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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Sep 18, 2017

बिट क्वाईन यानि की अनियंत्रित मुद्रा अर्थात सटटा और कालाबाजारी की क्रिप्टो करेंसी – आरबीआई की लक्ष्मी करेंसी !!

विश्व भर मे साइबर हमलो मे फिरौति के रूप मे मांगी जाने वाली मुद्रा -जिसके भुगतान को किसी भी प्रकार से पता नहीं लगे जा सकता की --यह किसके खाते मे पहुंची है ! आज जबकि चीन ऐसे महादेश ने इस मुद्रा के चलन पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया है | ऐसे मे रेज़र्व बैंक ऑफ इंडिया का यह निश्चय की भारत मे भी क्रिप्टो करेंसी की शुरुआत की जाये ---- आश्चर्य जनक ही लगता है !

अभी हाल मे ही यूरोप के अनेक देशो मे सरकार और व्यापारिक संस्थानो के कार्यालयो के सिस्टम को '''बेकार '' कर देने वाले वाइरस के हमले की फिरौती इसी मुद्रा मे मांगी और भुगतान की गयी थी | अमेरिका और रूस समेत ब्रिटेन - जर्मनी मे कई डीनो तक लाखो कम्प्युटर का डाटा को "” इसटेमाल करने लायक नहीं रहने दिया गया था | इन सभी देशो की खुफिया एजेंसियो की लाख कोशिसों के बाद भी यह नहीं पता चल सका की "”ये हैकर कौन है "” | न्यूयार्क के स्टाक मार्केट मे संबन्धित संस्थानो के शेयर की खरीद--बिक्री स्थगित कर दी गयी थी |

अमेरिका की ख्यात वित्तिय संस्थान और बैंक जे पी मॉर्गन और कई अन्य संस्थानो ने इस मुद्रा को स्वीकार नहीं करने का फैसला विगत सप्ताह ही किया | उनके विश्लेषण के अनुसार यह मुद्रा उन धंधो मे निवेश का काम करती है जिनहे वित्तीय बाज़ार से क़र्ज़ नहीं मिल सकता है | उनके अनुसार इस मुद्रा का चलन जल्दी ही समाप्त हो जाएगा | उनके मतानुसार जिस मुद्रा का नियंत्रण किसी ''सेंट्रल बैंक '' द्वरा नहीं हो उसके चलन की संख्या और मूल्य का अनुमान नहीं लगे ज़ सकता है | उन्होने इसकी बढती या घटती का पता नहीं लगे जा सकता है |

आज जब भारतीय अर्थ व्यवस्था कमजोर है ऐसे मे क्रिप्टो करेंसी को बाज़ार मे उतारना --नोटबंदी के बाद उसके परिणामो की उम्मीद की असफलताओ को देखते हुए ''दुस्साहस '' ही कहा जाएगा '' | वैसे ही मोदी सरकार जीएसटी के दूसरे वित्तीय कदम को लेकर अनिश्चित काहल रही है | सूत्रो के अनुसार अगस्त से अब तक केंद्र को इस मद मे 85 करोड़ के राजस्व की प्राप्ति हुई है | परंतु उत्पादको और व्यवापारियो ने 65 करोड़ की राशि के "”वापसी भुगतान '''के दावे सरकार को दिये है | जिनको लेकर मंत्रालय के अधिकारी राजस्व की किल्लत का अनुमान लगा रहे है | जीडीपी मे विगत तीन सालो मे सर्वाधिक निचले स्तर पर यानि 5% पर पहुँच गयी है | जो अब तक के दस वर्षो का न्यूनतम है | ऐसे मे आरबीआई का यह नया प्रयोग कनही हमारी मुद्रा को अवमूल्यन के निचले धरातल पर ना पहुंचा दे --ऐसी आशंका व्यक्त की जा रही है |

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