पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने गुजरात में हुए गोधरा काण्ड के बाद वंहा की सरकार की सार्वजनिक रूप से हुई आलोचना के समय नरेन्द्र मोदी को ''राजधर्म ''पालन करने की सलाह दी थी ।उस का अर्थ था की एक राजनैतिक पार्टी के रूप में हमारे सिधान्त अथवा विचार भले ही कुछ हो , परन्तु जब हम सत्ता में हों तब हमारे लिए ''सर्व जन सुखाय -सर्व जन हिताय ''ही धरम हैं ।क्योंकि चुनाव की राजनीती में विरोधियो का होना स्वाभाविक हैं परन्तु सत्ता में आने के बाद सरकार किसी की विरोधी नहीं होती और किसी का पछ भी नहीं लेती ।मंत्री पद की शपथ में भी यह वादा प्रदेश या देश की जनता से करना होता हैं की ''में बिना किसी भेदभाव या अनुराग के दिए गए उत्तरदायित्व का निर्वहन करूँगा ।'' इस प्रतिज्ञा का पालन ही राज धरम हैं ।परन्तु व्यहारिक रूप में यह कभी असमंजस में डालने का कारन भी बन जाता हैं फिर वाही इसकी कसौटी भी बन जाता हैं ।
धार स्थित भोजशाला में सरस्वती पूजा को लेकर वर्षो से बहुसंख्यको और अल्पसंख्यको के मध्य विवाद रहा हैं अक्सर ही पुलिस को बल प्रयोग कर स्थिति पर नियंत्रण करना पड़ा हैं । कांग्रेस के समय में बजरंग दल और संघ के कार्यकर्ता हमेश से उग्र हो कर मनमानी करने का प्रयास करते थे ।जिस पर सार्वजनिक रूप से निंदा भी की जाती रही हैं । पर जब संघ और बजरंग दल की सहयोगी सरकार हैं -तब भी स्थिति वही ही हैं , कारन हैं राजधर्म । अब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के लोग ही शिवराज सरकार की आलोचना में बयान दे रहे हैं ,और बसंतपंचमी के दिन सरस्वती की पूजा जबरदस्ती करने का अल्टीमेटम दे रहे हैं ।हालाँकि अभी बात जबानी -जमा खर्च तक ही हैं , पर जन भावनाओ में तर्क का हिस्सा कम और उद्वेग का स्थान अधिक होता हैं ।जब से शिवराज सरकार हैं अभी तक न तो अल्पसंख्यको को न ही बहुसंख्यको उनके मन की करने दिया गया हैं ।
भोजशाला बनाने मुक्ति यज्ञ और माँ सरस्वती महोत्सव समिति के संयोजक नवल किशोर शर्मा ,जो की संघ के प्रचारक रह चुके हैं , उन्होने भी शिवराज सरकार पर वाही आरोप लगाये हैं जो कभी कांग्रेस सरकारों पर वे लगाया करते थे ।उन्होंने 2006 से भा जा प् सरकार पर बहुसंख्यको को प्रताड़ित करने और उनके अधिकार की अनदेखी करने का आरोप लगाया हैं ।लेकिन सरकार और जिला प्रशासन बसंतपंचमी के समय शांति बनाने के लिए तत्पर हैं ।अब तो शर्मा जी ने यंहा तक कह दिया की भा ज पा के लिए ''हिंदुत्व का मुद्दा सिर्फ सत्ता प्राप्ति का साधन हैं ''। बस यही राज्य धर्म और पार्टी धर्म के टकराव का मुद्दा हैं । जंहा शांति -व्यवस्था सबके लिए हैं ,वंही सरस्वती वंदना करके लोगो में हिंदुत्व हामी की छवि बनाना संघ और बजरंगदल का उद्देश्य हैं ।अब भारतीय जनता पार्टी में कुछ तत्त्व राम मंदिर के मुद्दे को चुनाव का मसला बनाने की भले ही वकालत करें , पर एन डी ए में ऐसा होना संभव नहीं लगता .।हालाँकि सिंघल और तोगड़िया प्रयाग में हो रहे कुम्भ में एक संत सम्मलेन कर के इस मुद्दे को चुनाव के पूर्व गरमाना चाहते हैं ।पर दिक्कत वही राजधर्म ।छतीसगड और मध्य प्रदेश में जन भावनाओ को भड़काने पर सरकार पर कलंक लगेगा की अपने कर्त्तव्य का पालन नहीं किया ।वैसे राम मंदिर मुद्दा काठ की हांडी की भांति हैं जिसके दुबारा सफल होने की उम्मीद कम ही हैं , पहले जब यह सवाल जनता के बीच लाया गया था तब कांग्रेस सरकार पर ठीकरा फोड़ा गया था ।पर इस बार ऐसा संभव न होगा क्योंकि वाजपेयी जी के काल में ही इस को पीछे धकेल दिया गया था ।जब लोग इस बारे में पूछेंगे तो किया जवाब होगा ?सरकार बनाने के लिए तो मुद्दा तब ठीक था पर शायद अब नहीं हैं ।क्योंकि अब राज धर्म आजमाया जा चूका हैं , भले ही समर्थको बुरा लगे या नहीं ।
राज धर्म बनाम पार्टी धर्म
धार स्थित भोजशाला में सरस्वती पूजा को लेकर वर्षो से बहुसंख्यको और अल्पसंख्यको के मध्य विवाद रहा हैं अक्सर ही पुलिस को बल प्रयोग कर स्थिति पर नियंत्रण करना पड़ा हैं । कांग्रेस के समय में बजरंग दल और संघ के कार्यकर्ता हमेश से उग्र हो कर मनमानी करने का प्रयास करते थे ।जिस पर सार्वजनिक रूप से निंदा भी की जाती रही हैं । पर जब संघ और बजरंग दल की सहयोगी सरकार हैं -तब भी स्थिति वही ही हैं , कारन हैं राजधर्म । अब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के लोग ही शिवराज सरकार की आलोचना में बयान दे रहे हैं ,और बसंतपंचमी के दिन सरस्वती की पूजा जबरदस्ती करने का अल्टीमेटम दे रहे हैं ।हालाँकि अभी बात जबानी -जमा खर्च तक ही हैं , पर जन भावनाओ में तर्क का हिस्सा कम और उद्वेग का स्थान अधिक होता हैं ।जब से शिवराज सरकार हैं अभी तक न तो अल्पसंख्यको को न ही बहुसंख्यको उनके मन की करने दिया गया हैं ।
भोजशाला बनाने मुक्ति यज्ञ और माँ सरस्वती महोत्सव समिति के संयोजक नवल किशोर शर्मा ,जो की संघ के प्रचारक रह चुके हैं , उन्होने भी शिवराज सरकार पर वाही आरोप लगाये हैं जो कभी कांग्रेस सरकारों पर वे लगाया करते थे ।उन्होंने 2006 से भा जा प् सरकार पर बहुसंख्यको को प्रताड़ित करने और उनके अधिकार की अनदेखी करने का आरोप लगाया हैं ।लेकिन सरकार और जिला प्रशासन बसंतपंचमी के समय शांति बनाने के लिए तत्पर हैं ।अब तो शर्मा जी ने यंहा तक कह दिया की भा ज पा के लिए ''हिंदुत्व का मुद्दा सिर्फ सत्ता प्राप्ति का साधन हैं ''। बस यही राज्य धर्म और पार्टी धर्म के टकराव का मुद्दा हैं । जंहा शांति -व्यवस्था सबके लिए हैं ,वंही सरस्वती वंदना करके लोगो में हिंदुत्व हामी की छवि बनाना संघ और बजरंगदल का उद्देश्य हैं ।अब भारतीय जनता पार्टी में कुछ तत्त्व राम मंदिर के मुद्दे को चुनाव का मसला बनाने की भले ही वकालत करें , पर एन डी ए में ऐसा होना संभव नहीं लगता .।हालाँकि सिंघल और तोगड़िया प्रयाग में हो रहे कुम्भ में एक संत सम्मलेन कर के इस मुद्दे को चुनाव के पूर्व गरमाना चाहते हैं ।पर दिक्कत वही राजधर्म ।छतीसगड और मध्य प्रदेश में जन भावनाओ को भड़काने पर सरकार पर कलंक लगेगा की अपने कर्त्तव्य का पालन नहीं किया ।वैसे राम मंदिर मुद्दा काठ की हांडी की भांति हैं जिसके दुबारा सफल होने की उम्मीद कम ही हैं , पहले जब यह सवाल जनता के बीच लाया गया था तब कांग्रेस सरकार पर ठीकरा फोड़ा गया था ।पर इस बार ऐसा संभव न होगा क्योंकि वाजपेयी जी के काल में ही इस को पीछे धकेल दिया गया था ।जब लोग इस बारे में पूछेंगे तो किया जवाब होगा ?सरकार बनाने के लिए तो मुद्दा तब ठीक था पर शायद अब नहीं हैं ।क्योंकि अब राज धर्म आजमाया जा चूका हैं , भले ही समर्थको बुरा लगे या नहीं ।
राज धर्म बनाम पार्टी धर्म
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