भारतीय सेना एक
सान्स्क्रतिक और धार्मिक एकता की निशानी है
, कोई सशस्त्र बल नहीं !
अग्निपथ योजना सरकार ने देश के करोड़ो बेरोजगार
युवाओ को नौकरी देने के लिए लिए शुरू करने
के उद्देश्य से घोसणा की , परंतु देश के नौजवानो का आक्रोश पूरे उत्तर भारत और कर्नाटक में उनके आक्रोश का शिकार
रेलगाड़ी और बस हुई हैं | मोदी सरकार का किसी भी वर्ग
को “”तथाकथित”” लाभकारी योजना हमेशा आनदिलन
और -आक्रोश को जन्म देती हैं | क्यूंकी ये सभी योजनाए चंद लोगो के सुझावो पर निर्मित होती हैं , जिसे एक व्यक्ति अपनी “”मर्ज़ी और सनक “ से लागू करने का हुकुम देता हैं | आज जैसा अशांति का माहौल राजस्थान
-हरियाणा – बिहार – मध्य प्रदेश उत्तर प्रदेश और कर्नाटक के नगरो में दिखाई पड़ रहा है , कुछ वैसा ही हाल खेती किसानी कानुन
के लागू किए जाने के समय भी हुआ था | आखिर ऐसा क्यू होता हैं ? क्यूंकी सरकार में बैठे हुए अफसर और -नेता अपनी “”सोच “” और मर्जी से समाज के वर्गो के “”लाभ
को “” रेखनकित करते हैं | उन्हे देश की बहुसंख्यक लोगो की जरूरतों और जज़बातो से कोई
मतलब नहीं हैं | फलस्वरूप शासक के उद्देश्यों और जन आकांचाओ में मेल नहीं होता !
आइये पहले
भारतीय सेना के गठन के आधार को समझते हैं | हमारी सेना “”मात्र सशस्त्र बल नहीं है वरन यह देश के विभिन्न हिस्सो में बसे
जातीय समूहो और उनके “”आस्था और विशवास “” का संगम हैं | जिस प्रकार मोदी सरकार के भारतीय रेलवे को
टुकड़ो – टुकड़ो में “”लीज “” पर सेठो को देने के पहले --- रेलवे में भी यह देश की विभिन्न
भागो और जातियो और समूहो का संगम देखने को मिलता था | छोले -भटुरे से लेकर -पोहा और इडली -डोशा
मिलता था | अब तो यात्री की मर्जी नहीं वरन “”सेठ “” के मैनेजरो की “”लागत और मुनाफा “ संसक्राति ने निगल लिया हैं
|
भारतीय सेना
के वेतन और भत्तो और पेंशन की बदती राशि को भयावह बताते हुए कुछ आईएएस अफसरो ने सेना
को भी “”काटने – छटने “ की कवायद ही अग्निपथ योजना हैं |
राजनीति शास्त्र और सैन्य शास्त्र में सेना को राज्य की प्रथम
आवश्यकता बतया गया हैं | जो वाह्य आक्रमण और आंतरिक सुरक्षा की जिम्मेदार होती हैं | देश में प्रकरतीक आपदाओ में भी सेना का प्रयोग देखा जाता रहा हैं |
जब मैं कहता हूँ की
भारतीय सेना किसी अन्य सशस्त्र बल की तर्ज़ पर नहीं है , जनहा बटालियन के नंबर होते हैं | भारतीय सेना में रेजीमेंटों का गठन विभिन्न छेत्रों की जुझारू जातियो या समूहो के आधार पर गठित की गयी हैं
| हर रेजीमेंट
का अपना एक “”कलर”या झण्डा होता हैं | उसकी अपनी पहचान उसकी टोपी और –युद्ध घोष
तथा उस रेजीमेंट के आराध्य से की जाती हैं | जो सीआरपीएफ़ -बीएसएफ़ – या अन्य केंद्रीय
बालो में नहीं होती हैं | एक छेत्र और वर्ग से आने के कारण जवानो में जो आत्मीयता बनती हैं
-----वह युद्ध के समय एक -दूसरे पर अपनी जान
को भरोसा बनाती हैं | जिसके फलस्वरूप सैनिक अपने साहब
के लिए जान -जोखिम मे डालता हैं | उनमे अपनी “पलटन” का इतिहास और विगत में इसके जवानो और
अफसरो को मिले पदक उसके हौसले को ज़िंदा रखते है |
पलटन में हिन्दू मुसलमान का भेद नहीं होता है ----सभी अफसर और जवान “”अरदास – नमाज -और आरती में शामिल होते हैं | यह केंद्रीय बालो में नहीं होता |
वे परेड और मेस में तो साथ रहते हैं
----परंतु उनमे सीख – राजपूत – महर – जाट- अगर जाती आधारित हैं तो बिहार -कुमायूं
-गड़वाल और मद्रास सीपर्स आदि इलाकाई आधार पर रेजीमेंट का गठन हुआ हैं |
इन सबके अपने – अपने आस्था के अवसर हैं , जो इन सभी विभिन्नताओ को बांध के रखती हैं | जबकि राष्ट्रीय राइफल या अग्निवीरों में यह भावना नहीं पनपेगी | क्यूंकी इनके पास पलटन के शौर्य और वीरता
के जातीय अभिमान ---का भाव गैर हाजिर रहेगी |
इस जातीय और और इलाकाई गौरव ही
– उन छेत्रों के नौजवानो को प्रेरित करता हैं | वे सालो साल भागदौड़ और विभिन्न करतबो को
कर के सेना में भर्ती के लिए तैयार करते हैं | विगत दो सालो से सेना की भर्ती नहीं होने
से बिहार और यू पी में काफी आंदोलन भी हुए
है | जिसके बाद सरकार ने सेना में उन लोगो की भर्ती शुरू की “” जिनके रिश्तेदार फौज में है या थे “” ! साधारण
भर्ती फिर भी नहीं शुरू हुई !! ईस मध्य
सरकार ने अग्निपथ योजना की घोसणा की | ऊपर लिखे हुए कारणो से ही अग्निवीर योजना का सफल होना भारतीय सेना के मनोबल और एकता और जज़्बे को तोड़ देगा |
इस संदर्भ में देश के प्रथम सी
डीएस का बयान देखा जाना चाहिए , जिसमें उन्होने कहा था की सेना “” कोई नौकरी नहीं वरन एक चुनौती हैं “ जिसके
लिए सेना में भर्ती होने वालो को तैयार रहना
चाहिए } यह कोई
नौकरी नहीं है “”
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