अश्वमेघ यज्ञ में सोने की सीता की प्रतिमा के साथ ही बैठे थे | अब ऐसी व्यवस्था में प्रधान मंत्री का राजसत्ता
के सहारे वेदिक नियमो की अवहेलना करना और वह भी जब की सनातन धरम के चार मठो के शंकरचार्यों
द्वरा आपति की गयी तब आम हिन्दू के मन में
धार्मिक कर्मकांडो से की जा रही इस मनमानी
ने थोड़ा आशंतोष और कुछ आक्रोश भी था , यानहा तक की
सत्ता की अंधभक्तों की भीड़ भी इस आक्रोश का
उत्तर नहीं दे पा रही थी | संभवतः जमीन में व्यापात इस असंतोष का एहसास वीएचपी और आरएसएस के साथ बीजेपी के लोगो को भी हो
रहा था | शायद यही कारण है की जन आस्था का ख्याल रखते हुए यजमान
बदलने का निर्णय लिया गया है |
अयोध्या
से मिल रही खबरों के अनुसार मंदिर निर्माण
ट्रस्ट के सदस्य डॉ अनिल मिश्रा और उनकी पत्नी उषा मिश्रा मूर्ति की प्राण प्रतिस्था के लिए सप्ताह भर चलने वाले कर्मकांडो मे यजमान के
रूप बैठेंगे |
यही शास्त्रोक्त व्यवस्था है , की पत्नी के
साथ गठबंधन करके ही किसी भी यज्ञ अथवा धार्मिक कर्मकांड में बैठ सकते है | उन्हे ही
मंदिर निर्माण का विनियोग और संकलप लेना होगा ,तथा यजमान की सारी
अहर्रता पुरी करनी होगी | वैसे वीएचपी के एक सिंह साहबान भी यजमान के रूप में रहेंगे | यह वैसा ही है जैसा की कन्या के विवाह के समय कन्या दान माता और पिता करते
है , उसके बाद रिश्तेदार और अन्य लोग भी पैर पूजते है |
अयोध्या
और पूरी के आयोजनो का अंतर ! 22 जनवरी
के आयोजन से पूर्व 17 जनवरी को पुरी मे जगन्नाथ के मंदिर परिक्रमा प्र्कल्प का उदघाटन हो रहा है | गौर तलब है की जगन्नाथ जी को आदिगुरु शंकराचार्य ने चार स्थानो
में वेदिक धरम के मठ के
रूप स्थापना की थी |
ये हमारे डीएचआरएम के चरो धामो मे एक है | परंपरासवरूप
से होने वाली “” विश्व प्रसिद्ध रथ यात्रा
“” भी यानहा पुरी के राजवंश के ही व्यक्ति की अगुवाई में प्रारम्भ होती है | उसमें कभी किसी प्रधान मंत्री या मुख्य मंत्री ने यात्रा में अगुआ बनने की कोशिस नहीं किया है | ना ही 3000 करोड़ के इस निर्माण को
लेकर वनहा की पटनायक सरकार या मुख्य मंत्री नवीन पटनायक ने अपने को आगे किया
! जैसे यह यात्रा सदियो से निकलती आ रही थी उसी प्रकार के कर्मकांड से विधिवत यह धार्मिक आयोजन सम्पन्न हो रहा है |
जबकि अयोध्या के आयोजन को लेकर चारो मठो के
शंकराचार्यों ने – अधूरे मंदिर में मूर्ति स्थापना और यजमान की पात्रता को लेकर आपति की है | अब शंकराचारयो के रुख में थोड़ी नरमी दिखाई पद रही
है , द्वारिका मठ के शंकराचार्य जी ने राम मंदिर में बाद
मे “”जाने की बात काही है | उन्होने कहा की अभी वनहा भीड़भाड़ है बाद में दर्शन करने जाएंगे|
रामलला
विराजमान :- जिस मूर्ति को लेकर 1949 से विवाद शुरू हुआ ---जिसके नाम से बीजेपी नेता आडवाणी जी ने रथ यात्रा निकली ,जिसके कारण बीजेपी के वोट बैंक मे
व्रधी हुई ,और जिसके कारण राज्यो में और केंद्र में बीजेपी की सरकार बनी ---वे
स्वयंभू मूर्ति अपने स्थान पर ही रहेगी !!
उसकी पुजा –अर्चना वनही होगी |
इस हालत
में रहीम का दोहा याद आता है
काज परे
कुछ और है
काज सरे कुछ और
रहिमन भाँवर के परे
नदी सिरवात मौर !
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