अब शंकरचार्यों को भी राह दिखाने की हिमाकत कर रहा है विश्व हिन्दू परिषद !
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1200 साल पूर्व जिस मनीषी ने वेदिक धर्म की अवरुद्ध सनातन परंपरा को पुनः नए स्वरूप में विश्व के सामने स्थापित किया ----
उन महान आदिगुरु शंकराचार्य को – 90 वर्ष पुराने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से उत्पन्न विश्व हिन्दू परिषद के प्रवक्ता शरद शर्मा ने उस गौरवशाली परंपरा के पीठधिस्वरो को "” सलाह दी है की अयोध्या का कलंक "संतो" ने समाप्त कर दिया है !!अतः शंकराचार्य अब काशी और मथुरा को कूच करे !! हमारे आंदोलन को "कुछ" लोग दिशविहीन करने का प्रयास कर रहे है !!
नब्बे साल पुराने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा विश्व हिन्दू परिषद जिसका उद्भव भारतीय जनता पार्टी के नेता लाल कृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा के लिए देश में ध्रमंधाता का वातावरण बनाने का था | इनके नेता अशोक सिंघल ने हर घर से "”एक रुपया और एक ईंट "” का नारा दिया था | देश के धरम भीरु जनता ने भर - भर कर रुपया दिया |जब आकार उपायुक्त अगरवाल ने इस धन का हिसाब मांगा -----तब उन्हे निलंबित कर दिया गया !! यह थी परिषद की 'जनता से उगाहे गए पैसे के प्रति ईमानदारी "”! एक पत्रकार वार्ता में लेखक ने उनसे "” हिन्दू और सनातनी "” का अंतर पूछ लिया था -तो वे नाराज हो गये थे | फिर भी मैंने पूछा की की किस धर्म ग्रंथ में "”हिन्दू "” शब्द का उपयोग हुआ है | तो उन्होने मुझे महात्माओ से मिलने की सलाह दी ! जो उनके चाहे अनुसार "” भाषय "” करते थे ! परिषद धरम और उसके करमकांडो के प्रति कितनी शुचिता का भाव रखते है , इसका उदाहरन समाजवादी पार्टी की सरकार के समय तथाकथित"””कारसेवको "” {वैसे यह सम्बोधन सिख संप्रदाय में अवैतनिक रूप से गुरुद्वारों में कारी करने वालो को दिया जाता है }} पर गोली चालान से मारे गए लोगो की "”असथिया "”मिट्टी के बर्तनो में लेकर भारत भ्रमण कर रहे थे | उत्तर प्रदेश के अवकाप्रापत पुलिस महा निदेशक श्रीश चन्द्र दीक्षित उन अस्थियो को लेकर भोपाल आए और --- समाजवादी पार्टी द्वरा "”हिन्दू धर्म के इन शहीदो '’ की हत्या का आरोप प्रैस कोन्फ्रेंस में लगते रहे |लगभग चालीस मिट्टी के बर्तनो में संचित "” शहादत की राख़ को वे अरब सागर मे विसर्जित करने ले जा रहे थे | जब उनसे मैंने पूछा की इन शहीदो के नाम और कुल तथा गोत्र क्या है ? तब उन्होने असमर्थत्ता जताई | मैंने कहा आप ब्रामहन है आपको मालूम है की बिना नाम और गोत्र के राख का विसर्जन धार्मिक रूप से संभव ही नहीं ! तब वे निरुत्तर हो गए | यह है विश्व हिन्दू परिषद के नेताओ का धर्म और उसके करम कांडो का ज्ञान !!! ऐसे लोग जो राजनीतिक उद्देश्य के लिए धर्म का इस्तेमाल कर साधारण जन को बहकाते है – वे धार्मिक तो है नहीं और राजनीति को भी दूषित करते है |
श्री शरद शर्मा का यह कथन की अयोध्या का कलंक "संतो " ने समाप्त कर दिया है ! क्या बाबरी मस्जिद को ढाहाने वाले सभी अभियुक्त "”संत है ? आडवाणी -साध्वी उमा भारतीय और अनेकोनेक लोगो को जो कानून की नज़र में दोषी है | लिब्रहान आयोग ने इन लोगो को जिम्मेदार बताया हैं ?
शर्मा जी किस हैसियत से शंकरचार्यों को अयोध्या कूच करने से विरत करना चाहते है ?क्या इसलिए की उनके द्वरा इलाहाबाद कुम्भ में "जमा की गयी भगवा धारियो की भीड़ '’जिसे संघ समर्थको ने धरम संसद का नाम दिया ---- उसका असर जनमानस पर निष्प्रभावी रहा ,इसलिए ? स्वामी स्वरूपानन्द द्वरा आयोजित धर्म संसद में दो पीठो वे स्वयं आरूड़ है | दो अन्य पीठो ने भी अयोध्या में रामलला के मंदिर निर्माण तक धरना देने की घोषणा से भारतीय जनता पार्टी - राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विश्व हिन्दू परिषद की राजनीति का पर्दाफाश हो गया है | इसीलिए मिर्ची लग रही हैं |
वेदिक काल की समय की गणना को लेकर सदियो से आंकलन करने का प्रयास किया जा रहा है | परंतु भारतीय और विदेशी इतिहासकार अभी तक एक मत नहीं बना पाये हैं | परंतु इतना तो वे सभ मानते है की जब यूरोप में उनकी भाषाओ का व्याकर्ण नहीं बना था तब संस्क्रत का व्याकरण - पिंगल आदि के नियम प्रचलित थे | ऋग्वेद जो की मूल ग्रंथ है उसमें जिस प्रकार प्र्क्रती का विषाद वर्णन है --उसे दुनिया सभी विद्वानो ने अद्भुत माना हैं| वेदिक काल में ना तो मूर्तियो का अथवा मंदिरो का कोई ज़िक्र नहीं है | प्रारम्भिक और -उत्तर वेदिक काल की समाप्ती के बाद जब पौराणिक युग का प्रारम्भ हुआ तब मूर्तियो और मंदिरो तथा अवतरवाद का प्रादुर्भाव हुआ |
वेदो में प्र्क्रती की शक्तियों को देवता के अधीन माना गया | वर्षा तत्कालीन समय में किसानी के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण थी - इसलिए इंद्र को देवराज माना गया | अग्नि मानव जाति के लिए अत्यंत आवश्यक थी – उन्हे उष्णता प्रदान करती थी | इसीलिए यज्ञों में सर्वप्रथम अग्नि का ही आवाहन किया जाता हैं | इन शक्तियों का स्वरूप निराकार था ---इसीलिए इनकी मूर्तिया या मंदिर नहीं बने होंगे | पौराणिक काल में इन देवताओ के बारे में अनेक कथाओ का प्रादुर्भाव हुआ होगा | वेदो में ब्रह्मा -विष्णु - महेश या शिव की अवधारणा नहीं मिलती है | विश्वामित्र रचित गायत्री देवी और कई ऋषियों द्वरा आदि शक्ति की आराधना की गयी है | शेष इन्द्र - वरुण - अग्नि अश्वनीकुमारों आदि की प्र्शंशा में ऋचाए रची गयी है | वेदिक काल में स्त्री - पुरुष का समान स्थान था | लगभग 50 से अधिक ऋषिकाओ की रचनाए मिलती है |
अवतरवाद और पुराणो की क्थाए जन सामान्य को इतिहास बताने का काम करती हैं |बाल्मीकी की रामायण तत्कालीन समय की रचना है ---परंतु तुलसीदास की रामचरित मानस लिखे जाने तक एसिया के अनेक देशो में इसे विभिन्न रूपो में देखा जाता है | इसी अवतारवाद के काल में भारत में तथा अन्य देशो में मूर्तियो की अवधारणा हुई --और उनकी आराधना -अर्चना के विधि - विधान बनाए गए | ऐसा माना जाता है की मानव जाति स्भ्यता के आदि काल से ही “”प्रतिको” में दैविक शक्तियों को देखती थी | परंतु भारत में ऐसा कम ही हुआ हैं |
हमारे धरम ग्रंथो में “”हिन्दू “” शब्द का प्रयोग नहीं हुआ है | अब कुछ लोग जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके आनुषंगिक संगठनो में काम कर रहे है ------उनका प्रयास है की “”वेदिक धर्म की सनातन परंपरा “”” को हिन्दू कह कर परिभाषित किया जाये ! हिन्दू शबद की उत्पती सिकंदर के भारत पर हमले के समय हुई ---जब उनके सिपाहियो ने “सिंधु “” नदी को “हिन्दू “ कहा होगा | भाषा शास्त्रियों के अनूषर “ ग्रीक में “स “ का दीर्घ उच्चरण नहीं है | परंतु बाद में इस शब्द का प्रयोग सीमापर से आने वाले हमलावरो ने किया |गुलाम वंश के समय भी इस शब्द का प्रयोग किया जाता रहा हैं | परंतु प्र्ससनिक और कानूनी कारणो से “”यह “” पहचान का शब्द बना रहा | वह भी शासको के लिए |
परंतु सान्स्क्र्तिक और धार्मिक कर्मो में इस शब्द का प्रयोग कभी नहीं हुआ | 1857 के बाद भारतीयो की पहचान “”इंडियन “” बन गयी | जिसका धर्म से कोई नहीं लेना -देना था |क्योंकि यह पहचान सनातनी - इस्लाम-और सिख तथा पारसी की बनी | परंतु न तो यह पहचान सामाजिक थी नाही सान्स्क्र्तिक और धार्मिक तो कतई नहीं थी | कंपनी साहब बहादुर के काल में विलियम बेंटिक ने “” सती प्रथा को “” गैर कानूनी करार दिया | बेमेल विवाह को प्रतिबंधित किया | बंगाल के विद्वानो ने पौराणिक परंपरा में आई इन दूषित क्रत्यो के विरुद्ध सुधारवादी “” ब्रामहो समाज का निर्माण किया | जिसमें स्त्री शिक्षा - पर्दा प्रथा का अंत था |आज देश में कुछ लोग है जो पाणिग्रहण को स्त्री - पुरुष का करार बताते है {{{ इंदौर में मोहन भागवत का कथन }} कुछ लोग लड़कियो को घर तक ही सीमित रहने की सलाह देते हैं ! लोगो के खानपान पर धर्म के नाम पर आपति जता कर समाज को विभाजित करने की कोशिस करते है | विश्व हिन्दू परिषद भोलेभाले लोगो को धर्म के नाम पर बर्गलाने का तरीका भर है | ना तो इन्हे धर्म का ज्ञान है ना ही देश की विविधता और वेदिक समाज के व्भिन्न सम्प्रदायो के रीति रिवाजो का ज्ञान है | मटर भाषण और प्रचार द्वारा भीड़ जुटा कर डराने का काम कर रहे हैं |
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