अब
तो न्यायपालिका की निष्पक्षता
पर भी सवालिया निशान है ?
मध्य
प्रदेश उच्च न्यायालय की
बिल्डिंग के सामने चार दिन
से धरने पर बैठे अतिरिक्त
सत्र एवं ज़िला न्यायाधीश
"श्रीवास
" का
धारणा इतना तो संदेश देता है
की की हाईकोर्ट प्रशासन मे
सब कुछ ठीक नहीं है !
16 माह
मे चार बार तबादला किए जाने
से छुबद्ध श्रीवास का सवाल
हाइ कोर्ट के प्र्शसनिक जज
से यह है की "”आखिर
क्यो उन्हे बार -बार
एक स्थान से दूसरे स्थान पर
पटका? जा
रहा है ?
दुख
की बात है की हाईकोर्ट प्रशासन
इस घटना पर पूरी तरह "”मूक
बना हुआ है "”|
बंगाल
हाइ कोर्ट के जस्टिस कर्णन
का तबादला भी सुप्रीम कोर्ट
के गले की फांस बन गया था |
भले
ही जस्टीस कर्णन को जेल भेज
कर सुप्रीम कोर्ट ने उनके
उद्दंड व्यवहार की सज़ा दे कर
भरपाई करने की कोशिस की हो
--परंतु
उनके द्वारा उठाए गए सवालो
को अनुतरित ही छोड़ दिया गया
,आखिर
क्यू ?
विगत
समय मे राजस्थान और आंध्रा
उच्च न्यायालयों के दो फैसलो
ने यह स्पष्ट कर दिया की की
अदालतों मे बैठे न्यायमूर्तियों
मे कई ऐसे है जो मुकदमो का
फैसला कानून की किताब से नहीं
वरन "”अपनी
निजी आस्थाओ के अनुसार करते
है "”
| पहले
भी ऐसी न्यायिक टिप्पणियॉ को
लेकर काफी विवाद हो चुका है
|
ऐसी
टिप्पणिया हालांकि "”फैसले
मे उल्लिखित तो होती थी परंतु
वे आदेश का भाग नहीं होती थी
"”
| मध्य
प्रदेश सरकार की आबकारी नीति
मे परिवर्तन को लेकर जबलपुर
हाइकोर्ट के जुस्टिस वर्मा
ने तत्कालीन मुख्य मंत्री
अर्जुन सिंह की आसवनी नीति
की सुनवाई करते हुए एक विवादित
टिप्पणी की थी "”
उन्हे
राष्ट्र को बताना चाहिए की
केरवा स्थित कोठी किन साधनो
से बनी ''
हालांकि
बाद मे सुप्रीम कोर्ट ने सलाह
दी की जज की यह टिप्पणी "”अनावश्यक
है "”
| परंतु
तत्कालीन राजनीति मे इस टिप्पणी
को अदालती फैसला मान कर उनके
वीरुध काफी मुहिम चली |
इस
संदर्भ मे राजस्थान उच्च
न्यायालय का अति विवादित फैसले
का उल्लेख करना ज़रूरी है –
जिस मामले मे सरकारी गौशाला
मे कुप्रबंधन से गायो की हुई
मौतों के मामलो मे दायर की गयी
याचिका पर फैसला करते हुए
लिखा था "””
गाय
को राष्ट्रीय पशु घोषित-
किया
जाना चाहिए – मोरनी अपने मोर
के आसू को पी कर गर्भ धारण करती
है "”
मज़े
की बात यह थी की याचिका मे जो
"”राहत
की प्रार्थना की गयी थी इसके
बारे मे फैसले मे कुछ नहीं
आदेश दिया गया "|
अब
ऐसे फैसले पर क्या कहा जाये
?
दूसरा
वाकया आंध्रा उच्च न्यायालय
का है जुस्टिस राव ने भी गाय
की स्तुति करते हुए गाय के
विभिन्न अंगो मे देवताओ के
वास का ज्ञान देते हुए गाय
की रक्षा के लिए प्रयत्न की
सलाह दे दी थी |
अब
इन दोनों घटनाओ से यह लगता है
की दोनों ही न्यायमूर्तियों
को देश के कानून की जानकारी
नहीं थी |
राष्ट्रीय
पशु देश का सिंह है |
जिसे
संसद के कानून से अवध्य घोसीट
किया गया है |
इसे
पूर्ण सुरक्षा दी गयी है |
गायों
के वध के लिए अनेक राज्यो मे
कानून नहीं है |
उत्तर
भारत के राज्यो मे आदिवासी
गण गाय का मांश खाते है |
केन्द्रीय
गृह राज्य मंत्री किरण रिजुजु
ने सार्वजनिक रूप से स्वीकार
किया है की वे स्वयं गाय का
मांस खाते है |
इस
जमीनी हक़ीक़त से अंजान दोनों
न्यायमूर्तियों के फैसले पर
सुप्रीम कोर्ट ने "”कोई
संज्ञान नहीं लिया ---क्योंकि
कोई इन फैसलो के वीरुध अपील
मे नहीं गया !!
क्या
सुप्रीम कोर्ट श्रीवास के
धरने के कारणो और स्थितियो
की जांच करेगा या नहीं ?
क्योंकि
न्यायपालिका मे अगर ऐसी ही
गड़बड़िया है जैसी हरियाणा मे
आईएएस अफसर खेतान के तबादलो
द्वरा अथवा उत्तर प्रदेश मे
गाजियबाद की महिला कलेक्टर
के अथवा कर्नाटका की डीआईजी
डी रूपा के तबादले सरकार की
"”
नीयत
"”
को
निष्पक्ष तो नहीं साबित करती
!
उसी
प्रकार श्रीवास के तबादले भी
द्वेष पूर्ण ही किए गए लगते
है |
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