ट्रम्प ने बदल दिया --प्रशासन और कूटनीतिक संबंधों का धरातल !
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प जिस आंधी तूफान की गति से अपनी विदेश नीति के आधार को बदल रहे हैं | उनके लिए प्रशासन “”लोकतंत्र “” नहीं वरन “”लोगों के लिए तंत्र हो गए हैं |, उससे कनही जयदा तेजी से वे अमेरिकी प्रशासन तंत्र मे उलट फेर कर रहे हैं | एक तरह से देखा जाए --- तो लोकतंत्र के अर्थ ही बदल रहे हैं | कुछ - कुछ ऐसा ही हमारे प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी ने भी आंतरिक प्रशासन मे नए - नए प्रयोग किए हैं | राजनीतिक रूप से भी दोनों ही नेताओ की अपनी पार्टी के सांसदों पर "”पकड़ " बड़ी मजबूत हैं | यानि इनके सांसदों को अपने वोटरों का हित प्राथमिकता "”नहीं "” हैं , बल्कि "”बॉस"’ का हुकूम या उनकी मर्जी ही सर्वोपरि हैं | मिसाल के तौर पर पर दोनों ही "”नैतिकता अथवा परंपरा "” के हामी नहीं है | दोनों का उद्देश्य अपने उद्योगपति दोस्तों को कैसे मुनाफा कमाने मे सरकारी स्तर पर मदद की जा सकती है --यही प्राथमिकता रहती हैं |
यानि इनका "”लोकतंत्र "” बहुमत अथवा बहु जनसंखया के हित का संवर्धन करना नहीं होता --वरन धनपतियों की झोली भरना होता हैं | आइए देखते हैं ट्रम्प साहब के फैसले -- सबसे पहले उन्होंने आम अमेरकी को मिलने वाले "”मेडिक्लेम "” को खतम करना था | चूंकि इस नीति से स्वास्थ्य का बीमा करने वाली कंपनियों को "’थोड़ा घाटा "’ हो रहा था , इसलिए ओबामा प्रशासन ने की इस परियोजना को बंद कर दिया गया | अब रिपब्लिकन सांसद और सेनेटर अपने छेत्र के मतदाताओ को जवाब देने मे कठिनाई का सामना कर रहे हैं | दूसरा फैसला हाल ही मे लिया गया है जिसके द्वरा संघीय शिक्षा विभाग को पूरी तरह से बंद कर दिया गया हैं | वैसे भारत की तरह अमेरिका में भी शिक्षा प्राथमिक तौर पर राज्यों का विषय हैं , परंतु विश्वविद्यालय स्तर पर संघीय एजेंसी ऐसे लोगों की मदद करती है जो या तो शारीरिक अथवा मानसिक रूप से कमजोर होते हैं | ट्रम्प के नए फैसले से अब इन वर्गों को कोई मदद नहीं मिलेगी !! यह तो हुआ शिक्षा और स्वास्थ्य के छेत्र में ट्रम्प प्रयोग !
भारत में भी शिक्षा और स्वास्थ्य के छेत्र में केंद्र ने अपना योगदान यानि बजट में कमी की हैं | वनही निजी मेडिकल कालेज और बड़े बड़े अस्पतालों को साजो सामान के "”आयात "” मे सुविधा दी गई हैं | उत्तर प्रदेश में 22 हजार से अधिक प्राथमिक स्कूल आज बिना भवन अथवा पर्याप्त शिक्षकों के दम तोड़ रहे हैं | वनही गवों मे तो नहीं वरन कस्बों तक मे "”पब्लिक स्कूल " दिखाई पड़ते हैं | जिनकी सालाना फीस हजारों में होती हैं |जबकि सरकारी सकुलो में मात्र सैकड़े ही फीस के लिए जाते हैं | केंद्र सरकार द्वरा संचालित "” केन्द्रीय स्कूल "” मे भी आरक्षित वर्ग एवं सैनिकों अथवा वर्दीधारी संगठन के लोगों के बच्चों को भी नाम मात्र की फीस लगती हैं | जबकि उसका रिजलट सीबीएसई परीक्षाओ में सर्व श्रेष्ठ होता हैं | परंतु बीजेपी शासित राज्य सरकारों ने प्रधान मंत्री स्कूल नए तो नहीं बने हैं , परंतु पुराने स्कूल का ही नया नामकरण कर दिया गया हैं | परंतु केन्द्रीय बजट में शिक्षा का अनुदान काफी काम हैं |
राजनीतिक रूप से देखा जाए तो ट्रम्प ने वही उम्मीद अपने मतदाताओ को दिखाई है जैसे मोदी जी ने भारत मे किया था | उदाहरण के तौर पर मंहगाई कम करने के नारे की बात करे | तो पिछले दस सालों में { जब से मोदी जी सत्ता में हैं } खाने - पीने की वस्तुओ के दामों मे सौ प्रतिशत से भी अधिक बड़े हैं | बिजली की दरों में मे भी वर्धी हुई | अमेरिका में भी ट्रम्प के आने के बाद ब्रेड और अंडों के दाम मे भारी बडोटरी हुई हैं | फिलहाल डिपार्ट्मेन्टल स्टोर में खाने - पीने की वस्तुओ के शेल्फ खाली है | रही अमेरिका के नौजवानों को नौकरी के अवसरों को सुलभ कराने की | सो ट्रम्प की नई योजना के तहत सरकारी दफ्तरों मे काम कर रहे हजारों लोगों की छटनी हो चुकी हैं | एवं अभी और सरकारी दफ्तरों को बंद किया जाना है , अब ऐसे में जिन लोगों के पास नौकरी थी वे भी "” सोशल सेक्योरिटी "” मे नाम लिखा रहे हैं | वनही ट्रम्प के अंध भक्त सोशल सेक्युरिटी को बंद करने की मांग कर रहे हैं | अधिकतर यह मांग दक्षिण के राज्यों से हैं ----जो अधिकतर खेती और पशु पालन अथवा मुर्गी एवं सुवर पालन का काम करते हैं | वैसे औसत अमेरिकी नौजवान मेहनत का काम करना पसंद नहीं करते --- इन राज्यों में सर्वाधिक आप्रवासी है जो मेक्ससईको - कोलम्बिया और चीन फिलीपींस आदि के होते हैं | परंतु ट्रम्प के "”अवैध आप्रवासी "” निकलो के कार्यक्रम से सर्वाधिक प्रभावित दक्षिण के राज्य ही हहै |
कूटनीतिक स्तर पर :_ राष्ट्रपति ट्रम्प ने दूसरे देशों से संबंध को व्यापारिक हितों पर परखा हैं | अभी तक दो देशों मे दोनों ही देश अपने राजनीतिक सिद्धांतों और आर्थिक संबंधों को वरीयता देते थे | परंतु अब ट्रम्प साहेब ने राजनीतिक प्रतिबद्धता की परवाह नहीं की | इसीलिए उन्हे यूक्रेन से संबंध सिर्फ उसके "” खनिज भंडार को खरीदने "” का हैं | वे इस व्यापारिक हिट से अमेरिकी प्रशासन को कोई सीधा लाभ नहीं होना हैं ----परंतु ट्रम्प के रिपब्लिकन साथियों को लाभ होगा | अगर देखा जाए तो ट्रम्प अमेरिका के पहले राष्ट्रपति हैं जो खुले आम रूसी राष्ट्रपति पुतिन से "”दोस्ती"” का दावा करते हैं |इतना ही नहीं वे रूस को यूक्रेन पर "”आक्रमणकारी "” मानने से भी इनका करते हैं ! इतना ही नहीं वे संयुक्त राष्ट्र संघ में पूर्व अमेरिकी प्रस्ताव के खिलाफ भी अपने प्रतिनिधि से वोट करने को कहते हैं ! उनके इस निर्णय से "” नाटो "” सैन्य संगठन और यूरोपीय यूनियन के देश भी भी अब अमेरिका को अपना "” मित्र "” मानने से
हिचक रहे हैं | हालत यंहा तक बिगड़ गए की अमेरिका यूक्रेन को खुफिया जानकारी देने से मना कर दिया हैं | वनही नॉर्वे ने अमेरिका को अपनी खुफिया जानकारी देने से मना कर दिया हैं | यूक्रेन के मामले में ट्रम्प की "”पलटी "” ने यूरोपीय यूनियन के देशों को खुद रक्षा के लिए तैयारी करने को मजबूर कर दिया हैं |
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