संविधान
और आरक्षण व्यवस्था क्या डॉ
आंबेडकर की देन है या यह एक
मिथक है ?? कुछ
तथ्य जो प्रश्न करते है
आम
धारणा है की देश का संविधान
बाबा साहब आंबेडकर ने बनाया
है और आरक्षण की व्यवस्था
भी उनही की देन है |
यह
प्रचार चुनावी माहौल मे कुछ
ज्यादा ही मुखर हो जाता है |
खासकर
राजनीतिक दल तो सभी उन्हे
"””अपना
- अपना
"”” बताने
लगते है | ऐसे
मे उनकी विरासत के अनेकों
हकदार सामने आते है |
अपने
अधिकारो के वे तरह तरह के कारण
देते है |
ऐसे
माहौल मे मे आम नागरिक और खासकर
युवा वर्ग सहज मे ही राजनीतिक
उद्देस्य से किए गए प्रचार
को "'तथ्य"”
मान
कर बहस के लिए तैयार रहते है
| उनके
पास तर्क भी वही होते है जो
प्रचार मे दिये जाते है |
भले
ही उन तर्को का कोई आधार या
प्रमाण भले ही न हो |
भारत
के संविधान मे अनुछेद 330
से
लेकर 342 तक
विभिन्न वर्गो और स्थानो के
लिए विशेष उपबंध और आरक्षण
है | परंतु
यह समझना की आरक्षण का प्रारम्भ
1950 मे
संविधान के लागू होने के उपरांत
हुआ – पूर्णतया गलत होगा |
वस्तुतः
पड़े लिखे और जानकार राजनेताओ
ने भी अपने संविधान को नहीं
पढा, वरना
वे इस बात का दावा कभी नहीं
करते की संविधान के निर्माण
मे और खासकर आरक्षण के उपबंध
उनके प्रयासो का प्रतिफल है
|
हक़ीक़त
मे संविधान के लागू होने के
पूर्व देश का शासन "'Government
Of India Act 1935 “”' के
अधीन किया जाता था |
वस्तुतः
संविधान के संघीय रूप का आधार
भी यही कानून है |
जिसमे
देश की न्यायपालिका को फेडरल
कौर्ट ऑफ इंडिया कहा गया है
| और
तत्कालीन समय मे ब्रिटिश
इंडिया को 11
प्रांतो
मे बंता गया था ,
और
6 चीफ
कमिसनर द्वारा शासित छेत्र
थे | यानहा
यह स्मरण रखना होगा की उस समय
लगभग 400 से
अधिक राजे -
रजवाड़े
भी थे , जिनहे
अपने छेत्र मे शासन करने का
अधिकार था |
इसी
कानून द्वारा प्रांतो को सीमित
स्वशासन का अधिकार मिला था |
इन
प्रांतो मे कुछ दो सदन वाले
थे जैसे मद्रास -
बंबई
- बंगाल
- बिहार
और संयुक्त प्रांत --आसाम
| सेंट्रल
प्रोविंन्सेस अँड बरार --पंजाब
- उड़ीसा
--सिंध
एवं सीमा प्रांत |
इन
प्रांतो मे Legislativ
Assembaly मे
जिस पार्टी को बहुमत मिलता
था उसके नेता को प्रिमियर या
चीफ़ मिनिस्टर कहते थे |
अब
आते है असली मुद्दे पर की
आरक्षण किसका था और उनका
निर्वाचन कैसे होता था |
कानून
की अनुसूची पाँच के अनुसार
हरिजन
--- महिलाए
--- विश्व
विद्यालय – जमींदार ---व्यापारी
वर्ग - -पिछड़ी
जतिया -- श्रमजीवी
वर्ग और योरोपियन समुदाय तथा
एंग्लो इंडियन एवं देशी इससाइयों
के लिए सभी राज्यो मिस्टर
स्थान आरक्षित थे |
उदाहरण
के लिए 1935 की
मध्य प्रांत और बरार की विधान
सभा मे की सदस्य संख्या 112
थी
| इसमे
20 स्थान
हरिजन के लिए और 3
स्थान
महिलाओ के लिए 1
विश्व
विद्यालय के लिए 3
सीट
जमींदारो के लिए 2
स्थान
व्यापारी वर्ग के लिए 1
सीट
पिछड़ी जातियो के लिए आरक्षित
थी | एक
- एक
सीट यूरोपियन और एंग्लो इंडियन
समुदाय के लिए आरक्षित थी |
इस
प्रकार 112 मे
34 सस्थान
आरक्षित थे |
यह
संख्या लगभग एक तिहाई होती
है |
इसलिए
यह कहना उचित होगा की आरक्षण
की व्यवस्था संविधान सभा के
गठित होने के भी पूर्व भी थी
|
अतः
इस के लिए किसी को भी श्रेय
देना हो तो वह ब्रिटिश शासन
के उदारवादी ड्राष्टिकोण को
देना होगा ना की की किसी अन्य
को |
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