तकनीकी शिक्षा और नौकरी की संभाव्नाये
अकादमिक शिक्षा से नौकरी के अवसरो के धूमिल होने के कारण आज का युवा किसी भी छेत्र मे विशेषज्ञता की डिग्री हासिल करने की जल्दबाज़ी मे हैं | अब यह बात दूसरी हैं की , वह इस डिग्री के लायक हैं भी या नहीं | यह इस बात से साबित होता हैं जो असोचम के अध्यकष ने कहा की "" इंजीन्यरिंग और प्रबंधन की डिग्री " प्राप्त लड़को मे केवल पंद्रह प्रतिशत ही इस लायक होते हैं की उन्हे काम पर रखा जा सके | यह बयान साबित करता हैं की ''हमारे''' इंजीन्यरिंग और प्रबंधन की ''दूकाने ''' कैसे लड़को को नौकरी के बाज़ार उतार रहे हैं |
अब इसमे गलती किसकी हैं ? उन लड़को की जो ज़िंदगी मे सुनहरे भविष्य की उम्मीद पाल रहे हैं | अपनी इनहि उम्मीदों के लिए ये लड़के घर की जमा पूंजी को भी '' दाव"" पर लगा देते हैं | घर की ज़मीन -मकान को भी बैंक से ''शिक्षा'' कर्ज़ के लिए बंधक रख देते हैं | लेकिन जब डिग्री के बाद इंटरव्यू मे बुरी तरह से असफल होते हैं तब उन्हे पता चलता हैं की ''उन्हे क्या पढाया''; गया हैं | लेकिन तब तक घर और पिता के दस से बारह लाख रुपये खर्च हो चुके होते हैं | और भविष्य भी अंधकार मय हो चुका होता हैं |
मध्य प्रदेश मे इस साल यंहा के 223 इंजीन्यरिंग कॉलेज जिनमे 96000 लड़को के लिए स्थान हैं , जिनमे इस साल 65000 स्थान खाली हैं | सत्र शुरू होने मे अब बस पंद्रह -बीस दिनो का समय बचा हैं | ऐसे मे प्रश्न यह उठता हैं की आखिर क्या हुआ की इतनी सीट खाली रह गयी ? इसी प्रकार प्रबंधन के स्नातक भी आपको बाज़ार मे पेट्रोल पम्प पर काली पैट पहने लड़के और लड़कियां मिल जाएंगे | आखिर इन लोगो का दोष क्या हैं ?
इन सब का दोष सिर्फ इतना हैं की इनहोने एक ऐसी शिक्षा परंपरा मे पदाई की जिसने राजनेताओ और धन कुबेरो द्वारा खोली गयी इन बड़ी - बड़ी ''दुकानों''' मे शिक्षा या ''डिग्री'' प्राप्त की हैं | इन कॉलेज को इंस्टीट्यूट का भी नाम दिया गया हैं | अब इनके संचालको ने लड़को से फीस के रूप मे करोड़ो रुपये कमा लिया हैं |वे अपने छात्रों के भविस्य के बारे मे तनिक भी चिंतित नहीं होते |न तो वे प्लेसमेंट के लिए कोशिश करते हैं न ही कपनियों को बुला कर लड़को को अवसर उपलब्ध कराते हैं | ना ही वे असल मे इंटरव्यू के लिए तैयार करते हैं | आखिर इनकी ज़िम्मेदारी सिर्फ डिग्री देने की ही हैं ?
अकादमिक शिक्षा से नौकरी के अवसरो के धूमिल होने के कारण आज का युवा किसी भी छेत्र मे विशेषज्ञता की डिग्री हासिल करने की जल्दबाज़ी मे हैं | अब यह बात दूसरी हैं की , वह इस डिग्री के लायक हैं भी या नहीं | यह इस बात से साबित होता हैं जो असोचम के अध्यकष ने कहा की "" इंजीन्यरिंग और प्रबंधन की डिग्री " प्राप्त लड़को मे केवल पंद्रह प्रतिशत ही इस लायक होते हैं की उन्हे काम पर रखा जा सके | यह बयान साबित करता हैं की ''हमारे''' इंजीन्यरिंग और प्रबंधन की ''दूकाने ''' कैसे लड़को को नौकरी के बाज़ार उतार रहे हैं |
अब इसमे गलती किसकी हैं ? उन लड़को की जो ज़िंदगी मे सुनहरे भविष्य की उम्मीद पाल रहे हैं | अपनी इनहि उम्मीदों के लिए ये लड़के घर की जमा पूंजी को भी '' दाव"" पर लगा देते हैं | घर की ज़मीन -मकान को भी बैंक से ''शिक्षा'' कर्ज़ के लिए बंधक रख देते हैं | लेकिन जब डिग्री के बाद इंटरव्यू मे बुरी तरह से असफल होते हैं तब उन्हे पता चलता हैं की ''उन्हे क्या पढाया''; गया हैं | लेकिन तब तक घर और पिता के दस से बारह लाख रुपये खर्च हो चुके होते हैं | और भविष्य भी अंधकार मय हो चुका होता हैं |
मध्य प्रदेश मे इस साल यंहा के 223 इंजीन्यरिंग कॉलेज जिनमे 96000 लड़को के लिए स्थान हैं , जिनमे इस साल 65000 स्थान खाली हैं | सत्र शुरू होने मे अब बस पंद्रह -बीस दिनो का समय बचा हैं | ऐसे मे प्रश्न यह उठता हैं की आखिर क्या हुआ की इतनी सीट खाली रह गयी ? इसी प्रकार प्रबंधन के स्नातक भी आपको बाज़ार मे पेट्रोल पम्प पर काली पैट पहने लड़के और लड़कियां मिल जाएंगे | आखिर इन लोगो का दोष क्या हैं ?
इन सब का दोष सिर्फ इतना हैं की इनहोने एक ऐसी शिक्षा परंपरा मे पदाई की जिसने राजनेताओ और धन कुबेरो द्वारा खोली गयी इन बड़ी - बड़ी ''दुकानों''' मे शिक्षा या ''डिग्री'' प्राप्त की हैं | इन कॉलेज को इंस्टीट्यूट का भी नाम दिया गया हैं | अब इनके संचालको ने लड़को से फीस के रूप मे करोड़ो रुपये कमा लिया हैं |वे अपने छात्रों के भविस्य के बारे मे तनिक भी चिंतित नहीं होते |न तो वे प्लेसमेंट के लिए कोशिश करते हैं न ही कपनियों को बुला कर लड़को को अवसर उपलब्ध कराते हैं | ना ही वे असल मे इंटरव्यू के लिए तैयार करते हैं | आखिर इनकी ज़िम्मेदारी सिर्फ डिग्री देने की ही हैं ?