निर्वाचन
आयोग की अनदेखी या आँख मूँदना
और क्लीन चिट देना
कितना
निसपक्ष और कितना न्याया
पूर्ण ??
संस्थान
और प्रक्रिया संदेह के घेरे
मैं !!
जिस
प्रकार उपग्रह प्रछेपण को
राष्ट्रिय अस्मिता का प्रतीक
बता कर प्रधान मंत्री नरेंद्र
मोदी ने "”राष्ट्र
के नाम सम्बोधन "”
पर
चुनावी माहौल के दरम्यान
"अपनी
सरकार "”
की
उपलब्धि को अन्तरिक्ष की
चौकीदारी की शक्ति बताया ,
उसे
निर्वाचन आयोग के उप चुनाव
आयुक्त सक्सेना ने – महज दायित्व
निर्वहन बताया !!!!
जिसे
मीडिया ने "”क्लीन
चिट"”
देना
बता दिया "”
!! जबकि
यह छमता डीआरडीओ ने सात साल
पहले ही हासिल कर ली थी !
इंडियन
एक्सप्रेस मैं 21
अप्रैल
2012
को
डीआरडीओ के सरस्वत ने दिल्ली
मैं एक पत्रकार वार्ता मैं
यह बात बताई थी |
ऐसे
मैं सवाल उठता हैं की यह
"”उपलब्धि
"”
चुनाव
के दौरान अपने नाम से जोड़ने
की थी अथवा देश की अस्मिता की
थी ??
उत्तर
कोरिया द्वरा हजारो मील दूर
तक मार करने वाले राकेट की
घोसना की थी तब वह देश की शक्ति
का प्रदर्शन था |
विशेस
कर अमेरिका के लिए |
परंतु
हमारी इस छमता का उपयोग किस
को दिखने के लिए ?
पाकिस्तान
अभी इतना सक्षम नहीं हैं |
चीन
से हम इस प्रणाली मैं बहुत
पीछे हैं |
अमेरिका
से फिलवक्त कोई हमारी अदावत
नहीं हैं |
फिर
यह कितना समीचीन ?
मुद्दा
यानहा घोसना करने के वक़्त और
उसके पीछे की नियत का हैं |
जो
निश्चित ही आयोग की कार्य
प्रणाली की निसपक्षता पर
सवालिया निशान लगता हैं |
लगता
हैं मोदी सरकार की ""टेक
"”
की
सवाल और सबूत नहीं मांगो |
जो
हम कह दे उसे सही मानो की तर्ज़
पर आयोग भी चल रहा हैं !
इसी
निर्वाचन आयोग ने सर्वोच्च
न्यायालय मैं 21
राजनीतिक
दलो द्वरा वी वी पैट की 50
फीसदी
परचियो की गिनती किए जाने
बाबत मैं दाखिल हलफनामे मैं
कहा की आयोग "”निसपक्ष
चुनाव के लिए किसी भी सुझाव
को मानने के लिए तत्पर हैं !
परंतु
इस गिनती के कारण ----परिणाम
घोषित करने मैं छ दिनो की देर
होगी !!
अतः
इस याचिका को खारिज कर दिया
जाये !
तेलंगाना
मैं मुख्य मंत्री की बेटी के
निर्वाचन छेत्र मैं 125
लोगो
द्वरा नामांकन दाखिल किए जाने
पर आयोग ने उस छेत्र मैं बैलेट
द्वरा चुनाव कराये जाने की
घोसना की हैं !
अब
अगर बैलेट द्वरा चुनाव की मांग
करने वाले दलो द्वरा अपने -
अपने
छेत्रों मैं 64
से
अधिक लोगो के नामांकन दाखिल
करा दें --तब
आयोग बैलेट पेपर से चुनाव
करने को मजबूर नहीं हो जाएगा
|
क्योंकि
ईवी एम मशीन मैं मात्र इतने
ही उम्मीदवारों के लिए छमता
हैं |
इस
तकनीकी खामी अथवा छमता का
फायदा गैर बीजेपी दलो द्वारा
उथया जाये तब कान्हा होगा
चुनाव आयोग का कहना की मशीन
पूरी तरह से विश्वसनीय हैं
और इसमैं किसी प्रकार की गड़बड़ी
नहीं हो सकती ?
आयोग
के नाबीना चौकीदार होने पर
तब और विश्वास होता हैं जब
राजस्थान के राज्यपाल कल्याण
सिंह का वीडियो भी संगयन मैं
नहीं लिया जाता !
लगता
हैं उस मैं भी आयोग वीडियो
को तकनीकी परीक्षण के लिए
भेजेगा |
और
उसका परिणाम भी महीनो बाद ,
अर्थात
चुनाव के बाद आएगा -तब
उसे "”क्लीन
चिट "”
दे
दी जाएगी !
मुझे
याद है की 2014
के
चुनावो के समय लखनऊ और नोयडा
मैं मायावती द्वरा बनवाए गए
पार्को मैं हाथी की मूर्तियो
को कपड़े से ढक दिया गया थ ,
चूंकि
वह बहुजन समाज पार्टी का चुनाव
चिन्ह था |
तब
तो इतनी सख्ती और अब सरकारी
पार्टी को इतनी छूट !
आखिर
क्यों ?
क्या
अन्य संस्थाओ की भांति चुनाव
आयोग भी मोदी -शाह
के आतंक से भयभीत हैं !
शताब्दी
ट्रेन मैं चाय के लिए दिये
जाने वाले कप मैं लिखा था
"”चौकीदार
"”
अब
यह सभी को मालूम हैं की "”मैं
भी चौकीदार "”
का
नारा प्रधान मंत्री नरेंद्र
मोदी ने दिया हैं |
उसके
बाद उनके सांसदो और विधायकों
तथा पार्टी के अन्य नेताओ ने
ना केवल अपने नाम के आगे चोकीदार
लिखना शुरू कर दिया वरन अपने
वाहनो मैं भी इसे लिखना शुरू
कर दिया हैं |
मध्य
प्रदेश पुलिस ने संघ के एक
कार्यकर्ता के वाहन की नंबर
प्लेट पर भी चौकीदार लिखा होने
कारण चालान किया |
क्योंकि
नंबर प्लेट पर सिवाय वहाँ के
नंबर के कुछ भी लिखना अपराध
हैं |
अब
चुनाव आयोग इस घटना का संगयन
लेगा अथवा क्लीन चिट दे देगा
!
हालांकि
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय
सरकार और निर्वाचन आयोग को
अवमानना नोटिस देकर वोटो की
गिनती के मौजूदा फोर्मूले
-जिस
मैं पूरे निर्वाचन छेत्र के
किसी एक बूथ के 50
फीसदी
परचियो की गिनती का सुझाव हैं
|
परंतु
विधान सभा चुनावो मैं भी इस
फार्मूले को लेकर पार्टियो
ने काफी एतराज़ जताया था |
परंतु
चुनाव आयोग ने उन अर्जियो को
खारिज कर दिया था |
अब
सुप्रीम कोर्ट के यह कहने पर
की "”
क्या
आयोग कोई ऐसा रास्ता नहीं
निकाल सकता जिस से की लोगो को
इस प्रणाली पर भरोसा हो ?
आयोग
ने कहा की लोगो को 999.99
प्रतिशत
इस प्रणाली पर भरोसा हैं |
सवाल
यह है की निर्वाचन आयोग ने
वोटरो की प्रणाली से संतुष्ट
होने यह गणना कब कराई ?
क्या
यह भी सैंपल सर्वे का परिणाम
हैं !!!
फिर
यह परिणाम कान्हा से निकला ?
|
ऐसे
उदाहरणो से चुनाव आयोग पर
सरकार के नियंत्रण मैं काम
करने का संदेह होता हैं |
जब
पंचो पर ही संदेह होने लगे तब
कैसे कहा जा सकता हैं की पंचो
मैं भगवान बस्ते हैं ?
बिना
परीक्षण और तर्क पूर्ण प्द्ध्ति
की गैर हाजिरी मैं निष्पक्ष
चुनाव की कैसे कल्पना की जा
सकती हैं |
यह
तो हरियाणा के जाटो की चौबीसी
जैसी हालत है ---जनहा
कानून और हक़ीक़त को अपने हिसाब
से समझा जाता हैं |
फिलहाल
इस चुनाव मैं आयोग के फैसले
नज़ीर बनेंगे और न्यायालय उस
पर क्या रुख लेता हैं --यह
तो आने वाला समय ही बताएगा |