बहस
-मुबाहसे
से आरोप-प्रत्यारोप
अब चरित्र हत्या की राजनीति
तक
राजनीति
मे आज सत्य के स्थान पर स्तुति
गान – के चलन ने इसे भी एक '''लाभ
का व्यवसाय ''''
बन
दिया है | पिछली
सदी के छठे दशक तक नीतिया और
मुद्दे बहस का विषय हुआ करते
थे | सार्वजनिक
विषयो पर राष्ट्रीय स्तर पर
बहस हुआ करती थी |
समस्याओ
के समाधान गुण -
दोष
के आधार पर रखे जाते थे |
राजनीतिक
डालो के मसले बंद कमरे मे खुले
रूप से रखे जाते थे |
इन सब
प्रक्रियाओ से गुजर कर निकला
"””निर्णय
"” मानना
ही होता था | इसमे
किसी की भी प्रतिष्ठा का सवाल
नहीं होता था |
उस समय
राजनीतिक दलो मे "””कार्यकर्ता
"” तैयार
किए जाते थे |
जिनसे
यह अपेक्षा की जाती थी की वे
"””पार्टी
के मूलभूत सिद्धांतों को "”
जानेंगे
|किताबे
पढना पड़ता था |
हालांकि
इस अध्ययन का दिखावा भी कुछ
लोग किया करते थे ---
वामपंथी
और -समाजवादी
जहा मुद्दो और नीतियो पर सवाल
उठाते थे ---की
यह जनहित मे है या चंदा देने
वालों के हित मे है ----तब
काँग्रेस के लोग प्रजातन्त्र
और आत्म निरभरता की बात कहते
थे | वे
सही थे | उस
समय देश का अपने पैरो पर खड़े
होना ज़रूरी था |
शायद
सत्ता की यह ज़िम्मेदारी भी
बनती है | विकास
के लिए योजना--
कार्यक्रम
तथा अनुपालन ज़रूरी है |
परंतु
वास्तविकता के धरातल पर उतरने
के पूर्व ही ,,
उसकी
घोसना --और
प्रचार के साथ दावे का वादा
करना --तो
भ्रम ही है | हक़ीक़त
तो नहीं है | पर
जब राजनीति धंधा बन जाये तब
प्रचार ही ''सहारा
है ''' ||विगत
लोकसभा चुनावो के बाद इस देश
मे दावो और वादो का ज़ोर -शोर
से प्रचार हुआ ---और
उसे चुनावी सफलता भी मिली |
इस
परिप्रेक्ष्य मे 2016
की
राजनीति को परखना होगा ,,
तभी
हम समझ पाएगे की कितने घटिया
धरातल पर देश की राजनीति आ कर
टिक गयी है | जनहा
राजनीति मे नीति और मुद्दो
पर चर्चा नहीं होती |
बहस
की जगह आरोप -
प्रत्यारोप
लगाए जाते है |
तथ्यो
को भुला कर मनमानी व्याख्या
की जाती है |
प्रमाण
लाने या बताने की कौन कहे "””
अपने
मुह से निकले वाक्य को ही
'''सत्या
और प्रमाण '''
निरूपित
करते है | अब
काँग्रेस उपाध्यक्ष राहुल
की देश भक्ति पर प्रश्न चिन्ह
लगाने वाले भूल जाते है की
उनके पिता राजीव गांधी और दादी
इन्दिरा गांधी की हत्या
"”आतंकवादियो
द्वारा की गयी थी |
उनकी
निष्ठा पर सवालिया निशान इसलिए
लगाना की की ---वो
आपको राजनीतिक रूप से मुश्किल
मे डाल रहे है |
अब
प्रजातन्त्र मे राजनीतिक दलो
मे मुक़ाबला ही चुनावी राजनीति
का आधार है |लेकिन
उसके लिए नेता के डीएनए टेस्ट
की बात करना तो अपमानजनक ही
होगा |
भारतीय
जनता पार्टी के विधायकों मे
आजकल कुछ ज्यादा ही जानकारी
पाने की तीव्रता है |
इसीलिए
राजस्थान के बीजेपी विधायक
कैलाश चौधरी ने राहुल को
देशद्रोही करार दिया |
वनही
भोपाल के बीजेपी के विधायक
रामेश्वर शर्मा ने तो दो कदम
आगे जाकर राहुल के डीएनए की
जांच की मांग की है |
अब यह
एक तरह से काँग्रेस अध्यक्षा
सोनिया गांधी पर लांछन लगाना
है |अब
अगर राष्ट्रिय स्वयंसेवक
संघ के प्रचारको के चरित्र
के बारे मे प्रश्न उठाया जाये
तो बीजेपी नेताओ को कैसा लगेगा
?? क्योंकि
इतनी बड़ी संख्या मे प्प्रचारको
द्वरा "””
ब्रांहचरय"”
व्रत
का पालन कीया जाता होगा ,,यह
सोचना तो अविश्वासनीय होगा
| इस
संदर्भ मे पूर्वा प्रधान
मंत्री अटल बिहारी वाजपेई का
कथन "”” मै
अविवाहित हूँ पर ब्रांहचारी
नहीं ''' सरवधिक
उपयुक्त और सत्या बयान करने
वाला है | अब
आज संघ और भारतीय जनता पार्टी
के नेत्रत्व मे किसी भी नेता
का क़द उनके बराबर नहीं है |
यंहा
तक की प्रधान मंत्री नरेंद्र
मोदी का भी नहीं |
अब इस
तथ्य को तो चौधरी और रामेश्वर
शर्मा भी नकार नहीं पाएंगे
| तब
उन्हे डीएनए की जांच नहीं करनी
पड़ेगी
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