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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Dec 26, 2018

भारतीय जनता पार्टी और काँग्रेस के सत्ता के गलियारो मैं सुलगता असंतोष का लावा


भारतीय जनता पार्टी और काँग्रेस के सत्ता के गलियारो मैं सुलगता असंतोष का लावा !

\ लोकसभा चुनावो के पूर्व हुए विधान सभा चुनावो मे भले ही काँग्रेस पॉइंट से जीत गयी हो परंतु लोकसभा के लिए बीजेपी और काँग्रेस दोनों को ही अपने - अपने खेमे मे पल रहे अशांतोष को सम्हालना होगा | अन्यथा परिणाम क्या होगा कहना कठिन है | दोनों ही दलो मे नेत्रत्व अब
अपराजेय नहीं रह गया है फिर चाहे वे नरेंद्र मोदी अमित शाह हो या राहुल गांधी की टोली हो |


केन्द्रीय नौ परिवहन मंत्री गडकरी का बयान " की विजय का सेहरा अगर नेता पर तो पराजय की ज़िम्मेदारी भी आध्यक्ष की है "” मोदी मंत्रिमंडल के मंत्री द्वरा पार्टी प्रमुख के लिए यह कथन व्यंग्य से ज्यादा तानाशाही तरीको से पार्टी चलाये जाने का विद्रोह है ! क्योंकि हिन्दी भाषी तीन प्रमुख प्रदेशों मे पराजय का "”हार "” किसी को तो पहनना होगा | भाजपा संसदीय दल की चुनाव पर्यंत हुई बैठक मे इस मुद्दे को जिस प्रकार मोदी -अमित शाह ने चर्चा के एजेंडे से गायब रखा ,उस से सांसद और विधायकों मे काफी आशंतोष है |

एक सीनियर नेता ने कहा की ऐसा पहली बार हुआ हैं की इतनी बड़ी पराजय पर ना तो संगठन स्टार पर और ना ही सत्ता के स्टार पर कोई विचार ना हुआ हो | और वह भी सिर्फ इसलिए की ---- मोदी और शाह की जोड़ी की यह पैदली पराजय ने देश के लोगो मे उन की "”अपराजेय छवि "” को धूल धूसीरत कर दिया है |

वैसे विजय के अश्वमेव घोड़े को लोकसभा चुनावो के बाद सबसे पहले दिल्ली के विधान सभा चुनावो मे आप पार्टी के अरविंद केजरीवाल ने थामा था | पूरी शक्ति -जिसमे धन बल और प्रचार तंत्र की अभूतपूर्व ताकत के बावजूद भी नए बने प्रधान मंत्री अपनी पार्टी को मात्र तीन सीट पर जीता पाये ! यानि की सत्तर सदस्यीय विधान सभा मैं नेता प्रति पक्ष बनने लायक भी सेते नहीं जूता पाये ! यद्यपि मुख्य मंत्री अरविंद केजरीवाल ने भारतीय जनता पार्टी को यह पद देने की पेशकश की | परंतु सत्ता के मद मे डूबे मोदी और शाह ने उस को नामंज़ूर कर दिया | क्योंकि अगर वे इस प्रस्ताव को मंजूर करते तब उन्हे लोकसभा मे काँग्रेस को भी नेता प्रति पक्ष का पद देने का दबाव होता | इस फैसले ने उनके इस "”जयघोष को --सबका साथ - सबका विकास "”” को तो सिर्फ नारा बना कर रख दिया!!


छतीसगढ़ -मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री डॉ रमन सिंह और शिवराज सिंह भी दासियो साल से अपने - अपने प्रदेशों की सत्ता सम्हाल रहे थे --जैसा की नरेंद्र मोदी गुजरात मे | वसुंधरा राजे भी उनके प्रधान मंत्री बनने के पूर्व राजस्थान मे सत्ता सम्हाल चुकी थी | इसलिए "”सफ़ेद और काली दाढ़ी "” इन राज्यो मे "”मनमानी नहीं कर पायी ---जैसा की उसने मणिपुर - त्रिपुरा आदि मे किया जनहा चुनाव उनके नेत्रत्व मे हुए थे | सवाल यह है की इन तीनों राज्यो मे जनता का गुससा पेट्रोल - डीजल और नोटबंदी तथा जीएसटी के कारण था अथवा राज्य सरकारो के फैसले के कारण भारतीय जनता पार्टी चुनाव हारी ?? आने वाले दिनो मे इस पर चर्चा होगी -----जिसका शुभश्रंभ नितिन गडकरी ने कर दिया है | केंद्र से प्र्देशों के संगठन मे यह मौजूदा नेत्रत्व के लिए काफी विस्फोटक हो सकता है |

वनही दूसरी ओर मोदी - शाह की प्रथम बड़ी पराजय ----कर्नाटक के विधान सभा चुनाव थे | जनहा बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी थी --परंतु काँग्रेस और जनता दल के गठबंधन ने सरकार बनाए का दावा किया | उनके बहुमत को "””बहुमत को असफल बनाने के लिए मोदी सरकार के नियुक्त राज्यपाल ने सारी संवैधानिक मर्यादा को धूल मे मिला दिया था | उस समय लगता था की राज्यपाल बीजेपी के सदस्य है ---संवैधानिक निकाय नहीं | वह तो भला हो सर्वोच्च न्यायालय का जिसने हस्तकचेप करते हुए राज्यपाल को सदन के प्रथम उपवेशन मे बहुमत के लिए मतदान करने का आदेश दिया | तब बीजेपी मनोनीत येदूरप्पा एक दिन के मुख्य मंत्री बन के इस्तीफा दे गए | कुछ ऐसा ही उतराखंड मे रावत सरकार को गिरने के लिए काँग्रेस मे दल - बदल कराया गया - फिर बिना विधान सभा मे बहुमत सिध्ध हुए राजी मे राष्ट्रपति शासन लगाने का आदेश निकाल | परंतु उच्च न्यायलाया के मुख्य न्यायधीश क त जोसफ की पीठ ने राष्ट्रपति के आदेश को असंवैधानिक बताते हुए विधान सभा के सदन मे बहुमत का परीक्षण करने का निर्णय दिया | इस फैसले को लेकर जज जोसफ को सोश्ल मीडिया पर बहुत निंदा की गयी और उनके परिवार जनो को गलिया दी गयी | सदन मे बीजेपी की चाल असफल हुई |

परंतु 2018 के अंतिम दिनो मे कर्नाटक की मिली - जुली सरकार पर खतरा मंडरा रहा है | काँग्रेस के दो मंत्रियो को हटा कर आठ नए मंत्री बनाए के बाद म राम लिंगा रेड्डी के गुट ने काँग्रेस के सिद्धारमईया के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है | अगर पार्टी के इस आशंतोष को शांत और सुलझ्या नहीं गया तो राहुल गांधी की मोदी को पराजित करने पहली ट्रॉफी बेकार हो सकती है |


मध्य प्रदेश मे कमलनाथ के 28 सदासीय मंत्रिमंडल के शपथ लेने के पहले ही सीनियर काँग्रेस विधायकों और निर्दलीय तथा सपा और बसपा के लोगो मे भी उपेक्षा से नाराजगी है | ‘’सरकार का इकाई का बहुमत कनही आध्यक्ष के चुनाव मे ही ना बिखर जाये '’’ | एक विधायक को राजभवन मे शपथ के लिए आमंत्रित किया गया --- परंतु उनका नाम नहीं पुकारा गया | कहते है की आखिरी समय मे दिग्विजय सिंह के चिरंजीव जयवर्धन का नाम जोड़े जाने के कारण यह स्थिति हुई | अब सती क्या है वह तो मुख्या मंत्री कमाल नाथ ही जाने |

राजस्थान मे गहलौट सरकार भी निर्दलियो के सहारे ही है ---वनहा भी सीनियर काँग्रेस नेताप जैसे सीपी जोशी और मनवेन्द्र सिंह को अलग रखा गया | गुज़रो के समर्थन के कारण ही पाइलट ने पार्टी को बहुमत दिलाया | अब गहलोत ने जाटो को साधने के लिए भरतपुर नरेश को मंत्री बनाया है | वनहा भी काँग्रेस के दस बागी विधायक चुन कर आए है| बताते है की उन सभी का समर्थन गहलोत के लिए था | अब वनहा भी शांति बनी रहती है देखना होगा ?

अब छतीसगढ मे भी भूपेश बघेल ने सीनियर काँग्रेस जानो को दर किनार करके पहले पार्टी मे आफ्नो ही आफ्नो को रखा --अब वही मंत्रिमंडल मे भी किया | चरण दस महंत - सत्या नारायण शर्मा जैसे अनुभवी लोगो को बाहर बैठा दिया है |


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