लोकसभा
चुनाव
मोदी
का क्रोध---उनकी
कामना मैं अवरोध--फिर
चाहे चुनाव आयोग या अदालत हो
बंगाल
मैं बीजेपी अध्यछ अमित शाह
की विवादित चुनावी रैली मैं
हुए हिंसा के तांडव का मुद्दा
हो ,अथवा
पार्टी प्रत्याशी प्रज्ञा
ठाकुर द्वरा महात्मा के आतंकी
हत्यारे नाथुराम गोडसे का
महिमा मंडन हो ----इन
दोनों घटनाओ ने चुनाव के आखिरी
चरण मैं केंद्रीय चुनाव आयोग
और सर्वोच्च न्यायालय की
कारवाई पर निस्पक्छ्ता पर
सवालिया निशान लगा दिया हैं
|
भोपाल
से बीजेपी की लोकसभा प्रत्याशी
प्रज्ञा ठाकुर ,
जिसे
उनकी पार्टी के लोग "””साध्वी
"””
की
उपमा देकर संभोधित करते थे ,
उनके
बिगड़े बोल से दूसरी बार पार्टी
को को सार्वजनिक रूप से अपने
को अलग करना पड़ा !
पहली
बार मुंबई पर हुए आतंकी हमले
के शहीद हेमंत करकरे को श्राप
देने का मसला हो ,अथवा
गोडसे को "”देशभक्त
थे -है
और रहेंगे "”
ने
तो नरेंद्र मोदी को यह कहने
पर मजबूर किया की "”
यह
बहुत ही भयंकर खराब बयान हैं
!
वे
भले ही माफी मांग ले पर मैं
उन्हे दिल से कभी माफ नहीं
करूंगा !!
“”
इस
बयान के तुरंत बाद ही मुंबई
के एन आई ए अदालत ने मालेगाव
बम ब्लास्ट के सभी आरोपियों
को हर
सप्ताह अदालत मैं हाज़िरी देने
का हुकुम सुनाया ,क्योंकि
ये सभी अभियुक्त अदालत मैं
हाज़िरी नहीं दे रहे थे !!
इस
फैसले ने प्रज्ञा के श्राप
और उनके बम धमाके मैं संलिप्तता
को एक बार पुनः जीवित कर दिया
|
उनके
समर्थक और बीजेपी के नेता जो
उन्हे "”निर्दोष
"”
बता
रहे थे ,
उनको
बड़ा झटका लगा हैं |
अब
वे अपने को "”निर्दोष
और पुलिस अत्याचार की निरीह
शिकार नहीं बता सकती ,जब
तक अदालत उन्हे "”ससम्मान
निर्दोष रिहा न कर दे "”
| मात्र
मुकदमे से सबूतो के अभाव मैं
बारी हो जाने से वे स्वच्छ
या निर्दोष नहीं होगी |
जिस
प्रकार महात्मा गांधी हत्या
के मामले मैं सावरकर को संदेह
का लाभ मिला था ,
परंतु
वे कानूनन निर्दोष नहीं कहे
जा सकते |
अमित
शाह की प्रैस कोन्फ्रेंस ,जिस
मै प्रधान मंत्री मोदी उनके
बगलगीर थे ,
उस
मै पार्टी के तीन नेताओ कर्नाटक
के हेगड़े -
कटिल
और प्रज्ञा को दस दिन मैं अपनी
सफाई देने का पार्टी का फैसला
मात्र औपचारिकता ही हैं !!!
कलकते
की अमित शाह की रैली मैं जिस
प्रकार राम -
हनुमान
और उनकी सेना तथा शिव की बड़ी
-बड़ी
झांकिया चल रही थी -----वह
दशहरे मैं निकालने वाली राम
बारात का द्राशय पैदा कर रही
थी |
उसे
चुनाव की रैली तो कतई नहीं कहा
जा सकता |
विद्यसागर
कालेज मैं ईश्वर चंद्र विद्यसागर
की मूर्ति को तोड़ने की घटना
और वनहा हुए पथरबाजी और डंडा
बाज़ी करते हुए बीजेपी की भगवा
कमीज और टोपी लगाए लोगो द्वरा
किया गया करतब ,
जो
वीडियो क्लिप द्वरा सारे देश
मैं देखा गया ,
उसे
निर्वाचन आयोग ने शायद नहीं
देखा !
शायद
अनदेखा कर दिया --क्योंकि
बीजेपी के अमित शाह ने केंद्रीय
चुनाव आयोग पर "”
कारवाई
नहीं करने का आरोप लगाया था
"”
! तुरंत
ही आयोग ने प्रचार की समय सीमा
को 24
घंटे
कम कर दिया !
परंतु
यह ध्यान मैं रखा की प्रधान
मंत्री की दो सभाए "”निष्कंटक
"”
सम्पन्न
हो जाये !
वरना
मोदी जी की कामना मैं व्यवधान
का अर्थ और परिणाम शायद उनको
भी मालूम था |
चुनाव
आयुक्त अशोक लवासा द्वारा
मुख्य चुनाव आयुक्त अरोरा
को लिखे पत्र मैं "”
समूहिक
निर्णय मैं असहमति निर्णय
को नहीं लिखे जाने पर विरोध
जताया हैं "”
| यह
पत्र सार्वजनिक होने के बाद
चुनाव आयोग द्वरा सत्ता दल
के विरुद्ध आचार संहिता की
शिकायतों पर क्लीन चिट डोए
जाने पर अशन्तोष जताया हैं
| इस
मामले मैं पूर्व मुख्य चुनाव
आयुक्तों ने भी आयोग की कारवाई
की आलोचना की हैं |
प्रश्न
हैं की निर्वाचन आयोग के तीनों
सदस्य अपनी -
अपनी
रॉय सामने आई शिकायतों पर
देते हैं |
फैसला
बहुमत से ही होता हैं |
परंतु
असहमति के रॉय को अनदेखा करने
नहीं किया जा सकता |
जिस
प्रकार उच्च और सर्वोच्च
न्यायालय की |
पूर्ण
पीठ के तीन जज़ो की भी एक रॉय
नहीं होती हैं |
परंतु
फैसले मैं असहमति को भी सार्वजनिक
किया जाता हैं |
निर्णय
बहुमत का ही होता हैं |
आयोग
भी सर्वोच्च न्यायालय की
भांति कार्य करता हैं |
परंतु
उसका न्यायिक निकाय की भांति
व्यवहार नहीं किया गया हैं |
वरन
मंत्रिमंडल मैं जिस प्रकार
सिर्फ मुख्य मंत्री या प्रधान
मंत्री का ही मत लिखा जाता हैं
| क्योंकि
मंत्रिमंडल मैं रॉय की गणना
नहीं होती |
उसकी
वजह है की मंत्रिमंडल मुख्य
या प्रधान मंत्री का होता हैं
| उसके
इस्तीफा देने पर समस्त मंत्रिमंडल
अपने आप विघटित हो जाता हैं
| परंतु
न्यायिक निकायो मैं सभी जजो
या सदस्यो का अपना स्वतंत्र
अस्तित्व होता हैं |
जनहा
असहमति भी रेकॉर्ड पर ली जाती
हैं |
जो
की केंद्रीय चुनाव आयोग ने
नहीं किया |
मुख्य
चुनाव आयुक्त अरोरा का यह कहना
की पहले भी आयोग मैं असहमति
होती रही हैं ,
परंतु
किसी आयुक्त ने असहमति रिकॉर्ड
नहीं किये जाने पर खुले आम
विरोध जताया हैं |
इसका
अर्थ हैं की मामला गंभीर हैं
| आयोग
की "”प्रक्रिया
"”
मैं
सुधार की जबरदस्त जरूरत हैं
|
चुनाव
आयोग ने इस घटना के बाद बंगाल
के होम सेकेरेट्री और दो एक
अफसरो को तुरंत हटा दिया |
इतनी
फौरी कारवाई ,
जबकि
सचिव ग्राउंड अफसर नहीं होता
|
वह
प्रदेश मैं चुनाव प्रबंध मैं
कोर्डिनेशन का ही काम करता
हैं |
परंतु
फिर भी ऐसा चुनाव आयोग द्वरा
किया गया !!!
इसी
से जुड़ी एक और घटना हुई -
केंद्र
सरकार राज्य के खुफिया महानिदेशक
विजय कुमार से तब से कुपित थी
----जब
सीबीआई शारदा चिटफंड फंड
मामले मैं उनको हिरासत मैं
लेकर पुंछ -ताछ
करना चाह रही |
तब
वे कलकत्ता के पुलिस कमिसनर
थे ,
कहा
जाता है की वे मुख्य मंत्री
ममता बनर्जी के विश्वासपात्र
अफसर हैं |
दीदी
ने धरणा दिया सीबीआई दफ्तर
के सामने मामला सुप्रीम कोर्ट
तक पहुंचा |
अदालत
ने सीबीआई को कहा की वे पूछताछ
की अडियो और वीडियो रिकार्डिंग
करे ,और
गिरफतारी पर रोक लगा दी |
जिसकी
मियाद 17
मई
तक थी |
अप्रतायशित
रूप से सुप्रीम कोर्ट ने उनकी
गिरफ्तारी पर रोक के आदेश को
निरस्त करते हुए ,
उन्हे
सात दिनो मै "””अग्रिम
जमानत "”
करने
की सहूलियत दे दी !!!
कहा
जाता हैं की सीबीआई ने शारदा
चिट फंड के मामले मैं त्राणमूल
काँग्रेस के जिन भी नेताओ को
"””पूछताछ
"”
के
लिया हिरासत मैं लिया ---
वे
सभी बीजेपी मैं शामिल हो गए
,यानहा
तक की एक महिला पुलिस अधिकारी
भी !!!
| इन
सभी लोगो ने ममता बनर्जी के
खिलाफ खूब "”विष
वमन किया "”
और
उन सबको सीबीआई ने "””पवित्र
"”
बता
दिया !!!!
यहा
एक महत्वपूर्ण सवाल सीबीआई
की "”
जांच
"”
की
प्रक्रिया पर उठता हैं |
मामला
चाहे किसी का भी हो पूर्व वित्त
मंत्री चिदम्बरम का हो अथवा
उनके परिवार के सदस्यो का हो
,
अथवा
रोबर्ट वादरा का हो अथवा बंगाल
के पुलिस महानिदेशक विजय
कुमार का हो ,
इन
सभी मामलो मैं सीबीआई जांच
के लिए सभी आरोपियों को पहले
हिरासत मैं लेने की अर्ज़ी
अदालत मैं लगाती हैं !!
सीआरपीसी
मैं भी ऐसा प्राविधान नहीं
हैं की पहले किसी को गिरफ्तार
करो फिर पूछताछ हो !!
कायदा
यह हैं की प्राथमिकी मैं
लिखाये आरोपियों के खिलाफ
पहले पर्याप्त सबूत जुटाये
जाते हैं ,
तब
न्यायिक अधिकारी को उन सबूतो
के आधार पर गिरफ्तारी का वारंट
मांगते हैं |
परंतु
जांच की इस विशेस एजेंसी का
तरीका -----
बिलकुल
अलग हैं |
सीबीआई
अपनी इस हरकत से सरकार का कबूतर
बन कर रह गयी हैं |
अधिकतर
मामलो मैं सीबीआई का रिकॉर्ड
असफलता का रहा हैं |
सीबीआई
को लोग अधिकतर "”
सरकार
का हाथ मरोड़ने वाला यंत्र "””
के
रूप मैं जानते हैं |
जो
कभी भी कनही भी किसी को किसी
भी आरोप मैं गिरफ़्तार करती
हैं ,
फिर
उसी व्यक्ति की "”सेवा"”
कर
के उससे किसी प्रकार बयान
लिखवा लेती हैं |
परंतु
जब उसे अदालत मैं पेश किया
जाता हैं तब वह आरोपी जिसे
सीबीआई अभियुक्त बनाकर पेश
करती हैं ,
उस
बयान से मुकर जाता हैं |
तब
सीबीआई आगे की जांच के लिए
फिर ऊसका रिमांड मांगती हैं
|
आमतौर
पर सीबीआई अदालते ऐसी प्रार्थना
मंजूर कर लेती हैं |
उन्हे
उस व्यक्ति की सामाजिक और
सार्वजनिक छेत्र की इज्ज़त का
भी ध्यान नहीं रखती |
चिदम्बरम
के मामले मैं सीबीआई ने पूरे
परिवार के सदस्यो को सात से
आठ घंटे तक रोज पूछताछ करती
रही |
जब
कुछ हासिल नहीं हुआ तब अदालत
मैं अर्ज़ी लगाई की आरोपी जांच
मैं सहयोग नहीं कर रहा ,
इसलिए
उसे रिमांड पर दिया जाये !!!
मतलब
की आरोपी का फर्ज़ हैं की वह
सीबीआई की हाँ मैं हाँ मानकर
"’अपराध"
जो
उसने किया हो अथवा नहीं किया
हो ,उसको
स्वीकार कर ले |
जिससे
की सीबीआई का काम हो जाये |
मध्य
प्रदेश के पीएमटी घोटाले मैं
सीबीआई की भयानक अस्फ़्ल्ता
इसी का एक उदाहरण हैं |
बॉक्स
प्रधान
मंत्री नरेंद्र मोदी जी अभी
तक तो मतदाता से मुखातिब रहे
,और
कोशिस करते रहे की की उनकी
पार्टी को सफलता मिले |
सारी
वाजिब और गैर वाजिब कोशिसे
भी इस दरम्यान की गयी |
आचार
संहिता का बारंबार उल्ल्ङ्घन
हुआ |
फिर
भी चुनाव आयोग क्लीन चिट देता
रहा ,
क्योंकि
मोदी जी की राज्य प्राप्ति
की कामना मैं अब इहलोक का रोल
खतम हुआ |
अब
इसीलिए वे बद्रीनाथ और केदारनाथ
मैं डेरा जमा कर बैठे है |
ध्यान
भी कर रहे तो प्रचार के लिए
फोटो भी खिचे जा रहे हैं |
अब
ऐसे मैं ध्यान कैसे लगेगा वे
ही जाने |
परंतु
अब वे बाबा केदारनाथ और भगवान
बद्री विशाल से यही कहने गाये
हैं की "”अबकी
राखो लाज मेरी -
मैं
बहुत ही नाच नचायों सारे
भारतवर्ष को .....””
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