महाभियोग
त्रयी :-
क्या
महाभियोग हथियार है जिसे
विपक्ष इस्तेमाल कर रहा है?
अथवा
यह एक संवैधानिक प्रविधान है
--जिसको
प्रस्ताव रूप मे प्रस्तुत
किया गया है?
क्या
विपक्ष प्रधान न्यायाधीश
दीपक मिश्रा पर अविश्वास जता
कर कोई "”गौ
हत्या "”
जैसा
अक्ष्मय अपराध कर दिया है ?
क्या
महाभियोग सिर्फ न्यायाधीशो
के विरुद्ध ही लाया जाता है
अथवा यह उन सभी पदो पर बैठे
लोगो के विरुद्ध लाया जा सकता
है जो संविधान मे उल्लखित पदो
पर आसीन है ---क्योंकि
यही रास्ता संविधान मे दिया
गया है
प्रधान
न्यायाधीश दीपक मिश्रा के
प्रति अविश्वास व्यक्त करते
हुए संविधान के अनुछेद
61-124[4]-[5],217
एवं
218
के
अंतर्गत महाभियोग प्रस्ताव
राज्यसभा के सभापति को प्रस्तुत
कर दिया है |
प्रस्ताव
मे पाँच कारण लिखे गए है --जिसमे
दो कारण तथ्यात्मक है और तीन
कारण हाल की घटनाओ के संदर्भ
मे है |
इस
प्रस्ताव की सूचना पर वित्त
मंत्री अरुण जेटली ने इसे "”
राजनीतिक
हथियार निरूपित किया – उन्होने
कहा की इस प्रस्ताव को पारित
करने के लिए विरोधी दलो के पास
पर्याप्त संख्या बल नहीं है
"|
यंहा
पर एक तथ्य देखना होगा की संसद
मे प्रधान मंत्री के विरुद्ध
जब अविश्वास प्रस्ताव पेश
किया जाता है ,
तब
भी उसके पारित होने की उम्मीद
नहीं हुआ करती |
परंतु
उस प्रस्ताव मे विपक्ष अपने
बिन्दुओ पर चर्चा करता है |
परिणाम
तो पाँच मिनट मे आ जाता है |
इस
संदर्भ मे वित्त मंत्री का
बयान "अप्रजातांत्रिक
ही कहा जाएगा की वे इस प्रस्ताव
को पेश ही करने पर ही आपति उठा
रहे है |
कुछ
कुछ ऐसा ही लोकसभा मे अविश्वास
प्रस्ताव के बारे मे हुआ "”
जिसे
विपक्ष की लाख कोशिसों के बाद
सदन मे प्रस्तुत करने की ही
अनुमति नहीं मिली"”
वह
तबकि जब की सत्ताधारी गुट के
पास सदन मे पर्याप्त ''संख्या
बल है "”
! इस
बयान को इस संदर्भ मे भी लिया
जा सकता है की संसदीय और संवैधानिक
प्रक्रिया --जो
सरकार को अखरने वाली हो उसे
सामने ही आने नहीं दिया जाये
|
आखिर
ऐसा क्या भय है ??
अखबारो
और चैनलो मे भी इसी प्रकार की
बहसो मे एक आरोप आम तौर पर लगाया
जा रहा है की --जज
लोया की संदिग्ध स्थितियो मे
मौत की स्वतंत्र जांच की मांग
को प्रधान न्यायधीश की पीठ
द्वरा नामंज़ूर किए जाने के
बाद काँग्रेस ने "यह
हथियार चलाया है "”
| सवाल
यह उठता है की अगर प्रधान
न्यायधीश के प्रति ''अविश्वास
''
है
तो उसका क्या निराकर्ण हो ??
सत्ताधारी
नेताओ का बयान है की राहुल
गांधी और सोनिया को इस फैसले
के बाद माफी मांगनी चाहिए |
क्योंकि
वे ही इस याचिका के पीछे है !!
बॉम्बे
लायर्स एसओसिएसन की ओर दाखिल
इस याचिका को "”कांग्रेसी
बता कर तो वे उन सभी वकीलो को
भी कांग्रेसी कह रहे है "
! जबकि
तथ्य ऐसे नहीं है |
बाम्बे
लायर्स एसोसिएस्न के अनेक
सदस्य भारतीय जनता पार्टी और
शिव सेना से सहानुभूति रखते
है |
सत्ताधारी
दल के नेताओ के अनुसार उप
राष्ट्रपति वेंकइया नायडू
जो राज्यसभा के पड़ें सभापति
भी है – वे इस प्रस्ताव को खारिज
कर देंगे |
क्योंकि
प्रस्ताव मे दिये गए तथ्य
"”आधारहीन
है "”
| अब
सवाल यह होता की क्या यह निष्कर्ष
बिना जांच के ही निश्चित हो
गया है ?
क्योंकि
अभी तो प्रस्ताव सौंपा गया
है |
वस्तुतः
इनहि तथ्यो की छानबीन के बाद
ही तो जजेस एक्ट के तहत जांच
समिति का गठन किया जाएगा |
तब
तक इंतज़ार क्यो नहीं ?
जो
नेता ऐसे बयान दे रहे है उनमे
से अनेक ऐसे है जो "”
कठुआ
कांड "'
के
तथाकथित मीडिया ट्राइल से
बहुत नाराज भी है – फिर वे खुद
क्यो बयान देकर मीडिया मे
ट्राइल की एकतरफा कारवाई कर
रहे है ??
क्या
यह वही सिधान्त नहीं है की "”
जब
हमारे कुछ माफिक हो -तब
वह खबर सही है |
जब
कोई आलोचनात्मक कहबर हो तब
उसे तिल का ताड़ बनाए जाने का
आरोप लगता है |
अभी
एक केंद्रीय मंत्री ने कहा
की बलत्कारों को रोक नहीं जा
सकता -
एक
घटना को लेकर इतना बवाल क्यो
?
बाद
मे उन्होने अपने बयान को तोड़
मरोड़ कर पेश किए जाने का ठीकरा
भी मीडिया के सर फोड़ा !
अब
त्रयी का दूसरा मुद्दा :----
क्या
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा
के खिलाफ महाभियोग लाकर "'गौ
हत्या "'
का
अपराध विरोधी दलो ने किया है
?
गौ
हत्या इसलिए लिख रहा हूँ क्योंकि
भारतीय जनता पार्टी और उससे
जुड़े सैकड़ो आनुशागिक संगठन
-इस
मुद्दे को लेकर बहुत संवेदनशील
है |
वेदिक
धर्म {हिन्दू
मे नहीं }
मे
भी अनेक संहिताओ मे ब्रामहण
और गाय को अवध्य बताया है |
तो
क्या विरोधी दल एक ब्रामहणके
विरुद्ध है ?
अथवा
वह उनके द्वरा सर्वोच्च न्यायालय
मे किए गए फैसलो और कोर्ट रूम
मे व्यवहार को लेकर है ?
यह
सही है की ऐसा भारतीय गणराज्य
मे पहली बार हो रहा है जबकि
प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ
महाभियोग लाया गया है ,
परंतु
आखिर कुछ तो परिस्थितिया होंगी
-जिनके
कारण इतना बड़ा कदम उठाया गया
?
अनेक
बार खबरों मे आए की प्रधान
न्यायाधीश याचिका कर्ताओ को
प्रश्न पूछने पर बरजते थे |
इतना
ही नहीं उनकी बहस के दौरान भी
टोका टोकी और नाराजगी दिखाते
थे |
ऐसा
अधिकतर उन सीनियर वकीलो के
साथ हुआ जो आम तौर पर सार्वजनिक
विषयो और सरकार के अन्य के
खिलाफ अर्ज़ी लगाते थे |
वकीलो
की पूरी बहस सुने बिना भी मामले
को खारिज कर देते थे |
सुप्रीम
कोर्ट मूल रूप से अपील न्यायालय
है |
जनहा
निचली अदालतों के फैसलो पर
विचार किया जाता है |
अदालत
खुद कभी किसी प्रार्थी अथवा
उसके विरोधी की गवाही नहीं
लेती है ,
क्योंकि
प्रति -
प्रश्न
करने का काम ट्राइल कोर्ट मे
ही समाप्त हो जाता है |
परंतु
प्रधान न्यायाधीश की पीठ ने
केरल मे "”लव
जिहाद "
के
एक मामले मे लड़की को अदालत मे
बुलाकर उससे जिरह की |
यह
केस नेशनल इन्वेस्टिंग एजेंसी
द्वरा किया जा रहा था |
यद्यपि
पीठ ने बहुत ही साधा निर्णय
देते हुए कहा "”
की
जब दो बालिग व्यक्ति आपस मे
विवाह के लिए राज़ी है तब किसी
भी तीसरे पक्छ को दाखल देने
का अधिकार नहीं है "”
| परंतु
उन्होने जज लोया के मामले मे
याचिका को बाम्बे हाई कोर्ट
से महराश्त्र सरकार के निवेदन
पर अपने पास बुला लिया |
पीठ
के इस निर्णय से अब इस मामले
अपील नहीं की जा सकती ----क्योंकि
सुप्रीम कोर्ट का फैसला "”आखिरी
है "”
परंतु
वह न्यायपूर्ण हो यह ज़रूरी
नहीं है !
इस
तरह इस मामले को डब्बे मे बंद
किया गया |
फैसले
मे लिखा गया है की "चार
जजो की गवाही पर अविश्वास नहीं
किया जा सकता !!
क्या
सभी जज सत्यवादी हो गए है ?
कुछ
ऐसा ही सर्वोच्च होने का दंभ
''उस
फैसले मे कहा गया था की प्रधान
न्यायाधीश एक संस्थान है -एवं
उन पर अविश्वास नहीं किया जा
सकता ?
प्रधान
न्यायाधीश की पीठ के इस फैसले
की नज़र से ---
प्रधान
न्यायाधीश के विरुद्ध महभियोग
समस्त संस्थान पर होगा ??
राज्य
के तीन अंग बताए गाये है –
विधायिका --कार्यपालिका
और न्यायपालिका ,
परंतु
वस्तुतः दो ही प्रभावी अंग
बचे है ,
क्योंकि
विधायिका तो कार्यपालिका के
नियंत्रण मे ही रहती है |
क्योंकि
वनहा सरकार या कार्यपालिका
के दल का बहुमत होता है |
जो
विधायिका को नियंत्रित करता
है |
इस
लिहाज से सरकार और न्यायपालिका
दो ही प्र्भवी अंग बचे |
अगर
न्यायपालिका सरकार के दबाव
मे रहे तब तो "”जनता
या नागरिकों "”का
पलड़ा तो हमेशा पराजित होगा !
सरकार
के ऐसे ही अन्याय के विरुद्ध
"”जनहित
याचिका"”
होती
है |
लगभग
तीस वर्ष पूर्व न्यायिक हस्तछेप
के रूप मे किसी भी पत्र या
अर्जी को उच्च न्यायालय एवं
सुप्रीम कोर्ट स्वयम सज्ञान
लेरकर ''कारवाई
''
कर
सकते है |
अभी
हाल मे चर्चित उन्नाव के बीजेपी
विधायक कुलदीप सिंह सेंगर
द्वरा बलात्कार किए जाने के
मामले मे जब राजी पुलिस ने
उनको हिरासत मे नहीं लिया |
तब
गोपाल चतुर्वेदी नमक वकील के
पत्र को जनहित याचिका मानकर
मुख्य न्यायधीश भोसले की खंड
पीठ ने सरकार को एक दिन के अंदर
जवाब देने का निर्देश दिया |
दूसरे
दिन सरकार ने मामले को लटकाने
के लिए सीबीआई को जांच हेतु
दे दिया |
परंतु
न्यायमूर्ति भोसले ने सीबीआई
को आदेश दिया की वे विधायक को
गिरगटर करे ,
सीबीआई
ने कहा की उनके विरुद्ध सबूत
नहीं है |
इस
पर न्यायालय ने विधायक को
पासको एक्ट मे गिरफ्तार करने
को कहा |
सीबीआई
द्वरा जब हिरासत मे लिए जाने
की बात की तब न्यायालय ने
"'स्पष्ट
रूप से गिरगटर कर जेल भेजने
''
का
निर्देश दिया |
हाइ
कोर्ट द्वरा दखल दिये जाने
से राज्य का शासन तंत्र हतप्रभ
हो गया |
परंतु
अदालत ने कहा की वे खुद ही इस
मामले की जांच की देखरेख करेंगे
|
अदालत
ने 5
मई
तक स्थिति बताने का निर्देश
सीबीआई को दिया |
जंहा
जनहित याचिका महीनो से प्रदेश
शासन द्वारा मामले को लटकाया
जा रहा था ---यंहा
तक की बलात्कार पीड़िता ने
मुख्यमंत्री आदित्यनाथ के
निवास के सामने आतंडाह का
प्रयास भी किया था |
परंतु
योगी सरकार बाहरी हो चुकी थी
,क्योंकि
मामला एक ठाकुर का था |
जंहा
तंत्र इतना भ्रस्ट हो चुका
हो साधारण जन को न्याय मिलने
का कोई उपाय न हो -तब
कोई सहृदय जज ही इंसाफ दिला
सकता है |
अब
अंतिम मुद्दा – क्या महाभियोग
प्रस्ताव पर चर्चा को प्रतिबंधित
कर दिया जाये ?
क्योंकि
ऐसे समाचारो से न्यायपालिका
की छवि "”खराब
होती है "”
न्यायमूर्ति
सीकरी एवं भूसन की पीठ ने इस
बारे मे महान्यायवादी वेणुगोपाल
से सहता मांगी है !!
अब
विरोधी दलो के साथ ही मीडिया
को भी "”नियंत्रित
"”
करने
की कानूनी कोशिस की ओर प्रयास
हो रहे है |
यह
बहुत ही आपतिजनक है |
सभी
प्रजातांत्रिक देशो मे ऐसी
करवाइयों की खबर दी जाती है
|
मौजूदा
समय मे अमेरिका के राष्ट्रपति
डोनाल्ड ट्रम्प के चुनावी
प्रचार मे रूस की सहायता के
आरोप मे विशेस जांच कर्ता
राबेर्ट मुल्लर को नियुक्त
किया गया है |
इतेफाक
की बात यह है की यह जांच उनके
राष्ट्रपति बनने के बाद न्याय
विभाग ने दी |
इस
जांच के मुद्दे और प्रगति पर
रोज ही मीडिया मे समाचार आते
है बहस भी होती है |परंतु
वनहा मीडिया पर प्रतिबंध लगाने
की बात कोई सोच नहीं सकता |
और
भारत मे सुप्रीम कोर्ट मीडिया
रिपोर्ट से इतना भयभीत है की
वह सरकार से मिलकर इस ओर कारवाई
करना चाहता है |
झगड़ा
सरकार और विरोधी दलों के मधी
है ---विवाद
न्यायपालिका को लेकर है तब
भाई मीडिया को क्यो घसीट रहे
हो ?
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