उदण्ड
होता शासन और उछ्रंखल होते
समर्थक और पिसती निरीह
जनता
उज्जैयनी
के सम्राट के बारे मे किंवदंती
या कहा जाता है की उनके सिंहासन
मे बत्तीस पुतलिया थी {{पुतली
का अर्थ जादुई वस्तु जो मानव
की भांति व्यवहार करे }}
| इस
कथा को बैताल पच्चीसी मे विस्तार
से समझ्या गया है |
जिनहोने
इसे पड़ा है अथवा सुना है
-----उन्हे
मालूम होगा की वास्तव मे कथा
लेखक शासक को विभिन्न परिस्थितियो
मे "”””क्या
करे --कैसे
करे और क्यो करे "”
के
उत्तर खोजने पड़ते थे |
इन
पाँच लाइनों को लिखने का
तात्पर्य यह है की शासक से
साधारण व्यक्ति की भांति
व्यवहार करने की अपेछा नहीं
की ज़ाती थी ----अर्थात
भय -
निरुपाय
और क्रोध के वशीभूत अभद्र भाषा
और व्यवहार पूरी तरह से वर्जित
थे |
मनु
से लेकर अर्थशास्त्र {{कौटिल्य}
मे
भी इनहि गुणो को आवश्यक बताया
गया है |
इन
संदर्भों और विक्रमादित्य
के सिंहासन के बारे जानने
वालो के लिए ----वर्तमान
राजनीति 100प्रतिशत
दूषित है और शासक उपरोक्त गुणो
से वंचित है |
माना
की चुनावो मे थोड़ी तुर्शी
प्रचार के दौरान हो ज़ाती है
| शायद
इसका कारण अपने कार्यकर्ता
को यह "”भरोसा
दिलाना रहता है की ---हम
ज़ी जान से लड़ रहे है "””
| अब
यह विश्वास पार्टी के सिद्धांतों
से ज़्यादा --स्थानीय
नेता और प्रादेशिक नेता की
करीबी मानी ज़ाती है |
इसका
कारण दलो का सिद्धांतों से
ज्यादा "””
चुनाव
जीतने और सरकार बनाने की जोड़
- तोड़
करने का हो गया है "”
| व्यक्तिगत
दल बदल को रोकने के कानून को
"”समूहिक
रूप दे दिया "”
जिस
से की वह विधि सम्मत बन जाता
है |
इस
संदर्भ मे मई अक्सर एक उदाहरण
दिया करता हूँ की ---
एक
व्यक्ति द्वरा दूसरे की हत्या
जघन्य अपराध है ,,जिसकी
सज़ा मौत है |
परंतु
यदि यही अपराध पाँच लोगो ने
किया तब यह हत्या -दौराने
डकैती होगी जिसकी सज़ा कम होती
है |
परंतु
भीड़ द्वरा दस -
पाँच
लोगो की हत्या किए जाने पर "””
पुलिस
नामालूम मुजरिमों के खिलाफ
रिपोर्ट दर्ज़ करती है |
“” ज़ो
अदालती जांच का मुद्दा बनता
है | और
सालो जांच की कारवाई {{का
नाटक चलने के बाद }}
सरकार
जांच करने वाले न्यायमूर्ति
का धन्यवाद ज्ञापन करती है
| परंतु
उनके फैसले को "”अमान्य
"””
कर
देती है |
परिणाम
आप समझ सकते है क्या होता है
| अपराधी
बच जाते है मरने वाले भगवान
के पास चले जाते है उनके आश्रितों
को हज़ार या लाख देकर शांत करा
दिया जाता है |
पर
दुर्घटना या अपराध सिर्फ
सरकारी दस्तावेज़ो मे दर्ज़
होकर एक आकडा भर रह ज़ाती है |
देश
या प्रदेश की जनता को पीने को
पानी {{{जो
अब दूषित हो चुका है }}}
खाने
को अन्न {{घुन्न
लग हुआ }}}
बीमारी
मे इलाज़ {{
जो
बिना पैसे के नहीं मिलता }}}
और
शिक्षा को सरकारो ने "”बिकाऊ
माल बना दिया है "|
सभी
राज्यो मे डाक्टर हो इंजीनियर
हो कंपाउंडर हो या टेक्निसियन
का सर्टिफिकेट हो – धन {{काला
हो या सफ़ेद इससे कोई मतलब नहीं
}}
की
बदौलत सब हासिल हो जाएगा |
फर्जी
डिग्री पर दासियो साल नौकरी
करने के बाद "”जांच
"”
होगी
| पर
परिणाम फिर भी कुछ नहीं निकलेगा
|
क्योंकि
शासन मे लिए गए फैसलो की
ज़िम्मेदारी नियत करना "”नामुमकिन
है "”
और
जब तक दारोगा को बंद करने का
अधिकार रहेगा --और
अभियुक्त के वीरुध मामला सिद्ध
करने और ऐसा न करने पर --जुर्माना
और विभागीय दंड का प्रविधान
नहीं होगा तब तक हर स्तर पर "”
अधिकारी
बचते रहेंगे "”
| फिर
सरकार चाहे किसी की भी क्यो
न हो |
तब
तक भारत मे ----
हिंदुस्तान
मे नहीं सरकार और शासन ऐसे
ही चलेगा भासनों मे --बस
अब माँ -बहन
की गलिया देना ही बचा है |
वह
भी होने लगेगा ---
बस
इंतज़ार कीजिये |
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