सहयोग
से निर्माण की घोषणा -
फिर
सरकार का अनुमानित व्यय ??
राम
मंदिर निर्माण --जिसके
लिए विश्व हिन्दू परिषद के
स्वर्गीय अशोक सिंघल ने देश
वासियो से "””एक
ईंट और एक रुपया की सहयोग राशि
मंघी थी "”
| आज
उस एकत्रित ईंट का कुछ भाग
अयोध्या मे संगमरमर के रूप
मे पड़ा हुआ है |
परंतु
उस एक रुपये का हिसाब विश्व
हिन्दू परिषद ने देश के सामने
कभी सार्वजनिक नहीं किया ?
हालांकि
बाबरी मस्जिद को गिरा कर राम
मंदिर बनाने की मुहिम मे शामिल
171
नेताओ
और इतने ही कार्यकर्ताओ पर
लखनऊ की सीबीआई अदालत मे मुकदमे
की सुनवाई शुरू हो गयी है |
लाल
कृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर
जोशी तथा केन्द्रीय मंत्री
उमा भारती पर मस्जिद ढहाने
के षड्यंत्र का आरोप नियत कर
दिया गया है |
नरेंद्र
मोदी सरकार ने सत्तारूद होने
के पश्चात 31
अक्तूबर
2014
को
गुजरात के सुरेन्द्र नगर मे
बल्लभ भाई पटेल की विहनगम लौह
मूर्ति को न्यूयार्क की
स्वतन्त्रता की मूर्ति की
तर्ज़ पर 597
फीट
की बनाने का वादा किया था
जिसकी
अनुमानित लागत 3200
करोड़
रुपये है |
|
उन्होने
इस मूर्ति के निर्माण के लिए
देश के किसानो से लोहा एकत्र
करने का बीड़ा उठाया था |
उनका
आशय यह था की सरदार की मूर्ति
का निर्माण देश की जनता द्वारा
किया जाये |
परंतु
सत्ता के तीन साल के समारोह
मे मोदी जी और अमित शाह दोनों
ने ही इस मुहिम का उल्लेख नहीं
किया |
क्यो
?
फिर
मुंबई के समुद्र के तट पर
दिसम्बर 2016
को
महाराष्ट्र सरकार ने भी छत्रपति
शिवाजी की शौर्य की प्रतिमा
192 मीटर
विशाल मूर्ति के निर्माण की
घोषणा की थी |
मूर्ति
के निर्माण के लिए भी ड्राइंग
आदि का काम भी किसी कंपनी को
दे दिया गया था |
इस
प्रतिमा की अनुमानित लागत
3600 करोड़
रुपये है |
, यह
बात और है की उसको ऐसी मूर्ति
बनाने का कोई पूर्व अनुभव नहीं
था |
ऐसा
ही सरदार की मूर्ति के साथ भी
हुआ था |
मुंबई
मे मे भी बाबा साहब अंबेडकर
की प्रभा देवी मे 150
फीट
ऊंची "”समानता
की मूर्ति "”
भी
बनाए जाने की घोष्णा दिसम्बर
2016 की
गयी है ,
हालांकि
उस पर कोई काम अभी शुरू नहीं
हुआ है |
यद्यपि
अभी इस की लागत का कोई तख़मीना
भी नहीं बना है |
इन
सब मूर्तियो के निर्माण के
लिए नरेंद्र मोदी ने देश से
लोहा एकत्रित करने की घोसना
की थी |
परंतु
बाद मे इस मुहिम को छोड़ कर
सरकार ने खुद ही निर्माण का
कम सम्हाल लिया है |
अब
सवाल यह है की मंदिर के निर्माण
को भाजपा ने धर्म और आस्था का
प्रश्न बना कर देश के सामने
एक विचित्र स्थिति बना दी है
|
आज
25
साल
बाद भी वह अदालत मे मामला उलझा
हुआ है |
ऐसे
मे अहम की तुष्टि के लिए सरदार
पटेल और शिवाजी तथा अंबेडकर
की प्रतिमा लगाने के नाम पर
10,000
करोड़
से ज्यादा धन खर्च करना कितना
वाजिब है यह तो सरकार ही जाने
|
परंतु
नेहरू जी के जमाने मे बने
विकाश के तीर्थ ----जैसे
बांध -
बिजलीघर
– आदि बने थे |
क्या
इस सरकार की पहचान इन मूर्तियो
से की जाएगी ??
इतिहास
गवाह है की दक्षिण के महाबलीपुरम
और चोला समय के मंदिर और स्मारक
आज इतिहास की धूल मे ढंके है
|
वनही
शेरशाह सूरी द्वारा कलकत्ता
से अटक तक की सड़क आज ग्रांड
तृंक रोड के नाम से अभी भी जानी
जाती है |
वह
इतिहास से वर्तमान तक अपने
उपयोग के लिए जानी जा रही है
|
उसके
कारण ही निर्माणकर्ता का भी
नाम जीवित है |
यह
मूर्तिया ताजमहल की भांति
दुनिया के दर्शनीय स्थलो मे
नाम बना पाएगी यह कहना बहुत
मुश्किल है |
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