एक राष्ट्र एक चुनाव क्यू ?
मध्यावधि चुनावो का जिम्मेदार कौन ? सत्ता की लालसा का शार्टकट !
भूतपूर्व राष्ट्रपति कोविद के नेत्रत्व में एक राष्ट्र –एक चुनाव के लिए सरकार को सलाह देने
के लिए समिति का गठन हो गया है | विपक्ष के नेता अधीर रंजन को नामित किया गया था , परंतु उन्होने
समिति के उदेश्य और उसके गठन की प्रक्रिया
से विरोध जताते हुए समिति में शामिल होने से इंकार कर दिया है |सरकार ने समिति में भूतपूर्व लोगो
को स्थान देकर इसे सम्मानित और विश्वसनीय बनाने
की पूरी कवायद की है ---परंतु समिति की सिफ़ारिशे क्या होगी ,
यह सबको समझ में आ गया है | सरकार की नियत लोकतन्त्र और संघवाद को सुरछित रखने के ढोंग को जनता समझ रही है | इसी लिए ना केवल “”इंडिया”” गठबंधन वरन अन्य
राजनीतिक दल भी सरकार की पहल से दूर है ,क्यूंकी
देश के अन्य राजनीतिक दलो से इस बारे में कोई सलाह – मशविरा नहीं किया गया है |
अब बात करते है की देश के प्रथम चुनावों 1952 से -57
और 62 तथा 1967 तक लोकसभा और राज्य विधान सभा
के चुनाव साथ –साथ ही हुए | पर 1967 में “” गैर कांग्रेस वाद
के नारे के साथ कुछ कांग्रेस
जनो ने सत्ता या यू कहे की मुख्य मंत्री पद के लिए पार्टी से अलग हो गए | उत्तर
प्रदेश में चौधरी चरण सिंह ने तत्कालीन मुख्य मंत्री चंद्र्भानुगुप्ता की सरकार से इस्तीफा देकर जन कांग्रेस् की स्थापना की | और संयुक्त विधायक दल का गठन हुआ
| जिसमे तत्कालीन जनसंघ
[ वर्तमान बीजेपी के पूर्वज ] समाजवादी पार्टी , कम्युनिस्ट
पार्टी शामिल थे | फलस्वरूप राज्य में पहली गैर कॉंग्रेस सरकार का गठन चरण सिंह
के नेत्रत्व में हुआ | कुछ ऐसा ही मध्य प्रदेश में पंडित द्वारका प्रसाद मिश्रा की सरकार से विद्रोह कर के गोविंद नारायण सिंह , राजमाता विजयराजे सिंधिया
के समर्थन से मुख्य मंत्री बने | बिहार
में महामाया प्रसाद सिंह ने काँग्रेस से विद्रोह
कर विरोध दलो से हाथ मिला कर मुख्य मंत्री बने | उड़ीसा में हरे क्राइष्ण मेहताब की कांग्रेस सरकार को दल बदल से गिराकर विश्व नाथ प्रसाद मुख्य मंत्री बने | दक्षिण के राज्यो में दल बदल की बीमारी नहीं लगी थी |
इतना ही नहीं हरियाणा में तो भजन लाल ने सम्पूर्ण विधायक दल से ही
दल बदल करा दिया था --- खुद मुख्य मंत्री बने
रहने के लिए !!!! तो यह है बैक ग्राउंड
जिसके कारण राज्यो में मध्यावधि चुनाव हुए | उसके बाद लोक सभा में में भी मोरार
जी देसाई ,, फिर चरण
सिंह ये सब इन्दिरा
गांधी जी के समय में बने | फिर राजीव गांधी की सरकार से दलबदल
कर विश्वनाथ प्रसाद सिंह आई के गुजराल
, देवगौड़ा और अंत में
चंदरशेखर बने | जिनके समय में राजीव गांधी जी की हत्या हुई | ,
यह इतिहास
है जिससे आरएसएस और उसके पालित पोषित बीजेपी देश की जनता से छुपना चाहते है | उनका कुप्रचार यह है की देश में कॉंग्रेस
ने अच्छा कुछ नहीं किया --- बस मुसलमानो का संतुष्टिकरण किया !!!! अब इन संदर्भों में देखे तो आज जो लोग देश की अखंडता के नाम पर संघवाद को खतम करके तानाशाही लाना चाहते है | संघ के गुरु गोलवलकर की किताब मे भी कहा है की एक
राष्ट्र में अनेक स्तर पर चुनाव अनावश्यक है | शायद संघ
के इसी शिछा के आधार पर नरेंद्र मोदी सरकार केंद्र
को सर्वशक्तिमान बना कर उस पर अनंत काल तक काबिज रहने की तमन्ना रखती है | जिसके लिए वह अपने राजनीतिक धन कोश [ जो की अनेक सवालिया स्थानो और कारणो से इकथा किया गया है ] और “” बजरंगी दल जो की ब्राउन शर्टर की तरह – जन मानस को डरा धमका
कर विरोध के स्वर और सवाल पूछने वालो की बोलती
बंद करता है ---- इनके बल पर चुनाव जीतने की
कवायद हैं |
कम
से कम मौजूदा नरेंद्र मोदी सरकार को तो यह नैतिक अधिकार है नहीं की वे चुनाव की शुचिता का मुद्दा उठाए --- क्यूंकी जितना भद्दे तरीके से उनकी पार्टी ने मध्य प्रदेश में में निर्वाचित कमलनाथ सरकार को काँग्रेस के विधायकों को खरीद कर अपदस्थ किया --
वह उनके पाखंड को उजागर करता है | फिरा दुबारा महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की
सरकार को गिरने के लिए शिव सेना में टूट फुट कराई और जिस प्रकार इस गैर कानूनी कवायद में वनहा के राज्यपाल कोशियारी जी को इस्तेमाल किया – वह लोकतन्त्र के
लिए कलंक है | शिव सेना के बागी विधायकों को मुंबई से गुजरात फिर आसाम हवाई जहाज से ले जाकर पाँच तारा होटल में टिकाया गया , उसके
खर्चे का हिसाब ना तो हवाई कंपनी ने ना तो होटल वालो ने बताया | स्वाभाविक
है की नरेंद्र मोदी की ईडी और सीबीआई से परेशान होने का भय , सच को उजागर होने नहीं देता
|
अब इस घटना
चक्र के आधार पर नरेंद्र मोदी सरकार के इस पैंतरे को पाखंड से ज्यदा और कुछ नहीं हैं |
बॉक्स
गैर
बीजेपी राजनीतिक दलो के गठ बंधन के वीरुध अब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ भी खुल कर आ गया है | इसका अर्थ यह है की की गठबंधन को आरएसएस
और उसके 100 से अधिक आनुषंगिक संगठन , जिनमे बीजेपी और भारतीय
युवा मोर्चा तथा विध्यर्थी परिषद भी शामिल
है | संघ के सरसंघ चालक
मोहन भागवत ने अभी कहा है की ---- लोगो को देश का नाम इंडिया
नहीं कहना चाहिए – वरन भारत कहना चाहिए
| आगे उन्होने
कहा की देश में रहने वाला हर एक व्यक्ति भारतीय
है | आगे उन्होने ने कहा की देश में रहने वाले सभी “” हिन्दू “” है चाहे वे किसी मत के उपासक हो |
अब सर संघ चालक को देश को इंडिया कहे
जाने पर “” तकलीफ “” है और सभी को हिन्दू मानने
की सलाह है | सवाल है की अगर देश को इंडिया के स्थान पर भारतीय कहने का ज़ोर है तब यानहा के लोगो को हिन्दू क्यू कहे ? क्यू नहीं
उन्हे भारतीय ही कहे !!! लेकिन इस तर्क से
भागवत जी की हिन्दू राष्ट्र की टेक को नुकसान पहुंचेगा | लेकिन
एक बात स्पष्ट है की अब नरेंद्र मोदी और उनकी भारतीय जनता पार्टी के साथ
उनकी मूल संस्था आरएसएस भी इस गठबंधन के आविर्भाव
से चुनावी धरातल पर
पराजय की ध्वनि को सुन रही है | इसका अर्थ है की गठबंधन की हंसी उड़ाने वाले अमित शाह और उनके साथी घबरायर हुए है | हो सकता है
की अमित शाह आगामी विधान सभा चुनावो में
पार्टी
के सेनापति की जगह छोड़ दे | क्यूंकी मध्य प्रदेश और छातीस गड़ और राजस्थान में पार्टी
के आसार बहुत धूमिल है |
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