Bhartiyam Logo

All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

May 18, 2019


लोकसभा चुनाव


अंपायर और रेफरी के हुकुमनामे -कितने न्यायपूर्ण और तार्किक ?

लोकसभा चुनावो की गर्मी मैं नेताओ के कथन और उनके , नियम सम्मत होने को लेकर बार - बार सवाल उठ खड़े हों रहे हैं | जिनहे निपटाने के लिए कभी सत्ता पार्टी भारतीय जनता पार्टी और कभी विपक्षी दल सुप्रीम कोर्ट और केंद्रीय चुनाव आयोग के सामने अपनी अर्ज़ी लगते हैं | परंतु दोनों ही निकायो के हुकुमनामे – उन कारणो का खुलाषा नहीं करते जिनके आधार पर फैसले लिए गये | कंगारू कोर्ट मैं भी सज़ा पाने वाले को उसकी गलती बता कर सर को धड़ से अलग कर दिया जाता हैं ! कुछ -कुछ वैसा ही हाल के फैसलो मैं दिखाई पड़ता हैं |
हाल का फैसला वाराणसी से बसपा सपा गठबंधन के उम्मीदवार तेज प्रताप यादव को उम्मीदवारी का पर्चा "”खारिज करने को लेकर हैं "” | तेज़ प्रताप ने पहले निर्दलीय के रूप मैं नामांकन दाखिल किया था | तब भी चुनाव अधिकारी ने उन्हे यह नहीं बताया की वे भरत के आम नागरिक नहीं वर्ण खास हैं ! क्योंकि वे अर्ध सैनिक बल मैं रह चुके हैं | इसलिए उन्हे अपने पूर्व नियोक्ता से "””अनापती प्रमाण पत्र देना होगा "” , यानहा एक सवाल उठता हैं की क्या ऐसा प्रमाण पत्र जनरल वी के सिंह ने गाजियाबाद के चुनाव अधिकारी को दिया था ?? क्योंकि वे भी सेना के पूर्व अधिकारी थे !! अथवा अनापत्ति प्रमाण पत्र अधिकारियों के लिए अनिवारी नहीं है सिर्फ सैनिको के लिए जरूरी हैं ? सुप्रीम कोर्ट ने भी "”गुण -दोष "” के आधार पर जिलाधिकारी के आदेश को ही माना , और तेज़ बहादुर यादव --- नरेंद्र मोदी के वीरुध चुनाव लड़ने मैं "”असफल "” कर दिये गये ! वाह रे लोकतन्त्र !



दूसरा मामला 21 राजनीतिक दलों ने ई वी एम वोटिंग मशीनों के शासक दल द्वरा दुरुपयोग को नियंत्रित करने हेतु - प्रत्येक लोक सभा छेत्र के वोटो के पचास फीसदी वी वी पे ट परचियो के मिलान के लिए केंचुआ को निर्देश दिये जाने की मांग की थी | इस मामले मे सुप्रीम कोर्ट ने कहा था की लोकसभा निर्वाचन छेत्र के "””एक बूथ "” मैं यह प्रयोग किया जा सकता हैं , जैसा की केंद्रीय चुनाव आयोग ने अदालत से कहा था | अब जनहा 1500 निर्वाचन बूथ होते हैं ---- उनमे किसी एक मैं परचियो का वोट से मिलान ---वैसे ही हैं जैसे किसी बटलोई मैं पक रहे एक किलो चावल को जांच "” एक चावल "” निकाल कर की जाये की यह भात बना या अभी भी चावल हैं ! परंतु सुप्रीम कोर्ट ने पुनर्विचार याचिका को 60सेकंड मैं यह कहते हुए खारिज कर दिया की "””हम आपकी याचिका सुनने के लिए बाध्य नहीं हैं "” | इस फैसले की कानूनी पहलू कुछ भी हो -----परंतु देश के लोकतन्त्र मैं मतदाता की मर्ज़ी पर संदेह का निवारण तो परमावश्यक हैं | चुनव आयोग ने अपने जवाब मैं कहा था की अगर 50 फीसदी परचियो का वोटो से मिलन होगा तो वोट गिनने मैं चार -पाँच दिन लग जाएँगे | जिन लोगो ने बैलेट पेपर से वोते दिया होगा --- उन्हे मालूम होगा की वोटो की गिनती मैं 24 से 30 घंटे औसतन लगते थे | अब आधे वोटो के परचियो के मिलान मैं चार से पाँच दिन का वक़्त लगने की बात "” हजम नहीं होती हैं "” | दूसरा प्रश्न यह है की क्या सुप्रीम कोर्ट देश के पचास फीसदी मतदाताओ का प्रतिनिधित्व करने वाली राजनीतिक पार्टियां --- क्या इतनी गयी - गुजरी हो गयी हैं की उनकी अर्ज़ी पर सिर्फ अदालत की मर्ज़ी ही चलेगी ? वह भी बिना कोई स्पष्ट कारण बताए | नियम हैं की "” फैसला "” भले ही चार लाइन का हो , परंतु ""निर्णय"” मैं सारे तथ्य पर विचार करके उन तर्को का हवाला भी होता हैं ,जिनके आधार पर फैसला किया गया | पर ऐसा नहीं हुआ |


अब बात करते हैं चुनाव के रेफरी की, जिसने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के क्र्त्यो और भासणों पर आपति जताने की अर्जियो पर "”क्लीन चिट"” की आदत सी बना ली हैं | उन्हे अब तक नौ {9} बार इस फैसले से नवाजा गया हैं | सबसे पहले चिट उन्हे तब मिली --जब चुनाव के दरम्यान उपग्रह के आसमान मैं छोड़े जाने की घटना पर मोदी जी ने देश के नाम टेलीविज़न { दूर दर्शन समेत सभी निजी चैनलो पर } पर राष्ट्र को संदेश दिया था ! यद्यपि यह सूचना पारंपरिक रूप से इसरो के आद्यक्ष द्वरा की जाती थी | परंतु चुनावी माहौल मैं मोदी जी ने इसे भी "” अपनी सरकार के लिए भुनाने की सफल कोशिस की ! उसके बाद अहमदाबाद मैं जब वे वोट डालने गए , तब भी वे खुली गाड़ी मैं रोड शो किया , जो चुनाव आचार संहिता के तहत "”नियम वीरुध हैं "” | परंतु चुनाव आयोग ने उसे भी अनियमित नहीं माना !

सहारनपुर मैं काँग्रेस के नवजोत सिंह सिद्धू ने अपने उद्बोधन मैं कहा की मुसलमानो को सम्पूर्ण शक्ति से वोट डालना चाहिए | उनके इस भासन को सांप्रदायिकता और भड़काऊ भासण मन कर – दो दिन तक उनके प्रचार करने पर रोक लगा दी | अब बंगाल के बैरकपुर मैं मोदी जी ने कहा की दीदी { ममता बनर्जी } जय श्री राम बोलने वालो को जेल मैं डाल देती हैं | तब शिकायत पर चुनाव आयोग ने फिर क्लीन चिट दे दी !!

अभी हाल मैं पूर्व प्रधान मंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी पर टिप्पणी करते हुए राहुल गांधी पर कटाक्ष करते हुए कहा "” आपके पिता को उनके दरबारियों ने मिस्टर क्लीन बना दिया था --पर वे भ्रस्तचारी के रूप मैं गए ! “” इस पर जब शिकायत हुई तब भी क्लीन चिट मिल गयी ! और तो और वित्त मंत्री अरुण जेटली ने तो – अपने ब्लॉग मैं लिखा अभिव्यक्ति की आज़ादी चुनाव आचार संहिता से कनही ऊपर हैं , जिसका अर्थ हुआ की चुनाव आचार संहिता सिर्फ आजम खान - नवजोत सिंह सिद्धू --और प्रज्ञा ठाकुर आदि लोगो की अभिव्यक्ति की आज़ादी पर नियंत्रण कर सकती हैं ! नरेंद्र मोदी पर यह रोक नहीं लागू होती ! क्योंकि वे बीजेपी प्र्वकता राम माधव के शब्दो मैं वे "” किंग हैं "” ,और कहावत हैं किंग डज नो रांग "”!! केंद्रीय चुनाव आयोग के फैसलो मैं यह फैसले न्यायपूर्ण तो बिलकुल नहीं हैं | जबकि आयोग का काम हैं की वह यह सुनिश्चित करे की -सभी दल और उनके उम्मीदवारों के लिए एक जैसे नियम और सुविधा मिले , जिससे की निसपक्ष चुनाव हो | सागर मैं मोदी जी की सभा को 5 मई को करने की अनुमति दी गयी , जबकि नियमानुसार मतदान के 48 घंटे पूर्व चुनाव प्रचार बंद हो जाता हैं , और उस छेत्र मैं 6 मई को मतदान हुआ |!!

केंद्रीय चुनाव आयोग का एक फैसला तो अत्यंत मजेदार हैं – दिल्ली से आप पार्टी की उम्मीदवार आतशी मारकेल , के धर्म के बारे जब विरधी पार्टियो ने उन्हे यहूदी और ईसाई बताने का कुप्रचार किया , तब दिल्ली के शिक्षा मंत्री मनीष सिंह सिसौदिया ने एक बयान देकर कहा की "”” भूलो मत की आतिशी एक राजपुतानी छ्त्रानी हैं ! बस आयोग को यह बयान धर्म और जाति सूचक लगा !!! अब उम्मीदवार की सामाजिक पहचान बताने पर ----आचार संहिता का उल्लंघन हो गया | एवं उधर अमित शाह का बंगाल मैं दिया गया ब्यान की "”” मै जय श्री राम बोलता हूँ -जो उखड़ना हो उखाड़ लो !! यह भद्दा कथन आयोग की निगाह मैं "””अनुचित "” नहीं था , |

अचरज की बात यह हैं की जब चुनाव के रेफरी यानि केन्द्रीय चुनाव आयोग के नरेंद्र मोदी को आठ बार आचार संहिता के उल्लंघन की शिकायत की गयी तब उन्हे क्लीन चिट दी हाती रही , हालांकि यह तीन सदस्यीय आयोग का 2-1 का फैसला था | जब सुप्रीम कोर्ट मैं इस फैसले के खिलाफ कारवाई की याचिका दायर की गयी ---तब सर्वोच्च न्यायालय ने यह कह कर "”पलल झाड लिया की चुनाव आयोग ने कारवाई कर दी हैं | अतः हम कोई निर्देश नहीं देंगे !! उन्होने सलाह दी की यदि याचिका कर्ता चाहे तो वह "” चुनव याचिका इस मामले मै दायर कर सकता हैं !!!! यानि की हो गयी पाँच साल की फुर्सत !

अगर हम चुनाव याचिकाओ का इतिहास देखे --- तो अधिक तर यानि की नब्बे प्रतिशत मामलो मैं याचिका पर फैसला तब आता हैं "” जब वह निष्प्रभावी हो जाता हैं | परदेश के एक मंत्री के विरुद्ध "”पेड़ न्यूज़ "” के मामले मैं , वाद दायर किया गया | जब विधान सभा का जीवन काल समाप्त हो गया , तब उस पर फैसला आया !!! तब तक वे दुबारा चुनाव लड़ कर विधान सभा पहुँच गये थे !! अब ऐसे फैसले का होना या ना होना किस अर्थ का ???

इन दोनों सर्वोच्च संगठनो द्वरा लोकतन्त्र की आत्मा अर्थात संविधान प्रदत्त अधिकारो और दायित्वों को सरकार और उसके तंत्र के भरोसे छोड़ देना , आम नागरिकों के अधिकारो की हत्या हैं | सुप्रीम कोर्ट द्वरा यह कहना की अपील करे , का अर्थ ना केवल बहुत सारा धन और समय की बरबादी होगा | क्योंकि बात "” गलती की त्वरित सज़ा ही आचार संहिता का आधार हैं "” यदि वह नहीं किया गया और सर्वोच्च न्यायालया ने भी आयोग की गलती नहीं सुधारा , तब वह भी अपने कर्तव्य से विमुख हो रहा हैं | सिर्फ यह कह देना की "” कारवाई हो गयी हैं , पर्याप्त नहीं हैं | वरन देखना यह भी होगा की क्या कारवाई से "”न्याया हुआ "”” अथवा फाइल आगे भर बढाई गयी हैं ! सर्वोच न्यायालय यदि "”सरकारी तंत्र के कार्यो की समीक्षा नहीं करेगा -----तो दूसरा कौन सा निकाय हैं , जो यह कर सकता हैं ????

No comments:

Post a Comment