मोदी
जी बोफोर्स घोटाला भुला दिया
---
अब
राफेल पर सुप्रीम कोर्ट को
नसीहत
तब
तो "द
हिन्दू "”
की
खबर रामकथा के समान पवित्र
थी -अब
क्यो नहीं ?
------------------------------------------------------------------------------------------------------
रक्षा
सामाग्री की खरीद मे दलाली
खाने का आरोप लगा कर --दूसरों
की हैसियत बताने वाले अबकी
बार अपनी हैसियत बताने से डरे
हुए हैं !!
महालेखा
नियंत्रक की आडीट रिपोर्ट को
संसद से छुपाने के बाद अब देश
की सर्वोच्च न्यायालय को भी
अट्टार्नी जनरल वेणुगोपाल
बताते है की "”
अदालत
इस मामले में संयम बरते ---
क्योकि
विपक्ष उनके कथन का फाइदा
उठाएगा !!
अट्टार्नी
जनरल "”
भारत
के वकील है --उन्हे
संवैधानिक मामलो पर उलझन को
सुलझाने के लिए ,
बुलाये
जाने पर संसद के दोनों सदनो
में बैठने का अधिकार हैं !!
जो
चुने हुए सांसदो के अलावा किसी
भी अधिकारी को प्राप्त नहीं
हैं |
ऐसे
में उनका यह कथन की "”कोर्ट
की टिप्पणियॉ का लाभ विपक्ष
चुनावो में उठाएगा ??
आखिर
क्या संकेत देता हैं ?
---की
वे देश के संविधान के अन्तरगत
विधि विशेसज्ञ नहीं ------वरन
सरकार के मुलजिम हैं !
जैसे
अन्य वकील अपने मुवक्किल की
पैरवी "”फीस
"”
लेकर
करते हैं वैसे ही वे भी सरकार
की पैरवी कर रहे हैं |
जबकि
पद ग्रहण करते समय उन्होने
संविधान की रक्षा और ---
बिना
राग -द्वेष
अथवा भय के बिना न्याय करने
की शपथ ली हुई हैं |
ऐसे
में में वे मोदी सरकार के नहीं
वरन देश के संविधान से उत्पन्न
"”सरकार
"”
के
प्रतिनिधि हैं |!!
फिर
वे कैसे कह सकते हैं की कोर्ट
रक्षा सौदो की जांच नहीं कर
सकता !!!
उन्होने
तर्क दिया की क्या "””
अदालत
सरकार द्वरा युद्ध अथवा संधि
की भी समीक्षा करेगा ???
इस
पर न्यायमूर्ति के एस जोसेफ
ने कहा की ---सुरक्षा
की आड़ में "”
भ्रष्टाचार
को पनपने दिया जाये ?”””
वेणुगोपाल
ने तो यंहा तक कह दिया की
----रक्षा
संबंधी खरीद की जांच नहीं हो
सकती !!!
उन्होने
तो यानहा तक कहा की "”
कोर्ट
इस प्रकार पक्षकार नहीं बनना
चाहिए !
कोर्ट
के बयान का विपक्ष राजनीतिक
इस्तेमाल कर सकता हैं !!!!
राजीव
गांधी और उनके परिवार को
बोफोर्स तोप की खरीदी में इन
सत्ताधारी दल के नेताओ ने
रिश्वत लेने का आरोप लगाया
था |
जबकि
खरीदी की प्रक्रिया में
तत्कालीन प्रधान मंत्री
कार्यालय का किसी प्रकार का
हस्तक्षेप होने का आरोप नहीं
लगा था |
आरोप
लगाया गया था की -
सोनिया
गांधी के इटालियन परिचित
क्वाटरोचची ने इस सौदे में
दलाली खाई थी |
तब
के नियमो के अनुसार ऐसे सौदो
में किसी मध्यस्थ द्वारा
आपूर्तिकर्ता से किसी प्रकार
का कमीशन लेना "”
अपराध
था "””
| हालांकि
नरेंद्र मोदी सरकार ने दलालो
को सुरक्षा कवच देते हुए ---
किसी
भी प्रकार की "”सेवा
अथवा -सहायता
के बदले ली गयी फीस को "”
जुर्म
नहीं माना हैं |
वरन
इसे सेवा शुल्क जैसी स्थिति
बताया गया हैं !!
“” इसीलिए
राफेल की खरीदी में "”दलाली
"”
करने
को अपराध नहीं माना हैं |
ऐसी
साफ -
साफ
व्यवस्था फ्रेंच कंपनी
"”ड्साल"”
के
साथ हुए करार में की गयी हैं
!\
चूंकि
सत्तारूद दल के नेताओ ने जिस
"”
आरोप
को हथियार बना कर "”
गांधी
परिवार को झूठा बदनाम किया
था -----उससे
वे बचने का कवच चाहते थे ,
मतलब
जब दलाली गैर कानूनी नहीं होगी
तब उसका लेन-देन
भी "”पवित्र
"”हो
जाएगा !!
अब
इन कारनामो को छूपाने के लिए
– महालेखनियंत्रक की रिपोर्ट
भी सिर्फ मोदी जी के कार्यालय
को सौंपी गयी |
नियम
के अनुसार उसे संसद की "”लोकलेखा
समिति "”
के
सामने पेश करना था |
समिति
में चर्चा के बाद उसे लागू
किया जा सकता था |
अब
लोकलेखा समिति में बहुमत तो
सत्ताधारी दल का होता हैं
--परंतु
अन्य दलो के सांसद भी होते हैं
|
उनके
सामने राफेल विमान की खरीदी
की प्रक्रिया सामने रखने से
बात देश की जनता तक पहुँच जाने
का खतरा था |
अतः
समिति के सामने रिपोर्ट को
रखा ही नहीं गया |
परंतु
सर्वोच्च न्यायालय में अट्टार्नी
जनरल ने बताया की रिपोर्ट को
संसदीय समिति से पारित करा
लिया गया हैं !!
जब
काँग्रेस नेता खडगे ने बयान
दिया की यह रिपोर्ट लोकलेखा
समिति के सम्मुख आई ही नहीं
,तब
सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से
तारीख बदवा ली !!
करार
को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए
महत्वपूर्ण बताते हुए विमान
खरीदी से संबन्धित दस्तावेज़ो
को -लिफाफे
में बंद कर सुप्रीम कोर्ट को
सौपा गया |
यह
सरकार द्वरा अदालत में कसम
खा कर बोला गया पहला झूठ था
!!
शुरू
से ही काँग्रेस और विपक्षी
दल विमान खरीदी की प्रक्रिया
पर सवालिया निशान लगा रहे थे
|
विमान
की कीमत तक भी रक्षा मंत्री
सीतारमन बताने को तैयार नहीं
थी |
जबकि
खाड़ी के देश कतर ने भी इनहि
विमानो को खरीदा था ,
और
उसकी कीमत उजागर कर दी थी |
तब
सरकार के अनेकानेक मंत्री
इस मुद्दे पर उछल उछल कर जवाब
दे रहे थे ----
जिससे
साबित होता था की रक्षा मंत्रालय
के इस मुद्दे पर एक जैसे उत्तर
ही होने चाहिए |
वैसे
इसे मंत्रिमंडल की साझा
ज़िम्मेदारी का प्रतीक भी कहा
जा सकता हैं ---
जैसे
की मशहूर उपन्यास "”
थ्री
मसकेटियर्स "”
का
नारा था __””
आल
फार वन अँड वन फॉर आल "”
यह
दूसरी कोशिस थी देश से विमान
खरीदी में अनियमितता बरतने
की जिससे की अनिल अंबानी की
नई नवेली कंपनी को ""फ्रेंच
विमान निर्माणकर्ता ड्साल
का भारत में सहयोगी इकाई
बनाया गया |
जबकि
सार्वजनिक छेत्र की कंपनी
हिंदुस्तान एरोनाटिक्स को
को विमान निर्माण के लायक
नहीं माना गया !!!
इस
पूरे सौदे के दो बिन्दु महत्वपूर्ण
है ;
1;- देश
की सार्वजनिक कंपनी एच एएल
को ड्साल की सहयोगी कंपनी
नहीं
बनाकर अपने अभिन्न,
गुजराती
मूल के उद्योगपति अंबानी बंधु
में
से एक अनिल अंबानी को किस आधार
पर बनाया ?
2;- एवं
इस निर्णय में प्रधान मंत्री
नरेंद्र मोदी की फ्रांस यात्रा
के समय
उनके
'’’साथ
के दल '’’
में
अनिल अंबानी भी मौजूद थे ?
तो
उनकी
शक्ल
देख कर अथवा ड्साल ने यह फैसला
किया ---अथवा
प्रधान मंत्री
कार्यालय
ने ऐसा करने का दबाव ड्साल पर
डाला था ??
3;- आम
तौर पर इतने बड़े रक्षा सौदे
में आपूर्तिकर्ता का देश और
जिस
देश
को आपूर्ति की गयी दोनों राष्ट्र
"”
अपनी
समपरभुता "”
की
गारंटी
देते हैं |
परंतु
इस सौदे में इस प्रक्रिया की
अवहेलना
की गयी
आखिर
क्यो ?
क्या
सौदे की स्याही सूखने तक ही
नरेंद्र मोदी सरकार
अंबानी
के साथ थी ,
भविष्य
की घटनाओ के लिए सरकार में
बैठे लोग
सौदे
के लिए जिम्मेदार नहीं बनना
चाहते हैं ?
आखिर
क्यों
4;- क्या
गोदावरी बेसिन में रिलायंस
ऑइल के विवाद की भांति इस सौदे
को
भी अंतराष्ट्रीय पंचाट में
डालने का इरादा हैं ---
क्योंकि
,फिल्मों
की
भांति यानहा भी "”
साइनिंग
अमाउंट"””
लेकर
ज़िम्मेदारी से
मुक्त
होने का तो मामला नहीं हैं ??
5;- पहले
सुप्रीम कोर्ट को बताया की
'’विमान
खरीद की सारी प्रक्रिया की
कारवाई
की महालेखा परीक्षक से जांच
करा ली है |
इसका
हलफनामा
दिया
गया था |
जब
बात खुली तब संबन्धित दस्तावेज़
को लिफाफे
रखकर
सुप्रीम कोर्ट में यह कह कर
दिया गया – यह राष्ट्रीय
सुरक्षा
का
मामला हैं |यानहा
तक की जिस कीमत पर खरीदा वह भी
बताना
राष्ट्रीय
सुरक्षा के लिए खतरा हो सकता
है इसलिए ,
इसके
किसी भी
तथ्य
का '’’’’ज़िक्र
'’
तक
नहीं किया जाये |
6;- कन्हा
तो कीमत -उजागर
होना राष्ट्रीय सुरक्षा का
खतरा था ----
और
अब
फ़ाइल ही चोरी हो गयी !!!!
गजब
है --रानी
के हार का गुलाबी
हीरा
बचाने में रानी ही अगवा हो गयी
!!!
गौर
तलब है की हिन्दू की संवाददाता
चित्रा सुब्रामानियम ने
बोफोर्स के कागजात स्वीडन
सरकार से खोजी
पत्रकारिता द्वरा निकाल कर
उजागर किया था |
तब
सभी गैर काग्रेसी दलो ने उनकी
खबर को दस्तावेज़ माना था |
तब
हिन्दू अखबार ----
रामायण
समान पवित्र ग्रंथ था !
परंतु
आज जब उसने तब के विपक्ष जो
आज के सत्ता धारी हैं ---उनके
कारनामे उजागर करना शुरू किया
तब वह '’’शैतान'’
की
किताब हो गया |
वेणुगोपाल
ने खुले कोर्ट में प्रशांत
भूषण -अरुण
शौरी -
औरे
हिन्दू के खिलाफ "”
आफिसियल
सीक्रेट एक्ट "”
के
तहत कारवाई की बात काही |
यह
तो वैसे ही हुआ की खुद तो ना
सच बताया और ना ही अपने दस्तावेज़ो
को बचा पाये !
कनही
ऐसा तो नहीं सरकार ने जिस
प्रकार से इस "”डील
"”
को
संसद से छुपाया वैसे ही चोरी
का बहाना बना कर अदालत से भी
..........
No comments:
Post a Comment