संविधान तो नागरिकों के हित में –सरकार और अदालते उसे
निष्क्रिय कर रही !
ईडी
के डायरेकटर संजय मिश्रा को सिर्फ 31 जुलाई तक अपना बोरिया बिस्तरा
सम्हाल लेने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद
मद्रास हाइ कोर्ट में उनकी फौज की “कस्टडी “” के अधिकार को चुनौती मिल कुकी है | सुप्रीम कोर्ट मे अपने एक फैसले में यह साफ कर दिया की एजेंसी कोई पोलिस संगठन नहीं है , वरन केवल एक
अपराध की की पूछताछ के लिए बना संगठन है |
पीएमएलए अर्थात हवाला या अन्य तरीको से धन को अन्य जगहो में अवैध रूप से भेजने को रोकने का कानून है | जिसका आजकल
सर्वाधिक उपयोग सत्ता के राजनीतिक विरोधियो
को काबू करने का “”दंडाष्ट्र “” है | गैर बीजेपी नेताओ और उनसे
सहानुभूति रखने वाले लोगो को सत्ता के सामने घुटने टेकने का औज़ार है |इस कानुन का अनुपालन देश की एंफोर्समेंट डायरेक्टोरेट है | हाल ही में मद्रास हाइ कोर्ट में डीएमके के मंत्री सेंथिल बालाजी को ईडी द्वरा गिरफ्तार किया गया था | तबीयत खराब होने के कारण उन्हे अस्पताल में भर्ती
कराया गया है | उनकी “कस्टडी “ लेने के लिए जब एजेंसी विशेस कोर्ट
के निर्देश पर गए ---तब सेशन जज ने उन्हे आरोपी
से पुछ ताछ करने की इजाजत तो दी पर यह निर्देश दिया की आरोपी के इलाज़ और उसके स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुये
किया जाए | साथ ई यह भी निर्देश दिया की सेन्थिल बालाजी अस्पताल में ही रहेंगे !!! इस फैसले के खिलाफ ईडी ने हाइ कोर्ट का दरवाजा खटखटाया क्यूंकी
आज तक का ईडी का इतिहास रहा है की उनकी “”पूछताछ
“” नौ घंटे से तेरह या उससे भी अधिक घंटे तक “अपने दफ्तर में अपने अफसरो की भीड़ में
“” आरोपी”” से सवाल –जवाब चलते हैं | इनकी इसी कारवाई को लेकर सिविल सोसाइटी और आँय नागरिक सवाल करते रहे है |
मद्रास
हाइ कोर्ट की खंड पीठ में में आरोपी बालाजी
की बंदी प्त्यक्षीकरण की अर्ज़ी आरोपी
की पत्नी की ओर से दायर की गयी थी | जिस पर दोनों जज के विरोधी मत थे
| इस कारण मुख्य न्यायाधीश ने जुस्टिस कार्तिकेयन को “थर्ड जज नियुक्त कर मामले की सुनवाई करने का निर्देश दिया
| उसी पर एजेंसी की ओर
से मामला रखते तुषार मेहता ने कहा जांच और पूछताछ आपस में एकही है !!!
जबकि सुप्रीम कोर्ट अपने एक फैसले में कह चुका है की
ईडी कोई पुलिस संगठन नहीं है ,वरन वह मात्र एक रेगुलेटरी निकाय है
! मेहता का तर्क था की मात्र सुप्रीम कोर्ट के कह देने से की यह पुलिस नहीं है | जिसे कस्टडी लेने का अधिकार है | उन्होने स्वीकार किया की पी एम ल ए अक्त में साफ –साफ कहा गया ऐन की एजेंसी
सिर्फ और सिर्फ एक ही अपराध की पूछ ताछ कर सकती है वह है धन की लांडरिंग का ,
जिसकी सज़ा भी एक ही है –और यह गैर जमानती अपराध
है , इसलिए केवल अदालत ही इन मामलो में जमानत दे सकती है | उन्होने बताया की यह कहना गलत है
की एजेंसी मनमाने रूप से कारवाई करती है | उन्होने बताया की इस कानून के 2005 में प्रभाव में आने के बाद 2019 के दौरान सिर्फ “”330”” लोगो को गिरफ्तार
किया गया है !
उन्होने
हाइ कोर्ट से शिकायत की सेशन जज के निर्देश के अनुसार एजेंसी किस प्रकार पूछताछ कर सकती है , क्यूंकी वह आरोपी को अपनी गिरफ्त में नहीं ले पा रही है -----क्यूंकी अस्पताल में
आरोपी से पूछताच्छ नहीं की जा सकती ! अब देश के राजनीतिक गलियारो में जिस एजेंसी को “”
हौवा “” माना जाता है --- उसकी दयनीयता इसी तथ्य से साफ होती है की वह घंटो – घंटो
कुर्सी पर बैठा कर ,
मांगने पर ही पानी देना , मतलब यह की आरोपी को मानसिक रूप से
भयभीत कर अपने अनुसार “”बयान”” लेना | यह है कानुन जो एक नागरिक को उसकी
आज़ादी को छिनता है |
यह तब
है जब की सुप्रीम कोर्ट कह चुका है की एजेंसी को
“” स्टेशन हाउस आफिसर “” का अधिकार नहीं है | अपराध प्रक्रिया संहिता के अनुसार सब इंस्पेक्टर { जिसे एस हाउस
आफिसर } कहा गया है , उसे संदेह के आधार पर अथवा सबूत के
आधार पर किसी को निरूध करने या कस्टडी में लेने का हक़ है | जो की
ईडी को नहीं है | परंतु भयभीत नेताओ
ने कभी इस ओर ध्यान ही नहीं दिलाया की सोनिया
गांधी –राहुल गांधी –प्रियंका गांधी लालू यादव
–राबड़ी यादव और टीएमसी के अभिषेक हो अथवा कोई
आँय गैर बीजेपी नेता सभी को इस एजेंसी द्वरा घंटो – घंटो अपने दफ्तर में बैठा कर और मीडिया में खबर देकर की इतने घंटो तक
गहन पूछताछ की गयी ! परंतु आजतक संजय मिश्रा
की इस फौज ने कभी यह नहीं बताया की ----आखिर
पूछताछ में क्या मिला है !!! शायद मद्रास हाइ कोर्ट में केंद्र सरकार का यह ब्रह्मअस्त्र
अपनी गति को प्रापत होगा !!!!
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