ज्यादा
लाभ के लालच मे बिकेंगे पर्यटन
विकास निगम के होटल –
भले
ही वे लाभ मे हो ?
सरकार
को चाहिए "””ज्यादा
लाभ "”
!!
रोज
एक सोने के अंडे से संतोष नहीं
??
पर्यटन
निगम ने "”ज्यादा
लाभ नहीं मिलने के कारण सात
होटल/
संपत्तिया
को तीस साल के लिए बेचने का
फैसला किया है !!
निगम
के अध्यछ तपन भौमिक ने बयान
दिया की ---””
ये
संपत्तिया ज्यादा लाभ नहीं
कमा रही थी -इसलिए
इनको तीस् साल की लीज पर उठा
दिया जाएगा !!
प्राप्त
धन से "”नयी
ईकाइया खोली जाएंगी "”
| सफाई
देते हुए उन्होने कहा की "”
लीज
की शर्त है की इन संपत्तियो
को गिरवी नहीं रखा जाएगा -अर्थात
इन संपातियों पर बैंक से ऋण
नहीं लिया जा सकेगा !!!
भौमिक
के बयान से दो सवाल उठते है –
पहला की क्या सरकार अपनी
संपतियों को "”
इन
शर्तो के बावजूद सुरक्षित रख
पाएगी ??
मुंबई
मे प्रोविडेंट फ़ंड कार्पोरेशन
की संपत्तियो को बचा पायी ??
अरबों
रुपये कीमत की एकडो ज़मीन पर
"”गैर
कानूनी कब्जा हुआ – तथा काफी
कुछ संम्पत्ति गलत तरीके से
बेची भी गयी और -
आरोप
है की विगत दस वर्षो मे सार्वजनिक
संपत्ति की इस लूट मे अनेकों
अधिकारी और नेताओ के नाम लिए
जा रहे है --??
इस
मामले मे भी ऐसा नहीं होगा
---इसका
कोई भरोसा नहीं ----
जब
बैंको से बड़े लोगो की मिलीभगत
से हजारो करोड़ रुपये लेकर
भागा जा सकता है ---तब
इस मामले मे पर्यटन निगम का
'''दिवाला
नहीं पिटेगा '''
इसका
कोई गारंटी दार नहीं !!
दूसरा
सवाल यह है की क्या सार्वजनिक
छेत्र के उपक्रम – व्यापारिक
लाभ कमाने के लिए बनाए जाते
है ??
मूलतः
इन उपक्रमो का उद्देश्य जनता
को सुविधा सुलभ कराना – तथा
उन्हे व्यापारिक शोषण से बचना
होता है |
परंतु
मौजूदा निजाम मे सभी सरकारी
उपक्रमो को "”
सोने
का अंडा देने वाली मुर्गी "””
माना
जाता है |
अगर
प्रदेश सरकार इस आधार पर ही
निगमो और बोर्डो को बंद करने
या मदद करने की ईमानदार कोशिस
है तो कुछ फैसले फिर सवालिया
घेरे मे आते है |
उधारण
के तौर पर ---
20000 करोड़
के घाटे मे डूबा नागरिक आपूर्ति
निगम को प्रदेश सरकार ने सोलह
करोड़ पचास लाख की बैंक गारंटी
देने का फैसला किया है |
जबकि
प्याज़ की खरीद मे करोड़ो के
घोटाला के जिम्मेदारों के
खिलाफ "”शांत
कारवाई "”
हुई
है !!
वंही
प्रदेश के बुनकरो के हित के
लिए बने हथकरघा निगम को इसलिए
बंद किया जा रहा --की
वह ज्यादा ''लाभ
नहीं कमा पा रहा है "”
| जबकि
2014-15
तक
लगातार घाटे मे चलने वाले इस
निगम से जब "””
आईएएस
अधिकारियों का नेत्रत्व को
खतम करके विभागीय हाथो मे
प्रबंधन दिया गया ,,
तब
निगम लाभ मे आ गया |
2008 -09 तक
निगम को 16
करोड़
का घाटा हो चुका था |
परंतु
मौजूदा साल की बैलेंस शीट मे
61
लकह
का लाभ अंकित है |
उधर
मध्य प्रदेश हस्त शिल्प विकास
निगम अभी तक 15
करोड़
के घाटे मे है |
और
इस स्थिति मे सुधार होने की
कोई उम्मीद नहीं है |
क्योंकि
बड़े -बड़े
शहरो मे निगम के शो रूम की
चमक--दमक
से बड़े अफसर और उनकी पत्निया
काफी प्रभावित है !!
इनमे
निगम कर्मियों की भर्ती -और
प्रोन्नति के नियम काफी ''लचीले
है "”
फलस्वरूप
चेहरा देख कर काम होता है |
मुख्य
मंत्री एवं अन्य बड़े अधिकारियों
द्वरा ''आधिकारिक
तौर पर दिये जाने वाले उपहारो
को यंही से खरीदा जाता है |
वैसे
इन एम्पोरियमों मे साधारण
आदमी नहीं जाता |
क्योंकि
यहा कीमती सामान ही मिलता है
!!
परंतु
सतत घाटे मे रहे इस निगम को
कोई सरकार भी "”लाभ
के रास्ते पर नहीं ला सकी है
"”
| लेकिन
सरकार और अफसर इस निगम को नहीं
बंद करेंगे ---क्योंकि
यह उनकी जरूरतों को पूरा करता
है |
क्या
14
साल
की अवधि मे शिवराज सरकार इन
निगमो और बोर्डो के बारे मे
"”एक
तर्क संगत नीति नहीं बना सकती
?””
क्या
कुछ संविध्नेतर शक्तियों के
लाभ के लिए सरकार -
की
और प्रदेश की जनता की संपत्तियो
को बेचा जाने दिया जाएगा ??
एक
बार दिग्विजय सिंह के कार्यकाल
मे भी ऐसा ही प्रयास हुआ था |
जो
जनमानस के दबाव मे बाद मे रद्द
किया गया |
क्या
पर्यटन निगम -का
उद्देश्य --पर्यटको
को किफ़ायती रेट मे रहने -
खाने
की सुविधा प्रदान करना है ?
अथवा
महंगे होटल बना कर कुछ लोगो
को "”उपक्रत
'''
करना
है ??
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