गुरु-- धर्म गुरु --प्रचारक -- समाज सुधारक दूसरी ओर परिव्राजक- संप्रदाय वाहक --मठ अखाड़ा-मंडलेश्वर --पीठा धीश्वर-- शंकराचार्य मठ
वेदिक धर्म मे गुरु के बारे मे कहा गया है की जो ''ज्ञान'''दे वही गुरु ऋषि अष्टावक्र जी के अनेक गुरु थे , परंतु वे अपवाद स्वरूप माने जाते है | आम तौर पर व्यक्ति अपनी '''इच्छा ''''के अनुसार गुरु का चयन करता है | फिर वह उनसे प्रार्थना करता की वे उसको शिष्य के रूप मे स्वीकार करे | यह एक कठिन घड़ी होती है गुरु चाहे तो आगंतुक की परीक्षा ले सकता है की ---उसमे इतनी योग्यता विद्यमान है की वह उनका शिष्य बन -सके | परशुराम ने शस्त्र विद्या उन लोगो को सिखायी जो उसके योग्य थे | यद्यपि उनका क्षत्रिय विरोध था ,, परंतु इसके बावजूद उन्होने शांतनु जिनहे विश्व भीष्म पितामह के नाम से जानता है --उनको भी उन्होने शस्त्र विद्या सिखायी थी | कर्ण को भी उन्होने तब ही ही यह विद्या सिखायी
जब उन्होने अपने को ब्रामहन बताया तभी उन्होने अपने शिष्य बनाया | इन उदाहरण से मैंने यह स्पष्ट
करने की कोशिस की है की ''गुरु''' को भी अपना चेला बनाने मे चुनाव करने का अधिकार है |
आजकल हर वेदिक धर्म मानने वाले परिवार के एक ''पंडित जी ''' होते है | जो
ब्रामहन होता है ,, हालांकि कुछ ''सम्प्रदायो मे अपने ही लोगो मे यजमानी करने वाले ही लोग होते है |ऐसा
सतनामी संप्रदाय मे है | अनेक सम्प्रदायो मे उनके धर्म गुरु होते है जो उनके पारिवारिक और परंपरा के
बारे मे अपनी व्यवस्था देते है ||इन समाजो मे ''गुरु''' का आदेश अंतिम होता है ,,जिसे बड़ी कठोरता से
पालन कराया और किया जाता है || इन धर्म गुरुओ के पास अकूत संपत्ति होती है । आश्रम होते है धन का वैभव टपकता है | जिस धर्म ने ''''त्याग''' और तपस्या की महिमा गायी हो उसके नाम पर यह सब होना कुछ
समझ मे ना आने वाली बात है ||
सनातन धर्म मे भी अनेक ''मत''' एवं सम्प्रदायो के ढेरो मठ एवं महंत है
जिनके अपने आश्रम और डेरे है | जहा पर वे अपने सैकड़ो भक्तो और समर्थको के साथ ''''सत्संग ''''करते है |
जब तक ये ''''जीवित रहते है तब तक इन '''सुख - सुविधाओ'''' का उपयोग और उपभोग करते है | परंतु इनके
साथ ही यह सब चला जाता है | अभी कुछ समय पूर्व पश्चिमी उत्तर प्रदेश मे ऐसे ही एक '''बाबा'' के निधन
के पश्चात चार हज़ार करोड़ की उस संपाति के कब्जे को लेकर मार पीट और कोर्ट -कचहरी तक हुई | कुछ ऐसा ही हरियाणा के ''बाबा आशुतोष''' का है जहा उनके शिष्यो ने उनके निधन के पश्चात उनके शव को
डीप फ्रीजर मे महीनो से रख कर उनके ''इर्द -गिर्द''' रहने वाले धन एवं संपति को खुर्द - बुर्द कर रहे है |
हाइ कोर्ट के आदेश के बावजूद भी उनका अंतिम संस्कार संभव नहीं हुआ | रामलाल जी का किस्सा तो समाचार पत्रो और मीडिया मे खूब आया ---चार दिनो की पुलिस की घेराबंदी के पश्चात ही उन्हे हिरासत मे लिया जा सका | अभी अभी खबर है की ''''डेरा सच्चा सौदा के बाबा राम रहीम ''''' पर भी आपराधिक मामला दर्ज़ किया जा चुका है | आशा राम जिनहे लोग बापू भी कहते है --उनके करतूतों की तो बानगी ही यह है की वे कई
माह से जोधपुर जेल मे है | कर्नाटक के एक स्वामी पर भी व्यभिचार का आरोप लगा है -मुकदमा चल रहा है ||
ये है '''धर्म गुरु """
दूसरी ओर योग शिक्षक रामदेव है , जिनको योग सिखाने के कारण नाम हुआ |चूंकि वे भगवा वस्त्र पहनते है -इसलिए लोग उन्हे भी """बाबा"" या गुरु की उपमा देते है | लेकिन इनकी प्रसिद्धि तब
हुई जब ये समाज सेवी अन्ना हज़ारे और -अरविंद केजरीवाल के साथ मिलकर """लोकायुक्त"" के लिए जंतर -मंतर पर आंदोलन किया और गिरफ्तारी से बचने के लिए महिला के कपड़े पहन कर फरार हुए | इनकी राजनीतिक प्रतिबद्धता केवल तत्कालीन कांग्रेस्स सरकार का विरोध --- धार्मिक और राजनीतिक मंच से करना था | फिलहाल अब ये पतंजलि योग संस्थान चला रहे है | जिसमे योग की शिक्षा तो नहीं दी जाती पर
आयूएर्वेदिक दवाओ के साथ खाने -पीने की और रसोई की वस्तुए भी मिलती है |वार्तामा केन्द्रीय सरकार के एक मंत्री ने तो इन्हे '''राष्ट्र पिता """" के समान बता दिया !! वैसे अब ये खादी ग्रामोद्योग पर सरकार की मदद से कब्जा करने के जोड़ - तोड़ मे लगे है | जहा से इंका '''व्यापार''' फले -फूले | अध्यात्म की दुनिया मे एक
नाम श्री श्री का भी बड़े आदर के साथ लिया जाता था ,, परंतु जब वे भी रामदेव के साथ मिले तो -उनही के रंग
मे रंग गए | उन्होने ने भी दवा आदि वस्तुए अपने अनुयाईओ को बेचना शुरू कर दिया | राधास्वामी संप्रदाय
के लोग भी अपने सदस्यो अथवा ''गुरु भाइयो ''''के द्वारा उत्पादित सामाग्री को बेचने के लिए मेला लगाते है ||
आशाराम के चेले भी सत्संग के दौरान दिन -प्रतिदिन के उपयोग मे आने वाली वस्तुओ को '''बेचते और खरीदते'''' थे | क्या यह भी धर्म प्रचार का कोई तरीका है ????
धर्म के प्रचारक पूर्व मे हुए है जैसे स्वामी राम कृष्ण परमहंस और उनके तेजस्वी शिष्य विवेकानंद जी --जिनहोने वेदिक धर्म को हजारो साल बाद सागर पार जा कर दुनिया को बताया की
सनातन परंपरा '''संकीर्ण '''नहीं वरन ''' वसुधैव् कुटुम्बक्म् """ की है | तब तक सभी धर्म अपने को श्रष्टि का
प्रथम और सर्वश्रेष्ट मानते थे | उनके विचारो मे किसी दूसरे धर्मावलम्बी का कोई स्थान ही नहीं था | जो उनमे
नहीं वह ''अधम ''' था | स्वामी जी ने बताया की सभी प्रथम ""मानव""है परमात्मा की संतान बाद मे वे किसी
धर्म के अनुयायी है | विवेकानंद जी से अठारह सौ साल पूर्व दक्षिण के एक नंबोदरिपाद ब्रामह्ण ने सनातन परंपरा की डूबती नैया को बचाया -और वेदिक धर्म को-- बौद्ध् धर्म से रक्षा की | उस महा मानव को हम उनके
प्रयासो के कारण """आदि गुरु ""कहते है | शंकराचार्य जी ने समस्त भारत को धर्म ध्वजा के तले लाने के लिए समस्त देश की परिक्रमा की | शास्त्रार्थ किया अपने '''मत''' को प्रतिपादित किया | देश को एक सूत्र मे बाधने के लिए उन्होने चारो दिशाओ मे चार मठ स्थापित किए , जिसमे अपने शिष्यो को बैठाया | ये मठ आज भी उनकी स्म्रती को ताज़ा रखे हुए है | वे धर्म के वास्तविक प्रचारक थे | जिनहोने कोई मठ नहीं बनाया | राम कृष्ण
आश्रम मे आज भी दवाखाना और विद्या का दान किया जाता है | इन संस्थानो मे अभी तक कोई '''अधार्मिक '''' कृत्य होने की शिकायत नहीं मिली है | कांची कामकोटि मे तो शंकराचार्य एक नियत आयु तक ही गद्दी
पर रहता है |
इन धर्म के ठेकेदारो ने जहा धर्म को ''''रियासत और सियासत''' बना लिया है | वही कुछ
लोग ऐसे भी हुए है जिनहोने वेदिक धर्म की कुरीतियो को दूर करने के लिए राजा राममोहन रॉय ने ''विधवा विवाह'''' और '''बेमेल विवाहो ''' के विरुद्ध मुहिम चलायी | उनही के प्रयासो का फल था की तत्कालीन वायस
रॉय विलियम बेंटिक ने कानून द्वारा विधवा विवाह को जायज बताते हुए इसका विरोध करने वालो के
खिलाफ कारवाई किए जाने का प्रावधान किया | तत्कालीन बेंगाल मे कुलीन ब्रामहन और जमीदारों द्वारा
अपने से उम्र मे दस से बीस साल छोटी लड़कियो से शादी करने का रिवाज था | गरीब ब्रांहण अपनी लड़कियो को पैसे ले कर बुदे कुलीन और पैसे वाले लोगो को ब्याह देते थे | ऐसी विवाहिताए जल्दी ही विधवा हो जाती थी | जिनहे जमीदार के परिवार वाले '''घर से निकाल देते थे '''''' ऐसे मे वे बेनारस अथवा व्रंदावन मे जाकर भीख मांगने अथवा शरीर बेचने पर मजबूर होती थी | इन कुरीतियो को दूर करने के लिए राजा राम
मोहन रॉय का नाम स्वर्ण शब्दो मे लिखा जाता है | दूसरे समाज सुधारक भी बंगाल से ही हुए ---उनका नाम
था ईश्वर चन्द्र विद्यासागर --जिनहोने नारी शिक्षा का इस छेत्र मे प्रसार किया | उन्होने लड़कियो की शिक्षा के लिए घर से ही विद्यालय चलाया | उनकी कोशिस का परंपरावादी ब्रांहण लोगो द्वारा घोर विरोध किया गया | परंतु विद्यासागर जी अपने परसो मे जुटे रहे | वास्तव मे विद्यासागर की उपाधि उनके कार्य की वजह से ही उन्हे मिली थी | तत्कालीन समय मे ऐसे प्रयास करने का साहस उत्तर भारत मे नहीं किए गए |
धर्म के छेत्र मे समन्वय का ऐसा ही प्रयास इन महानुभावों के समय के पूर्व चैतन्य महाप्रभु हुए थे | जिनहोने शाक्त और वैष्णव संप्रदाय के लोगो के मध्य किया | वैसे दस्वी सदी मे आदिगुरु ने भी विभिन्न शाखाओ मे समन्वय बनाने का प्रयास किया था | परंतु स्थानीय """धर्म के ठेकेदारो""" ने मौका पाते ही अपने स्वार्थ के लिए फिर से अलगाव के बीज बो दिये ||तब चैतन्य महाप्रभु आए |
परिव्राजक भी एक श्रेणी होती है जो भगवाधारी नहीं होते -वे सफ़ेद कपड़े पहनते है -कई बार वे विवाहित भी होते है | वे प्रभु और धर्म के प्रेम संदेश को फैलाते है | सहज और सीधे तरीके से उनका धर्म प्रचार होता है | वस्तुतः बंगाल का ''बाउल''' गीत की परंपरा इन से ही प्रारम्भ हुई |
वेदिक धर्म के अंतर्गत अनेक संप्रदाय बने ----मूल रूप से यह विभाजन आराध्य और उसकी उपासना को लेकर हुआ है | तीन भागो मे हम इन्हे विभाजित कर सकते है | शाक्त ,,
जिसमे सभी देवियो के रूपो की आराधना की जाती है | अनेक देवियो की आराधना मे ''पशु बलि का करमकांड है | आज भी कलकते मे महाकाली के मंदिर मे , गौहाटी मे कामाख्या मंदिर मे मिर्जापुर मे विध्यवासिनी मे ''बलि '' दी जाती है | दूसरा संप्रदाय है ''शिव'' भक्तो का जो भांग -धतूरा अर्पण कर के अपने आराध्य को प्रसन्न करते है | शिव महिमाँ स्त्रोत मे सभी जाग्रत शिवलिंगों के स्थान बताए गए है | आंत मे वैष्णव संप्रदाय है जो विष्णु के विभिन्न अवतारो और रूपो मे आराधना करता है | इनकी पूजा सामाग्री पंजीरी और पुष्प होते है | इन मुख्य सम्प्रदायो की अनेकानेक शाखाये है मई सबके नाम नहीं ले पाऊँगा क्योंकि मुझे स्वयं भी ज्ञात नहीं है | इस अग्य्यन के लिए छमा मांगता हूँ | शिव भक्तो मे नागा संप्रदाय --गोरखनाथ आदि की परंपराए है | अनेक गुरु भी हुए है जिनके शिष्य आज भी उनकी परंपरा को बनाए रखे है जैसे रामानंदी - कबीर पंथी आदि आदि |
मठ - अखाड़ा आदि परंपराए वर्तमान समय '''सर्वाधिक'''' प्रचलित है ,, इनको
''आश्रम''' भी बुलाने का रिवाज है | जहा '''गुरु या मंडलेश्वर --बापू - स्वामी जी '''''''' विराजते है | अक्सर वे ''सन्यास दीक्षित नहीं होते ''' '' क्योंकि अपने """ मत के वे खुद ही ''''' प्रवर्तक होते है | इसलिए वे अपने गुरु को ना तो वे सार्वजनिक रूप से घोसीत करते है नाही उनका नाम या स्थान बताते है | क्योंकि ऐसा करने से
उनके समर्थक '''शायद''' वंहा जाना ना शुरू कर दे और उनके ''''प्रवचन पर प्रश्न चिन्ह लगाने वाला संस्थान'''' ना बन जाये | वे खुद को इतना असुरक्षित महसूस करते है की,,, किसी को भी इर्द - गिर्द ज्ञानवान और जानकार """ नहीं बनने देते || उनको भय रहता है की उनके ''सिंहासन''' को चुनौती देने
वाला न बन जाये || इसी लिए '''अनेकों आश्रम'''' मे कई बार अनेक ऐसी ''घटनाओ ''' की जानकारी मिलती है
जो ''''''अपराध'''' की श्रेमी मे आते है | ऐसे'''' दो धर्म गुरु'''' फिलहाल कृष्ण जन्म स्थल मे समय व्यतीत कर
रहे है | यद्यपि ''लाखो लोगो की नजरोमे ''''' वे आज भी '''निर्दोष''' ''''निष्पाप''' है |भले ही देश का कानून उन्हे ''''अभियुक्त'''' मान रहा हो || इनमे एक जब दिल्ली मे स्वस्थ्य की जांच के लिए आए तब हजारो समर्थक रेल्वे स्टेशन पर उनकी """"झलक""" पाने के लिए रो रहे थे ---लड़कियो --स्त्रियो आँसू बहा रहे थे ||
इस स्थिति मे तीन पहलू सामने आते है --- पहला तो इन ''' महानुभावों ''''' को इनके समर्थक ---चेले या शिष्य किस रूप मे देख रहे है ||दूसरा यह की बाक़ी समाज इन '''गुरुओ'''' के बारे मे क्या रॉय रखते है ????एवं अन्त मे यह की इनकी वास्तविकता क्या है ????? कुछ हज़ार कार्यकर्ता और उनके माध्यम से बने लाखो '''शिष्य""" के समर्थन को ''अंध भक्ति"""" मे बदल देते है || जो कभी - कभी जुनून मे परिवर्तित हो जाता है || जिसे आशा राम ''बापू और स्वामी रामलाल की गिरफ्तारी के समय दिखाई पड़ी थी --- जिसे टीवी पर सबने देखा |
आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा पुनर्स्थापित वेदिक धर्म की सनातन
परंपरा मे जो """बदलाव """' आज कल हमलोग देख रहे है ,,, उसका मूल्यांकन तो आज देश और उसके समाज को """तय"""" करना होगा |??? वरना '''सत्य''''' क्या है ---यह कभी पता नहीं चल पाएगा ---?? जो बहुत गलत होगा || कुछ लोगो की '''गलती'''' का खामियाजा''' सारे सनातन धर्म को ''''भोगना'''' पड़ेगा| आज कल धर्म के नाम पर प्रायोजित ''''सत्संग'''' और सुंदर कांड या भागवत'''' कथा को ही सम्पूर्ण """धर्म'''' मान लिया है || जबकि आदिगुरु द्वारा """धर्म""" आधारित समाज वेदिक धर्म के ''आधारो''' पर स्थित था || कुछ दिग्भ्रमित लोग उनके ''मूल्य ''' को समझ ही नहीं पाते है || वे अपनी सोच को """हिन्दू धर्म""" का आधार
बताते है | परंतु उनसे जब प्रश्न करो की ''''किस ग्रंथ से लिया है '''''' तब दो -सौ या चार सौ वर्ष किसी एक मत की """पुस्तक""" को उद्धरत कर देते है | तुलसीदास रचित रामचरित मानस को रामायण '''''''''बताने वाले''''' इन महानुभावों को ना तो """ज्ञान""" चाहिए नहीं """" सत्य या परंपरा'''' के बारे मे जानना चाहते है और ना ही यह मानने को तैयार है की """"रामायण |"""" एक इतिहास है | मूल्यांकन है ,, वह स्तुति नहीं है | तुलसीदास जी का जन्म आदिगुरु के समय काल से कई शताब्दी पूर्व हुआ था || उन्होने ''''हिन्दू''' धर्म की स्थापना के लिए मंडन मिश्र से शास्त्रार्थ नहीं किया था | इन प्रश्नो के उत्तर खोजने होंगे ---तभी धर्म के ''सत्य''को जान सकेंगे | वरना '''आस्था''' के गलियारो''' मे भटकते रहेंगे ||
इति
जब उन्होने अपने को ब्रामहन बताया तभी उन्होने अपने शिष्य बनाया | इन उदाहरण से मैंने यह स्पष्ट
करने की कोशिस की है की ''गुरु''' को भी अपना चेला बनाने मे चुनाव करने का अधिकार है |
आजकल हर वेदिक धर्म मानने वाले परिवार के एक ''पंडित जी ''' होते है | जो
ब्रामहन होता है ,, हालांकि कुछ ''सम्प्रदायो मे अपने ही लोगो मे यजमानी करने वाले ही लोग होते है |ऐसा
सतनामी संप्रदाय मे है | अनेक सम्प्रदायो मे उनके धर्म गुरु होते है जो उनके पारिवारिक और परंपरा के
बारे मे अपनी व्यवस्था देते है ||इन समाजो मे ''गुरु''' का आदेश अंतिम होता है ,,जिसे बड़ी कठोरता से
पालन कराया और किया जाता है || इन धर्म गुरुओ के पास अकूत संपत्ति होती है । आश्रम होते है धन का वैभव टपकता है | जिस धर्म ने ''''त्याग''' और तपस्या की महिमा गायी हो उसके नाम पर यह सब होना कुछ
समझ मे ना आने वाली बात है ||
सनातन धर्म मे भी अनेक ''मत''' एवं सम्प्रदायो के ढेरो मठ एवं महंत है
जिनके अपने आश्रम और डेरे है | जहा पर वे अपने सैकड़ो भक्तो और समर्थको के साथ ''''सत्संग ''''करते है |
जब तक ये ''''जीवित रहते है तब तक इन '''सुख - सुविधाओ'''' का उपयोग और उपभोग करते है | परंतु इनके
साथ ही यह सब चला जाता है | अभी कुछ समय पूर्व पश्चिमी उत्तर प्रदेश मे ऐसे ही एक '''बाबा'' के निधन
के पश्चात चार हज़ार करोड़ की उस संपाति के कब्जे को लेकर मार पीट और कोर्ट -कचहरी तक हुई | कुछ ऐसा ही हरियाणा के ''बाबा आशुतोष''' का है जहा उनके शिष्यो ने उनके निधन के पश्चात उनके शव को
डीप फ्रीजर मे महीनो से रख कर उनके ''इर्द -गिर्द''' रहने वाले धन एवं संपति को खुर्द - बुर्द कर रहे है |
हाइ कोर्ट के आदेश के बावजूद भी उनका अंतिम संस्कार संभव नहीं हुआ | रामलाल जी का किस्सा तो समाचार पत्रो और मीडिया मे खूब आया ---चार दिनो की पुलिस की घेराबंदी के पश्चात ही उन्हे हिरासत मे लिया जा सका | अभी अभी खबर है की ''''डेरा सच्चा सौदा के बाबा राम रहीम ''''' पर भी आपराधिक मामला दर्ज़ किया जा चुका है | आशा राम जिनहे लोग बापू भी कहते है --उनके करतूतों की तो बानगी ही यह है की वे कई
माह से जोधपुर जेल मे है | कर्नाटक के एक स्वामी पर भी व्यभिचार का आरोप लगा है -मुकदमा चल रहा है ||
ये है '''धर्म गुरु """
दूसरी ओर योग शिक्षक रामदेव है , जिनको योग सिखाने के कारण नाम हुआ |चूंकि वे भगवा वस्त्र पहनते है -इसलिए लोग उन्हे भी """बाबा"" या गुरु की उपमा देते है | लेकिन इनकी प्रसिद्धि तब
हुई जब ये समाज सेवी अन्ना हज़ारे और -अरविंद केजरीवाल के साथ मिलकर """लोकायुक्त"" के लिए जंतर -मंतर पर आंदोलन किया और गिरफ्तारी से बचने के लिए महिला के कपड़े पहन कर फरार हुए | इनकी राजनीतिक प्रतिबद्धता केवल तत्कालीन कांग्रेस्स सरकार का विरोध --- धार्मिक और राजनीतिक मंच से करना था | फिलहाल अब ये पतंजलि योग संस्थान चला रहे है | जिसमे योग की शिक्षा तो नहीं दी जाती पर
आयूएर्वेदिक दवाओ के साथ खाने -पीने की और रसोई की वस्तुए भी मिलती है |वार्तामा केन्द्रीय सरकार के एक मंत्री ने तो इन्हे '''राष्ट्र पिता """" के समान बता दिया !! वैसे अब ये खादी ग्रामोद्योग पर सरकार की मदद से कब्जा करने के जोड़ - तोड़ मे लगे है | जहा से इंका '''व्यापार''' फले -फूले | अध्यात्म की दुनिया मे एक
नाम श्री श्री का भी बड़े आदर के साथ लिया जाता था ,, परंतु जब वे भी रामदेव के साथ मिले तो -उनही के रंग
मे रंग गए | उन्होने ने भी दवा आदि वस्तुए अपने अनुयाईओ को बेचना शुरू कर दिया | राधास्वामी संप्रदाय
के लोग भी अपने सदस्यो अथवा ''गुरु भाइयो ''''के द्वारा उत्पादित सामाग्री को बेचने के लिए मेला लगाते है ||
आशाराम के चेले भी सत्संग के दौरान दिन -प्रतिदिन के उपयोग मे आने वाली वस्तुओ को '''बेचते और खरीदते'''' थे | क्या यह भी धर्म प्रचार का कोई तरीका है ????
धर्म के प्रचारक पूर्व मे हुए है जैसे स्वामी राम कृष्ण परमहंस और उनके तेजस्वी शिष्य विवेकानंद जी --जिनहोने वेदिक धर्म को हजारो साल बाद सागर पार जा कर दुनिया को बताया की
सनातन परंपरा '''संकीर्ण '''नहीं वरन ''' वसुधैव् कुटुम्बक्म् """ की है | तब तक सभी धर्म अपने को श्रष्टि का
प्रथम और सर्वश्रेष्ट मानते थे | उनके विचारो मे किसी दूसरे धर्मावलम्बी का कोई स्थान ही नहीं था | जो उनमे
नहीं वह ''अधम ''' था | स्वामी जी ने बताया की सभी प्रथम ""मानव""है परमात्मा की संतान बाद मे वे किसी
धर्म के अनुयायी है | विवेकानंद जी से अठारह सौ साल पूर्व दक्षिण के एक नंबोदरिपाद ब्रामह्ण ने सनातन परंपरा की डूबती नैया को बचाया -और वेदिक धर्म को-- बौद्ध् धर्म से रक्षा की | उस महा मानव को हम उनके
प्रयासो के कारण """आदि गुरु ""कहते है | शंकराचार्य जी ने समस्त भारत को धर्म ध्वजा के तले लाने के लिए समस्त देश की परिक्रमा की | शास्त्रार्थ किया अपने '''मत''' को प्रतिपादित किया | देश को एक सूत्र मे बाधने के लिए उन्होने चारो दिशाओ मे चार मठ स्थापित किए , जिसमे अपने शिष्यो को बैठाया | ये मठ आज भी उनकी स्म्रती को ताज़ा रखे हुए है | वे धर्म के वास्तविक प्रचारक थे | जिनहोने कोई मठ नहीं बनाया | राम कृष्ण
आश्रम मे आज भी दवाखाना और विद्या का दान किया जाता है | इन संस्थानो मे अभी तक कोई '''अधार्मिक '''' कृत्य होने की शिकायत नहीं मिली है | कांची कामकोटि मे तो शंकराचार्य एक नियत आयु तक ही गद्दी
पर रहता है |
इन धर्म के ठेकेदारो ने जहा धर्म को ''''रियासत और सियासत''' बना लिया है | वही कुछ
लोग ऐसे भी हुए है जिनहोने वेदिक धर्म की कुरीतियो को दूर करने के लिए राजा राममोहन रॉय ने ''विधवा विवाह'''' और '''बेमेल विवाहो ''' के विरुद्ध मुहिम चलायी | उनही के प्रयासो का फल था की तत्कालीन वायस
रॉय विलियम बेंटिक ने कानून द्वारा विधवा विवाह को जायज बताते हुए इसका विरोध करने वालो के
खिलाफ कारवाई किए जाने का प्रावधान किया | तत्कालीन बेंगाल मे कुलीन ब्रामहन और जमीदारों द्वारा
अपने से उम्र मे दस से बीस साल छोटी लड़कियो से शादी करने का रिवाज था | गरीब ब्रांहण अपनी लड़कियो को पैसे ले कर बुदे कुलीन और पैसे वाले लोगो को ब्याह देते थे | ऐसी विवाहिताए जल्दी ही विधवा हो जाती थी | जिनहे जमीदार के परिवार वाले '''घर से निकाल देते थे '''''' ऐसे मे वे बेनारस अथवा व्रंदावन मे जाकर भीख मांगने अथवा शरीर बेचने पर मजबूर होती थी | इन कुरीतियो को दूर करने के लिए राजा राम
मोहन रॉय का नाम स्वर्ण शब्दो मे लिखा जाता है | दूसरे समाज सुधारक भी बंगाल से ही हुए ---उनका नाम
था ईश्वर चन्द्र विद्यासागर --जिनहोने नारी शिक्षा का इस छेत्र मे प्रसार किया | उन्होने लड़कियो की शिक्षा के लिए घर से ही विद्यालय चलाया | उनकी कोशिस का परंपरावादी ब्रांहण लोगो द्वारा घोर विरोध किया गया | परंतु विद्यासागर जी अपने परसो मे जुटे रहे | वास्तव मे विद्यासागर की उपाधि उनके कार्य की वजह से ही उन्हे मिली थी | तत्कालीन समय मे ऐसे प्रयास करने का साहस उत्तर भारत मे नहीं किए गए |
धर्म के छेत्र मे समन्वय का ऐसा ही प्रयास इन महानुभावों के समय के पूर्व चैतन्य महाप्रभु हुए थे | जिनहोने शाक्त और वैष्णव संप्रदाय के लोगो के मध्य किया | वैसे दस्वी सदी मे आदिगुरु ने भी विभिन्न शाखाओ मे समन्वय बनाने का प्रयास किया था | परंतु स्थानीय """धर्म के ठेकेदारो""" ने मौका पाते ही अपने स्वार्थ के लिए फिर से अलगाव के बीज बो दिये ||तब चैतन्य महाप्रभु आए |
परिव्राजक भी एक श्रेणी होती है जो भगवाधारी नहीं होते -वे सफ़ेद कपड़े पहनते है -कई बार वे विवाहित भी होते है | वे प्रभु और धर्म के प्रेम संदेश को फैलाते है | सहज और सीधे तरीके से उनका धर्म प्रचार होता है | वस्तुतः बंगाल का ''बाउल''' गीत की परंपरा इन से ही प्रारम्भ हुई |
वेदिक धर्म के अंतर्गत अनेक संप्रदाय बने ----मूल रूप से यह विभाजन आराध्य और उसकी उपासना को लेकर हुआ है | तीन भागो मे हम इन्हे विभाजित कर सकते है | शाक्त ,,
जिसमे सभी देवियो के रूपो की आराधना की जाती है | अनेक देवियो की आराधना मे ''पशु बलि का करमकांड है | आज भी कलकते मे महाकाली के मंदिर मे , गौहाटी मे कामाख्या मंदिर मे मिर्जापुर मे विध्यवासिनी मे ''बलि '' दी जाती है | दूसरा संप्रदाय है ''शिव'' भक्तो का जो भांग -धतूरा अर्पण कर के अपने आराध्य को प्रसन्न करते है | शिव महिमाँ स्त्रोत मे सभी जाग्रत शिवलिंगों के स्थान बताए गए है | आंत मे वैष्णव संप्रदाय है जो विष्णु के विभिन्न अवतारो और रूपो मे आराधना करता है | इनकी पूजा सामाग्री पंजीरी और पुष्प होते है | इन मुख्य सम्प्रदायो की अनेकानेक शाखाये है मई सबके नाम नहीं ले पाऊँगा क्योंकि मुझे स्वयं भी ज्ञात नहीं है | इस अग्य्यन के लिए छमा मांगता हूँ | शिव भक्तो मे नागा संप्रदाय --गोरखनाथ आदि की परंपराए है | अनेक गुरु भी हुए है जिनके शिष्य आज भी उनकी परंपरा को बनाए रखे है जैसे रामानंदी - कबीर पंथी आदि आदि |
मठ - अखाड़ा आदि परंपराए वर्तमान समय '''सर्वाधिक'''' प्रचलित है ,, इनको
''आश्रम''' भी बुलाने का रिवाज है | जहा '''गुरु या मंडलेश्वर --बापू - स्वामी जी '''''''' विराजते है | अक्सर वे ''सन्यास दीक्षित नहीं होते ''' '' क्योंकि अपने """ मत के वे खुद ही ''''' प्रवर्तक होते है | इसलिए वे अपने गुरु को ना तो वे सार्वजनिक रूप से घोसीत करते है नाही उनका नाम या स्थान बताते है | क्योंकि ऐसा करने से
उनके समर्थक '''शायद''' वंहा जाना ना शुरू कर दे और उनके ''''प्रवचन पर प्रश्न चिन्ह लगाने वाला संस्थान'''' ना बन जाये | वे खुद को इतना असुरक्षित महसूस करते है की,,, किसी को भी इर्द - गिर्द ज्ञानवान और जानकार """ नहीं बनने देते || उनको भय रहता है की उनके ''सिंहासन''' को चुनौती देने
वाला न बन जाये || इसी लिए '''अनेकों आश्रम'''' मे कई बार अनेक ऐसी ''घटनाओ ''' की जानकारी मिलती है
जो ''''''अपराध'''' की श्रेमी मे आते है | ऐसे'''' दो धर्म गुरु'''' फिलहाल कृष्ण जन्म स्थल मे समय व्यतीत कर
रहे है | यद्यपि ''लाखो लोगो की नजरोमे ''''' वे आज भी '''निर्दोष''' ''''निष्पाप''' है |भले ही देश का कानून उन्हे ''''अभियुक्त'''' मान रहा हो || इनमे एक जब दिल्ली मे स्वस्थ्य की जांच के लिए आए तब हजारो समर्थक रेल्वे स्टेशन पर उनकी """"झलक""" पाने के लिए रो रहे थे ---लड़कियो --स्त्रियो आँसू बहा रहे थे ||
इस स्थिति मे तीन पहलू सामने आते है --- पहला तो इन ''' महानुभावों ''''' को इनके समर्थक ---चेले या शिष्य किस रूप मे देख रहे है ||दूसरा यह की बाक़ी समाज इन '''गुरुओ'''' के बारे मे क्या रॉय रखते है ????एवं अन्त मे यह की इनकी वास्तविकता क्या है ????? कुछ हज़ार कार्यकर्ता और उनके माध्यम से बने लाखो '''शिष्य""" के समर्थन को ''अंध भक्ति"""" मे बदल देते है || जो कभी - कभी जुनून मे परिवर्तित हो जाता है || जिसे आशा राम ''बापू और स्वामी रामलाल की गिरफ्तारी के समय दिखाई पड़ी थी --- जिसे टीवी पर सबने देखा |
आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा पुनर्स्थापित वेदिक धर्म की सनातन
परंपरा मे जो """बदलाव """' आज कल हमलोग देख रहे है ,,, उसका मूल्यांकन तो आज देश और उसके समाज को """तय"""" करना होगा |??? वरना '''सत्य''''' क्या है ---यह कभी पता नहीं चल पाएगा ---?? जो बहुत गलत होगा || कुछ लोगो की '''गलती'''' का खामियाजा''' सारे सनातन धर्म को ''''भोगना'''' पड़ेगा| आज कल धर्म के नाम पर प्रायोजित ''''सत्संग'''' और सुंदर कांड या भागवत'''' कथा को ही सम्पूर्ण """धर्म'''' मान लिया है || जबकि आदिगुरु द्वारा """धर्म""" आधारित समाज वेदिक धर्म के ''आधारो''' पर स्थित था || कुछ दिग्भ्रमित लोग उनके ''मूल्य ''' को समझ ही नहीं पाते है || वे अपनी सोच को """हिन्दू धर्म""" का आधार
बताते है | परंतु उनसे जब प्रश्न करो की ''''किस ग्रंथ से लिया है '''''' तब दो -सौ या चार सौ वर्ष किसी एक मत की """पुस्तक""" को उद्धरत कर देते है | तुलसीदास रचित रामचरित मानस को रामायण '''''''''बताने वाले''''' इन महानुभावों को ना तो """ज्ञान""" चाहिए नहीं """" सत्य या परंपरा'''' के बारे मे जानना चाहते है और ना ही यह मानने को तैयार है की """"रामायण |"""" एक इतिहास है | मूल्यांकन है ,, वह स्तुति नहीं है | तुलसीदास जी का जन्म आदिगुरु के समय काल से कई शताब्दी पूर्व हुआ था || उन्होने ''''हिन्दू''' धर्म की स्थापना के लिए मंडन मिश्र से शास्त्रार्थ नहीं किया था | इन प्रश्नो के उत्तर खोजने होंगे ---तभी धर्म के ''सत्य''को जान सकेंगे | वरना '''आस्था''' के गलियारो''' मे भटकते रहेंगे ||
इति
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