हल्ला तिरंगे के अपमान का - आरोप भीड़ एकत्र करने का !!!!
26 जनवरी को किसानो के ट्रैक्टर मार्च के दौरान लाल किले पर एक खाली "”ध्वज दंड "” पर निशान साहब फहराते हुए खबरिया चैनल पर जिस आदमी को पहचाना गया --वह था दीप संधु एक पजाबी गायक | जिसकी गिरफ्तारी पर दिल्ली पुलिस ने एक लाख रुपये का इनाम घोषित किया था | उसे बड़ी आसानी से हरियाणा के करनाल से गिरफ्तार कर लिया गया |26 जनवरी से लेकर 28 जनवरी तक खबरिया चैनलो के एक धडे ने - आरोप लगाया की आंदोलनकारी किसानो ने राष्ट्रिय ध्वज तिरंगे का अपमान किया हैं !और राष्ट्रीय धरोहर लाल किले में जबरिया प्रवेश किया हैं ! |
जबकि चैनलो में दिखये गए वीडियो क्लिप में एक खाली ध्वज दंड पर निशान साहब फहराया था |राष्ट्रीय ध्वज दूसरे ओर एक बड़े से कंगूरे पर फहरा रहा था ! जिसे साफ - साफ देखा जा सकता हैं | परंतु सरकार -दिल्ली पुलिस - बीजेपी और केंद्रीय नेताओ के बयानो में यह साफ -साफ ध्वनित हो रहा था की ----आंदोलनकारी किसानो के एक भाग ने ही यह काम किया हैं | मीडिया का एक भाग इस घटना को अंतराष्ट्रीय षड्यंत्र बता रहा था | तब से लेकर अब तक आन्दोलनकारी किसानो को -खालिस्तानी --- अढतिये दलाल - रईस किसानो का जतथा - फिर पाकिस्तान के हाथ में खेलने --और नक्सल वादी -वाम पंथी और अंत में राष्ट्र द्रोही तक बताया गया | जब अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरणविद ग्रेटा थंबर्ग तथा अमेरिकी उप राष्ट्रपति कमला हैरिस की भांजी ने किसानो के आंदोलन को समर्थन का बयान दिया | तब सरकार का विदेश मंत्रालय खुद ही सामने आकार नाराजगी जताने लगा , और इस बयान बाज़ी को भारत के "”आंतरिक मसलो में बाहरी शक्तियों का हस्तकछेप बताया "\आंदोलन को भड़काने और अपुष्ट घटनाओ को प्रसारित करने के लिए छ लोगो जिनमें नेता और पत्रकार थे उन के विरूध गिरफ्तारी का वारंट निकाल दिया | ये लोग थे शशि थरूर -राजदीप सर देसाई आदि | वह तो गनीमत थी सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पुलिस को दो हफ्ते तक गिरफ्तारी नहीं करने का आदेश दिया |
अब आते हैं मुख्य मुद्दे पर – 26 जनवरी के बाद आंदोलनकारी किसान लाल किले की घटना के बाद बैक फुट पर आ गए थे | क्योंकि इस घटना ने समूचे किसान आंदोलन के अहिंसक रूप को बदनाम कर दिया था | उस दिन बार -बार किसान नेताओ ने टीवी चैनलो के सामने सफाई देते रहे की हम लोगो का लाल किले की ओर जाना ही नहीं था | उस दिन भी कुछ नेताओ ने नाम लेकर इस घटना को सरकार द्वरा प्रायोजित बताया था | क्योंकि आंदोलनकारी जत्थो को निर्धारित मार्ग से जाने का निर्देश था | पर संधु और उसके साथी कुछ धमाका करने के मूड में थे | क्योंकि उनलोगों को लगता था की आंदोलन की कमान "”नरम पंथियो "” के हाथ में हैं जबकि इसे "”चरमपंथियो "” के हाथो में होना चाहिए |
खैर अब उसने खुद ही मंजूर कर लिया हैं की वह किसी भी किसान के जतथे में नहीं था |
लेकिन अब यानहा घटनाओ ने यह साबित कर दिया की दिल्ली पुलिस और केंद्र सरकार तथा उसके समर्थको ने ""किसान आंदोलन को लेकर हिंसक वारदाते करने की जो बात काही थी आरोप लगाए थे --वे सब के सब बेबुनियाद थे |
अव्वल तो तिरंगे का अपमान उस दिन हुआ ही नहीं था ! क्योंकि तिरंगा जनहा फहरा रहा था वह स्थान दूर था -जनहा दीप स्ंधु ने निशान साहेब फहराया था | अब यह बात दिल्ली पुलिस की कारवाई से साबित होती हैं -की मामला सिर्फ लालकिले में "””भीड़ एकत्र का था "”” जैसा की दिल्ली पुलिस ने अदालत में आरोप पत्र में बताया हैं | अगर राष्ट्रीय ध्वज का अपमान किया गया था , जैसा की दिल्ली पुलिस दावा कर रही थी ------तब दीप सिंधु की गिरफ्तारी नेशनल फलैग एक्ट में भी की जानी थी ! पर ऐसा ना करके भीड़ एकत्र करने का आरोप लगाने का अर्थ हैं की "”””मामले को हल्का करना "” ? आखिर क्यू ऐसे व्यक्ति के साथ ढील दी जा रही हैं ? जिसने किसानो के दो माह से अधिक से चलने वाले शांति पूर्ण अहिंसक आंदोलन को बदनाम करने का काम किया ? यह तभी हो सकता हैं -जब वह आंदोलन में सरकार का घुसपैठिया हो !
यह शंका इसलिए बलवती होती हैं की ----- जिन आसान दफाओ में गिरफ्तारी हुई हैं , और रिमांड भी 14 दिन की जगह सात दिन का ही पुलिस द्वारा मांगा गया | वह इशारा करता हैं --की --- भले ही अभी सबूत नही मिल पाये , परंतु यह लगता हैं की दीप संधु और उसके साथी सरकार की किसी एजेंसियों के लिए किसानो में घुस कर काम कर रहे थे |
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