प्रजातन्त्र मे विरोध का अर्थ सड़क पर हिंसा या प्रदर्शन हैं ?
पिछले आलेखो मे मैंने बंगला देश - थायलैंड और नेपाल मे आम चुनावों मे पराजय की आशंका से राजनीतिक दल सरकार के विरोध मे न केवल सड़क पर प्रदर्शन कर रहे थे वरन प्रदर्शनो मे हिंसा भी हुई पुलिस का भी प्रयोग हुआ | बंगला देश मे जातीय संसद के चुनावों का बेगम ज़िया और जनरल इरशाद की पार्टियों द्वारा प्रधान मंत्री शेख हसीना की सरकार की बर्खास्तगी की मांग मे हड़ताल और प्रदर्शन के साथ चुनावों के बहिष्कार की घोषणा की थी | परंतु चुनाव हुए और एक सौ से अधिक सीटे अवामी लीग निर्विरोध जीत चुकी हैं | परंतु अभी भी स्थगित स्थानो पर चुनावी प्रक्रिया होनी हैं जो सैकड़ा स्थानो मे होगी |
वैसे शेख हसीना की पार्टी को बहुमत मिल चुका हैं |परंतु अभी भी हिंसा का तांडव वहा की सड्क़ो पर मचा हुआ हैं | इस व्यर्थ के खून खराबे से लोकतन्त्र का तो कोई भला होना नहीं हैं यह तो निश्चित हैं | परंतु सत्ता की लिप्सा विरोधी दलो और उसके नेताओ के सोच को गुमराह कर चुकी हैं | अब तक हिंसा मे 11 लोगो की मौत हो चुकी हैं |
थाईलैन्ड मे दो फरवरी को होने वाले चुनावों का विरोध फिर से सड्को पर हो रहा हैं | यानहा भी एक ही मांग हैं की प्रधान मंत्री शिंवात्रा की सरकार भंग की जाये | इन दलो सारी कोशिस चुनाव मे बहुमत पाने की नहीं हैं वरन ''अल्प्मत"" के बावजूद सरकार को गिराने का यह प्रयास हठधर्मिता ही कही जाएगी | यहा भी इन हड़ताल और प्रदर्शन के दौरान सरकारी संपति की हानि का अनुमान करोड़ो मे हैं |अभी तक इन घटनाओ मे टीम लोगो की मौत हो चुकी हैं |
पड़ोसी नेपाल मे भी उथल - पुथल मची हुई हैं | क्योंकि हिंसा के तांडव के बल पर पिछली बार सत्ता मे आए माओवादी पार्टी अब वहा के लोगो का विश्वास खो चुकी हैं | पार्टी के नेता प्रचंड खुद भी काठमाण्डू से पराजित हो चुके हैं | एक बार फिर वहा संसदीय प्रजातन्त्र की गाड़ी अटक गयी हैं | इन उदाहरणो का तात्पर्य सिर्फ यही बताना हैं की राजनीतिक दलो द्वारा केवल और केवल सत्ता पाने मे ही दिलचस्पी हैं , जनता की सेवा करने मे नहीं | शायद इनहि कारणो से ही हमारे देश मे आप का प्रयोग इतनी जल्दी सफल हुआ हैं | शायद ऐसा ही कोई प्रयोग इन देशो की राजनीति को शुद्ध कर सकेगा |
पिछले आलेखो मे मैंने बंगला देश - थायलैंड और नेपाल मे आम चुनावों मे पराजय की आशंका से राजनीतिक दल सरकार के विरोध मे न केवल सड़क पर प्रदर्शन कर रहे थे वरन प्रदर्शनो मे हिंसा भी हुई पुलिस का भी प्रयोग हुआ | बंगला देश मे जातीय संसद के चुनावों का बेगम ज़िया और जनरल इरशाद की पार्टियों द्वारा प्रधान मंत्री शेख हसीना की सरकार की बर्खास्तगी की मांग मे हड़ताल और प्रदर्शन के साथ चुनावों के बहिष्कार की घोषणा की थी | परंतु चुनाव हुए और एक सौ से अधिक सीटे अवामी लीग निर्विरोध जीत चुकी हैं | परंतु अभी भी स्थगित स्थानो पर चुनावी प्रक्रिया होनी हैं जो सैकड़ा स्थानो मे होगी |
वैसे शेख हसीना की पार्टी को बहुमत मिल चुका हैं |परंतु अभी भी हिंसा का तांडव वहा की सड्क़ो पर मचा हुआ हैं | इस व्यर्थ के खून खराबे से लोकतन्त्र का तो कोई भला होना नहीं हैं यह तो निश्चित हैं | परंतु सत्ता की लिप्सा विरोधी दलो और उसके नेताओ के सोच को गुमराह कर चुकी हैं | अब तक हिंसा मे 11 लोगो की मौत हो चुकी हैं |
थाईलैन्ड मे दो फरवरी को होने वाले चुनावों का विरोध फिर से सड्को पर हो रहा हैं | यानहा भी एक ही मांग हैं की प्रधान मंत्री शिंवात्रा की सरकार भंग की जाये | इन दलो सारी कोशिस चुनाव मे बहुमत पाने की नहीं हैं वरन ''अल्प्मत"" के बावजूद सरकार को गिराने का यह प्रयास हठधर्मिता ही कही जाएगी | यहा भी इन हड़ताल और प्रदर्शन के दौरान सरकारी संपति की हानि का अनुमान करोड़ो मे हैं |अभी तक इन घटनाओ मे टीम लोगो की मौत हो चुकी हैं |
पड़ोसी नेपाल मे भी उथल - पुथल मची हुई हैं | क्योंकि हिंसा के तांडव के बल पर पिछली बार सत्ता मे आए माओवादी पार्टी अब वहा के लोगो का विश्वास खो चुकी हैं | पार्टी के नेता प्रचंड खुद भी काठमाण्डू से पराजित हो चुके हैं | एक बार फिर वहा संसदीय प्रजातन्त्र की गाड़ी अटक गयी हैं | इन उदाहरणो का तात्पर्य सिर्फ यही बताना हैं की राजनीतिक दलो द्वारा केवल और केवल सत्ता पाने मे ही दिलचस्पी हैं , जनता की सेवा करने मे नहीं | शायद इनहि कारणो से ही हमारे देश मे आप का प्रयोग इतनी जल्दी सफल हुआ हैं | शायद ऐसा ही कोई प्रयोग इन देशो की राजनीति को शुद्ध कर सकेगा |
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