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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari
Aug 8, 2014
ज्योति हत्याकांड मे सामाजिक और विधिक न्याय की छवि
कानपुर मे करोड़पति बिसकुट व्यापारी दासनी के चिरंजीव पीयूष द्वारा अपनी पत्नी ज्योति की साजिश कर के क़तल करने
के आरोप मे गिरफ्तारी के बाद पुलिस उप अधीक्षक राकेश नायक द्वारा खुले आम माथा चूम कर निर्दोष बताना , फिर जन
आक्रोश के चलते उन्हे निलंबित किया जाना , और अदालत मे वकीलो द्वारा अभियुक्त को पुलिस हिरासत से छुड़ाकर पिटाई
करना और बाद मे उसकी पैरवी नहीं करने के फैसले के घटना क्रम ने यह तो साबित कर दिया की समाज मे अभी भी "" संवेदना'"
बची हुई है | साथ यह भी की उत्तर प्रदेश का प्रशासन भी उतना ""नाकारा""" नहीं जितना कुछ राजनीतिक दलो द्वारा चित्रित किया
जा रहा है | वरना समाज का ही दबाव था जो चौबीस घंटे ने एक पुलिस अधिकारी का निलंबन फिर उन्हे कानपुर से दूर अटैच
करना ""जन मानस """ की आकांछा की पूर्ति ही तो है , वरना इंदौर मे एक दारोगा के दुर्व्यहर पर आकृषित वकीलो को तो
एक पखवारे से ज्यादा तक ""काम बंद करके आंदोलन करना पड़ा | जैसा सामाजिक दबाव एक धनपती के अभियुक्त पुत्र की
पैरवी नहीं करना वकीलो द्वारा सामाजिक समस्याओ पर विरोध प्रकट करने का अंतिम हथियार है |
एक ओर पीयूष के पिता ने अपने पुत्र को हत्या का गुनहगार मानते हुए उसकी पैरवी नहीं करने का इरादा
जताया है वंही हत्या की सह - अभियुक्त मनीषा माखिजा के पिता हरीश माखिजा ने पीयूष पर आरोप लगाया है की उसी ने
उनकी लड़की को ज़बरदस्ती फंसाया है | पुलिस के अनुसार पीयूष और मनीषा के मध्य संबंधो को साबित करने के
लिए मोबाइल फोन से भेजे गए सैकड़ो एसएमएस का विवरण निकाला है जो लगभग 700 पेजो का है | अभियुक्तों ने
संदेशो को डिलीट कर दिया था | यह दर्शाता है की जंहा पीयूष के पिता ने घटना के सत्या को स्वीकार करते हुए पुत्र के दोष
को मंजूर किया वंही गुटखा व्यापारी हरीश माखिजा ने सत्य को झुठलाने के लिए पैसे और रसूख की मदद लेने का अहंकार
दिखाया है | जबकि अभी तकके घटना चक्र से स्पष्ट है की प्रथम द्रष्ट्या दोनों ही दोषी है | यह दो पैसे वालो की मनःस्थिति
को रेखांकित करता है , जनहा एक ने सच को मान कर "अपराधी"" की मदद नहीं करने का फैसला किया वंही दूसरे ने
""संतान मोह "" को सामाजिक - कानूनी दायरे को नकारने की कोशिस की है | यह समाज मे पैसेवालों की मनःस्थिति
को दर्शाता है | व्यक्ति और समाज की इस लड़ाई मे कौन जीतेगा यह भविष्य के गर्भ मे है |
इस घटना एक और पहलू है की समाज के लोग इस घटना के द्वारा यह सीध करने की कोशिस मे है की ""पैसे""
से न्याय नहीं खरीदा जाये ---जबकि वास्तविक जीवन मे "" न्याय "" मिलना असंभव सा ही है | अदालतों के चक्कर
और सालो चलने वाली सुनवाई - अपील आदि मे दासियो साल लग जाते है | डाकू फूलन देवी की हत्या मे हाइ कोर्ट ने
सत्रह साल बाद अभियुक्त शेर सिंह राणा को दोषी करार दिया है | इस हाइ प्रोफ़ाइल मामले मे एक तो डाकू दूसरे हत्या के
समय वे संसद सदस्य थी और राणा से उन्होने शादी की थी | इसलिए जब ऐसे मामले दासियो साल बाद निर्णीत हो तो
सहज ही लगता है की पैसा और समय ही अपराधियो को अदालत के चंगुल से दूर रखते है |परंतु मध्य प्रदेश के उपभोक्ता मंच
ने उप पुलिस अधीक्षक द्वारा जिस प्रकार से सरे -आम पीयूष से प्यार दर्शाया उस से जिले की पुलिस की ""ईमानदारी ""
पर प्रश्न चिन्ह लगाया है | इसीलिए स्थानीय वकीलो के सहयोग से उन्होने इस मामले की जांच स्पेशल टास्क फोर्स
से करने की मांग करते हुए उत्तर प्रदेश के गृह मंत्री को पत्र लिखा है | ज्योति जबलपुर की निवासी थी और उसके पिता
व्यापारी है और उनकी सामाजिक - राजनीतिक प्रतिस्था है | जबलपुर के नागरिक शहर की ""लड़की"" की इस प्रकार हत्या
किए जाने से चुब्ध है |
हालांकि यह मामला भी हत्या के अपराध का है ,जिसकी जांच कानून के अनुसार ही होगी , सबूत झुटाए जाएँगे
गवाह खोजे जाएँगे | लेकिन कानून की किताब मे दो प्रकार के अपराध बताए गए है एक वे जो ""समाज के प्रति किए गए """
और दूसरा वह जो ""व्यक्ति के विरुद्ध हो """ , हत्या -डकैती जैसे अपराध समाज के विरुद्ध की श्रेणी मे है | परंतु
निर्भया बलात्कार के बाद यह दूसरी घटना है जब देश या प्रदेश तो नहीं परंतु कानपुर शहर मे ज़रूर ""गुस्सा"" है | यही
संवेदना अपराध और अपराधियो के हौसले पस्त करने के लिए बहुत है |
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