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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Feb 7, 2021

 

ममता की निर्ममता बनाम - टिकरी के किसानो का पानी पाखाना बंद !

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प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी बंगाल में चुनाव प्रचार के दौरान मुख्य मंत्री ममता बनर्जी पर आरोप लगाया की "” बंगाल को ममता जी ने निर्ममता दिया "” केंद्र {यानि मैं खुद } यानहा के इन्फ्रा स्ट्रकचर के लिए चिंतित हैं ! यह सुन और उन्हे बोलते देखकर हंसी ही आती हैं | क्योंकि यह मोदी सरकार ही हैं जिसने अहिंसक आंदोलनकारी किसानो को पानी और सार्वजनिक सुविधा भी "””बंद करा दी हैं "” !! किसानो और राजधानी के बीच 11 स्तरीय सुरक्षा अवरोध बनाने वाली सरकार के मुखिया दिल्ली से हज़ार मील दूर जाकर दूसरों पर कैसे आरोप लगाने की नैतिकता दिखा रहे हैं | इसे ही फारसी में कहा गया है "” खुदरा फजीहत -दीगरा नसीहत "” | जो केंद्र सरकार एक लाख आंदोलन किसानो को पानी -बिजली और सार्वजनिक सुविधाओ से वंचित करने का प्रशासनिक फैसला करे , वह हलदिया में जा कर निर्ममता का आरोप लगाए | जो 145 आंदोलन करियों की मौत पर संवेदना के दो शब्द ना बोल सका हो – वह बंगाल में जा कर 130 संघ और बीजेपी के चवन्नी छाप कार्यकर्ताओ की मौत का जिम्मेदार बीजेपी अध्यछ नड़ड़ा ममता बनर्जी की सरकारो बताते हैं ! तब 145 किसानो की मौत { 6 लोगो द्वरा केंद्र के रुख के विरोध में आतमहतया जोड़ कर } का जिम्मेदार मोदी सरकार को क्यू ना माना जाये ? पर आतम मुग्ध केंद्र सरकार और उसके समर्थक किसान आंदोलन को "”राष्ट्र विरोधी - खालिस्तानी और पाकिस्तान समर्थक लोगो "” की हरकत बता रहे हैं | जिस विकास का "”वादा :”” करके मोदी जी चुनाव प्रचार करते हैं ----उसकी भी परिभाषा बदल जाती हैं | पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ते समय नरेंद्र मोदी जी ने भारत में विकास का गुजरात माडल की बात चीख -चीख कर की थी | परंतु आज तक उस का "” खाका "” देश के सामने नहीं ला पाये | अब विकास की जगह वे इन्फ्रा स्ट्रक्चर की बात करने लगे हैं --- वह भी तब जब की भारत सरकार सार्वजनिक उद्यमों को बेच रहा हैं , अथवा अपने पूंजीपति संरक्षको को दे रहा हैं | फिर चाहे वह रेलवे हो हवाई अड्डे हो --लाल किला को लिज़ पर देना हो अथवा तेल उत्पादक उद्यमों की बात हो {जो लगातार लाभ दे रहे हैं } वह इसलिए की जिन दो धन कुबेरो के लिए क्रशि के तीन काले कानून लाये गाये उनके समर्थन का उधर चुकाया जा सके |

मोदी जी पर फिल्म अभिनेता अक्षय कुमार का वह डायलोग कुछ फिट बैठता हैं "” जिसमें वे कहते हैं "” की जो मैं कहता हूँ -वह मैं नहीं करता हूँ और जो मैं नहीं कहता वह जरूर { बदला हूया } मैं करता हूँ ! “” अगर इस कसौटी पर विगत दो लोक सभा चुनावो के वादे

परखे जाये तो उनमे "” नोटबंदी ---जीएसटी – देशबंदी "” का कोई हवाला नहीं था , पर ये सब हुआ और 130 करोड़ के भारत ने सहा भी और भुगता भी ! अब ऐसे नेता और उसकी पार्टी से बंगाल क्या उम्मीद कर सकता हैं , यह वनहा के लोगो को सोचना होगा !

मात् भाषा में मेडिकल और इंजीनेयरिंग की शिक्षा ::-------

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मोदी जी अपने मन की बात कह तो देते हैं ----पर वे जमीनी यथार्थ को भूल जाते हैं | आसाम की चुनाव रैली में भाषण करते हुए उन्होने कहा " मैं चाहता हूँ की हर प्रदेश में एक मेडिकल कालेज और एक इंजी नियरिंग कालेज ऐसा हो जनहा मात्भाषा में शिक्षा दी जाये !! अब हक़ीक़त यह हैं की बड़ी बड़ी बात करने से हिन्दी में मेडिकल और इंजीनेयरिंग की पढाई अभी तक तो संभव नहीं हो पायी | इतना ही नहीं अटल जी के नाम से राष्ट्र भाषा के उन्नयन के लिए गठित विश्वविद्यालय में भी {भोपाल स्थित } कोई ऐसी प्रगति की बात तो छोड़ो विभिन्न संकायो में आवंटित सीटो में विद्यार्थी ही नहीं मिल पा रहे हैं | हाँ हैडआफ डिपार्टमेन्ट --रीडर - प्रोफेसर आदि की नियुक्ति तो हो चुकी है --- पर सवाल है शिक्षा किसको दे ? यह विश्व विद्यालय पिच्छले अनेक वर्षो से काम कर रहा हैं |आज भी मानव संसाधन मंत्रालय जो की शिक्षा का देश में करता -धर्ता है , वह भी आज अङ्ग्रेज़ी में ही मेडिकल और प्राविधिक संस्थानो से अङ्ग्रेज़ी में ही पत्राचार करता हैं | हालत यह है की राज्यो में नेशनल टेक्स्ट बुक कार्पोरेशन की किताबे सभी राज्यो के विद्यालयो में प्राइमरी - माध्यमिक और हाइ स्कूल में मिलती नहीं हैं | अगर केंद्र चाहे तो देश के सभी विद्यालयो को एनबीटी की किताबे लेना अनिवार्य कर सकता है , इससे पालको की बहुत सुख मिलेगा | क्योंकि अभी उन्हे स्कूल और बूक सेलर के चक्कर काटने पड़ते हैं | जब देश में हिन्दी को सर्वदेशी राष्ट्र भाषा बनने में अनेक डिक्क्ते हैं ------ऐसी हालत में नार्थ ईस्ट यानि उत्तर पूर्व के राज्यो में यह कल्पना बहुत मधुर लगती हैं की अब फड़ाई "” मात्भाषा में होगी "” परंतु आज़ादी के सत्तर साल बाद भी कोई समाधान नहीं निकला हैं | अब ऐसे में उत्तर पूर्व की जन जातियो को सपने दिखाना एक अच्छा कदम नहीं होगा | क्योंकि यानहा बस्ने वाली जन जातिया "अपनी पहचान और पोशाक तथा परम्पराओ के लिए बहुत भावुक होती हैं | अगर उन्होने आपके कथन पर विश्वास कर लिया और वह भरोसा पूरा नहीं हुआ , तब "”हिंसा "” ही फैलेगी , कम से कम इतिहास तो यही सिखाता हैं |

इसलिए मतदाता को बड़े -बड़े सपने दिखाना हो सकता हैं चुनाव में कुछ सफल बना दे -----पर बाद में दावो को पूरा करने न निकाल जाए ! ऐसा होने पर भाषा को लेकर आंदोलन आसाम में हो चुका है | छात्र आंदोलन से सरकार सम्हालने की मिसाल आसाम ने ही दी हैं |सबसे ज्यादा राजनीतिक समझौते भी बीजेपी ने इनहि इलाको में किए हैं | और सरकार में पिछली सीट पर बैठे हैं |

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