आखिर
घर लौट रहे मजदूरो से -रेल
का किराया कौन वसूल रहा हैं
???
सभी
राज्यो की सरकारो ने अपने -
अपने
यहा के मजदूरो को वापस लाने
के लिए केंद्र से रेल चलाने
का आग्रह किया था ,
उत्तर
में रेल्वे ने "”
श्रमिक
ट्रेन "”
चलायी
|
उनमें
शारीरिक दूरी बनाए रखने के
लिए नियत सवारियों की संख्या
से कम लोगो को बैठने का फैसला
किया |
परंतु
मुंबई से -लखनऊ
के लिए चली पहली ट्रेन में
बैठे लूटे -
पिटे
मजदूरो से 350
/- सबसे
वसूला गया !!
जब
अखबारो में इस बारे में टिकट
दिखाते मजदूरो ने बयान दिया
की किस "”प्रकार
उनसे मुंबई में किराया वसूला
गया ,
तब
राज्य सरकारो ने ताबड़तोड़
घोसणा करना शुरू कर दिया की
हम "””
इन
घर लौटने वालो मजबूर मजदूरो
से कोई किराया नहीं लिया जाएगा
!
मजबूर
होकर रेल्वे ने सफाई पेश की
वे तो केवल नियत स्थानो के
लिए ही टिकट मजदूरो को दे रहे
हैं !
पर
पहली बार में उन्होने इस तथ्य
का ज़िक्र नहीं किया की उन्होने
पैसा वसूल नहीं किया !
बाद
में सपलीमेंटरी जवाब में
उन्होने कहा की वे तो "”राज्य
सरकारो को टिकट दे रहे हैं !
पर
वे इसका जवाब नहि दे पाये की
-आखिर
मुंबई में इन मजदूरो से किस
अधिकारी ने किराया वसूला था
?
क्या
वह महराष्ट्र सरकार का अधिकारी
था ?
क्या
उसे किराया वसूलने का अधिकार
रेल्वे ने अथवा /
राज्य
सरकार ने लिखित आदेश दिया था
?
इस
सावल का कोई जवाब नहीं मिला
फिर
दूसरा मामला नासिक से --दानापुर
की श्रमिक स्पेशल ट्रेन का
सामने आया जिसमें भी मजदूर
यात्रियो से 715/-
प्रति
यात्री की दर से किराया वसूला
गया था !!!
यानहा
भी वही सवाल पर जवाब ना तो
रेल्वे बोर्ड दे रहा हैं नाही
केंद्र सरकार की ओर से कोई
सफाई आई ?
हाँ
रेल्वे के प्र्वकता ने मजदूरो
के बयान के उत्तर में इतना ही
कहा की रेल्वे ने किसी से भी
किराया नहीं वसूला !
पर
इसका जवाब वे नहीं दे पाये
/पायी
की मजदूरो द्वरा दिखाये जा
रहे टिकट तो रेल्वे द्वरा ही
जारी किए गए हैं !
बस
यही रहस्य नहीं समझ में आ रहा
की कोई अन्य कैस रेल्वे के
टिकट जारी कर सकता हैं ?
क्या
ये जाली टिकट थे !
जिन
पर इन लोगो ने यात्रा की !
क्या
ट्रेन चलने से पूर्व क्या
अधिकारियों ने इसकी जांच नहीं
की थी ?
फिलहाल
इस विवाद से इना तो हुआ की राज्य
सरकारो ने अपने खरचे से इन
परवासी मजदूरो को लाने का ऐलान
किया |
कुछ
ने तो अपनी राजधानियों में
कंट्रोल रूम भी बना दिये !
मजदूरो
से आग्रह किया गया की वे अपना
रेजिस्ट्रेशन दिये हुए नंबरो
पर कराये !
वाह
!
जब
काँग्रेस अध्यछ सोनिया गांधी
ने बयान देकर पार्टी द्वरा
इन मजदूरो का किराया भरे जाने
का ऐलान किया तब ,
मोदी
सरकार भी हरकत में आई |
एक
विज्ञप्ति में कहा गया की
रेल्वे किराए का 85%
भाग
भारत सरकार देगी और 15%
भाग
राज्य सरकारो का होगा !
पर
अभी भी यह स्पष्ट नहीं हुआ हैं
की जिन 32
श्रमिक
ट्रेन चलायी जानी हैं ---उस
मैं इन मजदूरो को कैसे जगह
मिलेगी !
क्योंकि
किसी भी राज्य सरकार ने
महाराष्ट्र या गुजरात में
जिन स्थानो से ट्रेन चलनी हैं
वनहा ना तो कोई ऑफिस बने हैं
और नाही कोई बड़ा अफसर वनहा
तैनात हैं !
लगता
हैं की संभि बड़े अफसर कोरोना
के डर के मारे अपना आफिस नहीं
छोडना चाहते हैं ,
और
ना तो कोई जन प्र्टिनिधि या
मंत्री ही वनहा जाकर इनको
वापस लाने की व्यसथा देखि हैं
!!
उधर
बसो में भी किराए की लूटमार
मची हैं ,
उत्तर
प्रदेश के कुछ मजदूरों ने तीन
बसे की इन 110
लोगो
ने इन बसो को 1
लाख
60
हज़ार
और 1
लाख
70
हज़ार
किरे भरा !
पर
मध्यप्रदेश की सीमा पर इनकी
बसो को रोक दिया गया !
इतना
ही नहीं बस वाला इन सबको आधी
दूरी में ही छोड़ कर चला गया !
सीमा
पर इने बताया गया की उत्तर
प्रदेश सरकार ने बाहर से आने
वाले मजदूरो को राज्य में
प्रवेश देने से इंकार कर दिया
हैं !
जैसे
वे सब बंगला देशी अवैध नागरिक
हो !
किस
प्रकार एक पूर्व कांग्रेसी
विध्यक ने गाव वालो की सहायता
से इन भूखे -प्यासे
लोगो को भोजन का इंटेजम कराया
!
केंद्र
सरकार को यह तो अपनी "”एडवाजरी
"”
में
राज्य सरकारो को स्पश्स्त
करना था की – वे अन्य राज्यो
से मिलती सीमाओ के समीप इन
लोगो को कुरन टाइन करने का
प्रभाण्ड करते ,
फिर
उन्हे सेर्टिफिकेट देकर उनके
राज्यो को जाने देते ,
परंतु
ऐसा कुछ नहीं हुआ |
सभी
सीमावर्ती चौकियो के आस -
पास
कोई पेड़ या छाया दार स्थान भी
नहीं हैं ,
जनहा
इन हजारो प्रवासी मजदूरो को
इंतेजार के किए सुस्ताने का
मौका मिले |
जो
हालत देखने और सुनने में आ रहे
हैं उनसे एक बात साफ हो गयी
हैं की केंद्र ने "”नज़रबंदी
"
का
आदेश करते वक़्त इन 25
लाख
श्रमिकों के बारे महि सोचा
था जो देश के दस राज्यो में
काम कर रहे थे |
सर्वाधिक
मजदूर महा राष्ट्र और गुजरात
में कार्यरत हैं !
उसके
बाद दिल्ली और नजदीक हरियाणा
तथा पंजाब में हैं |
अभी
भी इन ट्राइनो के बारे में कोई
सुचारु व्यसथा नहीं घोषित
हुई हैं ना तो राज्य सरकारो
की ओर से ना ही भारत सरकार की
ओर से !
इन
सब हालातो के दौरान भारत सरकार
ने लोगो को आगाह किया हैं की
25
मई
से 5
जून
के बीच कोरोना का जोरदार हमला
होने की आशंका हैं |
अब
ऐसे में इन मजदूरो की हालत
विकट हैं ,
इन्हे
इनके गाव में ही क्व्रैंटाइन
करने का प्रबंध नहीं किया गया
तो ------अभी
तो यह महामारी शरो में ही डेरा
डाले हैं ,
अगर
यह गावों में पाहुच गयी -तब
परिणाम बंगाल का प्लेग बन
सकता हैं ---
1943 के
दुर्भिक्ष में अकेले अविभाजित
बंगाल में 30
लाख
लोग मारे गए थे ,
अगर
किसानी बरबस हुई तब यह संख्या
कम भले ही हो जाये --क्योंकि
सरकारी भंडारो में गल्ला भरा
पड़ा हैं |
परंतु
उसको लोगो तक पाहुचना -
उतना
ही मुस्ज्किल होगा ---जितना
आज की तारीख में स्वास्थ्य
सेवाए पाहुचना हो रहा हैं !!
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