आखिर
बेबस मजदूरो की आह को सरकार
ने सुना -
भले
ही 30
दिन
बाद !
--- - शिवराज
सरकार ने दूसरे राज्यो में
राष्ट्रीय तालाबंदी के कारण
फंसे मध्य प्रदेश के मजदूरो
को वापस लाने का फैसला किया
!
पहली
खेप में जनजाति के मजदूर जो
गुजरात में थे उन 2700
लोगो
को लाया गया |
हालांकि
अपने राज्यो के नागरिकों को
कोरोना के संक्रामण के भय के
बावजूद कोचिंग कैपीटल कोटा
में में फंसे उत्तर परदेश के
छात्र -छात्राओ
को वापस बुलाने के लिए 400
बसे
भेजी थी |
फिर
मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ
ने अफसरो को अल्टिमेटम दे
दिया की 30
अप्रैल
तक यू पी के मजदूरो को वापस
लाया जाए |
उसके
बाद ही एम पी ने भी कोटा से अपने
छात्र बुला लिए |
अब
मुंबई -
और
गुजरात में फंसे भील और आँय
जातियो के मजदूरो को राज्य
में लाने का निर्देश दिया हैं
|
भले
ही राज्य के लोगो को वापस लाने
में पहला स्थान उन धनपतियों
के संतानों को मिला ,
जो
लाखो रुपया अड्वान्स में देकर
डाक्टर -इंजीनीयर
-
या
प्रतियोगी परीक्षा के लिए
जाते हैं |
आखिर
वे ही हमारी उम्मीद हैं |
राष्ट्रीय
तालाबंदी की घोसणा के बाद 25
अप्रैल
को दिल्ली और गुजरात के सूरत
तथा मुंबई में रेल और बस अड्डो
पर जमा हुई हज्जारों -हज्जारों
की आप्रवासी मजदूरो भीड़ का
एक ही मकसद था ----किसी
तरह अपने -
अपने
घर पाहुचना !
उनको
कोरोना का डर नहीं था आशंका
थी बेरोजगार हो कर भूखे मर
जाने की वह भी अपने मुलुक और
गाव से दूर !
इसीलिए
सैकड़ो लोग सरकार की पाबंदियों
के बावजूद अपने -
अपने
तरीके से "”घर
"”
की
ओरनिकल पड़े |
कुछ
साइकल से अधिकतर परिवार सहित
पैदल ही भूखे प्यासे चल पड़े
---
कोई
सात दिन में बंदा पहुंचा तो
कोई चार दिन में अलीगड |
बुलंद
शहर और सहारनपुर |
उत्तर
प्रदेश के आजमगाड -
देवरिया
-
तथा
बिहार के झारखंड के लोग भी
जैसे तैसे निकाल पड़े |
राह
में किसी ने कुछ किला दिया या
दे दिया तो ले लिया \
कुछ
ट्रक {
जो
सड्को पर कम ही दिखते थे }
इन
पद यात्रियो को कुछ दूर तक
पहुंचा देते थे |
इनकी
गाथा जिस दिन लिखी जाएगी ---वह
देश के बाहर मारिशस भेजे गए
"”गिरमिटिया
मजदूरो की भांति ही दयनीय थी
"”
| गावों
के किस्से में कह जाता हैं की
– जैसे कौवा हकनी के दिन फिरे
वैसे ही सबके दिन फिरे !
इस
कथानक का अर्थ यह हैं की -
आखिर
फिर कभी तो सुबह होगी |
मोदी
जी द्वरा चैनलो पर 24
तारीख
को की घोषणा के बाद सहमे इन
मजदूरो के पास मालिक से मिली
मजूरी ही सहारा थी |
जब
धीरे -धीरे
घर का अनाज खतम होने लगा ,
और
सरकार के विज्ञापन और घोसनाए
भी इन लोगो
को ना तो अनाज पहुंचा सकी -ना
इनके भविष्य के बारे में बता
सकी !
तब
भूखे प्यासे इन लोगो ने सूरत
में "”
सरकारी
बंदिशों को तोड़ कर -सड़क
पर सरकारी अफसरो से से खाना
ना मिलने और मकान मालिको द्वरा
किराया मांगे जाने की शिकायत
की |
पर
सरकार तो एक ही भाषा जानती है
---
पुलिस
की लाठी !
सो
वही हुआ ,
100 से
ज्यड़ा लोगो को गिरफ्तार और
900
सौ
लोगो के खिलाफ रिपोर्ट !!
ऐसा
ही मामला मुंबई में भी सामने
आया जब इन लोगो ने अनाज और
खाना नहीं मिलने की शिकायत
की ----जबकि
पुलिस और प्रशासन घूम घूम कर
इसकी घोसणा कर रहा था |
यानहा
भी वही हुआ सैकड़ो लोग गिरफ्तार
हुए उसमें नाबालिग भी थे ,
और
बहुतों के खिलाफ रिपोर्ट भी
हुई |
अनेकों
यातनाए भुगत कर सैकड़ो मील
चलकर घर पहुंचे ये लोग क्या
दुबारा अधिक मजदूरी की लालच
में हरियाणा -
राजस्थान
-गुजरात
या महाराष्ट्र जाएंगे ?
और
अगर ऐसा नहीं हुआ तो मुंबई के
करघे और सेवा का काम कौन करेगा
?
ब्रिटेन
में खेती की फसल की कटाई के
लिए दक्षिणी अम्रीका से मजदूरो
को लाया गया |
क्योंकि
उनकी प्लेटो से सलाद गायब हो
रह था |
यही
हाल अमेरिका के कैलिफोर्निया
प्रांत में हैं जनहा संतरा -
सेव
और बादाम की फसल को खेत से घर
लाने के लिए मजदूर नहीं हैं
|
एक
उदाहरण हैं की खाड़ी के देशो
और सऊदी अरब में रमजान के दिनो
में "”
ज़कात
"”
की
रकम लेने के लिए देश के बाहर
से लोगो को आने देते थे !
पर
इस बार क्या होगा ?
क्योंकि
हवाई सेवाए बंद हैं ,
तो
क्या स्थानीय लोग ज़कात की रकम
लेंगे ?
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