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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Dec 1, 2024

यदि सत्ता जनहित के उद्देश्य को छोड़कर -व्यापार और लाभ का लछय रखे तब गणतंत्र का सर्वनाश !

 

यदि सत्ता जनहित के उद्देश्य को छोड़कर -व्यापार और लाभ का लछय रखे तब गणतंत्र का सर्वनाश !


मानवजाति के इतिहास में सत्ता के तंत्र को राज्य के दैवी सिद्धांत से लेकर वर्तमान गणतांत्रिक व्यवस्था की हजारों साल की यात्रा का उद्देश्य आम "”नागरिक "’ को सर्वाधिक सुविधा सुलभ कराना ही सत्ता का लछय होता हैं | परंतु जैसा की राजनीति मे होता आया है सत्ता या शासक अपने और अपने ही वर्ग को लाभ पहुचाने की चोरी छुपे या खुली कोशिस करता राहत हैं | हिन्दी मे आचार्य चतुरसेन शास्त्री का उपन्यास है वैशाली की नगर वधू | वैशाली मौर्यकालींन समय में अनेक "”गणराज्यों "” मे से एयक इकाई था | वर्तमान बिहार में इसी नाम से आज भी उस छेत्र को जाना जाता हैं | वैशाली गणराज्य का अंत उसके चुनाव एवं उसके फलस्वरूप बनी सत्ता व्यवस्था के उद्देश्य मे है | कथानक के अनुसार वैशाली गणतंत्र के चुनवो में वणिक {व्यापारी ] बहुमत पा गए थे | उन्होंने अपने वेतनभोगी कर्मियों को भी चुनवो मे अपने साथ "”लालच" देकर कर लिया था | फिर जो होना था -हुआ बहुमत की सत्ता अर्थात सत्ता का उद्देश्य लोकहित ना रहकर , व्यापारिक "”लाभ "” हो गया | फलस्वरूप व्यापारी का लाभ ही शासन का परम उद्देश्य बन गया | फलस्वरूप आंतरिक सुरक्षा और वाह्य सुरक्षा पर होने वाले खर्च को "”गैर जरूरी "’ बात दिया गया | शिक्षा - स्वास्थ्य आदि जैसी सुविधाये गैर जरूरी हो गई | केवल नगर में आने वाले व्यापारिक वस्तुओ पर "”कर "” अधिक और जाने वाली वस्तुओ पर राज्य कर न्यूनतम कर दिया गया | जिससे व्यापारिक गानों को तात्कालिक लाभ तो हुआ -----परंतु इस व्ययस्थ ने शासन के संतुलन समीकरण को बिगाड़ दिया | कुछ व्यापारी जनों को लाभ तो हुआ परंतु वैशाली की शासन व्यवस्था को

छिन्न -भिन्न कर दिया | परिणाम स्वरूप मौर्य सम्राट अजातशत्रु ने वैशाली गणराज्य को युद्ध मे परास्त कर हजारों साल से नागरिक और गणराज्य की न्यायिक व्यवस्था को ध्वस्त कर दिया |


तीन सौ शब्दों मे गणराज्य और चुनाव तथा उससे उपजे सत्ता के तंत्र का मूल उद्देश्य और परिणाम बताने का एक ही उद्देश्य है की देश -दुनिया मे आज सत्ता और सरकार उन लोगों द्वरा चलाई जा रही है --जिनका उद्देश्य मात्र व्यापारिक लाभ कमाना है | फिर इसमे सत्ता की सहायता नागरिकों के अधिकारों को छिन्नति है |

आज विश्व के पटल पर देखे तो पाएंगे की अरब के शेख -सुल्तान हो या अमेरिका और भारत का गणतंत्र ! पेट्रोलियम उत्पादक शेख -सुल्तान की ये व्यापार ही है,जो उनके कुनबे की सल्तनत की रईसी और तड़क -भड़क का आधार हैं |पर उनकी सत्ता प्रजा को शिक्षा -स्वास्थ्य -रोजगार -खेतीबाड़ी -पशुपालन सुलभ करने से ज्यादा , गगनचुंबी इमारतों की होड ,नखलिस्तान बनाना , है | शाही कुनबे मे हवाई जहाज - और मंहगी मंहगी कारे घड़िया खरीदने की होड है | पर ये सब राजतन्त्र है , गणतंत्र नहीं | यंहा नागरिक तो उदेश्य ही नहीं है | वह तो '’प्रजा'’ है | अब विश्व के सबसे बड़े गणतंत्र संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत की बात करे |



अमेरिका मे नव निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प -खुले आम एक व्यापारी है | उनके पूर्व हुए राष्ट्रपतियों मे कोई भी खुले आम व्यापारिक समूह का संचालन नहीं करता था | परंतु ट्रम्प '’’’लाभ'’’ को परम उद्देश्य मानते है | इसीलिए दुनिया के सबसे अमीर व्यापारी इयान मसक उनके न केवल सहयोगी है वरन उनकी सरकार के महत्वपूर्ण अंग है | अब मशक का मुख्य उद्योग या व्यापार '’टेसला '’ कार है , जिसको ड्राइवर विहीन बनाने की उनकी कोशिक्षे नाकाम हुई है |फिर उनका पुराना शागल है "”” मंगल ग्रह हमारा है "” | अंतरिक्ष में उनकी गतिविधिया अमरीकी सरकार के "”नासा" संगठन की प्रतिस्पर्धी है | मश्क के खिलाफ लगभग बीस से अधिक मामले जांच और अदालतों में लंबित है |खुद राष्ट्रपति ट्रम्प भी अनेक आपराधिक मुकड़में में आरोपी है | वैसे ही उनके मुख्य सलाहकार और अजीज की भूमिका मे इयान मस्क है , जिनके खिलाफ उनकी कार कंपनी द्वरा प्रदूषण - तथा कर्मचारियों संबंधी श्रम कानूनों तथा नासा प्रबंधन के साथ अनेकों मामले विवादित हैं | ट्रम्प ने अपने संमधी ,जो की कर अपवंचना के अपराधी है ,उन्हे पहली फुरसत मे फ्रांस का राजदूत नामित किया हैं |अपने रिश्तेदारों पर ट्रम्प की "”कृपा "” इसलिए है क्यूंकी "”वे पूर्णतया स्वामिभक्त हैं | रिपब्लिकन पार्टी का नेत्रत्व ट्रम्प की भावी नियुक्तियों मे खुद के प्रति वफादारी को एकमात्र मुद्दा बनाए जाने से बहुत चिंतित है |क्यूंकी राष्ट्र और संघ की व्ययस्था चलाने के लिए योग्यता और अनुभव की अनदेखी आगामी चुनवो में भारी पड सकती है |

क्यूंकी संयुक्त राज्य अमेरिका एक गणतंत्र है ---- कोई खाड़ी का तेल उत्पादक रियासत नहीं , जान्ह जनहित कभी भी प्रथम प्राथमिकता नहीं रही | फिर अमेरिका का एक संविधान है --जिसमे "”नागरिकों "” को अपनी रक्षा के लिए विसहेस प्रविधान किया गया हैं |अब यह तो वक्त की नजाकत है की अमेरिकी मतदाताओ ने मजबूत नेता की चाह मे एक व्यापारी को राष्ट्र की कमान दे दी है | जिसके लिए "”लाभ "” और वफादारी ही सर्वोपरि है | अब ऐसे मे भगवान ही भला करे अमेरिकियों का !1



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