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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Oct 6, 2012

लाखो लोगो को रोजगार मिलने के वालमार्ट के दावे मैं कितना सच ?

                                       फुटकर व्यापर मैं विदेशी निवेश से  लाखो लोगो को रोजगार मिलने के दावे में कितना सच हैं ,इसका पता वालमार्ट के ही कागजो से चलता हैं ।इस विदेशी दात्याकर कंपनी की स्थापना 1962 में सम वाल्टन द्वारा अरकंसास राज्य में हुई ।यह  united  states of अमेरिका  के पचास राज्यों में से काफी पिछड़ा राज्य हैं ।जंहा सिटी कौंसिल और राज्य के लेवल पर राजनैतिक एवं प्रशासनिक नेतृत्व को आसानी से प्रभावित किया जा सकता हैं ।इस दक्षिण में बसे राज्य में कुछ मुठी भर पैसे और प्रभाव वाले लोगो की ही चलती हैं ,लगभग 90प्रतिशत  जनता की आवाज को राजनेताओ और धनपतियो के  काकस द्वारा नियंत्रित रखा जाता हैं ।यही कारन हैं की इन स्थानों में '''जनहित''का लेवल लगा कर कुछ भी किया जा सकता हैं ।चाहे  वह मामला पर्यावरण का हो अथवा जनता के स्वस्थ्य और सुरक्षा से सम्बंधित हो , सभी मामलो को छेत्र में ''नए रोजगार के अवसर '''के नाम पर पेश कर दिया जाता हैं ।                                                                                
                                                                                   आब बात करे  वालमार्ट द्वारा भारत में निवेश के उपरांत रोजगार के अवसर सुलाभ हनी के --में कुछ तथ्य सामने रख रहा हु ।दुनिया में वालमार्ट के कुल 8500रिटेल  स्टोर  हैं , जिनमें  कुल 21 लाख लोग कार्यरत हैं ।इस संख्या में मेक्सिको के वाल्माक्स और ब्रिटेन के aasda  तथा भारत में चल रहे बेस्ट price स्टोरों की संख्या शामिल हैं ।अब अगर हिसाब लगाये तो प्रति स्टरे 248 लोगो को ही नौकरिया मिल पाएंगी ।जबकि इस प्रस्ताव के समर्थको द्वारा इन निवेसो से लाखो लोगो को रोजगार मिलने का ''दावा ''किया जा रहा हैं ।फिलहाल भारत के 53 महानगरो में ही इन स्टोरों को खोलने की योजना हैं ।प्रति स्टरे पर ऊपर दर्शाए गए हिसाब से मात्र 13,094 लोगो के लिए काम के अवसर  सृजित हो सकेगे । विदेशी निवेश की शर्त के अनुसार एक मल्टी  ब्रांड प्रोजेक्ट में कम से कम 500  करोड़  का निवेश जरूरी होगा । इसमें से आधा अर्थात 250 करोड़ ''बैक एवं मूलभूत {INFRASTRUCTURE } सुविधाओ में लगाना होगा ।इस का मतलब यह हुआ की वे भवन और गोदाम के नाम पर कम्पनी  स्थाई  सम्पति खरीदेगी , तथा आपनी बैलेंस सीट में में उसे जोड़कर अपने निवेशको को बुद्धू  बनायेंगी ।इधर भारत के खुदरा बाज़ार में काम कर रहे चार करोड़ लोगो का काम छिन  जायेगा ।जन्हा तक किसान को वाजिब दाम मिलने की बात हैं तोउसकी कहानी  उत्तरी अमरीका के किसानो से जाना जा सकता हैं ।जंहा  इस कम्पनी के चरण पड़  चुके हैं ।
                                                           एक तरह से बड़े  बाधों और औदोगिक कल कारखानों की स्थापना  के नाम पर विकास  की यात्रा में कैसे '''भूमिपति'' कंगाल बनजाता  हैं ,और समर्थ लोगो का आर्थिक रूप से गुलाम बन जाता हैं ।उसी प्रकार तेरह हज़ार लोगो को काम पर वर्दी में आने का हुकुम सुनाकर , खरीदने की शक्ति रखने वाले  वर्ग को जो देश की आबादी का दस प्रतिशत हैं उसे एक अहंकारी  व्यक्ति में बदल देगी ।जो अपने ही लोगो का दुश्मन बन जायेगा । एक फ़िल्मी गाना याद आता हैं ''साला में तो साहेब बन गया '''।इस लिए सभी समझदार लोगो को  इस फैसले का विरोध करना होगा ,नहीं तो हम फर आर्थिक गुलामी फंस जायेंगे ।।।

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