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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Jan 17, 2018

धर्म निरपेछता की ओर एक ''छोटा '' प्रयास हज सबसिडी खतम किया जाना ,,पर त्रिवांकुर देवस्थम न्यास को करोड़ो रुपये की राशि मंदिरो की देख -रेख के लिए केरल और तमिलनाडू की ''संचित राशि ''' का दान भी क्या बंद होगा ??
शायद मोदी सरकार इस संवैधानिक व्यव्स्था को ''ठीक नहीं करेगी ''
इसी कारण यह धर्म निरपेक्षता "लंगड़ी " ही रहेगी --जो एकतरफा है


केंद्र सरकार द्वरा 16 जनवरी को किए गए इस फैसले दावा किया गया है की 2017 तक भारत सरकार ने 636 करोड़ रुपये से अधिक की बचत की थी | यदि पूर्व योजना 2012 के अनुसार इस राशि को हरसाल घटते जाना था --जिस से साल 2022 तक 5970 करोड़ रुपये बचते | सरकार के अनुसार सबसिडी खतम करने से 700 करोड़ की बची राशि ''अल्प संख्यकों " की महिलाओ और कन्यों की शिक्षा पर व्यय किए जाएँगे !! धर्मनिरपेक्षता की ओर यह कदम लंगड़ा इसलिए है की संविधान के अनुछेद 290-अ मे यह व्यवस्था की गयी थी की त्रिवांकुर देवस्थानम को केरल सरकार की संचित निधि से 46 लाख 50 हज़ार तथा तमिलनाडू स्थित देवस्थानम के मठ -मंदिरो के लिए वनहा की संकित निधि से 13 लाख 50 हज़ार की राशि प्रति वर्ष प्रदाय की जाएगी | अब यंहा ''संचित निधि ''' का अर्थ समझना होगा | राज्य या केंद्र के बजट मे दो प्रकार के खर्चो का विवरण होता है |एक वे खर्चे है जिन पर सदन मे मतदान होता है --तब मंजूर राशि का आहरण शासन करता है | इस मद मे सरकार के सभी खर्चे होते है | दूसरी मद होती है 'संचित निधि ' से किए जाने वाले खर्चो की -जिनपर मतदान नहीं किया जा सकता ,इनमे राज्यपाल और उच्च न्यायालय के जजो के वेतन भत्ते तथा कुछ अन्य मद शामिल होती है | वे ऐसे व्यय होते है जो किसी भी शासक के लिए अपरिहार्य होते है | वे सदन की मंजूरी के अधीन नहीं होते | वरन ये बाध्य होते है | वस्तुतः बजट के लिए मंजूर राशि भी इसी संचित निधि से निकालने के लिए "विनियोग विधेयक ' की मंजूरी लेनी होती है |

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