लोकतन्त्र में चुनावी हिंसा अभिव्यक्ति की आज़ादी पर पहरा क्या परिणाम ?
कलकत्ता हाइ कोर्ट द्वरा विधान सभा चुनावो के उपरांत वनहा हुई हिंसा के पीड़ितो को इलाज और अन्न देने का आदेश ममता सरकार को दिया | यह तथ्य हैं की वनहा चुनाव पूर्व और बाद में भी त्राणमूल काँग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के समर्थको में हिनशक भिड़ंत की अनेक घटनाए हुई हुई थी | दोनों दलो ने इन घटनाओ के लिए एक दूसरे को जिम्मेदार बताते हुए निर्वाचन आयोग से शिकायत भी की थी | यह उचित ही है की राज्य सरकार अपने यानहा के निवासियों की सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए जिम्मेदार है | और ऐसी घटनाए लोकतन्त्र और अभिव्यक्ति की आज़ादी के लिए खतरा हैं | मतदाता को यह अधिकार हैं की वह अपनी पसंद के प्रत्याशी को समर्थन दे सके | परंतु क्या हो जब सत्ता दल सरकारी मशीनरी का उपयोग कर आपने विरोधी दलो को नामांकन का पर्चा ही नहीं दाखिल करने दे ?
ऐसा उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में हुआ ! जनहा ज़िला पंचायत के अध्यक्षों का चुनाव में बीजेपी प्रत्याशी एकमात्र दावेदार रहा ! आज जब की किसी संस्था अथवा शासकीय निकाय के पदाधिकारी भी बिना चुनाव के नहीं बनते है -----ऐसे में 15 ज़िलो में सत्ताशीन दल के उम्मीदवारों की गैर मौजूदगी यह साफ बताती हैं की पुलिस और ज़िले के अधिकारियों के बाल पर विरोधियो को नामांकन तक दाखिल नहीं करने दिया गया | यह तकनिक जर्मनी में हिटलर के समय में बुनस्तग के प्रतिनिधियों के चुनाव में नाजी पार्टी के एसएस गार्ड और युवा स्ट्राम ट्रूपर दूसरे पार्टी के प्र्त्यशियों को या तो जबरन बंदी बनाकर अथवा मारपीट कर भयभीत कर देते थे ,जिससे वह चुनाव में भाग ना ले सके | ऐसा एक बार ही हुआ क्यूंकी एक बार बुंदस्तग पर बहुमत पाने के बाद हिटलर ने चुनाव की प्रक्रिया को नामांकन में बदल दिया ! क्या उत्तर प्रदेश में आगरा, गाजियाबाद , मुरादाबाद , बुलंद शाहर , ललित पुर , मउ , चित्रकूट ,गौतम बुध नगर , श्रावस्ती , बलरामपुर, गोंडा गोरखपुर झांशी ,अमरोहा , मेरठ , और प्रधान मंत्री मोदी के संसदीय छेत्र वारानासी है | हाँ समाजवादी पार्टी के इटावा में उनका प्रत्याशी निर्विराध चुना गया ! यनहा यह तथ्य देखने को मिलता है की गोरखपुर में समाजवादी पार्टी के प्र्तयशी को नामांकन दाखिल करने के लिए जब वह एसडीएम कार्यालय गया ,तब वनहा मौजूद योगी आदित्य नाथ की हिन्दू वाहिनी और बीजेपी के कार्य कर्ताओ ने पीट पीट कर उसे परिसर से बाहर भागने पर मजबूर किया | इस घटना का वीडियो भी वाइरल हुआ | जिसमें साफ साफ दिखाई दे रहा है की वनहा मौजूद हथियार बंद पुलिस "” इन हुड्डाङियों"” को उनका काम करने दे रही थी ! यह चुनावी इंतज़ाम क्या लोकतन्त्र की चुनाव प्रक्रिया को शुद्ध और स्वाक्ष रख पाएगा ?
स्मरण रहे की अगले वर्ष ही उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव होने वाले हैं , और तब भी वनहा योगी आदित्यनाथा की सरकार ही रहेगी ! ऐसे में ईमानदार रूप से मतदान हो सकेगा या या चुनाव अधिकारी ही सत्तारूद दल के प्र्त्यशियों के नाम्म के आगे बत्तन दबा दबा कर विजय श्री दिलाएँगी \ \अफसोस तो यह हैं की अन्य राजनीतिक दलो ने इस अन्याय के खिलाफ अदालत की शरण नहीं ली | अगर इस अन्याय को ऐसे ही सफल होने दिया गया , तब तो लोकतन्त्र की हत्या हो चुकी | अगर अन्य राजनीतिक दलो ने इस घटना का संगायन नहीं लिया और यूनही जाने दिया ----तब उन्हे आगामी विधान सभा चुनाव में बीजेपी के वीरुध तो चुनाव लड़ना पड़ेगा , पर यह ऐसी लड़ाई होगी जिसका परिणाम पहले ही लिखा जा चुका होगा |
अभिव्यक्ति की आज़ादी :----- सुप्रीम कोर्ट ने अनेकों बार अपने फैसलो में यह साफ लिखा है की – सरकार की आलोचना , देशद्रोह नहीं है | अभी हाल में दिल्ली हाई कोर्ट ने भी "”दिल्ली दंगो के आरोपित चार आरोपियों "” को जमानत देते हुए लिखा है की ---”” सरकार के विरोध के लिए शांति पूर्ण प्रदर्शन ---- अनलाफूल एक्टिविटी अक्त के तहत कोई अपराध नहीं हैं | उन्होने तो यानहा तक कहा की लगता हैं की सरकार प्रदर्शन के मौलिक आदिकार को भूल गयी और आलोच्को दंड देने के लिए इस कानून का उपयोग किया |
कश्मीर में इंटरनेट को बंद किए जाने के केंद्र के आदेश को भी सुप्रीम कोर्ट ने मौलिक अधिकारो का उल्लंघन माना | यह तब है है जब उत्तर प्रदेश पुलिस ने अनलफूल एक्टिविटी के आरोप में दो पत्रकारो को आठ माह से बंदी बना रखा हैं | उनपर मुकदमा भी नहीं चलाया जा रहा है ,जिससे की यह साफ हो सके की उनका गुनाह क्या हैं | इस समय अकेले बैंगलोर में की एन आई ए की अदालत में पचासा से ज्यादा लोगो को आतंकी गतिविधियो के आरोप में बंदी बनाया हुआ हैं | जो सात - आठ साल से मुकदमें की बात जोह रहे हैं | क्या यह लोगो को डराने का काम नहीं हैं , अगर तुमने सरकार से सवाल पुच्छा या आलोचना की तो बीआ सबूत के भी तुम्हारी "””आज़ादी "” को जेल की सलाखों के पीछे बंद कर देंगे ?
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