ढोगी
धरम गुरु -
पाखंडी
साधु -सन्यासी
और उनके विशाल आश्रम मे
प्रवचंकर्ताओ को सुनने के
लिए जाने वाली "”भीड़
"” ही
वास्तव मे धरम के नाम पर होने
वाले व्यापार "”का
ईंधन है "”\
गरीबो
के दान -चंदे
से वसूली गयी अपार राशि ही
उनके विलासी जीवन का और राजनीतिक
प्रभाव का "””आधार
"”” कार्ड
है !!!
डेरा
''सच्चा
'' {{कितना
?] का
सौदा किस से और किस शर्त पर
हुआ था ? अगस्त
के अंतिम सप्ताह मे हरियाणा
मे डेरा की राजनीति के मुख्य
मोहरे "”वज़ीर
"” राम
-रहीम
उर्फ गुरमीत सिंह का ''सौदा
'' किसके
साथ और किन शर्तो पर हुआ था
-इस
को लेकर ''भोली
- भाली
जनता के मन मे "”
अनेक
भ्रम विद्यमान है |
जिनकी
सफाई "”देने
कोई सामने नहीं आ रहा है "”|
हक़ीक़त
मे यह सौदा उन करोड़ो भोले -
बहाले
भक्तो '''के
विश्वास का था "”
जिस
से धर्म का आडंबर करने वाले
इन "”भगवान
के दूतो या स्वामियों अथवा
बाबाओ का "”
व्यापार
फलता -फूलता
है "”
| राम
-रहीम
के 25
वर्ग
किलो मीटर मे फैले विशाल आश्रम
को साम्राज्य का अथवा जागीर
की संज्ञा दी जा सकती है "
वह
राजस्व के दस्तावेज़ो मे दर्ज़
कोई भूखंड या इमारत भर नहीं
है वरन वह लाखो -करोड़ो
"””भक्तो
"” को
बरगला कर बनाई गयी संपत्ति
है और उनके "”आस्था"”
को
बेचकर राजनैतिक प्रभुत्व
को अर्जित करने का सबूत है !!!
आजकल
सभी धर्म के "”
स्वामी
या बाबा अथवा संत -महात्मा
जो भगवा पहन कर साधु कहलाते
है उनसभी का मुख्य और
एकमात्र श्रोत जनता की धर्म
के प्रति आस्था और विश्वास
है जिसका भ्यादोहन इन लोगो
द्वरा किया जाता है "”
इनके
मठो या आश्रमो से कोई परमार्थ
या परोपकार अथवा जन कल्याण
का कार्य नहीं होता है |
थोड़ा
बहुत जो भ्रम को बनाए रखने के
लिए किया जाता है वह "”
भक्तो
को यह प्रदर्शित करने के लिए
किया जाता है की वे कितने उदार
है "”!!11
भले
ही उनकी आय और व्यय का हिसाब
सबके सामने नहीं आता है -----वरना
कितने डेरा के अनुयायी राम
-रहीम
की फिल्मों और ज़ाज़ कान्सेर्ट
का समर्थन करते ??
किसी
ने व्हाट्स अप्प सोश्ल मीडिया
पर व्यंग्य के अंदाज़ मे संदेश
भेजा "”
की
इन बाबा -स्वामियों
और आश्रम के मालिको की "”बैलेन्स
शीट '' भी
व्यापारियो और उद्योग घरानो
की भांति "”सार्वजनिक
होनी चाहिए ---जिस
से भक्तो से वसूले गए धन के
उपयोग की जांच हो सके !!
“” आखिर
इन्हे आकार से छूट क्यो मिलनी
चाहिए ?? संदेश
मे तर्क और तथ्य दोनों ही है
| आखिर
कैसे राम रहीम ने मंहगी गाड़ियो
का काफिला और विलासिता पूर्ण
भव्य भवन और उसमे लगी सामाग्री
खरीदी होगी ?
यह
उसके खून -
पसीने
की तो कमाई नहीं है ??/
फिर
सभी धर्म अपने अनुयायियों
को सादगी भरे जीवन और आडंबर
से दूर के जीवन का उपदेश
देते है -फिर
क्यो नहीं वही उपदेश वे स्वयं
अपने ऊपर नहीं लागू करते ?
क्या
वे भी राजनीति के उस सिधान्त
का पालन करते है "”जिसमे
कहा गया है की सम्राट कुछ भी
गलत नहीं करता है "”
| ब
इसी भावना से धर्म और राजनीति
का घालमेल शुरू हो जाता है |
जब
कोई भी नेता या बड़ा आदमी {{पद
से }} इनकी
"” शरण
मे जाता है ---तब
वह मंदिर मे जाने वाले कामना
पूर्ति दर्शनार्थियों की ही
भांति होता है --जो
कामना पूर्ति के लिए चदावे
को "”फीस
''' मान
बैठता है |
जबकि
यह नितांत गलत और भ्रम पूर्ण
है | चराचर
को चलाने वाली शक्ति व्यक्तियों
से अधिक समूहो के कल्याण का
ख्याल करेगा अथवा एक व्यक्ति
का ??
वेदिक
धर्म मे ग्राम या नगर देवी या
देवता की उपासना का कर्मकांड
है | जो
सभी संबन्धित व्यक्तियों
द्वरा अनेक अवसरो पर किया जाता
है | अपने
आराध्य के विग्रह के सामने
हम अपने कष्टो के निवारण की
प्रार्थना करते है ---यह
धार्मिक क्र्त्य है और करना
भी चाहिए |
परंतु
"””भक्त
और भगवान के बीच इन ठेकेदारो
"” की
स्थितियो का वर्णन तो वेदिक
आख्यानो मे मुझे तो नहीं मिला
| सिवाय
एक के "”गुरु
"” के
---परंतु
जो गुरु स्वयं विलासिता और
आडंबर पूर्ण व्यावहार मे घिरा
हो उसको परम शक्ति का प्रतिनिधि
कैसे मान सकते है ??
बस
यही सवाल अगर सभी "”भक्त
"” अपने
ह्रदय से पूछे और श्रद्धा को
प्रश्न की कसौटी पर कसे ------तब
शायद इन "””गुरु
- बाबा
-स्वामियों
और प्रवचन करने वालो और उनके
उपदेशो को परखे तब शायद वे इन
भगवा वस्त्र्धारियों के शोषण
से मुक्त हो पाएंगे |
इसी
आशा मे ........................
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