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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Sep 2, 2015

सीमित और छोटा युद्ध कितना संभव है भूतपूर्व सैनिको के वन रैंक वन पेन्सन के संदर्भ मे

सीमित और छोटा युद्ध कितना संभव है? पुराने सैनिको के आंदोलन के संदर्भ मे

              थल सेना अध्यक्ष जेनरल सुहाग  का बयान पढा की देश की तीनों सेनाओ को  पाकिस्तान के साथ “”छोटे युद्ध “” के लिए तैयार रहे | 1965 युद्ध की स्वर्ण जयंती के अवसर पर उन्होने यह सलाह दी है |  अभी तक  युद्ध की योजना सरकार  के स्तर पर लिए जाते है |ऐसा पहली बार हुआ है की ऐसी घोषणा सेना अध्यक्ष द्वारा की गयी |  वार ऑर्डर सदैव  नागरिक  अधिकारी द्वारा दिये जाते है | रही “”छोटे युद्ध “”की बात  तो मुझे सद्दाम हुसैन  द्वारा कुवैत पर हमला की याद दिला दी है |  उन्होने भी ‘’वन डे वार “” की बात कही थी | परंतु हुआ क्या ? ना केवल  अमेरिका और अन्य देशो के दबाव मे युद्ध को रोकना पदा | उस एक गलत कदम ने इराक़ को अमेरिका  –ब्रिटेन और फ़्रांस के निशाने पर ला दिया था |
         झाड़प या मुठभेड़ तक तो सेना का फैसला चलता है | क्योंकि इस मसले मे जगह नियत होती है | क्योंकि यह घटनाए  तो दो देशो की सेनाओ के मध्य  होती है | परंतु युद्ध मे छेत्र  और रणनीति  दोनों  देशो की होती है | इसमे
 तीनों सेनाओ  का संयुक्त अभियान होता है जिसकी योजना नागरिक शासन द्वारा  मंजूर की जाती है |  क्योंकि मुठभेड़ का परिणाम कुछ भी हो वह किसी देश के भविष्य को निश्चित नहीं करता | परंतु  युद्ध  भाग्य विधाता बन जाता है | जैसे बंगला देश युद्ध मे हुआ |  
            सीमित युद्ध कब असीमित हो जाएगा यह अनेक कारणो पर निर्भर होता है | वह केवल युद्ध भूमि पर ही नहीं निर्णायक होता वरन  अंतर्राष्ट्रीय  स्तर पर भी  होता है | 1965 के युद्ध  का परिसमापन ताशकंद  मे प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री के अवसान से हुई थी | क्योकि  लाहौर पर भारतीय फौजों का कब्जा हो चुका था और पाकिस्तान की राष्ट्र के रूप मे हैसियत ही खतरे मे पद गयी थी | तब भी रूस और अमेरिका के कारण भारत को युद्ध रोकना पडा | अब  इन स्थितियो मे  “”छोटे युद्ध “” की कल्पना भी संभव नहीं |
           परंतु किसी जनरल द्वारा  इस प्रकार की भाषा बोलना हमे पड़ोसी  देशो की शासन स्थिति और उसमे  सेना  की भूमिका को भी देखना होगा |  क्योंकि इन देशो मे सेना की निर्णायक हैसियत है | पाकिस्तान मे आइएसआई  की हरकतों को देश के लोग भली भांति जानते है | अब इस बात की कल्पना तो नहीं की जा सकती की  पड़ोसी देश का करतब भारत मे भी दुहराया जा सकता है | वैसे भूतपूर्व सैनिको  का एक रंक –एक पेन्सन  की मांग को लेकर चल रहा आंदोलन सरकार के लिए वैसे ही मुसीबत बना हुआ है | केंद्र सरकार ने भूतपूर्व सैनिको के संगठन के बैंक खातो को फ्रीज़ करा दिया है | जिस से  की जंतर –मंतर पर चलने वाला आमरण अनशन आंदोलन को रोका जा सके | परंतु सरकार मे बैठे लोगो को वर्दिधारी  संगठनो मे  एकता का अंदाज़ नहीं है |
                     आज देश मे  सस्शत्र  सेना के सभी रैंकों के अफसरो की निगाह इस आंदोलन की ओर है | क्योंकि उनके पुत्र और परिवारजन  फौजों मे कार्यरत है | वे इस नीति को ना केवल अपने वर्तमान  से जोड़ कर देख रहे है | वरन अपनी आने वाली पीढी के भविष्य को लेकर भी चिंतित भी है | उनकी आशा है की सरकार उनके लिए कुछ अच्छा ही करेगी |  वैसे अभी भी वे “”तन –मन और धन से भी आंदोलनरत  अपनी बिरादरी के साथ ही है |  अकाउंट फ्रीज़ होने के बाद वे लोग  नक़द चन्दा करके  रोज होने वाले 50 हज़ार रुपये का खर्चा उठा रहे है |  यह भी सरकार को मालूम ही होगा की  सेवारत सैनिक और अफसर की सहानुभूति  भी आंदोलन के साथ है |  अगर जेटली जी जैसे दो एक बयान सरकार की ओर से और आ गए तो निश्चित ही सेना मे आशंतोष व्यापात हो सकता है |  यह आशंतोष ही था जिसके कारण सरकार को आपरेशन ब्लू स्टार  के समय सिख लाइट इनफैन्टीं की तीन रेजीमेंटों के हथियार रखवाने पड़े थे | उस घटना का ही परिणाम था की  सेना को  “””भगोड़ो “” की परिभाषा  मे संशोधन करना पड़ा | अब कोई भी बिना अनुमति के सेना छोड़ कर अगर जाता है तो  वह अपराध तो है परंतु “”केवल तीन वर्षो के लिए “”” इस अवधि के बाद  उस सैनिकया अफसर को डिस्चआर्ज कर दिया जाता है | फलस्वरूप वह दोष मुक्त हो जाता है | यह स्थिति सेना के लिए सुखद नहीं है –जहा अनुशासन  और आदेश पर जवान अपनी जान डे देते है | समय रहते अगर सरकार नहीं चेती और आशंतोष  सेवारत लोगो मे पहुँच गया तो भयानक स्थिति होगी | तब सीमित या छोटे युद्ध की कल्पना भी नहीं की जा सकती –क्योंकि जवान अपने अफसर को ही आगे करेंगे |


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