सांप्रदायिक उन्माद
कश्मीर और मणिपुर
सरकार की
भेद भाव की नीति ही दोनों स्थानो में
अशांति का कारण
मणिपुर में “” शांत मातेई इलाके में “” भीड़ द्वरा
बीजेपी के प्रांत अध्यक्ष के निवास
पर हमला और आगजनी की घटना
सबूत है की प्रांत की सरकार का हालत का आंकलन कितना गलत है ! हालांकि इस निवास में हमले के समय कोई नहीं था
इसलिए जान की कोई हानी नहीं हुई , परंतु इस वारदात से यह साफ हो गया की अब मातेआइ समुदाय भी
सरकार से आशंतुष्ट है | क्यूंकी
भीड़ मे इसी समुदाय के लोग थे ! अब
गृह मंत्री अमित शाह ने श्रीनगर के पुलिस
अधीक्षक बलवाल को मणिपुर भेजा गया है | इस
हवाई नियुक्ति से क्या कोई नीतिगत परिवर्तन संभव है ? शायद नहीं , क्यूंकी
काश्मीर में प्रदेश की पुलिस के
अलावा केन्द्रीय पुलिस बल तथा सेना की टुकड़ियों की मौजूदगी भी है | अभी हाल में ही आतंकवादियो से
मुठभेड़ में सेना के एक मेजर और कैप्टन तथा
पुलिस का उप पुलिस अधीक्षक शहीद हुए थे | यह हालत तब है जब की वनहा की आबादी
के अनुपात में सशष्त्र बलो की उपस्थिती हजार पर एक है |
काश्मीर और मणिपुर में एक समानता है की दोनों ही पर्वतीय छेत्र है , मौसम लगभग एक जैसा ही है | परंतु जनहा कश्मीर में आतंकवादियो को केवल मुसलमानो मे खोजा
जाता है --- वनही मणिपुर में
सांप्रदायिक उन्माद से भरे माइतेई
और कुकी दोनों भी हिन्दू और ईसाई धर्मो में विभाजित है | मणिपुर में लगी यह आग अब राज्य के बाहर भी फ़ेल गयी है | पहले
नागालैंड में माइतेइ लोगो को नागा जाती के कोप का भजन होना पड़ा था | परिणामस्वरूप मणिपुर के
मुख्यमंत्री विरेन सिंह को नागालैंड की सरकार से आग्रह करना पड़ा था की वे उनके
राज्य के नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करे | परंतु जब जातीय उन्माद हो तब
किसी भी समुदाय की भावना को नियंत्रित करना इतना आसान नहीं होता | अब हाल की घटना आसाम के हलकन्दी
जिले की है ,जिसमे एक कुकी
बैंक मैनेजर पर हमला किया गया , घायल अधिकारी ने बताया की जब वे
बाजार मे ख़रीदारी कर रहे थे कुछ लोगो ने उनको जातीय गाली देते हुए उनसे भाग जाने को कहा , बाद में उनपर हमला करके घायल कर दिया , उनकी चीख
पुकार से भीड़ के आ जाने से अभियुक्त भाग
गए | वे अभी आईसीयू
मे भर्ती है |
पुलिस के अनुसार हमलावर भाग गए और अभी गिरफ्तार नहीं हुए हैं | इन घटनाओ से साफ है की मणिपुर की मतेयाई और कुकी
समुदायो की आपसी नफरत अब राज्य की
सीमा के बाहर भी फ़ेल चुकी है | जैसा की कुछ समय पहले जम्मू में कश्मीरी मुसलमानो चरवाहो और कालीन विक्रेताओ से दुर्व्यहर हुआ था |
जातीय या धार्मिक नफरत किसी भौगोलिक
सीमा तक ही नहीं रहते , यह व्यक्ति के साथ होते है –उसकी भावना और विचार में होते है | यही कारण है की कुछ साल पहले बंगलौर में भी उत्तर –पूर्व
के छात्रों और कामगारों
के साथ स्थानीय लोगो के
नफरती व्यवहार ने वनहा से इन लोगो को
भागने पर मजबूर किया था | तब भी मामला मांस खाने और गैर हिन्दू होने पर ही गैर बराबरी का मामला था | बाद में सरकार ने कोशिस भी की थी ,
परंतु बजरंगियों को पकड़ने में नाकाम रही थी |
अब वर्तमान हालत में भी यही सवाल
है की क्या कश्मीर की ही भांति मणिपुर में भी
फौज और हथियार के जोर पर शांति लायी जा सकती है ? काश्मीर का मसला पाकिस्तान से जुड़ा होने से सत्ताधारी बीजेपी के लिए
हिन्दू – मुसलमान करने से लाभदायक
था –शेस भारत मे , भले ही यह तरकीब कश्मीर में सफल नहीं हुई हो | परंतु देश के
मध्य भाग में या कहे हिन्दी और
अन्य भाषा भाषी लोगो
के लिए---- उत्तर भारत राज्यो के लोग अपनी
शक्ल से ही अलग दिख जाते है | उनमे हिन्दू
या मुसलमान अथवा ईसाई का भेद करना
मुश्किल है |
इसलिए केंद्र के सत्ताधारियों को विचार करना पड़ेगा की धर्म और समुदाय तथा जाति की राजनीति अब चुनव के वोट तक ही सीमित नहीं रही है , वरन अब वह हिंसा
और मार –काट तक पहुँच गयी है | इसके लिए
प्रधान मंत्री और उनके सहयोगीयो को
चुनाव प्रचार तक ही नहीं सीमित रहना होगा , वरन शासन की ओर ध्यान देना होगा |
मोदी और अमित शाह जी जिन दोनों की यह ज़िम्मेदारी
है की देश में शांति –व्यवस्था बनी
रहे ----वे तो बस दिल्ली से उड उड़ कर कभी
मध्य प्रदेश तो कभी राजस्थान या फिर छतीस गड में उतरते है –रैलियो में भाषण देते है | या फिर शासकीय आयोजन में विरोधी दलो को
कटु वचन बोलते रहते है | अपनी बड़ाई और दुसर्रों की बुराई इन लोगो का शगल हो गया है | \
ऐसी हालत में अफसरो के भरोसे शांति व्यवस्था कायम कर पाना
मुश्किल है |
अगर नव नियुक्त पुलिस अधिकारी
बलवाल ने शक्ति प्रदर्शन से
हथियार बंद दोनों समुदायो को दबाने की कोशिस की ---- तब कुछ अनरथ घटने की संभावना ज्यादा है | क्यूंकी काश्मीर में हथियार
केवल गिने – चुने आतंकवादियो के पास ही थे
–परंतु मणिपुर में तो दोनों समुदाय ही
हथियारबंद है , उनके पास पुलिस के समान सभी
हथियार है | यह वैसी ही समस्या है जैसी दशको पूर्व उत्तर
प्रदेश और मध्य प्रदेश में दस्युओ
की थी | वे
दहाई में होते थे ,परंतु उनका आतंक बड़े इलाके को
भयभीत करे रहता था | सैकड़ो सालो से डाकुओ की समस्या का इलाज़ पहले
विनोबा भावे जी डाकुओ का आतम
समर्पण करा कर किया था | फिर बाद मे जयप्रकाश जी ने किया | तब से उत्तर प्रदेश और मध्य
प्रदेश में डाकुओ के गैंग खतम हो गए | परंतु उस समय की सरकारे भी “” ईमानदारी “” से इस समस्या का शांतिपूर्ण
समाधान चाहती थी |
परंतु आज की हालत में मामला केंद्र
के पाले में है |
उनको मालूम है की मणिपुर की पुलिस भी कुकी और माइते
में विभाजित है | उसे कानून से ज्यादा अपनी बिरादरी के प्रति निष्ठा है | ऐसी हालत में स्थानीय पुलिस सहायता से ज्यड़ा समस्या की जड़ है | दूसरी
समस्या है पुलिस से लूटे गये
हथियार की , जिनका इस्तेमाल अब हो रहा है | इन लूटे
गए हथियारों मे सेमी औटोमेटिक हथियार भी है | इसके अलावा म्यांमार से आए
हुए चीन के बने हथियार भी इस्तेमाल भी हो
रहे है | अगर केंद्र सीमा को बंद नहीं करता
तब तक हथियारो की आपूर्ति
जारी रहेगी ----- और जातीय उन्माद
की आग सुलगती रहेगी |
सुलह और शांति तथा सभी पकछो
से बात करके ही राज्य में में व्यासथा कायम हो सकेगी |
बॉक्स
संसद
में बिरला जी का न्याय !
लोकसभा
में सदस्यो के व्यवहार को लेकर कई बार पीठासीन अधिकारी को कड़े फैसले लेने पड़ते है | व्यवस्था के लिए यह जरूरी भी
है , परंतु न्याय का
दंड अपराध के अनुसार होना चाहिए ,
ना की अपराधी की शक्ल देख कर !! परंतु
लोकसभा में ऐसा अनेक बार नहीं होता | पहला उदाहरण
है राहुल गांधी के वक्तव्य के दौरान
जब उन्होने व्यवधान डालने वाले सत्ता पक्ष के सदस्यो से कहा “” डरो नहीं
भाई डरो नहीं “” तब अध्यक्ष जी ने उनको टोकते हुए कहा की सदन में
सभी बराबर है डरो शब्द का इस्तेमाल नहीं करे
!!!
वनही नए भवन में हुए सत्र में जब बीजेपी सांसद विधुडी जी ने बीएसपी सांसद को धर्म के अपमानजनक सूचक शब्द से पुकारा
और
उन्हे देख लेने की धमकी भी दी , तब ना तो सभापति ने कोई कडा फैसला
लेने की हिम्मत दिखाई , और बाद में तो स्पीकर साहब ने मामले को विशेसाधिकार समिति को भेज दिया | नेता प्रतिपक्ष अधीर मुकर्जी के मामले भी “” तुरत – फुरत “” सदन से निकाल दिया गया !!! यह दोहरा मानदंड तकलीफ देने वाला है | उस सदन
में जनहा यह उम्मीद की जाती है की वह ऐसे विधि का निर्माण करेंगे जो सभी भारतवासियों
को एक निगाह से देखेगा |
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